उस दिन वह खुद नहीं उठा, बल्कि उठाया गया। मां तो हमेशा कहती कि बेटा जल्दी उठा करो। जल्दी उठना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। लेकिन वह कभी भी सुबह जल्दी नहीं उठ पाता था। आज की सुबह अचानक ही उसकी पालतू बिल्ली चूहे को पकड़ने के चक्कर में उसके ऊपर ही कूद पड़ी। और उसे उठना ही पड़ा। बिल्ली को चूहा मिला या ना मिला, उसे नहीं मालूम। लेकिन वह हड़बड़ा कर बिस्तर छोड़ खड़ा हो गया और अपनी पालतू बिल्ली को जी भर कोसा।
झटका इतना तेज था कि वह दुबारा सोने का प्रयास न कर सका। सर्दी के दिनों की बेहद ठंडी सुबह थी वह। उसने देखा मां अपने सुबह के रूटीन कामकाज में व्यस्त है। घड़ी में छोटा वाला कांटा 5 को पार कर चुका था
वह बाहर आया तो मां को आश्चर्य हुआ, " आज इतनी सुबह कैसे उठ गया ! "
उसने छोटा सा संक्षिप्त जवाब दिया, " अपनी इस बिल्ली को संभाल के रखो नहीं तो मैं किसी दिन इस का गला काट दूंगा। यह जब देखो तब चूहे को पकड़ती रहती है "
उसने मूंह हाथ धोए, कपड़े पहने और बाहर की तरफ चल निकला। मां ने फिर पूछा, " इतनी सुबह कहां जा रहा है ? "
उसने कहा, " आज जल्दी उठ गया, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई, अब देखता हूं सुबह जल्दी उठने से मुझे कौन सा नायाब हीरा मिलता है ! "
मां हंस कर बोली, " जरूर मिलेगा, तथास्तु। "
वह घर से बाहर रोड पर आ गया। सुबह के 5 बज चुके थे। सड़क पर सुबह वाकिंग करने वालों को वह बड़े ध्यान से देखने लगा। तभी उसकी नजर एक मोटे किंतु कम उम्र के लड़के पर गई। वह जितनी तेजी से चल रहा था उतनी ही तेज सांसे ले रहा था।
उसे अपने दिन याद आ गए। इस उम्र में वह भी ऐसा ही था। मां अक्सर समझाया करती कि थोड़ा सा कम खाया कर, कुछ मेहनत के काम कर लिया कर। नहीं तो सुबह वाक ही कर लिया कर। लेकिन उसने कभी भी मां की बातों पर ध्यान नहीं दिया था।
लेकिन आज ? उसे देख कर कौन कह सकता है कि कभी वह भी इस लड़के की तरह रहा होगा।
सांस रोके इंतजार करते वक्त ने जब उसे और उसके परिवार को चोट दी तो सारा मोटापा दूर हो गया। नहीं . . नहीं . . अब आगे वह कुछ भी नही सोचेगा !! लापरवाही से वह आगे बढ़ गया।
चौराहे का चायवाला अंगीठी सुलगा चुका था। वह चौराहे के आसपास ही टहलने लगा। कुछ देर यूंही फालतू टहलने के बाद वह उसी चाय की दुकान में बैठ गया।
" आज भैयाजी सुबह !! चाय बनाऊं? पीजिएगा ?"
" हूं, बनालो "
अब दोनो व्यस्त। चायवाला चाय बनाने में, और वह न्यूज़पेपर में।
तभी एक लक्जरी स्लीपर बस चौराहे में ठीक चाय की दुकान के सामने खड़ी हुई। ब्रेक तेजी से मारा गया था, आवाज से उसका ध्यान पेपर से हट बस की तरफ गया।
उसने देखा एक सामान्य कद काठी की लेकिन निहायत ही खूबसूरत लड़की गहरे आसमानी कलर की सलवार सूट पहने अपने दुपट्टे को सम्हालते बस से नीचे उतरी। खलासी डिक्की से समान निकलकर उसके सामने रखे जा रहा था। एक बड़ा सूटकेश, दो बड़े बैग और भी छोटे मोटे समान थे, जिसकी तरफ उसने विशेष ध्यान नहीं दिया।
बस उसे उतरकर आगे बढ़ गई। लड़की ने चायवाले से पूछा , " क्यूं , यहा आसपास कोई अवस्थी जी रहते हैं क्या ? वही जो सेंट्रल बैंक में मैनेजर हैं ? "
" जी मैडमजी, रहते हैं, ये जो उत्तर तरफ रोड जाति है, उसी रोड में उनका मकान है "
" कोई रिक्शा या आटो मिलेगा " उसने फिर पूछा।
" मुश्किल है मैडम जी ! छोटा कस्बा है, कोई बड़ा शहर नहीं, ऊपर से ठंडी के दिन है, बहुत ही मुश्किल है , फिर भी आप बैठ लीजिए, शायद कोई मिल जाए। चाय पीजियेगा ? "
" नहीं "
अब उस लड़की की चिंता वास्तव में बढ़ गई। कभी वह अपने सामान की तरफ देखती तो कभी सेलफोन में टाइम को। बस एक बार, एक नजर उसने उस की तरफ देखा था।
और उसी एक नजर में उसे महसूस हुआ कि उसे उसकी मदद करनी चाहिए। वह उसके पास पहुंचा " हेलो ! मैं अवस्थी जी को जनता हूं, यदि आपको कोई एतराज न हो तो मैं उनके घर तक छोड़ सकता हूं।"
" भला मुझे क्या एतराज होगा ! लेकिन इतना सारा सामान, ये कैसे . . .
" कुछ आप उठाइए , कुछ मैं "
उसकी इस बात पर लड़की थोड़ा सा हसते हुए बस इतना कह पाई , " जी "
कुछ ही देर में वे दोनों अवस्थी जी के मक़ान की तरफ जाने वाली सड़क में अपनीअपनी क्षमता के अनुसार समान उठाए चले जा रहे थे।
लड़का चुप था, यह सोच कर कि यह लड़की उसे गलत न नोटिस करे, और वह लड़की यह सोचकर की कहीं ये लड़का उसे बातूनी न समझे, जैसा कि वह नहीं है। लेकिन खामोशी उसी ने तोड़ी,
"आप अवस्थी जी के घर के पास ही रहते हैं "
" नहीं , लेकिन आप यहां ? "
" वे मेरे पापा के दोस्त हैं, उन्हीं के यहां अब मुझे रहना है, लेकिन आप अपनी बताइए, यहीं के रहने वाले हैं ? "
" नहीं , हम लोग खुद इस कस्बे में नए हैं दो साल हुए हैं। इससे पहले हम भी एक बड़े शहर में रहते थे" । बाद में वह थोड़ा हसा भी।
" अच्छा कौन से शहर में . . ?
और जब उसने शहर का नाम बताया तो उस लड़की ने उसे गौर से देखा। फिर पूछा क्या तुम वहां के मशहूर बिजनेस मैन ए. भास्कर को जानते हो ?
लड़की के इस अप्रत्याशित प्रश्न ने उसके वजूद में एक भूकंप-सा ला दिया। कई सारे प्रश्न एक साथ उसके दिमाग में कौंध गए। यह लड़की भास्कर को कैसे और क्यों जानती हैं? उनसे इसका क्या संबंध रहा होगा?
उसने आश्चर्य से उस लड़की से कहा " जी हां ! जानता हूं लेकिन आपको मालूम ही होगा अब वे नहीं रहे . . .
लड़की ने कुछ गंभीर स्वर में कहा " हां जानती हूं। दो साल पहले उनकी डेथ हो चुकी है। अच्छा यह बताइए, उनका एक लड़का था, क्या नाम था . . हां अनुपम, आप उसे जानते थे?
अनुपम ! !
उसे लगा एक झटके में धरती हिल गई और वह लड़खड़ा कर गिर ही पड़ेगा। लेकिन उसने अपने आप को संभाला। लड़की की तरफ इस बार उसने सशंकित दृष्टि से देखा। अपने चेहरे में आए भावों को छुपाते हुए उसने जवाब दिया " जी ! ज्यादा कुछ नहीं, पर एकआध बार मिला था, लेकिन क्या आप उसे जानती हैं?
लड़की बोली, स्वर में लापरवाही थी , "नहीं कोई खास नहीं, बस उसकी मां मेरी मम्मी की फ्रेंड थी . . उन्हें तो जानती हूं, एक शादी के फंक्शन में मैंने उन्हें अपनी मां के साथ देखा था। लेकिन उनके लड़के से कभी नहीं मिली . . .
इसके आगे उस लड़की ने उससे क्या कहा, वह न तो सुन रहा था और न ही सुनना चाहता था। वह चुपचाप उसके साथ चल रहा था। जब वह अवस्थी जी के मकान के पास पहुंचा तब ही बोला "लीजिए, आपकी मंजिल आ गई . . .
और उसने अपने हाथ में पकड़े सामान गेट के सामने रखते हुए सिर्फ इतना कहा " अच्छा जी, मैं चलता हूं "
और वह वापस तेज कदमों से वापस चल पड़ा। पीछे से लड़की पुकारती रह गई " अरे सुनिए . . सुनिए तो ! "
लेकिन उसकी तरफ उसने कोई ध्यान नहीं दिया। उसके कदमों की तेजी बढ़ती गई और वह कुछ ही पल में ठीक अपने घर के सामने खड़ा था। अब रोड में चहल-पहल बढ़ रही थी।
एक सफलतम बिजनेसमैन बनने के फार्मूले उसे अपने पिता से मिल सकते थे, और मिले। इंसानियत और इंसानों की कद्र करने की तहजीब उसे अपनी मां से मिल सकती थी, और वह मिली।
लेकिन शिक्षा ! उसे अपने टीचर्स से स्कूल कॉलेज से मिल सकती थी, जो उसने नहीं ली। उसने आवश्यक नहीं समझा।
एक दौलतमंद सफलतम बिजनेसमैन ने उसके दिमाग में यह कूट-कूट कर भर दिया था की स्कूल में उसे सिर्फ किताबी ज्ञान मिलता है। और तुम्हें कौन सा नौकरी करना है। आफ्टर ऑल तुम्हें मेरा यह बिजनेस ही तो संभालना है। तो क्यों न अभी से इस में ध्यान दो।
इस तरह उसने पढ़ाई और स्कूल जाने में दिलचस्पी लेना छोड़ दिया। किसी तरह 12 वीं पास हुआ। और कॉलेज में मां के कहने पर एडमिशन भी ले लिया। लेकिन लगातार अनुपस्थित और फेल होने के कारण कॉलेज से भी निकाल दिया गया।
हां यह हो सकता था कि उसके पिता दौलत के दम पर डिग्री उसके लिए खरीद सकते थे, लेकिन क्योंकि उसके पिता को भी उसकी पढ़ाई से कोई खास मतलब नहीं था, इसलिए यह भी आवश्यक नहीं समझा गया। और वह रह गया केवल 12वीं पास।
मां से मिले संस्कार से वह अच्छा इंसान बना। वह इंसान की कद्र करता था। इंसानियत समझता था। इसलिए उसने जरूरतमंदों की मदद भी की। इस बात के लिए उसके पिता ने उसे कभी भी नहीं रोका। उनकी तो बस एक अभिलाषा थी कि उनके एकमात्र बारिश को पैसा कमाना और बिजनेस करना आना चाहिए। बिजनेस को वह अच्छी तरह से संभाल ले।
पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उसकी मां ? उसे पैसे से बिल्कुल प्यार नहीं था । वह अपने पास केवल जरूरी चीजें ही रखती थी। और उसे भी समझाया करती की फिजूलखर्ची और दिखावा मत करो। यह पैसा है बेटा, कभी किसी का नहीं होता। आज इसकी जेब में है, तो कल उसकी। इसलिए इस पर घमंड मत करना।
और अक्सर उसे दो चीजों की समझाइश दिया करती थी। पहली सुबह जल्दी उठो। दूसरी, शरीर फिट रखो फिर बाद में मुस्कुरा कर जोड़ देती थी " कल को तेरी शादी भी तो करनी है, आगे चलकर बहुत मोटा हो गया तो लड़कियां रिजेक्ट कर देंगी।"
उसके लिए रिश्ते भी आने शुरू हुए लेकिन कोई भी रिश्ता उसकी मां को पसंद नहीं आया। वह टलती गई और एक दिन उसने सुना जब वे उसके पिता से कह रही थीं
यो
" जब आप उनके शहर जा ही रहे हैं, तो उनसे भी मिल लीजिएगा। बात करके देखिएगा मैंने तो बात की थी। उसकी मां तैयार हैं और बोला था कि सोनू से और उसके पापा से पूछ कर बताएगी। लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। आप स्वयं जाकर पता करिएगा आपके जाने से उन्हें भी अच्छा लगेगा . . "
पापा के जाने के बाद उस रात मां ने डिनर टेबल पर उससे पूछा था " शादी करेगा न ? मेरी सहेली की एक लड़की है। पढ़ी लिखी है। बहुत सुंदर है। बहुत ही अच्छी लड़की है। मैंने उससे तेरे रिश्ते की बात की है। मेरे पास उसकी अभी कोई तस्वीर तो नहीं है पर मैं मगा लूंगी। तू देख लेना, तुझे जरूर पसंद आएगी "
वह मां की बात सुनकर मन ही मन हस रहा था " क्या बात है मां, आपने देख ली न, तो समझो मैंने भी देख ली। जब सेहरा बांध के जाना होगा तो बता देना, बस "
उस रात वह देर तक बिस्तर में जागता रहा। मां की कही बातें याद आती रही। लड़की पढ़ी-लिखी है बहुत सुंदर है बहुत अच्छी है।
कैसी होगी ! कैसी सुंदर होगी ? क्या ऐसे ? मन ही मन में उसकी तस्वीर बनाता रहा। वह उसके तसव्वुर में खो जाना चाहता था। एक अनजान शख्सियत, एक अनजान चेहरा जिसका वह हो जाना चाहता था। और उसने फिर महसूस किया कि जैसे उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी है। उसने अपने नोटबुक उठाई और पेंसिल से अपने तसव्वुर की वह तस्वीर बनाई। देर तक उसमें रंग भरता रहा और नीचे नाम लिखा दिया "सोनू "। उस रात वह उस नोटबुक को अपने तकिए के नीचे रख कर सोया था।
अब मां की तरह उसे भी अपने पिता के आने का इंतजार था। और जब उसके पिता दो दिन बाद घर वापस आए तो मां। ने आते ही पूछा " क्या हुआ ? गए थे उनके यहां ? लड़की देखी ? अच्छी है ना ? ना जाने कितने सवाल और वह चोर दरवाजे पर खड़ा चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था।
आशा के विपरीत पिता ने जवाब दिया
" लड़की को रिश्ता पसंद नहीं है। उसने मुझसे स्वयं माना कर दिया। उसने कहा कि अंकल ! एक कम पढ़े लिखे लड़के से मैं शादी नहीं कर सकती। प्लीज आप बुरा मत मानिएगा। रिश्ते हमेशा के लिए होते हैं। यदि वे मन से न बने तो टूट जाते हैं ? आगे आप खुद समझदार हैं।"
अब तुम्ही बताओ और क्या करता, चला आया ।
सहसा मां को विश्वास ना हुआ "अरे मना कर दिया ! कैसे ? उसकी मां ने तो कहा था . .
" अब तुम छोड़ो भी, उसकी मां ने कहा था न, उस लड़की ने तो नहीं। जब रिश्ता उसे ही पसंद नहीं तो आगे क्या बात करेंगे? अच्छा सुनो ! मेरे दोस्त की फैमिली आएगी अगले महीने। उनकी एक लड़की है अनु से बोलना, देख लेगा, दोनों एक दसरे को पसंद कर लेते हैं तो उसका रिश्ता उसी से करेंगे ।अच्छी लड़की है, अच्छे लोग हैं। वह नही तो यहां सही, क्या फर्क पड़ता है। अब तुम टेंशन मत लो . .
मैं वापस अपने कमरे में आ गया दिल में आया कि नोटबुक से तस्वीर फाड़ दे। फेंक दे। लेकिन फिर भी वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाया था। उस रात मां ने उसे डिनर टेबल में अपने पास ही बैठाया।
मां हंसी मजाक करती रही, बीच-बीच में अपने हाथों से कौर खिलाती रही। और उसने भी यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसने उनके और पिताजी के बीच की बात सुन ली है।
उस रात उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उसे उस लड़की से कोई शिकायत नहीं थी। हां, वह मानता है कि वह कम पढ़ा लिखा है। उसे स्कूल कॉलेज का किताबी ज्ञान कम है। लेकिन जब उसकी मां कहती है कि वह एक अच्छा इंसान है, तो कम से कम उसे एक बार उस से मिल लेना चाहिए था। इसके बाद कोई फैसला लेती। बिना मिले, बिना जाने, बिना पहचाने, बिना समझे इस तरह से किसी को रिजेक्ट कर देना ? उफ !! वह उसे क्या होता जा रहा है ! वह इतना क्यों सोचता है? कहीं , कहीं कहीं पागल तो नहीं हो रहा है। नहीं . . नहीं मुझे कुछ नहीं सोचना चाहिए।
लेकिन अपने मन में बसी उस एक तस्वीर को जो कि खुद उसकी कल्पनाओं ने बनाई थी, ना तो मैंली होने दिया और ना ही किसी भी प्रकार की गंदगी होनी थी। अपने मन में किसी भी प्रकार का मैल उत्पन्न नहीं होने दिया। वह उसके हृदय में उसी तरह सुरक्षित थी। देर रात जागते रहने के बाद वह सो गया।
इस घटना की तीसरे दिन वह भीषण हादसा हुआ था। कपड़े की पूरी फैक्ट्री एक तरफ से जलकर राख हो गई। देखते ही देखते उसके पिता दिवालिया घोषित हो चुके थे। कम पढ़े लिखे यानी किताबी ज्ञान न होने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
बीमा एक्सपायर हो चुका था, उसे रिन्यू नहीं किया गया था। मैनेजर पर अधिक विश्वास करना घातक हुआ। अकाउंट सेक्शन भी कमजोरी ही था। सही ढंग से लिखा पढ़ी ना होने से जो देनदार अपनी देनदारी से मुकर गए, और लेनदार हावी हो गए। भास्कर जी दिवालिया घोषित हुए। उनकी सभी चल अचल संपत्ति या तो नीलाम कर दी गई, या बिक गई।
6 महीने के अंदरअंदर कोठी भी नीलाम हो गई। तब उस रात उनके द्वारा किया गया एक पुण्य काम सामने आया। उन्होंने अपने पुराने नौकर को शहर से दूर एक छोटे से कस्बे में रहने के लिए मकान खरीद कर दिया था। इस विपत्ति के समय वही काम आया हालांकि वहां पहुंचने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार गए।
नौकर ने अपना फर्ज निभाया मालकिन के हाथ में चाबी दे दी, और वृद्धावस्था में भी वह बराबर मालकिन और छोटे मालिक की उसी तरह सेवा में लग गया जैसे कि वह पहले किया करता था।
लेकिन अनुपम के लिए यह असहनीय था। वह उस वृद्ध आदमी को परेशान होते हुए जब भी देखता तो उसे अपनी युवा अवस्था में होने का दुख होता। वह सोचता क्यों वह कोई काम नहीं कर सकता। घर के खर्चे तो खर्चे होते हैं, वे उसी तरह आते हैं।
तब उसने फैसला लिया कि 12वीं की मार्कशीट और इस मकान के आधार पर बैंक से कुछ पैसे कर्ज लेगा।
लेकिन उसके लिए यह सब भी आसान नहीं था। डूब चुके जहाज का वह उड़ा हुआ पंछी था। अब कोई भी जल्दी उस पर विश्वास नहीं कर पाता था। चाहे वह कोई व्यक्ति हो या फिर बैंक।
पूरी जहाज डूबते हुए उसने देखा और वह कुछ नहीं कर पाया था। तो इस बात की क्या गारंटी है कि लिए गए पैसे वापस किए जाएंगे। वह बैंक के चक्कर पर चक्कर लगाता रहा। फाइल इधर से उधर घूमती रही लेकिन उसे लोन अभी तक सेंसन नहीं हुआ था।
उसने देखा मां कपड़े धो रही थी। मां ने पूछा , " क्या हुआ, गया था घूमने, और लौटा तो मुंह लटकाए ?"
" मुझे ये सुबह अच्छी नहीं लगी" उसने कुछ रूखे लहजे मैं बोला , " और मां , तुम्हारा तथास्तु भी खाली गया, कोई कोहनूर नही मिला"
मां ने उसे आश्चर्य से देखा। अगले ही पल उसे एहसास हुआ वह क्या कह गया। माफी भरे लहजे में कहा " सॉरी माफ कर देना, मैं ऐसे ही बोल गया एक बिल्ली ने रास्ता काट दिया था। "
और वह हंस पड़ा उसके साथ ही उसकी मां भी।
दोपहर को वह उठा, अपनी कार्बन फाइल ली और बैंक पहुंच गया पता चला कि बैंक के लोन सेक्शन में एक नई आफिसर आई है। अब उसी से बात करनी होगी। वह उसके कमरे में प्रवेश करता कि उसे कुछ लोगो के पहले से बैठे होने का अंदेशा हुआ और एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी। वह ठिठका, परदे को थोड़ा सा हटा कर अंदर देखा। सामने वही लड़की दिखी। उस वक्त उसे कुछ नहीं सूझा कि अब वह मिले या वापस जाए?
वह वापस लौट आया । मां ने फिर पूछा, " क्या हुआ? कुछ बात हुई?"
उसने मां से फिर झूठ बोला " नहीं, वहां आज अधिक भीड़ थी, कुछ नहीं हुआ। कल जाऊंगा "
बात वही खत्म हो गई लेकिन पूरा दिन उसका यूं ही गुजरा कई दिनों बाद उसने वही नोटबुक निकली। उसका वही पन्ना खोला, और अपनी ही बनाई इस तस्वीर को बहुत देर तक देखता रहा। कब शाम हुई पता ही ना चला। तभी कॉल बेल बजी। मा ने उसे पुकारा " अनु देख तो कोई आया है, दरवाजा खोल "
वह नोटबुक को अपने सिरहाने रख दरवाजा खोलने की के लिए बाहर आ गया और जैसे ही दरवाजा खोला वह चकित रह गया।
वही लड़की सामने खड़ी थी, " आप यहां, मतलब कैसे, मेरा पता . . .
"आपकी फाइल से मिला। उसी में आपकी तस्वीर देखी . . अब अंदर आने के लिए नहीं कहेंगे "
वह कुछ बोलता उससे पहले मां आ गई " अरे तुम और यहां ? अंदर आओ "
"आपसे ही मिलना था आंटी ", अंदर आते हुए वह बोली।
औपचारिक बाते हुई, उसकी मां ने अपनी सहेली की बातें कि उसका हालचाल पूछा उसे वहां बैठे रहना मुश्किल हो रहा था। वह बोला " मां, मैं अंदर हूं , कोई जरूरत हो तो बताइएगा "
और जवाब की प्रतीक्षा किए बिना वह वापस अपने बेडरूम में आ गया।
" आंटी आप लोगों के साथ इतना बड़ा हादसा हुआ, फिर भी आपने हमे बताया तक नही, जब तक हमे मालूम पड़ा तब तक आप लोग वह शहर ही छोड़ चुके थे, मां ने आप लोगों को बहुत तलाश करने की कोशिश की, हमें इतना गैर समझ लिया गया, हमेशा शिकायत रहेगी "
" शिकायत तो मुझे भी रहेगी", वे कह गई, लेकिन बाद में मन पछताया कि यह नहीं कहना चाहिए था। लेकिन शब्द थे, वे तो निकल चुके थे।
" शिकायत ! हम लोगों से आंटी !! वो क्या ? "
" अब रहने भी दो बेटी, बस ऐसे ही , . .
" नहीं प्लीज आंटी, बताइए , आपको बताना होगा, प्लीज " उसके स्वर में रिक्वेस्ट और जिद दोनों थीं।
मां ने पूरी बात बताई । वही सब कुछ बताया जो अनु के पापा ने उन्हें बताया था। कुछ देर तक लड़की आश्चर्य से सुनती रही, फिर भरे स्वर में बोले " सॉरी ! मैं नादान थी। मुझे . . . मुझे माफ कर दीजिए . . .गलती हो गई"
इस सॉरी शब्द ने मन की कड़वाहट को धो डाला।
" कोई बात नहीं, हम अक्सर वह कर जाते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए, हम अक्सर वह कह जाते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए। लेकिन हो जाता है। शायद इसी को कुदरत कहते हैं. इंसानी फितरत कहते हैं। "
" तुम अनु से मिल लो, अपने कमरे में है, शरमाओ मत आखिर तुम मेरी दोस्त की बेटी हो, वह अपने कमरे में बैठा किताबें पढ़ रहा होगा, अब उसे पढ़ने का भी शौक है।"
जब उसने अनु के कमरे में प्रवेश किया तो उसे उसी नोटबुक के साथ बेड में बैठे हुए देखा। उसे देखते ही वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ, नोटबुक बिस्तर में बिखर गई " अरे आप कमरे में !! नॉक तो करना चाहिए था "
" क्यू करती ! आपकी मां ने खुद भेजा है, आखिर मैं . . आपकी मां की सहेली की बेटी जो ठहरी"
और वह पूरे हक के साथ बिस्तर पर बैठ गई। उसने उस नोटबुक को उठाया। पलट कर देखा। सभी पन्ने खाली थे सिवाय एक पन्ने के और उसमे थी वही एक तस्वीर जिसे अनु ने कभी बनाई थी। तस्वीर के ठीक नीचे वह अपना नाम देख कर थोड़ा सा मुस्कुराई।
" आप भी बैठी न, देखिए न आप ड्राइंग बहुत बेकार करते हैं, क्या मैं ऐसे . . इस तस्वीर की तरह दिखती हूं !! "
"मैंने आपका रिश्ता ठुकराया। रिजेक्ट किया, फिर भी आप ने अपनी कल्पनाओं से मेरी यह तस्वीर बनाई अपने पास रखी । बताइए तो क्यों ? "
जवाब में वह चुप रहा था । आगे वही कह रही थी , " अभी आपकी मां ने मुझसे एक अच्छी बात कही, हम अक्सर वह कर जाते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। हम अक्सर वह कह जाते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए। यही तो कुदरत है, यही तो इंसानी फितरत है ।
हम सब कुछ अपनी मर्जी के मुताबिक पाना चाहते, हासिल करना चाहते।
" मैं जानती हूं कि मैं आपसे कहूं या न कहूं लेकिन एक दिन आएगा जब यह सारी बातें आपको मालूम पड़ेंगी, तब आप भी मेरी तरह ही सोचेंगे। उस वक्त हम दोनों के साथ झूठ बोला गया था। आपके पापा ने मेरी मां से कहा कि लड़के को रिश्ता पसंद नहीं है और आपकी मां से कहा कि मुझे आपके कम पढ़े लिखे होने की वजह से रिश्ता पसंद नहीं है।
जबकि सच यह था कि न तो आप ने मना किया था और न ही मैंने। आज सारी सच्चाई मुझे आपकी मां ने बताई। एक बार मन में आया भी कि उनसे सब कुछ सचसच कह दू। लेकिन अगले ही पल यह सोचकर चुप रह गई कि जो व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं है उसकी एक कमी की वजह से उसकी पत्नी के सामने उसे क्यों लज्जित करू। आखिर उनके बीच भी प्यार और विश्वास का रिश्ता रहा होगा। उनकी एक खराब तस्वीर आपकी मां के सामने मैं नहीं रख सकी, कहीं से हिम्मत ही न हुई।"
वह चुपचाप सुन रहा था। अभी भी उसकी नजरें अपनी नोटबुक की उसी तस्वीर में थी। आंखों में आंसू आ गए, उसने कहा " आपने सच कहा, मैंने आपकी बिल्कुल भी अच्छी तस्वीर नहीं बनाई थी . . .।"
मुलाकातें बढ़ी, नजदीकियां बढ़ी, एक दूसरे की पसंद, नापसंद को समझते गए। संघर्ष ही उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है । उसने मेहनत करना सीख लिया था । अब वह एक बड़े बिजनेस का मालिक न सही लेकिन बनने के पूरे गुण उसमें आ चुके थे।
एक रात दोनों ही कस्बे के सबसे अच्छे रेस्टोरेंट में कैंडल डिनर के लिए गए। बातों और संबोधनो में औपचारिकताएं समाप्त हो चुकी थी। उस लड़की ने उस लड़के से पूछा -
" मैं तो अपनी पढ़ाई में व्यस्त रह गई, कभी शादी के बारे में सोचा ही नहीं। लेकिन यह बताओ, तुम किसके लिए अब तक रह गए कुंवारे . . . ?
वह आगे कुछ पूछती कुछ और कहती, इससे पहले ही उसने अपना हाथ बढ़ाकर उसके हाथ के ऊपर रख दिया . . .
"तुम्हारे लिए !"
और तुम . . . ?
वह मुस्कुरा दी . . . नजरें झुका कर वापस भरपूर नजरों से केवल उसकी तरफ देखा . . .
Shailendra S.
आपने अपने स्टेटस में जो बात लिखी थी वह बिल्कुल सही है हम प्रेम को अक्सर यही कहते हैं बेकार की चीज है फालतू की चीज है ध्यान नहीं देना चाहिए लेकिन मरते इसी पर हैं जीते इसी के लिए और यह भी कि अक्सर ही दिल से भी यही निकलता है 'तुम्हारे लिए', जब कोई यह पूछता है किसके लिए. सर मैं भी कभी-कभी कुछ शार्ट स्टोरी लिखती लेकिन अधिक अनुभव ना होने के कारण सही क्रम व शब्दों में नहीं पिरो पाती हूं। ऐसी ही एक कहानी मैं आपको ईमेल करूंगी क्योंकि अभी मैंने अपना कोई ब्लॉग नहीं बनाया आप मुझे भी कुछ सुझाव दे सके तो जरूर दीजिएगा? और हां कॉपीराइट रिजर्व्ड है चुरा मत लीजिएगा।
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