अजनबी (पार्ट 2)
पांच साल बाद मेरी सत्य से ये दूसरी मुलाकात थी। पहले भी मैंने पीहू को उसके साथ देखा था और आज भी देख रहा हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि वह उसके अस्तित्व के किसी हिस्से में है, स-शरीर नहीं। बगिया वही थी, आम का पेड़ वही था, पंप हाउस भी अपनी जगह पर ही था। उसकी निगाहें दूर टीन शेड पर टिकी हुई थी। और मैं उसके पीछे रखी खाट पर बैठा था, पहली मुलाकात की तरह ही जाड़ों के शुरुआती के दिन थे। शाम के चार बज रहे थे।
"मैंने पिछले संडे न्यूज पेपर में तुम्हारी एक कहानी पढ़ी थी। अच्छा लिख लेते हो, कहां से लाते हो इतने जज्बात ...?", उसने मेरी तरफ बिना देखे हुए पूछा।
"पहले तुम यह बताओ कि तुम देख क्या रहे हो .... पीहू को ? ... वह तुम्हें वहां नहीं मिलेगी ...", मेरे स्वर में गभीरता थी।
"हां, मैं जानता हूं, क्योंकि वह तो मेरे अंदर ही कहीं है ...", उसने मुझसे अधिक गंभीरता से कहा था।
"तो फिर आओ .... मेरे पास बैठो ...",
वह मेरे नजदीक चारपाई पर बैठ गया।
"मैं केवल राइटर नहीं हूं, सत्य। मैं भी किसी अधूरी कहानी का एक किरदार ही हूँ, और शायद इसलिए इंसानी भावनाओं को लिखना मेरे लिए आसान हो जाता है ...."
हां .... बाद में मुझे ज्ञान ने बताया था, कि तुम किन हालातों से गुजरे हो, कैसे तुमने खुद की जान तक लेने की कोशिश की। इसीलिए तो वह तुम्हें अपने साथ लेकर आया था। और तुमने मंगल चाचा से क्या कहा था, याद है ? मंगल मै उसे भूलने के लिए नहीं .... पूरी शिद्दत के साथ उसे याद करने के लिए पीता हूं ..."
" क्यों मंगल मैने ऐसा कहा था ...?"
"हां सर जी ... कुछ कुछ ऐसा ही तो एक्टिंग किए थे ...",
"नहीं ... ऐसा नहीं कहा था ... तुम ऐसा करो बनाओ एक ... मैं बताता हूँ....",
" मंगल एक लार्ज बनाते हुए बोला, " सर जी ज्यादा तो नहीं होगी ...", उसने गिलास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा था।
"अरे मंगल ! ... तुम फ़िक्र मत करो ... शराब मुझे नहीं चढ़ती, जानते नहीं देवताओं का वरदान है मुझ पर ...", मंगल थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला सर जी आज भी आप उसी तरह कुछ-कुछ फिल्मी हीरो जैसा बोलते हैं ..."
मैने चारपाई पर उसी तरह लेट तकिए में अपनी कोहनी रखते हुए पहले पूरी तरह रिलैक्स हो कर गिलास से दो-तीन घूट मारे फिर मंगल से कहा, " हां मंगल कैसे एक्टिंग की थी उस रात ? आओ जरा आज फिर करते हैं ... एक मिनिट ... आज एक्शन मैं खुद ही बोलूंगा ... मंगल रेडी ? ओके .... वन .. टू ... थ्री ... एक्शन ..."
मैंने जैसे ही गिलास अपने होठों में लगाई और एक घूट लिया, मंगल ने उसी कुछ अपनत्व दिखाते हुए पूछा, " सर जी ! .... किसे भूलने के लिए इतना पी रहे हैं ..."
जगह बिल्कुल वही नहीं थी, कुछ अलग थी, खाट भी शायद दूसरी थी, मेरी गर्लफ्रेंड नहीं थी। लेकिन मंगल और सत्य अपनी जगह पर थे, और व्हिस्की का ब्रांड भी वही था।
लेकिन एक अजनबी किरदार जो उस रात नहीं था वह आज कुछ उदास, कुछ गमगीन, अपनी आंखों में अपने आंसू छुपाए हुए मेरे अंदर था। मंगल की तरफ देखते हुए मैने उसी अंदाज में कहना शुरू किया,
"कौन कमबख्त है जो उसे भूलने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूँ कि उसे और शिद्दत से याद कर सकूं ..... क्योंकि मैं जनता हूं मंगल ... मैं उसे नहीं भूल सकता। मै तो इसलिए पीता हूँ, कि मैं उसे अपने अंदर रोता हुआ महसूस कर सकूं ...."
आगे के शब्द मेरी जुबान पर घुट के रह गए। पल भर के लिए उसका चेहरा मेरी नजरों के सामने आया और आकर चला गया, उसी तरह मुस्कुराता हुआ। मैं फफक-फफक के रो पड़ा ....
मंगल का मुंह खुला का खुला रह गया और सत्य एक दम खामोश। मैं सत्य के कंधे में सर टिका के लगातार रोता जा रहा था .... "आई मिस माय गर्लफ्रेंड यार ... सत्य आई मिस हर ... रियली आई मिस हर ..."
सत्य कुछ देर मेरा सर सहलाता रहा, अपने आंसू और अपनी हिचकियों को रोकने के लिए खुद से लड़ता रहा, फिर बड़ी मुश्किल से बोला "नहीं यार उसे मिस मत करो .... वह तो आज भी हमारे दिलों में है .... हमारी यादों में है ... तुम तो उसके बॉयफ्रेंड हो न .... तो फिर कैसे भूल गए उसे, बताओ ? .... ये मंगल चाचा ! चलो तली बजाओ, देखा नहीं तुम्हारे सर जी ने कितनी अच्छी एक्टिंग की ... देखो मैं बजा रहा हूं न .....", फिर सत्य पागलों की तरह ताली बजाने लगा।
मैं उसके कंधे कंधे पर और मंगल उसके पास जमीन पर बैठे उसके घुटने के ऊपर सर रख के रो रहे थे, हिचकियां ले रहे थे, सिसकारियां ले रहे थे। कुछ देर बाद सत्य बोला, "बच्चे मत बनो शैल, प्लीज अब चुप हो जाओ .…. अच्छा तुम यहीं बैठो, मैं खेत का एक चक्कर लगा के आता हूँ ...", फिर मंगल की तरफ देखते हुए कहा, "मंगल चाचा ! तुम इनका ध्यान रखना, और हां कमली को घर की चाभी दे कर कहना आज डिनर वही तैयार कर दे ..."
सत्य जब चला गया तो मैने मंगल से पूछा, "तुम्हें मालूम है मंगल, तुम्हारे भैया जी कहां गए ..."
"नहीं सर जी ...? कह कर तो गए हैं खेत का चक्कर लगा कर आ रहा हूं ..."
"गलत, तुम्हारे भैया जी उस टीन-सेट के पास जाएंगे ..."
"लेकिन आप को कैसे ...?"
"मुझे मालूम है मंगल ... शायद इसीलिए मैं राइटर हूं ... मंगल क्यों न आज उसी तरल यहीं डिनर बनते है, मड़ैया के पास ... जैसे उस दिन ....", कहते-कहते मेरी आंखें भर आईं। एक बिछड़े दोस्त की तस्वीर नजरों के सामने आ गई। मैने एक ही सांस में पूरी गिलास खाली कर दी। खाट से उठते हुए बोला, "मंगल ! समेट लो सब सामान, चलो मड़ैया में चलते हैं ..."
मंगल ने व्हिस्की के बोतल में ढक्कन लगाया जो लगभग एक चौथाई खाली हो चुकी थी। कांच की गिलास को धोकर दोनों को बैग में डाला और उसे कंधे पर लटकते हुए बोला, "आप चलिए सर जी मैं खाट लेकर आता हू ..."
मैं मड़ैया की तरफ चल पड़ा, और मेरे पीछे-पीछे मंगल एक कंधे में मेरा बैग टांगें और सर पर चारपाई रखे धीरे-धीरे मेरे पीछे आ रहा था। जब मैं पहली बार आया था तो मड़ैया छोटी थी अब कुछ और बड़ी कर ली गई थी, जिसमें दो चारपाई बड़े आराम से आ सकती थी। एक खाट अभी भी मड़ैया में ही थी। मैं उसी में आकर बैठ गया। मंगल मेरा बैग मेरे पास और खाट को मड़ैया के एक कोने में बाहर ही टिकते हुए बोला, "सर जी एक मिनट रुकिएगा...."
कुछ देर बाद जब वह लौट कर आया तो उसके हाथ में मूली, गाजर, टमाटर, चुकंदर, प्याज इत्यादिक सलाद बनाने की समान थे। उसने फटाफट सभी को सलीके से काटा और एक थाली में रखा फिर उसमें नमक मिलते हुए बोला, "सर जी ! सब अपनी बगिया के हैं आज सुबह ही तोड़े थे ... बिल्कुल ताजा हैं ... लीजिए .... ",
फिर उसने आशा भरी नजर से मेरी तरफ देखा। मैं समझ गया। मैंने उसे इजाजत देते हुए कहा, "ले लो ...", उसने झट से कोने में रखी एक गिलास निकाली, अपने लिए एक छोटा-सा बनाया और जल्दी से खींच गया। फिर थोड़ा का कड़वा मुंह बनाते हुए सलाद के दो-तीन टुकड़े जल्दी-जल्दी खाते हुए बोला, "आपके लिए ...?"
"हूँ ...."
मै उठ कर मड़ैया के बाहर आ गया, कमली कुछ दूर खेत में काम में कर रही थी। मंगल ने ग्लास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कुछ आश्चर्य से कहा, "अरे सर जी ! अपने सही कहा था ... वो देखिए .."
मैने शिप लेते हुए देखा, सत्य टीन-शेड के पास दिखा। मैने मंगल से कहा, "ये खाट यही बाहर बिछा दो, अभी तो काफी दिन बाकी है ... लेकिन पहले तुम अपने लिए एक और बना लो, संकोच मत करो, एक दोस्त की शादी से आ रहा हूं, उसने बैग में ठूंस-ठूंस के भरी होंगी ... कपड़े कम होंगे, बॉटल अधिक होगी ... बिंदास पियो... लेकिन ....
"कमली से बच कर ... दो कदम दूर ... है न सर जी ...", मंगल ने हंसते हुए कहा।
"क्या बात है मंगल ! समझदार हो ... अभी भी सब याद है ?" .... मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
मंगल ने वही किया। मै फिर से खाट में बैठ गया। इस जगह से मेरी भी कुछ यादें जुड़ी हुई हैं। मंगल पास ही एक चौकोर पत्थर में अपनी ग्लास ले कर बैठ गया। कमली से छुप-छुपा के लेता भी जा रहा था।
कुछ देर बाद मैने कमली को पुकारा था, "ओ कमली मैडम ! जरा इधर तो सुनिए ..."
"अरे सर जी ... ये आप क्या ....", मंगल अपनी गिलास ले सरपट मड़ैया के अंदर भगा।
"अभी आई ... सर जी ... ", कमली ने मेरी तरफ देखते हुए कहा। कुछ देर बाद मंगल बाहर आते हुए बोला, "मैं भैया जी को ले कर आता हूँ ..."
कुछ देर बाद कमली मेरे पास आई तो मैने उससे कहा, "कमली याद है, आज से लगभग पांच साल पहले इसी जगह पर तुमने हम सभी के लिए लिट्टी - चोखा बनाया था ... मै, सत्य, मंगल, पीहू और खुद तुमने कितना इंजॉय किया था ... आज फिर उन पलों को जीवित कर दो ..."
पीहू का जिक्र आते ही कमली उदास हो गई। उसके अन्तर्द्वन्द को पढ़ता हुआ मै फिर से बोला, "मैं जानता हूं, आज हमारे बीच पीहू नहीं होगी, लेकिन उसकी यादें तो हमारे साथ होगी ... मै जनता हूं, ..... तुम्हारे भैया जी तो जी भर के रोएं भी न होगे ... देखो तुम इंतजाम करो ... ठीक उसी दिन जैसा। उन यादों को जीवित कर मैं सत्य को रुलाना चाहता हूं ... उसके आंसू पोछने चाहता हूं ... तुम समझ गई न मै क्या कहना चाहता हूँ...."
"जी ... समझ गई ... लेकिन उन्हें ज्यादा मत पिलाएगा ..."
"किसको ? सत्य तो वैसे भी अधिक .... ओह तो तुम मंगल की बात कर रही हो ? बिल्कुल नहीं ... कोई ज्यादा नहीं पियेगा ... अब ठीक .…?"
"लेकिन भैया जी ..."
"वो मान जाएंगे ... मुझ पर छोड़ दो ...", मैंने आत्मविश्वास के साथ कहा था।
कमली चली गई। कुछ देर बाद ही वह सभी जरूरी सामान का इंतजाम करने में जुट गई। कुछ देर बाद मंगल और सत्य आते हुए दिखे। जब दोनों पास आए तो मैंने सत्य को गौर से देखा। उसकी आंखें कुछ लाल थीं। मैंने अनजान बनते हुए कहा, "क्या भाई मै यहां हूं ... और तुम हो कि खेत धूम रहे हो ..."
"अरे नहीं यार ... ऐसे ही निकल गया था। आदत है ... और ये क्या ... क्या होने जा रहा है ...", रखे हुए सामान को देखकर वह बोला।
"कुछ नहीं ... लिट्टी-चोखा कमली के सौजन्य से ..."
"ओह !! लेकिन मंगल चाचा, तुम लिमिट में ... कमली को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए ... याद है न पिछली बार का ... आधी रात तक रोमांटिक गाने गाए थे ...", सत्य उसे समझाते हुए बोला था।
" जी भैया जी ... "
"तो ठीक है ... तुम लोग तैयारी करो .... मै थोड़ा घर से हो कर आता हूं ..."
"यार बैठो न घर में कौन सी डकैती पड़ जाएगी ...", लेकिन मंगल की तरफ देखकर मैं रक गया। उसने इशारों ही इशारों में मुझसे कहा, इन्हें जाने दीजिए।
"अच्छा ठीक है ... जाओ हो कर आओ ..."
सत्य के जाते ही मंगल को मौका मिला। वह खाट में अपना हाथ रख जमीन में घुटने के बाल बैठते हुए बोला, "सर जी आप ठीक कहे थे ... भैया जी टीन-शेड के पास बैठे रो रहे थे। मैं पीछे से गया था तो मुझे देखा नहीं पाए। अचानक देखा तो हड़बड़ा कर उठ बैठे। फिर जल्दी से अपने आंसू पोछे और मुझे प्यार से डांटते हुए बोले, "तुम यहां क्या कर रहे हो ... मैने तो तुम्हें उनका ध्यान रखने को कहा था न ... सर जी मेरे मुंह से निकल गया कि आप ही ने पता लगाने को भेजा है ... आप सम्हाल लीजिएगा ..."
"हूँ .... मै देख लूंगा ... लेकिन ये बताओ ... सत्य घर क्यूं गया होगा ....?"
"सर जी ... घर में एक गाय और दो बछिया जो हैं। यदि भैया जी घर में रहे तो उनकी सेवा वे ही करते हैं ... दूध भी खुद दुहते हैं ... उनके साथ पीहू बिटिया की यादें जुड़ी हैं न ... हम कहते भी है कि आप रहने दीजिए ... लेकिन किसी न किसी बहाने टाल देते है ... फिर हमने कहना छोड़ दिया ... ", मंगल कुछ दुखी होता हुआ बोला था।
"उसे करने दो मंगल ... उसने जीवन में सब कुछ खो दिया ... तुम ही लोग तो हो एक सहारा ... अच्छा यह बताओ इसके मम्मी-पापा आते है यहां .... मिलने के लिए ?"
"जी कभी वो आते है, .... तो कभी भैया जी चले जाते हैं ... कई बार इनके मम्मी-पाप लेने के लिए आए, जिद भी की .... हम सभी चाहते थे कि वे यहां से निकल जाएं ... ध्रुव भैया ने भी समझाया ... लेकिन किसी की एक न सुनी ... हम सभी हार गए ... वो हमसे एक ही बात कहते हैं ... पीहू मेरी धर्म-पत्नी है, उसे छोड़ कर कहां और क्यूं जाऊं ... उन्हें समझा पाना मुश्किल है .... "
"हूँ... और ध्रुव भैया कहा वही जर्मनी में हैं ...", मैने पूछा था।
"जी अभी तो वही है ... लेकिन सुना है बंबई में जल्द ही कोई कंप्यूटर की कंपनी खोलने वाले है ... "
"सॉफ्टवेयर कंपनी होगी ..... और तुम्हारा बेटा कैसा है ...?"
"अच्छा है, अमरकंटक के बोर्डिंग स्कूल में नवी कक्षा में पढ़ रहा है, ... भैया जी ने ही सब प्रबंध किया था ...."
"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है ... तुम जाते हो मिलने ..?"
"जी साल में चार बार परमिशन है, और एक माह गर्मी में घर भी आने देते हैं ..."
"सर जी और बना दूं ...?"
मैने मुस्कुराते हुए कहा था, "बना दो .. और अपने लिए भी ... लेकिन ज्यादा नहीं ... कमली से मैने वादा किया है ... तुम तो जानते हो ... मुझे तो चढ़ती नहीं क्योंकि .....
"आपको देवताओं का वरदान है ...यह डायलॉग तो पिछली बार भी जब आए थे तो बहुत बार बोले थे, मुझे तो रट गया है ..."
कुछ देर बाद मंगल मुझे ग्लास थमा के बोला, "सर जी मैं थोड़ा कमली की मदद कर के आता हूँ .."
मंगल चला गया। पीहू की मृत्यु मेरे लिए एक रहस्य थी। आज दोपहर को अटारी में बुक देखते समय मुझे पीहू की एक डायरी मिली थी। उस समय मैने उसे सत्य से छुपा कर अपने बैग के एक कोने में कपड़ों के बीच रख लिया था। मन में जिज्ञासा हुई। मै अंदर गया और बैग को उठा लाया, डायरी निकाली, बैग को सिरहाने रख लेट गया। डायरी के हर एक पन्ने को पढ़ते समय मेरी हृदय से एक आह निकलती।
मैं जानता हूं प्यार और दर्द की इंटेंसिटी सबके लिए एक समान नहीं होती हैं। पीहू के लिए जो दर्द सत्य के हृदय में है, वैसा दर्द मेरे हृदय में उसके लिए कही नहीं हो सकता। लेकिन इसका अर्थ कदापि नहीं कि पीहू की मृत्यु का शोक और दर्द मेरे हृदय में है ही नहीं। मैं सत्य, पीहू, बाबा और मंगल सभी का कर्जदार रहूंगा। जब मैं टूटा-बिखरा हुआ था तो इन सभी ने मुझे जिंदगी के सही मायने बतलाए थे।
उसकी डायरी पढ़ते हुए मुझे पीहू का चेहरा, उसकी बातें, उसकी हंसी, उसकी मुस्कुराहट सभी याद आ रहीं थीं। कैसे हम किसी एक बुक पर डिस्कशन करते हुए लड़ भी जाया करते थे। और ये यादें काफी थीं मेरी आंखें को नम करने के लिए। जैसे-जैसे मैं डायरी पढ़ता जा रहा था मेरे मन में एक सवाल बार-बार उठाता कि आखिर सत्य ने पीहू को उसके अंतिम क्षणों में छोड़ा क्यूं था ? ऐसी क्या मजबूरी थी ? मजबूरी थी या मानवीय दोष ?
लगभग आधे घंटे के बाद मुझे सत्य और मंगल दोनों ही गेट पर दिखाई दिए। मैंने डायरी को फिर से बैग में उसी जगह पर छुपा के रख लिया। सत्य ने मेरे पास आते हुए पूछा, "बोर तो नहीं हो रहे हो ?"
मैंने सत्य से हंसते हुए कहा, "नहीं यार, वैसे भी मैं तन्हाई पसंद इंसान हूं ..."
"तभी लेखक हो ...", वह भी मेरे साथ मुस्कुराते हुए बोला।
मड़ैया से कुछ दूर पर कमली आग जलाने में व्यस्त थी और मंगल उसके पास सामान रखने में। हम दोनों एक ही खाट में बैठे बातें कर रहे थे। कुछ देर बाद वह भी हाजिर हुआ, "सर जी बनाऊं ...."
"हां बना लो, लेकिन दो नहीं तीन ... ", मैंने उसकी तरफ खाली गिलास बढ़ाते हए कहा।
"सर जी कुल्हड़ हैं, उसमें बना लूं ? वो क्या है न, गिलास केवल दो ही हैं ..."
"अरे ! रहने दो मंगल, मेरे लिए रहने दो ...", सत्य ने मंगल को मना करते हुए कहा।
"नहीं मंगल कुल्हड़ में ही बनाओ। बनेंगे तो तीन नहीं तो एक भी नहीं ...", मैंने रूठने का अभिनय करते हुए मंगल से कहा और उसे धीरे से एक इशारा भी किया। कुछ देर में मंगल हमारी सेवा करता रहा मुझे और खुद के लिए कम और सत्य के लिए ज्यादा कंसट्रेट बनाता रहा। वैसे भी मैं और मंगल पहले ही पी चुके थे। शाम ढल रही थी।
अस्ताचलगामी अपने सफर के अंतिम पड़ाव पर था। डूबते सूरज की ललिमा में एक अजीब सी उदासी होती है। मैंने सत्य के चेहरे की तरफ देखा। उदासी की वह लालिमा मुझे उसके चेहरे में भी दिखाई दी।
"कुछ नया लिखा हो तो सुनाओ ...", कुछ देर बाद उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
"हूं लिखा है न .... सुनोगे ?", मैंने सिरहाने पर रखा हुआ अपना बैग खोलते हुए कहा।
"हूं .... क्यों नहीं ....! जरुर सुनूंगा ...", यह कहते हुए वह डूबते हुए सूरज की ओर फिर से देखने लगा। मैंने पीहू की डायरी निकाली और उस पेज को खोला जिसमें अभी कुछ देर पहले मैंने एक कविता पढ़ी थी। मैंने वही कविता पढ़नी प्रारंभ की,
मेंरे गांव की ये गलियां, ये मौसम, ये हवाएं,
ये बरसाते जो कभी मेरे अपने थे,
आज क्यूं अजनबी-से बन गए हैं।
सत्य चौंका जैसे उसे करंट का तेज झटका लगा हो। वह तेजी से मेरी तरफ पलटा मेरे हाथों में पीहू की डायरी देखकर वह लगभग मुझ पर झपट पड़ा, "दिस इज नॉट फेयर..."
मैंने उतनी ही तेजी से अपना हाथ पीछे किया, "होल्ड ऑन, सत्य तुम जानते हो मैं चोर नहीं हूं, जब भी यहां से जाऊंगा यह डायरी तुम्हें वापस करके ही जाऊंगा। लेकिन तब तक मुझे इसे पढ़ लेने दो। तुम जानते हो कि पीहू मेरी दोस्त थी। इतना हक तो बनता है न मेरा ...?"
मेरी बातें सुनकर सत्य हथेली में अपना चेहरा छुपा के रो पड़ा, "हां हां मैं दोषी हूं .... उसे छोड़कर जाने का दोषी हूं मैं ... लेकिन क्या इतनी बड़ी सजा का हकदार था मैं ...? तुम ही कहो शैल ? जितनी बार मैं उसकी डायरी पढ़ता हूँ... इतनी ही बार रोता हूँ... और खुद को दोषी भी मानता हूँ , कोसता भी हूँ.... कभी-कभी तो लगता है क्यों जिंदा हूँ मैं। मैं अपनी जान क्यों नहीं ले लेता ..."
"वही तो मैं जानना चाहता हूं मेरे दोस्त कि ऐसा क्या हुआ था कि इतनी मोहब्बत, इतना प्यार, इतना विश्वास होने के बावजूद तुम उसे छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए थे ?"
"मैं तुम्हें सब बताऊंगा यार, लेकिन ..."
"लेकिन क्या ? ... हां सत्य लेकिन क्या ... बताओ मुझे ..." मैं उसे कुछ तेज आवाज में और डांटे हुए बोला था .... लेकिन अगले ही पल मुझे उसकी स्थिति का अंदाजा हुआ। मैं तो सब कुछ खो चुका है और मैं बिना कुछ जाने समझे उसे न जाने क्या क्या कह रह हूँ, "सॉरी यार ! मैं कुछ ज्यादा जज्बाती हो गया था .... जानते हो आज से 10 साल पहले, 18 साल की उम्र में एक लड़की को बहुत चाहा, उसे जिंदगी में शामिल कर न जाने क्या-क्या सपने सजाए, और एक दिन मजबूर होकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया, मुझसे अपना दामन छुड़ा लिया। लेकिन मैंने उसे कभी दोषी नहीं माना, सोचा कि उसने अपने माता-पिता के मान सम्मान के लिए यदि मेरा त्याग किया है तो इसमें गलत क्या है ? तब तुम लोग मिले मुझे, दिलासा दिया, सहारा दिया। मुझे एक दोस्त मिली जिसने मुझे अपना बॉयफ्रेंड बनाया ..."
आगे के शब्द कहते-कहते में रो पड़ा, "और एक ऐसा दोस्त भी मिला जो उसे अपनी पत्नी मानता था लेकिन उसने भी कभी ... ये सत्य उस दिन शीशम के पेड़ के नीचे तुमने मुझसे क्या कहा था ... याद है न ? तुमने कहा था, ' यार मैं सारी उम्र तुम्हें उसका बॉयफ्रेंड मानने के लिए तैयार हूं, बशर्ते तुम उसे मेरी वाइफ बना दो। किसी भी तरह से उसे कन्वेंस कर लो... ', यही कहा था न ... बोलो ?"
"हां याद है ..."
"तो फिर कन्वेंस किया था न, उसे तुम्हारी वाइफ बना के गया था न ? बोलो ? उसने खुद ही कहा था न कि अपनी वाइफ को माफ कर दो ? तो क्यों माफ नहीं किया तुमने उसे, क्यों दिया था तुमने उसे उस दिन श्राप, जबकि मैं तुम्हें बार-बार रोक रहा था ... लेकिन नहीं, कहां सुनी थी तुमने मेरी ..."
"शैल उस दिन मैं क्या कहा गया, मुझे खुद नहीं मालूम पड़ा। और जब मालूम पड़ा .... होश आया तो बात जुबान से निकल चुकी थी .... तुमने सच कहा था मैंने खुद को भी श्रापित किया और उसे भी। यह सब हमारी नियति थी .... आज मुझे समझ में आ रहा है। तुम कहते हो न कि मैं उसे छोड़कर गया था ! कोई भी यह डायरी पड़ेगा तो यही समझेगा। .... लेकिन सच यह नहीं है .... मेरे दोस्त ! .... सच यह नहीं है। .... लेकिन अभी नहीं बताऊंगा अभी तो बहुत दिनों बाद कोई अपना मिला है, जो हम दोनों को अच्छी तरह से जानता है, समझना भी है। ....उसकी बहुत सी बातें हैं, यादें हैं जो तुम्हारे साथ शेयर करनी है .... इसलिए अभी नहीं ... अभी तो तुमने जो शुरू किया है ... उसे आगे पढ़ो। तुम पीहू के दोस्त हो, उसके बॉयफ्रेंड हो ... तुम पढ़ोगे तो लगेगा कि वह मुझसे कह रही है, मुझसे बातें कर रही है ... ",
सत्य ने कुछ देर बाद अपने आप को सामान्य किया। मैं पीहू की पोयम पढ़ने लगा,
मेंरे गांव की ये गलियां, ये मौसम, ये हवाएं,
ये बरसाते जो कभी मेरे अपने थे,
आज क्यूं अजनबी-से बन गए हैं।
काश कि तू लौट कर आए,
कि मैं तेरी आंखों में इन्हें फिर से देखना चाहती हूं।
काश तू इकबार मेरे सामने बैठे,
कि मैं सिर्फ और सिर्फ तुझे देखना चाहती हूं।
तेरी आँखों में खो जाएँ मेरी तन्हाइयां,
कि आ इन आंखों में फिर से डूबना चाहती हूँ।
यूं तो अक्सर तेरी यादों का काफिला चलता है,
कि मैं तुझे भी अपने संग चलते हुए देखना चाहती हूँ।
तुझे सोचते-सोचते सोने की अब आदत-सी हो गई है मुझे,
कि तेरी बाहों में सर रख इस आदत को छोड़ना चाहती हूँ।
जो लम्हे, जो दिन, जो शामें, जो रातें गुजरी थी तेरे साथ,
कि उन्हें इकबार फिर से गुजरता हुआ देखना चाहती हूँ।
जो तू कैद है इन आंखों में एक हसीं ख्वाब बनकर,
कि पलकें बंद हों इससे पहले तुझे आजाद करना चाहती हूं।
जो धड़कती है तेरे दिल की धड़कने मेरे दिल के साथ,
कि तेरे दिल की वो धड़कने तुझे लौटना चाहती हूं।
जो ले गया बेचैनियां मुझसे जुदा होते वक्त,
कि लौटा दे वो बेचैनियां मैं तुझे करार देना चाहती हूँ।
हो सके तो अजनबी आजा इस दुनिया से जाने से पहले,
कि इकबार तुझे गले लगा फिर छोड़ना चाहती हूँ।
मैं जानती हूं कि हमे फिर से जुदा होना होगा एकदिन, कि मैं तेरी आंखों को भी नम देखना चाहती हूं ....
पोयम खत्म हुई। सत्य ने बड़े गौर से उसे सुना फिर मुझसे बोला, "पीहू अच्छा लिख लेती थी न ? यदि आज होती तो वह भी तुम्हारी तरह राइटर होती ..... है न ? "
"हूँ .... जरूर होती। बल्कि यूं कहो मुझसे बेहतर राइटर होती ...", मैंने खुले मन से उसकी प्रशंसा की, "लेकिन सत्य तुम यहां क्यों पड़े हो, लौट जाओ अपने घर। यार जिंदगी में आगे बढ़ो, मूव ऑन करो ... । यह जिंदगी का एक फेज था, पूरी जिंदगी नहीं ...। उसकी बुक्स, उसकी यह डायरी, उसकी यादें, इन सब से दूर जाओ, इन्हें बंद कर दो एक अलमारी में हमेशा-हमेशा के लिए ... यह तुम्हें जीने नहीं देंगी। तुम्हें अंदर ही अंदर मारती रहेगी, तुम धीरे-धीरे खत्म हो जाओगे और तुम्हें पता भी नहीं पड़ेगा। मेरे दोस्त, यहां अब कुछ नहीं रखा है। .... जब वही नहीं रही तो उसकी यादों को दिल से लगाए कब तक पड़े रहोगे यहां ? ... अब तुम्हें और क्या समझाऊं यार .... और कैसे समझाऊं ? मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता ...?"
कुछ देर चुप रहने के बाद उसने शांत स्वर में कहा, "मैं ये सब जनता हूँ, ... लेकिन तुम समझाओ मुझे ... मै समझूंगा। .... चलो मैं ही तुम्हारी हेल्प करता हूँ। ... मेरे सीधे और आसान से सवाल का जवाब पूरी ईमानदारी से दे दो ... तुमने जिससे प्यार किया, मानलों उसी से तुम्हारी शादी हो गई होती ... और फिर वह इस दुनिया को छोड़ गई होती .... तो क्या तुम मूव ऑन कर लेते ...? मै बताता हूँ ... नहीं कर पाते। ... हम दोनों केवल प्रेमी-प्रेमिका नहीं थे शैल, हमारे बीच एक रिश्ता था और वह था पति-पत्नी का। यदि मुझे कुछ हो जाता तो मैं जानता हूं पीहू कभी भी मूव ऑन नहीं करती, तो फिर मैं क्यों करूं ? .... क्या केवल इसलिए कि अभी मेरी उम्र कम है या फिर इसलिए कि हमारी कोई संतान नहीं। जबकि मुझे पता है, जब उसकी डेथ हुई तो वह प्रेग्नेंट थी, तीन माह का बच्चा था उसके गर्भ में ... और वह इस दुनिया में आने से पहले ही अपनी मां के साथ ..."
मैं उसकी बात सुनकर सन्न रह गया आश्चर्यचकित-सा उसे देख रहा था .... और वह अपनी बात पूरी करते-करते एक बार फिर रो पड़ा। मैंने उसे रोने दिया। उसके कंधे पर हाथ रखकर चुपचाप बैठ रहा। कुछ देर बाद उसने मुझसे कहा, "तुम्हारे लिए पीहू का एक मैसेज है। बुरा ना मानो तो कहूं ..."
मै चुप था, उसी ने आगे कहा, "जब उसे ज्ञान से तुम्हारे बारे में मुझे पूरी हकीकत मालूम पड़ी, तुम पर क्या गुजरी है, किन हालातो में तुम यहां आए, तो उसने मुझसे कहा कि उसे अंदाजा तो पहले से हो गया था, और शायद इसीलिए उसने ज्ञान से तुम्हारा ख्याल रखने के लिए कहा था। उसने मुझे यह भी कहा कि यदि कभी मेरी तुमसे मुलाकात हो तो मैं उसका यह संदेश तुम तक पहुंचा दूं ..."
"कौन सा संदेश ....", मैंने धीरे से पूछा था।
"यही ..... मूव ऑन करने का ..., देखो तुम सोच रहे होंगे कि मैं डबल स्टैंडर्ड की बात कैसे कर सकता हूं ? लेकिन ऐसा नहीं है मेरे दोस्त। .... उसने तो अपने मां-बाप की इज्जत उनके मान-सम्मान को ध्यान में रखकर तुम्हारा मन से न सही लेकिन सामाजिक रूप से त्याग तो कर ही दिया न ? यदि तुम उसकी याद को अपने दिल से लगाए यूं भटकते रहोगे, अपनी जिंदगी तबाह करते रहोगे तो वह हमेशा अपने आप को दोषी समझेगी। और यह बात उसके लिए किसी सजा से कम नहीं होगी। ..... पीहू ने कहा था कि तुम उसे सजा मत दो .... उसकी तरह तुम भी शादी कर लो ताकि जब कभी वह तुम्हारे बारे में सुने ..... किसी से पता चले .... तो कम से कम वह अपने आप को दोषी तो न समझे ..."
सत्य कह रहा था और मैं सुनता जा रहा था, "उसने एक दिन मुझसे कहा की शैल की लवर का दिल और स्वभाव मुझ जैसा ही रहा होगा यदि बाबा कन्वेंस नहीं होते लाख मोहब्बत के बावजूद मैं तुम्हें नहीं अपना सकती थी। मैं भी तुम्हारा त्याग कर देती, उस जैसे इंसान को छोड़ने में वह लड़की कितना रोई होगी, इसका अंदाजा मुझे है। और शायद इसीलिए शैल ने भी कभी उसे दोषी नहीं माना। उसने अपनी पोयम में उसके दर्द को भी कितने अच्छे से लिखा है।
तू शरमाती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
खुद का रोना भूल गया हूँ,
जब से तेरे इन गालों में,
लुढ़के आंसू देखे हैं।
शैल के साथ-साथ मुझे उस लड़की से भी पूरी हमदर्दी है, काश कि कभी मैं उससे मिल पाती ...!! यह कहते-कहते हुए बहुत भावुक हो गई और रोने भी लगी। शैल ऐसी थी तुम्हारी गर्लफ्रेंड .... तुमसे जुड़ी हर चीजों से उसने मोहब्बत की .... उन्हें अपना समझा ..... उनके दर्द को भी महसूस किया ...."
"जानते हो सत्य हम दोनों का दुर्भाग्य क्या है ? ....... चलो मैं ही बताता हूं ... दोनों ही अपनी उम्र से अधिक समझदार थीं .."
"मतलब ...?"
"मतलब तो मुझे भी नहीं मालूम ... बस मुख से निकल गया ... वो क्या कहते हैं, हां हम जैसे लेखकों के मुख में चौबीस घंटे में एक बार कुछ पल के लिए सरस्वती का वास होता है ....", फिर मैं अपनी ही बात पर थोड़ा हंस पड़ा था।
"तुम्हे याद है सत्य इसी जगह पर आज से लगभग पांच साल पहले हम सभी ने इकट्ठा डिनर बनाया था वो भी चूल्हे में, तुम्हारी सूखी सब्जी का स्वाद आज भी जुबान पर है ...", मैने अतीत के पन्ने पलटते हुए कहा।
"हां याद है ... तुम इसी तरह खाट में लेटे थे .... ऐसे ही जैसे बहुत बड़े राइटर हो .... बिल्कुल राजा महाराजा की तरह। मैं और पीहू इधर तुम्हारे बगल में पत्थर में बैठे थे, प्रजा की तरह। और मंगल चाचा को क्या कहते थे तुम ? हां हनुमानजी, वो बिल्कुल तुम्हारे पैर के पास खाट में टिक कर बैठा था, बिल्कुल सेवक की तरह !! ... हम सभी ने पी थी .. याद है ? मैने तो दूसरी या तीसरी बार लेकिन पीहू ने तो पहली बार पी थी ...."
मैने खाली कुल्हड़ सत्य के हाथ से लेते हुए और एक लार्ज बनाते हुए उसकी तरफ बढ़ाया था, "हां याद है ... सभी कुछ उसी तरह ..."
"तुम नहीं लोगे ...?", उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा था।
मैने अपनी कुल्हड़ भरते हुए कहा, "ले रहा हूं न .... उस समय मेरी हालत बुरी थी। ब्रेकअप तक तो ठीक था ... लेकिन ब्रोकन हार्ट हुआ था यार ... यू नो ... उसकी शादी के पहले तक एक आशा थी ... कि हो सकता है उसे कभी मेरी कमी महसूस हो और वो मुझसे मिलने आए, हम दोनों मिलकर कोई रास्ता निकाले ... मै तो संभावनाओं में जी रहा था ... फिर अचानक ... सारी संभावबाएं खत्म ... और ऐसे में ज्ञान ने तुम लोगे पास छोड़ दिया, अजनबी लोग, अजनबी जगह, समझ में नहीं आता था कि किस से कैसे बिहेव करू ... क्या रिएक्ट करूं ... सो सॉरी यार ... मुझसे कोई मिस-बिहेव ही गया हो तो ... रियली ...",
"पीहू को कभी याद किया ...?"
"नहीं ... जब भी याद किया तो दोनों को एक साथ याद किया ...", मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"नहीं ... मेरा मतलब वो नहीं था ... जानते हो शैल, पीहू के लिए मैं अक्सर बुक्स लता था ... वही लिटरेचर वाली ...। पढ़ने के बाद जो उसे अच्छी लगती, वह उसे अलग रखते हुए मुझसे कहती .... ये शैल को पसंद आएगी ... और मैं उसे छेड़ते हुए कहता, वह तो तुम्हें याद तक ना करता होगा ... !! वो बुक्स आज भी, अलग उसी तरह अटारी में रखी हुई हैं। जाने से पहले देख लेना ... जो पसंद की हो तो लेते जाना ..."
"तुम नहीं जानते सत्य, वह अपनी यादें छोड़ना चाहती थी और उसने वही किया .... देखो आज भी वह इसी जगह बैठी है .... देखो कह रही है, ओ राइटर !! कुछ सुनाओ न", और इस बार सत्य अकेला नहीं रोया था।
कुछ देर बाद मैने खुद पर नियंत्रण करते हुए सामने की तरफ देखते हुए कहा, "चीयर्स पीहू जी ! नॉट फेयर ... तुमने मेरे दोस्त को बहुत रुलाया है ... और मुझे भी ... लेकिन तुम इसे अकेला न समझो। इसे लिटरेचर की समझ नहीं है न ... लेकिन मुझे है ? मैने भी ज्यादा नहीं पढ़ा शेक्सपियर को और न ही कालिदास जी को ... लेकिन तुम मुझसे बात करो ... कुछ सुनाऊं ? तो सुनो ... ये मंगल तुम इधर आओ ... तुम भी सुनो ... कमली तुम वहीं से सुनना ....
कोई अकीदत नहीं कोई मोहब्बत नहीं पर क्यूं,
"यार तू चुप क्यों बैठा है, मेरे साथ दोहरा न ...", मैने सत्य का कंधा पकड़ते हुए कहा, "देख इस लिटरेचर गर्ल्स से अपने दोस्त को हारने मत दे ..."
"कोई अकीदत नहीं कोई मोहब्बत नहीं पर क्यूं, ..."
"हां अब सही है ", मैने उसकी पीठ ठोकते हुए आगे कहा,
निगाहें ठहर-सी जाती है तेरी तस्वीर देखकर।
"वाह सर जी, वाह ", मंगल ने अपना कुल्हड़ मेरे सामने पेश करते हुआ बोला। मैने उसकी तरफ बॉटल बढ़ाते हुए कहा, "डिस्टर्ब नहीं मंगल ... सेल्फ सर्विस ... हां तो सत्य मै कहा था ...?"
सत्य ने रिपीट किया,
"कोई अकीदत नहीं कोई मोहब्बत नहीं पर क्यूं, ...
निगाहें ठहर-सी जाती है तेरी तस्वीर देखकर। "
"हां तो आगे सुनीं ... ये मंगल तुम ज्यादा नहीं ... चोखा तुम्हे ही बनाना है, नहीं बना पाया तो कमली जी तुम्हारा बना देंगी .."
"जी सर जी ... बिल्कुल सही .... आप आगे सुनाइए न ..."
"तो सुनो ....
"तुझसे कोई राब्ता नहीं कोई वास्ता नहीं पर क्यूं,
राब्ता मतलब रिश्ता, संबंध और वास्ता मतलब ... वो तो सभी जानते हैं ... आगे सुनो, आप भी गौर फरमाइएगा पीहू जी,
"तुझसे कोई राब्ता नहीं कोई वास्ता नहीं पर क्यूं,
खुद से ही जुदा हो गया हूँ मैं तुझसे दूर हो कर।"
ये सत्य तू चुप क्यूं है, कह मेरे साथ,
कोई शिकवा नहीं तेरी जुस्तजू भी नहीं पर क्यूं,
हर एक लम्हे में शामिल है तू मेरी याद बनकर।
मंगल फिर बोला, "वाह .. वाह सर जी .."
"ये मंगल इधर आ, यार सब पी गया क्या ... ला थोड़ा सा और डाल ...", मंगल ने आदेश का पालन किया बॉटल की बची हुई मेरे कुल्हड़ में डाल दी, "ये क्या मंगल खाली ? ... देख ... ये बैग उठा ... मंगल तुझे मालूम है ... जुस्तजू का मतलब क्या होता है ?"
मंगल ने फुल बॉटल मेरे हाथ में देते हुए कहा, "नहीं सर जी ..."
"अच्छा ...", मैने सत्य का कुल्हड़ भरते हुए कहा, " तो फिर वाह .... वाह क्यों की ..."
"अब सर जी सुर-ताल मिल गए तो कर दी वाह ... वाह .."
"जुस्तजू का मतलब खोज यानि तलाश ...", फिर मैं सत्य की तरफ देखते हुए कहा, "पीहू से कोई शिकायत तो तुम्हें है नहीं ... अब उसकी तलाश भी छोड़ो... देखो तुम जानते हो, ये बात मैं नशे में नहीं कह रहा ... कल हम, तुम और ये मंगल तीनों वहां चलेंगे ... मुझे भी तो अपने दोस्त को अपनी गर्लफ्रेंड को अलविदा कहना है ... और मंगल देखो सुबह बगिया से ताजे फूल तोड़ लेना ..."
"जी सर जी ... मै चोखा बनाया हूँ ... तब तक आप कुछ-कुछ सुनते रहिए ...",
मैने शिप लेते हुए मंगल से कहा, "फल-फूल थोड़ा-सा और चाहिए ... खाली पेट भजन नहीं होगा मुझसे ...", मेरी बात सुन दोनो थोड़ा हस दिए। मेरे दिल को तसल्ली हुई ... मैने मन ही मन पीहू से क्षमा मांगी, "सॉरी फ्रेंड ... चीयर्स ..!
शौक - ए - शायरी नहीं
ये तो मोहब्त-ए-दर्द है,
जो लब्ज़ों में बयां होता है।
मैने देखा वह सामने बैठी मुस्कुरा रही है उसी रात की तरह, जैसे मुझसे कह रही हो, "जानती हूँ... बताने की ज़रूरत नहीं ..."
"ये मंगल तुम आलू, टमाटर, शिमला मिर्च, बैगन फटा-फट बढ़िया से धो के एक थाली में लाओ, आज मिक्स-वेज हम दोनों बनाएंगे ..."
सत्य चौंकते हुए बोला, "ये तुम खाना बना लेते हो !! ..."
"और नहीं तो क्या, सिर्फ मिक्स वेज ही नहीं, आलू पनीर के पराठे, छोले, मटर पनीर की सब्जी ये सब बना लेता हूँ.... क्यों ?"
"जानते हो मैं भी ये सब बना लेता हूँ .... पीहू के साथ तो कई बार बनाया भी था ...", सत्य फिर अतीत की गलियों में खोते हुए बोला।
तब तक मंगल एक थाली में सब्जी, चाकू और एक खाली थाली ले कर हाजिर हुआ।
"मंगल तुम स्मोक करते हो ...?", मैने पूछा था।
"नहीं सर जी ... ये भैया जी के पास मिलेगा ...पता नहीं क्यूं दो साल से सिगरेट पीने लगे है ..."
"सत्य ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर मेरी तरफ बढ़ाया, मैने एक सिगरेट ले ली, मंगल ने भी एक जलाई और अपने काम में वापस लौट गया। सत्य ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, "मै घर जा के आता हूं ... कुछ थाली, देशी धी और भी कुछ बर्तन ले कर आता हूं ..."
"मै भी चलूंगा ... घर तक नहीं यार बस गेट तक ... वो क्या है न कि सू-सू बहुत ही कस कर ..."
"ओके ... ओके ... तो फिर चलो ...", मैंने सत्य के साथ चलते हुए कहा, "मंगल ! मैं अभी आया ...", मैने एक कश लेने के बाद सिगरेट सत्य की तरफ बढ़ा दी और खाट से उठ खड़ा हुआ, सत्य ने पूछा, "कंफर्ट न ..."
"या .. या .... ओके फाइन ... ", मै उसके साथ चलते हुए बोला।
वह मुझे गेट के बाहर छोड़ बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, "ये पैकेट और लाइटर रखो .... गेट बंद करने के चक्कर में न रहना ... और देखो लौटने में कोई दिक्कत हो तो मंगल को आवाज दे लेना .... मै बस गया और आया ..."
"दिक्कत कहे की, हंड्रेड वाट का बल्ब मड़ैया में और मिनिलयंस वाट का ये ऊपर आसमान में ... वो भी फुल ... मै आराम से चला जाऊंगा ... तुम अपना ध्यान रखना ..."
सत्य चला गया और थोड़ी देर बाद मैं वापस अपनी जगह में लौट आया। मुझे अकेला देख मंगल ने पूछा, "सर जी ! भैया जी कहां गए ...?"
"वो घर गए हैं, कुछ सामान लेने ..."
"सर जी ! मै अभी आया ... वो क्या है भैया जी को लास्ट बार आप ही के साथ पीते हुए देखा हैं .... उनकी आदत नहीं है ... और ये अंग्रेजी देर से असर दिखाती है ... उन्हें कुछ ज्यादा भी दे दी है। आप सब्जी काटिए तब तक मैं आता हूँ ..."
मंगल अपनी जगह सही था। उसका चिंतित होना भी लाजिमी था। मेरे कहने पर उसने सत्य के लिए लार्ज और कंसंट्रेट पैग बनाए थे। मंगल से सहमत होते हुए मैंने उससे कहा, "हां मंगल तुम उसके पास जाओ ... और हां आते समय घर अच्छे से बंद कर देना ..."
मैने जल्दी से सब्जी काटी। कुल्हड़ अभी भी फुल ही थी ... मैने एक घूट पी तो एहसास हुआ कि पानी तो मिलाया ही नहीं। मैने पानी मिलाया और दो घूट और पी, फिर पानी मिलाया और उसे खाट के नीचे रख एक सिगरेट जला ली। कमली आटा लगाने में व्यस्त थी और मैं आराम से खाट में लेटा सत्य और मंगल का इंतजार करने लगा। सर पे मिनिलयंस वाट का गोल बल्ब धीरे-धीरे अपना सफर तय कर रहा था।
न जाने कितनी यादें जुड़ी है इस जगह से। भावुकता में लिखे गए एक पत्र का प्रभाव ज्ञान पर इतना पड़ा कि दूसरे दिन ही वह सीधे मेरे घर पहुंच गया। मेरी मोहब्बत का दूसरा गवाह मेरा हॉस्टल फ्रेंड। जिसके साथ मैंने तीन साल रूम के साथ-साथ दिल की बातें भी शेयर की। अपने साथ ले जाने की उसकी जिद के आगे मेरी एक न चली। मैंने उसे समझाना भी चाहा कि वह एक कमजोर लम्हा था, जो आया और आकर चला गया, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं था।
मैं जिस इंस्टिट्यूट में कंप्यूटर साइंस पढ़ता था, 10-12 की छुट्टी ली। आगरा, अलीगढ़, ग्वालियर इन जगहों पर या तो उसके रिलेटिव थे या हमारे हॉस्टल फ्रेंड थे हम लगातार 6 दिनों तक घूमते रहे। एक शहर से दूसरे शहर, एक ट्रेन से दूसरी ट्रेन पकड़ते रहे। अंत में जब उसके घर पहुंचे, तो पता चला की पूरा परिवार मौसी के यहां शादी में जाने के लिए तैयार है। ज्ञान तो मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहता था। लेकिन मुझे वहां जाना बहुत ही अजीब लग रहा था, मैंने उसे साफ मना कर दिया, "देख यार तेरी जिद थी तो मैं चला आया, लेकिन वहां शादी ब्याह में मुझे मत ले जा, एक तो मौसी की बेटी की शादी है, तुझे भी 10 काम करने पड़ेंगे। मैं वहां बोर हो जाऊंगा। वैसे भी तू जानता है, मुझे भीड़-भाड़ ज्यादा पसंद नहीं है।
हम लोगों में डिस्कशन चल ही रहा था कि उसका स्कूल का बेस्ट फ्रेंड यानी कि सत्य प्रकाश उससे मिलने आया था। हम लोगों में पहली बार परिचय हुआ, और समस्या का हाल उसी ने निकाला, "यार तुम चलो मेरे साथ। तीन दिन की तो बात है। तन्हाई पसंद इंसान हो न, वहां तुम्हें तन्हाई के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा ... "
"देख यार तू सत्य के साथ चला जा। ज्यादा नहीं यहां से कोई 50-60 किलोमीटर है, रोड अच्छी है। बाइक का सफर में डेढ़ घंटे से अधिक नहीं लगेगा। जिस दिन मैं लौट कर आऊंगा तो मैं तुझे लेने आ जाऊंगा, मैक्सिमम फोर डेज... वैसे तू तीन ही मान ...."
नवंबर का फर्स्ट वीक, ठंड के शुरुआती के दिन जब मैं पहली बार इस जगह में पहुंचा था। पहला परिचय मंगल से दूसरा कमली से हुआ।
"तुम इस झोपड़े में रहते हो ...", मैने आश्चर्य से पूछा था।
मेरी बात सुन सत्य हंसा था, "नहीं यार ... वो देखो जो दूर घर दिखाई दे रहा है, वहां रहता हूँ ... "
"वो घर !! ... अभी उसी के पास से तो निकाल कर यहां आए हैं ... तुम इतने बड़े घर में अकेले रहते हो ...", मैंने जिज्ञासा से पूछा।
"नहीं मैं सब में बाद में बताऊंगा पहले तुम यहां नहा-धो कर फुर्सत हो लो, फिर घर चलेंगे ... मंगल ! ओ मंगल !! ... सर जी के नहाने का इंतजाम करो ..."
मंगल पास आता हुआ बोला, "जी भैया जी ..."
मंगल मुझे पंप हाउस के पास ले आया। चहरी से दो बाल्टी पानी, जग और एक साबुन दे कर चला गया। कुछ देर बाद वह सर पे एक चारपाई और कंधे पर मेरा बैग लटकाए हुए हाजिर हुआ, "मंगल तुम्हारे भैया जी कहां गए ...?"
"जी वो घर गए है, कुछ देर में आ जायेंगे ... तब तक आप नहा लीजिए और आराम कीजिए", मंगल ने जवाब दिया।
"अच्छी बात है ...", मैने कपड़े उतरते हुए कहा, "जरा बैग खोलो टावेल और अंडर गारमेंट्स निकल कर चहरी के ऊपर रख दो ....", इतना कह कर मैं नहाने में व्यस्त हो गया। कुछ देर बाद मैने चहरी की एक दीवाल के ऊपर टावेल और विस्की की बॉटल रखी देखा, देख कर दंग रह गया, "मंगल ये क्या है ?"
"जी सर जी, टॉवेल और अंडर ....", मंगल मासूमियत से कह रहा था।
"इसे अंडर गारमेंट्स कहते हैं ...?", मैं अपनी हंसी रोकते हुए बोला।
"पता नहीं सर जी, हमारी तरफ तो इसे दारू कहते हैं ... आपकी तरफ शायद अंडर ग्रांट कहते हों ?"
"उफ़! नहीं भाई हमारे तरफ भी इसे दारू यानि शराब ही कहते हैं, मैने तो तुमको ... यार छोड़ यार .... भाई इसे उठा ... मैं खुद ही निकाल लूंगा ...", मुझे हंसी भी आ रही थी और ज्ञान के ऊपर गुस्सा भी। एक तो छोड़ के चला गया और दूसरा ... बिल्कुल महान।
मैने कपड़े पहने। बैग में सीसा, कंघी, ऑयल, क्रीम सभी था। मुझे खास किसी चीज की जरूरत नहीं महसूस हुई सिवाय इसके कि जोरो की भूख लग रही थी। मैने चारों तरफ देखा। बगिया शानदार थी, आम, अमरूद, आंवला, अनार जैसे फलदार वृक्ष खेत के किनारे-किनारे लगे थे। बीच में हरी सब्जियां। मंगल आम के पेड़ की जड़ में मुझसे कुछ नाराज़ बैठा था, बिल्कुल शांत।
मैने उसे प्यार से पुकारा, "मंगल ! तुम्हारी बगिया में कुछ खाने लायक है ? मतलब फल- फूल ?"
"जी ... है ...", वह कुछ रूखेपन से बोला।
"तो हे पवन पुत्र ... तो कुछ तोड़ लाइए मुझे कुछ-कुछ भूख लग रही है। आपके भैया जी तो छोड़ के चले गए ... अब आप ही कुछ सेवा करिए ... और हां .... उस प्रदर्शनी को जरा यहां दे दीजिए ...", मैने बॉटल की तरफ इशारा करते हुए उससे बोला था। वह उठा और बॉटल मेरी खाट में ला कर रखते हुए बोला, "मैं आता हूं ..."
मैने बैग खोला, कपड़ों के बीच दो कांच की छोटी छोटी ग्लास अभी भी सुरक्षित थीं। मैने एक लार्ज बनाया। चहरी में पानी साफ ही था। मै उठा और एक जग पानी ले आया, मिलाया और एक ही बार में गटक गया। दिमाग को कुछ रिलेक्स महसूस हुआ। मैने फटाफट दूसरा पैग बनाया और बॉटल को बैग में डाल, सिगरेट निकल ली लेकिन माचिस नहीं मिली।
मैने ग्लास से दो तीन घूट लेने के बाद उसे नीचे रख दिया। कुछ देर बाद मंगल दो अमरूद, एक अनार, कुछ मूली और गाजर ले कर हाजिर हुआ। मैने गाजर खाते हुए उससे कहा, "मंगल ये बगीचा और खेत तुम्हारा है ?"
उसने मेरी गिलास की तरफ देखते हुए बोला, "नहीं ... दाऊ साहब के हैं ...."
मैं इतना तो समझ गया था कि यदि मुझे यहां तीन-चार दिन गुजारना है तो इस इंसान को पटा के रखना पड़ेगा। लेकिन यह शीशे में उतरेगा कैसे ...? शीशा ... यानी कांच ... मेरे दिमाग में खयाल आया ... मैने गिलास से एक घूट लेते हुए उससे इशारे में पूछा, "लोगे ...?"
उसका इंकार।
मैने दूसरा घूट लिया फिर इशारे में ही कहा, "थोड़ा सा ...?"
इस बार न तो इंकार और न ही इकरार।
तीसरी बार मैंने उससे पूछा नहीं, बल्कि उसके लिए बनया। वह मेरे खाट के नजदीक बैठ गया और जल्दी से पूरी गिलास एक ही सांस में पी गया। फिर एक गाजर और एक मूली लेकर फिर आम के पेड़ की जड़ पर बैठ गया। दोपहर के 12 बज रहे होंगे।
मैं फल फूल खाता जा रहा था और घूट-ब-घूट पीता भी जा रहा था।
मैंने अपने लिए तीसरा और मंगल के लिए दूसरा बनाया। यद्यपि मंगल ने मना किया, "रहने दीजिए सर जी, भैया जी जान जाएंगे तो डांटेंगे ..."
"यार मंगल एक पैग दुश्मन को पिलाते हैं। तुम हमारे दुश्मन थोड़ी हो। कुछ नहीं होगा .... यह अंग्रेजी है, अधिक नहीं महकती। भैया जी से बस दो कदम दूर रहना, नहीं जान पाएंगे .."
और इस तरह मंगल दूसरे पैग के साथ ही मेरा दोस्त बन गया। मैं उससे पूछता गया वह बताता गया। अपने बारे में, दाऊ साहब के बारे में, सत्य के बारे में, और फिर एक नया नाम आया .... पीहू ! यानी कि दाऊ साहब की पोती।
गाजर मूली अमरुद अनार सभी ताजा थे खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगे, "यार मंगल तुम्हारे कंद-मूल तो बहुत अच्छे हैं ..."
मैंने अपने लिए चौथ और मंगल के लिए तीसरा बनाया, "अरे सर जी अब रहने दजिए ..."
"यार मंगल ! दो पैग तो दोस्त पीते हैं, लेकिन तीसरा पैक बेस्ट फ्रेंड पिता है, मतलब जो बहुत गहरा दोस्त होता है ... ",
"जनता हूं सर जी ... सातवीं तक पढ़ा हूँ...", वह पास आया अपनी गिलास ले कर पुनः वहीं बैठ गया।
"ओह ! अच्छी बात है !! .... माचिस है ?", मैने उसे सिगरेट दिखाते हुए पूछा।
वह पंप हाउस के अंदर गया और माचिस मुझे देता हुआ बोला, "आप भैया जी के मास्टर साहब है ?"
"ये तुमसे किसने कहा ...", मैंने आश्चर्य से पूछा था।
और उसने भोलेपन से जवाब दिया, "नहीं!! वह आपको सर जी बोले न इसलिए ..."
"देखो मंगल मैं तुम्हारे भैया जी का मास्टर न सही लेकिन मास्टर हूं। सी प्लस-प्लस, विजुअल बेसिक, ओरेकल, जावा ये सब पढ़ता हूं ...", लेकिन उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे कुछ समझ में नहीं आया। मैंने उसे समझाने की दृष्टिकोण से कहा, "तुम इतना समझ लो .... कंप्यूटर पढ़ता हूं ..."
"ओह ! सर जी...",
"इसमें ओह की क्या बात ?", मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
"अरे नहीं सर जी .... मेरा मतलब वो देखिए ... पीहू बिटिया आ रही हैं ... हे भगवान अब मैं क्या करूं ...", मंगल कुछ डरते हुए बोला।
मैने देखा, दूर गेट के उस पार खेतों के बीच से गुजरती हुई पगडंडी में एक हाथ में झोला लिए हुए, कत्थई कलर का सलवार सूट पहने एक लड़की चली आ रही है। मैंने मंगल की तरफ देख और कुछ हंसते हुए कहा, "रिलैक्स मंगल रिलैक्स ...डरते क्यों हो पहले से ? अपनी बची हुई खत्म करो, फिर जल्दी से मुंह हाथ धो लो, और पकड़ो ये अमरूद। खाते हुए निकल जाओ ..."
मंगल ने वैसा ही किया। लेकिन कुछ नर्वस था, मैंने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा, "तुम बिल्कुल ठीक हो, नशे में नहीं लग रहे हो ... बस दो कदम का फासला रखना ... अब जाओ ...", मंगल तेज कदमों से लगभग भागता हुआ गेट की तरफ चला गया।
मैंने अपना चौथा पैक खाली किया और पांचवा बनाया, एक सिगरेट जलाई, और बैग से टाइम पास के लिए एक बुक निकली। बैग को सिरहाने रख आराम से उस पर कोहनी टिका अध-लेटें बुक पढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद मंगल की पुकार सुनाई दी, "सर जी ! ..."
मैंने उसकी तरफ बिना देखे हुए पूछा, "तो मंगल, चली गई तुम्हारी पीहू बिटिया....?"
जब मंगल से कोई जवाब न मिला तो मैंने पलट कर उसकी तरफ देखा। मंगल से कुछ ही दूर पर वही लड़की खड़ी थी। मेरे एक हाथ में बुक और दूसरे हाथ में जलती सिगरेट। खाट के पास ही रखा एक अधूरा जाम और विस्की की बॉटल। बढ़ी हुई दाढ़ी और डेढ़ बीते से भी ज्यादा बड़े बाल जो हवा चलने के कारण उलझ से गए थे। आंखों में टूटे, कुछ अधूरे ख्वाब। दिल में बहुत सारी बेचैनियां। चार पैग के शुरूर के साथ, उसकी बगिया के आम के पेड़ के नीचे एक खाट में अध-लेटे इस कहानी के राइटर की इसी कहानी के एक अहम किरदार से पहली रू-ब-रू मुलाकात थी।
मैं खाट के नीचे पांव लटका कर बैठते हुए सवालिया निगाह से उसकी तरफ देखा, "पीहू ...?"
"जी पीहू ... नमस्ते !!", उसकी इस शालीनता से मैं प्रभावित हुआ। मैंने भी अपने दोनों हाथ जोड़ दिए, " जी नमस्ते ...! आई एम वेरी सॉरी ... इस तरह ... इन हालातों में ...", मैंने हड़बड़ाते हुए क्षमा मांगी और जलती सिगरेट दूर फेक दी।
"इट्स ओके ...", पहले उसने मेरे द्वारा फेंकी गई जलती हुई सिगरेट की तरफ देखा, फिर कुछ गुस्से से मेरी तरफ। उसके बाद मंगल से बोली, "मंगल उसे बुझा दो ..."
मंगल भागता हुआ सिगरेट के पास पहुंचा और पैर से उसे बुझते हुए बोला, "वो क्या है न सर जी, आसपास कटी हुई फसल रखी हुई हैं, तो आग लग सकती है, इसलिए बिटिया ने कहा ...."
"ठीक है ... ठीक है, सॉरी ....", मैंने लापरवाही से कहा।
"इसे फिनिश कीजिए और खाना खाइए ...", उसका इशारा अधूरे जाम की तरफ था।
मैंने उससे रिक्वेस्ट की, "प्लीज ... टर्न योर फेस ..."
इसबार बदले में वह थोड़ा मुस्कुराते हुए बोली, "मैं नहीं देख रही ... फिर वह मंगल से बोली, "मंगल जाओ एक जग और गिलास में पानी लेकर आओ ... और ये क्या ? खाट में कुछ डाल तो देते ... ऐसा करना दरी और तकिया भी लेते आना।
पीहू मंगल को निर्देश देती जा रही थी और मैं इधर जल्दी से ग्लास खाली कर सामान समेटने में व्यस्त हो गया। बॉटल और गिलास को बैग के अंदर डाला। मग के बचे हुए पानी से मुंह और हाथ धोया। इस बीच मैंने पूछा, "सत्य नहीं आया, कहां गया ?"
"माइंस में जरूरी काम निकल आया था, आपकी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़कर चले गए ..", उसने आगे बताया, "घर के पास की नौकरी अच्छी भी होती है और बुरी भी ... यही कुछ दूर पर माइंस चलती है। कोई काम पड़ता है तो चले आते हैं बुलाने के लिए। ... यदि आपको पीनी जरूरी ही थी तो कम से कम साफ-सुथरा पानी तो मंगल से मंगवा लिए होते ...", और मैं यह समझ नहीं पा रहा था कि यह मुझे डांट रही है या समझा रही है।
"जी सॉरी ! ...", मैंने किताब को चारपाई में एक तरफ रखते हुए कहा। सॉरी शब्द मेरी जुबान से अनायास और अपने आप ही निकलते जा रहे थे। तहजीब का प्रभाव था या फिर उसकी डांट का, समझ नहीं आ रहा था।
"कौन सी बुक है ... मैं देख सकती हूँ ..?"
"जी बिल्कुल, क्यों नहीं ...", मैंने बुक उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा। चलो इस बहाने मुझे डांटते की तरफ से इसका ध्यान तो हटेगा।
"ओह ! गोपाल दास नीरज ! क्या बात है !! आपको पोयट्री पसंद है ?", इस बार प्रसन्नचित और मुस्कुराते हुए उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा था।
मैं समझ गया यह इसकी कमजोरी है। मैंने फौरन मौके का फायदा उठाया, "जी बिल्कुल बहुत पसंद है, रेलवे स्टेशन में देखी, दो-चार पन्ने पढ़ी, अच्छी लगी तो ले ली .... वो अपने एक गीत तो सुना होगा, पुरानी पिक्चर का एक बहुत ही फेमस गीत है, बच के निकल जा इस बस्ती से करता मोहब्बत कोई नहीं, इन्होंने ही लिखा है ...", मैंने अपना इंप्रेशन जमाने के उद्देश्य से कहा।
"मुझे पता है ...", उसने धीरे से कहा था। पता है!! मेरा चेहरा बुझ गया। वह किताब के पन्ने पलटती जा रही थी और कुछ-कुछ पढ़ती भी जा रही थी। इस बीच उसने पूछा था, "आप इस तरफ पहली बार आए हैं ?"
"जी हां, अजनबी जगह में एक अजनबी हूँ । सत्य के अलावा किसी को नहीं जनता, अभी कुछ देर पहले मंगल से परिचय हुआ है, और अब आपसे हो रहा है ...", मैंने सहानुभूति जुटाने की कोशिश में जवाब दिया।
"आप करते क्या हैं ....?", उसकी तरफ से अगला तीर।
और इस बार मैंने तय कर लिया कि इस तीर को तो पास नहीं फ़टकने दूंगा। इसके प्रभाव को तो बीच में ही खत्म करूंगा।
"मैं ? .... क्या करता हूँ ...? गौर फरमाइए ....
औरों का धन सोना चांदी,
अपना धन तो प्यार रहा,
दिल से जो दिल का होता है,
वह अपना व्यापार रहा।
उसने गौर से मेरी तरफ देखा। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "जो बुक आपके हाथ में है ...
"ये कविता इसी में है .... है न ?, मैने अभी-अभी देखी है ..…",
तीर वापस मुझे आ कर लगा।
" ... वैसे मैं अपने शहर के एक इंस्टिट्यूट में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज पढ़ाता हूं ... जवा का नाम तो सुना होगा ...?", इस बार मैंने अपनी समझ से दिव्यास्त्र चलाया था।
"उसने फिर ध्यान से मेरी तरफ देखा। आशा की थी कि " नहीं सुना ...", लेकिन जब वह हौले से मुस्कुराई तो मुझे अपने पूर्वानुमान पर चिंता हुई है।
"जी सुना है, ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड बेस्ड कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है ... सन माइक्रोसिस्टम्स ने इंट्रोड्यूस्ड किया था, जेम्स गोसलिंग इसके प्रमुख डेवलपर हैं .... आई थिंक 1995 में मार्केट में लैंग्वेज के रूप में इंट्रोड्यूस्ड हुई है। .... और क्या करते हैं ...?"
मेरे दिव्यास्त्र को धराशाही करते हुए उसने अपना दिव्यास्त्र चलया। मै चकित था, केवल सुना ही नहीं बल्कि ये तो जावा का इतिहास जानती है !!
अब मैंने उसको सर से लेकर पांव तक तिरछी नजर किंतु ध्यान से देखा। बाल खुले हुए लेकिन पीछे क्लिप लगाकर संवारे गए थे। मतलब लड़की आधुनिक तो है लेकिन तहजीब वाली है। दुपट्टा अपने सही जगह पर था। मतलब लड़की में संस्कार हैं। कान के टप्स आधुनिक किंतु छोटे-छोटे हैं। सलवार सूट की फिटिंग ज्यादा चुस्त नहीं है। पांव की चप्पल महंगी जरूर लग रही है, किंतु कलर ज्यादा भड़कीला नहीं है। चेहरे की ब्यूटीनेस नेचुरल है यानी मेकअप का बहुत ज्यादा रोल नहीं है। और बातचीत का तो लहजा और ज्ञान का कुछ प्रदर्शन तो हो ही चुका था।
अंत में मैंने निष्कर्ष निकला कि लड़की खानदानी, रहीश, आधुनिक और प्रतिभा संपन्न है जिसमें फैशन और आधुनिकता का दिखावा नहीं है। यह गांव की साधारण लड़की के लक्षण नहीं हो सकते। इसकी पूरी डेप्थ जाने बिना अपना एटीट्यूड दिखाने का मतलब है, आ बैल मुझे मार। तो अब ?
रणछोड़ बनना पड़ेगा। जैसे शेर बड़े शिकार पर झपटने से पहले दो कदम पीछे जाता है। मैंने साधारण ढंग से ही उसकी बात का जवाब देना उचित समझा, "जी साथ में प्राइवेट बीकॉम कर रहा हूं, सेकंड ईयर है ..."
"कंप्यूटर किसी प्राइवेट इंस्टिट्यूट से सीखा है या फिर इंजीनियरिंग की है ...", उसके दिव्यास्त्रों की मारक क्षमता बढ़ती जा रही थी। लेकिन अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। क्योंकि मैं पुरुष के एक स्वाभाविक अभिमान को छोड़कर बिल्कुल डिफेंसिव मोड में आ चुका था।
"जी कंप्यूटर साइंस से पॉलिटेक्निक, जबलपुर पॉलिटेक्निक कॉलेज 1992-1995 बैच ... 12th मैथ्स से..."
"ओह ! ......"
"और अपने कहां से किया है ...", मैंने दबे पांव पहला कदम बढया था।
"क्या ? "
"कंप्यूटर ....."
"किसने कहा कि मैंने कंप्यूटर किया है, वह तो स्कूल में पढ़ा है। फंडामेंटल ऑफ़ कप्यूटर, बेसिक प्रोग्रामिंग लैंग्वेज और सी .... सब्जेक्ट में था "
मैंने बढ़े हुए कदम को दबे पांव पीछे खींच लिया। स्कूल में सब्जेक्ट के रूप में पढ़ा है तो इसकी एजुकेशन मध्य प्रदेश की नहीं है। मैं समझ गया कि मैं खुले मैदान में हूँ और यह बैरक में। गोलीबारी से कोई फायदा नहीं। जो पूछा जाए सभ्य मेहमान का धर्म समझ सीधे-सीधे जवाब देते जाओ। कौन सा मुझे इसे इंप्रेस करना है और करूं भी क्यूं ?
उसने मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए फिर एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछा, "लिटरेचर पढ़ते हैं .."
"हां ... कभी-कभी जब खाली समय होता है तो पढ़ लेता हूं ... अब लैंग्वेज कोई भी हो, चाहे कंप्यूटर की c++ हो या फिर हिंदी या इंग्लिश हो, क्या फर्क पड़ता है ? तो इसे भी पढ़ लेता हूं ...", मैने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया था।
"आप की एज क्या है ..?", अगला प्रश्न।
अरे यार ये कुछ देर यहां और रही तो तो खाना पीना दुभर कर देगी। मैंने कुछ खीजते हुए कहा, "मेरी एज...! कभी हिसाब नहीं लगाया। 10 अगस्त 1974 का जन्म है .... एज का हिसाब अब आप ही लगा लीजिए ..."
उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, "आप अपनी एज से अधिक मेच्योर्ड लगते हैं ... "
मै हंसा था, "अच्छा !! .... तो यह भी बता दीजिए, कि बाई फेस या बाई बिहेव ..."
"दोनों से ... ", उसकी मुस्कुराहट ब-दस्तूर जारी थी।
"थैंक्स फॉर कॉम्प्लीमेंट्स... वैसे भी सुना है, लड़कियों को बच्चे पसंद नहीं ...", मैने अपनी डिसग्रेस को मुस्कुराते हुए उसे ही वापस कर दिया।
"हाजिर जवाब भी हैं ... ", उसने भी उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा।
तभी मंगल समान लेकर पहुंचा। उसने खाट पर दरी बिछाई और उसने टिफिन निकालकर मेरे सामने रखते हुए कहा, "लीजिए ... मैं आपकी बुक ले जा रही हूं ... मंगल तुम इनका ध्यान रखना और देखो जब खा लें तो टिफिन घर पहुंचा देना ... आप की बुक ले जा रही हूँ.... आप बोर तो नहीं होंगे ...?"
"जी नहीं, शौक से ले जाइए वैसे भी खाने के बाद आराम ही करूंगा ,... काफी थका महसूस कर रहा हूं।
वह चली गई। उसके जाते ही मैंने मंगल से कहा, "ला बना एक जल्दी से सब उतर गई यार ... "
"मेरी भी सर जी, पीहू बिटिया से बहुत डर लगता है। ... वो जानती तो है कि मैं कभी-कभार पी लेता हूं, लेकिन आज तक न सामने पी है और ना ही पी कर उनके सामने गया हूँ...", मंगल ने अपनी आपबीती सुनाई।
"हूँ ... तो अपने लिए भी बना लो ... जल्द ही तुम्हारा यह रिकार्ड टूटने वाला है ..."
"मतलब ? ..."
मैंने अभिनेता राजकुमार की नकल करते हुए कहा, "जानी ! मतलब के चक्कर में पड़ोगे तो जान से जाओगे ... अभी तो तुम हमारे लिए एक ड्रिंक बनाओ ...", मंगल मुझे टुकुर-टुकुर देखता रह गया।
मंगल मेरी सेवा करता रहा, साथ में मैं खाना खाता रहा। और मन ही मन बोला, "पीहू जी ! जो कुछ भी हो, यदि यह खाना आपने बनाया है तो प्रशंसा की पात्र हैं ..."
अचानक मेरे दिमाग में बिजली कौंध गई, यह मंगल किस दिन काम आएगा। और खाना खाते-खाते मैंने उससे पीहू के बारे में जितना उसे मालूम था सब पता कर लिया।
ओह .... तो मैडम जी मुंबई की पढ़ी हैं, इसीलिए इतना ज्ञानी हैं। ... जब मैंने खाना खा लिया तो उसने खाली टिफिन समेटकर एक किनारे रखा और मुझसे बोला, "सर जी अब आप आराम कीजिए, मैं थोड़ा कमली के साथ बगिया के काम देखूं लूं ..."
"हा जाओ ...", मैंने तकिया में आराम से सर रख लेटते हुए कहा, "पर ध्यान रखना, कमली से ..."
"दो कदम दूर ....", वह हंसते हुए बोला।
जब आंख खुली तो सत्य को अपने सामने खड़ा हुआ पाया। मैने कैजुअल पूछा, "क्या टाइम हुआ यार ?"
"कुछ अधिक नहीं, टी-टाइम, यदि तुम्हारा ड्रिंक टाइम खत्म हो गया हो तो ?"
"यार ताने मार रहे हो या शिकायत कर रहे हो ..."
"दोनों ही नहीं ... मजाक कर रहा हूँ.... उठो, जल्दी से मुंह हाथ धो लो ... और चलो मेरे साथ ...."
"लेकिन एक मिनिट ...! पहले यह बताओ कि तुम्हें ड्रिंक के बारे में कैसे मालूम पड़ा ? मंगल ने बताया ? लेकिन वह कैसे बता सकता है ? वह तो खुद ही डर-डर के ले रहा था कहता था भैया जी जान जाएंगे तो डटेंगे ?ओह ! तो जरूर उस लड़की ने बताया होगा क्या नाम है उसका, हां पीहू ... ओह ! तो तुमसे बच के रहना पड़ेगा ? मेरे पीछे जासूस छोड़ रखे हैं ?", मैंने कुछ चिंतित होने का अभिनय करते हुए कहा।
उसने मुस्कुराते हुए फिर पूछा, "चले ?..."
"लेकिन जिस घर ले जा रहे हो, उस घर में खुद तुम्हारी पोजीशन क्या है, पहले यह तो क्लियर करो। ताकि मैं अपना बिहेवियर निर्धारित कर सकूं कि किसके साथ कैसे रिएक्ट करना है ?", मैने कपड़ों में परफ्यूम डालते हुए कहां।
सत्य बता रहा था, मै सुन रहा था। सभी कुछ सही-सही बताया लेकिन खुद और पीहू के रिश्ते के बीच की बात उसने पूरी नहीं बताई। उसने बस इतना कहा कि वह एक अच्छी दोस्त है। उस वक्त मैंने अंदाजा लगाया था कि सत्य जरूर पेइंगगेस्ट होगा ...
मैंने पास ही खड़े मंगल से कहा, "ये बैग मड़ैया के अंदर रख लेना, और हां टिफिन न पहुंचाया हो तो दे देना ..."
"पहुंचा दिया है ....", मंगल ने संक्षिप्त जवाब दिया।
मै सत्य के साथ पहली बार उस घर में पहुंचा जिस घर के इर्द-गिर्द यह पूरी कहानी चल रही है। प्रवेश आंगन के गेट की तरफ से हुआ। सामने बैठक में बाबा को तख्त में बैठे हुए देखा, सत्य ने मेरा परिचय उनसे करवाते हुए कहा, "बाबा यही हैं मेरे दोस्त जिनके बारे में आप को सुबह बताया था ..."
सत्य के मुताबिक उन की ऐज 80 साल की थी, लेकिन लग कहीं से नहीं रही थी। चेहरे की चमक शरीर का संतुलन उनकी उम्र को कम ही दिखा रहा था। कुल मिलाकर एक आकर्षक व्यक्तित्व। मैंने आगे बढ़कर उनके पैर छुए। उन्होंने एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा, "बैठो बेटा ..."
कुछ देर तक वे मुझसे मेरी व्यक्तिगत जानकारी लेते रहे ... इसी बीच पीहू ट्रे में तीन कप चाय लेकर हाजिर हुई। मैंने फॉर्मेलिटी के लिए उससे पुनः हाथ जोड़कर नमस्ते किया। प्रतिउत्तर में उसने सिर हिलाकर कुछ मुस्कुराते हुए कहा, "जी नमस्ते ! लीजिए चाय पीजिए ..."
पहला मैंने, दूसरा सत्य ने और तीसरा कप वह स्वयं लेकर एक कुर्सी में बैठ गई। ट्रे में नमकीन और बिस्किट भी रखी हुई थी। मैंने जिज्ञासा से पूछा, " और बाबा ! चाय नहीं पीते ...?"
"नहीं ...! तुम लोग आराम से पियो। मेरा कुछ देर में पूजा का टाइम हो रहा है।
हम लोग कुछ देर तक बाबा से और आपस में बातचीत करते रहे। फिर मैं सत्य के साथ घर के पीछे की तरफ आ गया। साफ सुथरा कच्चा मकान, बाहर कुछ खुला मैदान और गौशाला उसके आगे सड़क और सड़क के उस पार वही शीशम का पेड़।
जब हम वापस घर के अंदर पहुंचे तो दरवाजे के दाहिने तरफ ऊपर जाती हुई कच्ची मिट्टी की सीढियां नजर गई। मै समझ गया कि ऊपर अटारी है, जिसकी खिड़की बाहर से मुझे दिखाई दी थी। सत्य ने मुझे खुद ऊपर चलने के लिए कहा। जब मैं अटारी पहुंचा तो उसकी साफ-सफाई, सामान को रखने का तरीका ये सब देख कर मैं प्रभावित हुआ।
"ये पीहू की अटारी है, यह उसकी छोटी सी दुनिया है ...", सत्य मुझे आगे बता रहा था, "जब मैं घर में नहीं होता हूं ... तो पीहू का समय यहीं गुजरता है, ... और ये रही उसकी बुक्स, यही सब पढ़ती रहती है ...", उसने एक अलमारी की तरफ इशारा किया।
"जब मैं घर में नहीं होता हूं ..", सत्य के इस कथन को सुनकर मैं थोड़ा सा चौक था किंतु जाहिर नहीं होने दिया। मैने अलमारी में वो बुक भी रखी हुई देखी, जो पीहू ने दोपहर को मुझसे ली थी। मैंने दूसरी किताबें भी उल्टा-पुल्टा के देखी। कुछ जनरल नॉलेज की और बहुत सारी साहित्य की किताबें। हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, मराठी इत्यादि भाषाओं में। किताबों का स्तर यह बता रहा था कि इन्हें पढ़ने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। मैंने सत्य से उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, "इतनी कम उम्र में साहित्य में इतनी रुचि ! यहां तक की संस्कृत और मराठी में भी ...!! जीनियस !!! ", यहीं से पीहू के प्रति मेरी धारणा बदलने लगी थी। यदि किसी में ज्ञान और प्रतिभा है, तो फिर है, और हमें उसका सम्मान करना चाहिए।
सत्य आगे बता रहा था, "अरे !! ये तो रनिंग हालत की हैं, और भी हैं। उधर बक्से में रखी है, और जो बची है, वे लिस्ट के रूप में मेरी जेब में पड़ी हैं, यह देखो ...", मैंने दृष्टि लिस्ट पर डाली और मुस्कुरा दिया। उसकी आंखों की चमक और पीहू के प्रति उसका दृष्टिकोण मुझे साफ बता रहा था कि उनके बीच केवल दोस्ती का संबंध नहीं हो सकता ...
"शैल तुम यहीं रुको, मैं अभी आया। कमली आई है, गाय बछड़ों को चारा-भूसा, पानी देना है। दूध भी दुहना होगा। मैं पीहू की हेल्प करके आता हूं।
"ठीक है, तुम जाओ, मै यही हूं ... ", सत्य नीचे सीढ़ियां उतरता चला गया, और मैं खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। बाहर देखा, कमली, पीहू और सत्य तीनों गौशाला के सामने खड़े थे। कुछ देर बाद सत्य को टोकरी में भूसा उठाए हुए देखा। पीहू कमर में दुपट्टा कसे हुए कमली को निर्देश दे रही थी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया। तो जनाब ये मदद करने गए हैं।
सूरज ढल चुका था और धीरे-धीरे शाम का उजाला भी सिमटता जा रहा था। मैं खिड़की की छड़ पकड़े बाहर के इस दिलकश नजारे को देखा रहा था। कुछ देर बाद मैंने आलमारी से चित्रलेखा उठाई और चारपाई पर लेट कर पढ़ने लगा। मैंने 20-22 पेज लगातार पढ़े और फिर बाहर की तरफ देखा। अब बाहर शाम पूरी तरह से ढल चुकी थी। चांद की हल्की-हल्की रोशनी फैल रही थी कुछ देर बाद ही सत्य और पीहू दोनों आए,
"कौन सी सब्जी खाना पसंद करेंगे ...", पीहू ने मुझसे पूछा था।
"अरे फॉर्मेलिटी की कोई जरूरत नहीं ... मैं अजनबी जरूर हूँ, लेकिन कोई मेहमान नहीं ... जो भी पसंद हो बना लीजिए मैं खा लूंगा ...",
"एक मिनट ... एक मिनट .... ये अजनबी टाइटल में मेरा कॉपीराइट है ... इसे मत छीनो यार ...", सत्य ने हंसते हुए कहा।
"टाइटल.... कॉपीराइट ... मतलब !! मै कुछ समझा नहीं !!! ..."
"यार फिर कभी तुम पीहू से ही पूछ लेना ... ये पीहू अभी चलते हैं ... बाबा की पूजा समाप्त हो गई होगी ... खाना बन जाए फिर आराम से बैठते हैं ... शैल कैरी ऑन ... तुम बुक पढ़ो ... हम लोग कुछ देर से आते हैं ... ओके ?"
मैने मुस्कुराते हुए कहा, "ओके..."
वे दोनों चले गए। मैने चित्रलेखा फिर से खोल ली। लगभग साढ़े आठ बजे दोनों आए। हाथ में डिनर लिए हुए। चटाई बिछाई गई, पीहू थाली में खाना परोसते हुए बोली, "बाबा ने खा लिया है, हमे बोले कि तुम लोग अपने दोस्त के साथ खा लो ... चलो सत्य शैल को थैंक्स तो कहो .. कितने महीने बाद हम लोग साथ में इसी अटारी में खाएंगे ..."
"मतलब ... मै कुछ समझा नहीं ...?"
"कुछ नहीं यार ... तुम खाओ ... ", सत्य कुछ शरमाते हुए बोला।
"ये कुछ नहीं बताएगा ... मै बाद में बताऊंगी सब ....", वह बोली।
"हां जी ... बिल्कुल बता लेना ... अभी तो डिनर कर लें ...? तुम तो शुरू करो शैल ... हमारे चक्कर में रहे तो भूखे रह जाओगे।"
मैंने डिनर शुरू किया और उन्होंने भी। कहने को उनके बीच दो थाली थी, लेकिन दोनों लगभग एक ही में खा रहे थे। कुछ हंसी-मजाक करते, कुछ लड़ते-झगड़ते। दोनों के बीच एक अद्भुत केमिस्ट्री नजर आ रही थी। उनके लिए मैं वहां हो कर भी नहीं था।
लगभग 15-20 मिनिट्स बाद हंसी-खुशी डिनर समाप्त हुआ। बर्तन समेटे गए। पीहू ने चटाई तह कर के एक किनारे रख दी, फिर जमीन को पानी से सींच कर थोड़ा झाड़ू भी लगा दी गई। अब जगह पहले की तरह स्वच्छ और साफ थी।
कुछ देर मुझसे बात करने के बाद उन्होंने मुझे गुड नाइट कहा। वे चले गए। कुछ देर तक मैं चित्रलेखा में उलझा रहा। जब मन नहीं लगा तो खिड़की की छड़ पकड़ के खड़ा हो गया। चंद्रमा की सफेद झक चांदनी चारों तरफ फैली हुई थी। पीहू और सत्य के बीच का इंट्रैक्शन मुझे तेजी से अतीत की तरफ खींच रहा था। ये प्यार, ये चाहते, ये मोहब्बतें हमेशा के लिए एक-सी क्यों नहीं रह पाती।
फिर अचानक ही चंद्रमा की सफेद झक चांदनी की जगह चारों तरफ जगमगाती लाइटिंग ने ले ली। सजी हुई बारात, ढोल-ताशे, बैंड-बाजों की आवाजे, पटाखों की गूंज, जगमगाते कलश घट, सखियों के मंगल गीत, चारों तरफ शोर ही शोर। अब खिड़की में खड़ा रहना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था मैं वापस बिस्तर पर आ गया।
फिर रात की उन तन्हाइयों में अचानक ही चारों तरफ से शहनाई और विवाह मंत्रों की आवाजे आनी शुरू हो गईं। महसूस होने लगा जैसे आंगन में शादी की रस्में चल रही हैं। मै बिस्तर में औंधे मुंह लेट गया और तकिया को अपने सर के ऊपर कस कर रख लिया। तब भी बाहर से आती आवाजें बंद नहीं हो रही थी। मै कुछ देर यूं ही पड़ा रोता रहा। और मेरे साथ रो रही थी हृदय में बसी एक पवन प्रांजल मूरत, लग्न मंडप में बैठी गुमसुम मेरी तरफ उठी उसकी नज़रें, कन्यादान की रस्में निभाते हुए उसके माता-पिता। सभी दृश्य मेरी आंखों के सामने से एक-एक करके गुजरने लगे।
अब इस बंद अटारी में मुझे घुटन सी होने लगी थी। कंठ सूख रहा था। प्यास का एहसास हुआ। अपने चारों तरफ इस आशा से देखा कि हो सकता है किसी जग में या फिर लोटे में पानी रखा हो। लेकिन मुझे कहीं कुछ नहीं दिखा। तभी मुझे ध्यान आया कि बैठक के पास शाम को एक घड़ा रखा देखा था।
मैं सीढ़ी से नीचे आया। गैलरी से दबे पांव होते हुए बैठक में आ गया। घड़े के ऊपर स्टील की एक प्लेट और उसके ऊपर एक लोटा रखा था। बाबा की पीठ मेरी तरफ थी। मैने बिना आहट के एक लोटा पानी निकाला और उसी तरह दबे पांव वापस गैलरी में पहुंचा। अंदर से पीहू और सत्य के बातें करने की हल्की-हल्की आवाजे आ रही थी। एक पल को मेरे कदम रुके लेकिन अगले ही पल मैं आगे बढ़ गया। सीढ़ी के सबसे निचले पायदान में बैठ कर मैने पानी पिया और शेष पानी के साथ लोटे को वहीं रख दिया। अटारी में जाने का मेरा अब कोई इरादा नहीं था। मैं यहां से, इस घर से दूर भाग जाना चाहता था।
लेकिन सवाल ये था कि इतनी रात को जाऊं कहा। तभी बगिया याद आई। वहीं चलता हूं। मैने धीरे से पिछला दरवाजा बिना आहट के खोला, फिर उसे बाहर से बंद कर दिया। बांस की कमटी का गेट खोला और बाहर निकलने के बाद उसे भी बंद कर दिया।
फिर मैं वहां से भगा। बगिया पहुंचते पहुंचते रास्ते में एक बेर की छोटी-सी झाड़ी से उलझ कर गिरा भी। शरीर में कांटे चुभे। दाएं हाथ की कोहनी में चोट भी आई, लेकिन मैं रुका नहीं। जब मैं बगिया पहुंचा तो मेरी हालात बुरी थी। मै गेट खोल कर अंदर तो आ गया लेकिन अब मेरे कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। मै गेट के पास से जोर से चीखा, "मंगल !.... ओ मंगल !! ..."
फिर मैं हताश थका हारा वही जमीन पर गेट के अंदर गेट पर ही टिक कर बैठ गया। मै बुरी तरह हॉफ रहा था। सांसे इतनी तेज चल रही थी कि लगा जैसे हार्ट-अटैक आ जएगा।
मंगल भागता हुआ मेरे पास आया और एक दम से मुझे देख कर चौक पड़ा, "सर जी, इतनी रात को आप यहां !! और ये क्या ? हाथ में चोट, कपड़ों में धूल, गिरे हैं कही क्या ? ... चलिए उठिए ...", वह मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला।
"वो सब बाद में मंगल .... जा पहले भाग के जा ... बॉटल ले आ ... जा मंगल जल्दी जा ... नहीं मर जाऊंगा मैं ....", मै उससे बड़ी मुश्किल से बोल पा रहा था।
मंगल भागता हुआ गया और भागता हुआ ही वापस आया। उसके हाथ में मेरा बैग और हाथ में पानी का जग था। मैंने जल्दी से बैग खोला। बॉटल निकली, ढक्कन खोल कर उसे थमा दी। फिर सीधे बॉटल से कितने घूट पी गया ख़ुद ही नहीं मालूम। मैने एक गहरी सांस छोड़ी। कुछ देर में सांसे कुछ सामान्य हो गईं थीं। मैने अपनी कोहनी की तरफ देखा, चोट गहरी नहीं थी, बस ऊपर की चमड़ी कुछ उधड़ गई थी। खून रिस रहा था। शर्ट भी कोहनी के पास से उधड़ गई थी। मैने बांह ऊपर की और थोड़ी-सी शराब सीधे बोतल से कोहनी में उड़ेल ली। जख्म में जलन हुई, मैंने आंखें बंद कर लीं।
मंगल अभी आंखों में प्रश्न के लिए मेरे पास बैठा था, "वो क्या है मंगल ..... बंद कमरे में मुझे घुटन हो रही थी ... तो मैं बिना किसी को बताए पीछे के दरवाजे से निकल आया ... बाहर से सांकल चढ़ा दी है ... कुत्ता बिल्ली नहीं घुसेंगे ..", मैं यह सब मंगल को एक सांस में बताता चला गया, "अब ये बताओ, मेरा कोई इंतजाम हो सकता है ... "
"अरे सर जी आपकी खाट अभी भी वहीं है, चलिए आपको वही ले चलता हूँ ..."
मै मंगल के साथ उसी आम के पेड़ के नीचे पहुंचा और खाट पर बैठ गया। बैग और जग का पानी मेरे पास रखते हुए मंगल बोला, "मै तकिया और बिछौना ले कर आता हूँ....।"
कुछ ही देर में मंगल सभी सामान ले कर हाजिर हो गया। खाट में एक दरी, उसके ऊपर एक चद्दर, सिरहाने तकिया, और पैर की तरफ कंबल रखते हुए बोला, "अब ठीक है सर जी ..."
"हूँ... ठीक है, बैग खोलो, सिगरेट का पैकेट और माचिस निकालो, और एक तगड़ा पैग बनाओ ...", मै खाट में लेटता हुआ बोला।
मंगल ने वही किया। मैने आधा पैग खाली कर सिगरेट जलते हुए बोला, "मंगल तुम भी बना लो ... लेकिन रुको ... कमली से डांट मत खिलवाना ... पता चले सुबह-सुबह सुनने की मिले, हम तो बर्बाद हैं ही ... तुम्हे भी कर रहे हैं ..."
"नहीं सर जी वो अंदर सोती है.... मै मड़ैया में ... बगिया की रखवाली भी रात को करनी पड़ती है न इसलिए ....", वह आम की जड़ के पास दोपहर को छुपा के रखी अपनी खाली गिलास लाते हुए बोला।
फिर अपने लिए एक पैग बनाते हुए बोला, "मुझे लगा था खाना-पीना खाने के बाद आप सोने के लिए यहीं आएंगे। इसलिए खाट नहीं हटाई थी। लेकिन सोचा तो यह था कि भैया जी छोड़ने आयेंगे .... आप तो अकेले ही चले आए ... आप इसी तरह रोज पीते हैं सर जी !!"
"अच्छा ! तो तुम समझ रहे हो मै शराब पीने के लिए यहां आया हूँ ? बताया न मंगल बंद कमरे में मुझे घुटन हो रही थी .... और रही बात रोज पीने की तो नहीं, हॉस्टल में एक बार वेलकम पार्टी में थोड़ी सी बियर पी थी, लेकिन हां पिछले हफ्ते से हर दिन पी रहा हूँ ... यूं मानलो पिकनिक मनाने निकला हूं ... घर लौटूंगा तो फिर छोड़ दूंगा ... और फिर टाइम भी नहीं मिलता .... सुबह से शाम वही भाग दौड़ की जिंदगी ... मै कोई आदतन मुजरिम नहीं हूँ मंगल, लेकिन क्या करूं कुछ गुनाह हो जाते हैं ... कुल मिलाकर तुम ये समझ लो कि मैं शराबी नहीं हूँ ... इस वक्त कोई अपने आंसू पी रहा होगा और मैं शराब ..."
कहने को तो मंगल से कह गया। लेकिन खुद के आंसू न रोक पाया। अधूरे जाम में आंखों से निकले कुछ आंसुओं की एक बूंद को मधुर चांदनी के उजले में मैने घुलते हुए देखा। मै पीता रहा मंगल जाम बनाता रहा, कितनी अपने लिए और कितनी मेरे लिए अब कोई हिसाब नहीं था।
"सर जी !! ये तो खत्म होने वाली है ..?"
"अरे कोई बात नहीं मंगल, देख कपड़ों के बीच अखबार में लिपटी हुई एक बॉटल और होगी ... देख तो सही ..."
मंगल ने सर्च अभियान शुरू किया। बॉटल मिल गई, अखबार को एक तरफ फेंकते हुए बोला, "सर जी मिल गई ..."
"अरे मंगल ये क्या किया ... उठा अखबार ..", मैने उसे कुछ डांटते हुए कहा। उसने अखबार उठाते हुए पूछा, "सर जी कोई खास बात है क्या इस अखबार में ..."
मैने उसके हाथ से अखबार लेते हुए कहा, "ये देख इसमें मेरी कहानी छपी है ...देख ... अरे रात है ... कैसे दिखाई देगी ... सुबह दिखाऊंगा .... अभी इसे सुरक्षित रखो..."
"जी सर जी ..."
"मंगल एक तो खत्म होने को है ... और दूसरी भी मान के चलो एक तिहाई तो खत्म हो ही जाएगी ... अभी दो-तीन दिन रुकना भी है, कोई इंतजाम हो सकता है क्या ...", मैने एक समझदार गणितज्ञ की तरह हिसाब लगते हुए पूछा था।
"जुगाड़ तो हो जाएगा सर जी लेकिन उसका रंग कुछ काला होता है ... गांव में दो-तीन घर हैं जिनके लड़के फौज में हैं, वो लाते है ... मै सुबह पता करूंगा ..."
"पता नहीं लगाना है ...मंगल ! ... लाना है। ... समझे। .... लेकिन यार पैसे ... कितने लगेंगे ...?"
"कितनी बॉटल लेनी है ... ", मंगल ने एक और पैग मुझे पकड़ाते हुए बोला।
मैने दो घूट लेने के बाद, एक सिगरेट जलते हुए कहा, "चार से कम में तो काम नहीं बनेगा ..."
"हजार रुपए के अंदर आ जाएंगी ...", मंगल ने अपने लिए बनते हुए कहा।
"हूँ ... देखूं तो मेरे पास इस समय हैं कितने ...", इतना सोचना था कि दिमाग को एक झटका लगा। ज्ञान के घर में कपड़े चेंज करते समय पेंट की जेब से पर्स निकालना भूल गया था, "मर गए मंगल !! .... मेरा पर्स तो दोस्त के घर में ही छूट गया ... अब क्या होगा ... चलो सुबह देखी जाएगी .... अभी तो है न ? क्यूं चिंता करना ...? है न मंगल ?
"और नहीं तो क्या साहब ... गांव में उधारी करने में मुझे संकोच लगता है ... आप चिंता न कीजिए ... नदी तीर में आदिवासी एक नंबर की देशी शुद्ध महुआ की बनते है ... फ्री ले आऊंगा, लेनिन साहब पी लो तो एक किलोमीटर दूर से महकती है ... ये कम से कम गंधाती तो नहीं है ...."
"चलो सुबह की सुबह देखी जाएगी ... अभी कौन सा खत्म हुई है ...", हम दोनों अब मेच्योर्ड और समझदार इंसानों की तरह बातें कर रहे थे।
"मंगल टाइम कितना हुआ होगा ... ?"
उसने असमान की तरफ देखते हुए कहा, "सर जी ग्यारह और साढ़े ग्यारह के बीच होगा। मेरा तो हो गया साहब ... आपके लिए ...?"
"अभी नहीं ... और ये क्या आसमान की तरफ देख कर टाइम बताया ... ऊपर वाले से पूछा था क्या ...", मैने हंसते हुए पूछा।
"अरे नहीं सर जी, चंद्रमा की पोजीशन देख कर अंदाज लगा लेते हैं ... अब मैं चलू ..."
"हां जाओ ... लेकिन एक बना के .... और पीने के लिए पानी रख देना।
पंप चल रहा है, यहीं से भर देता हूं, फिर बंद भी करना है, नहीं तो रात भर में पानी ज्यादा हो जाएगा ... लेकिन सर जी, आपको ज्यादा तो न हो जाएगी ..?"
"नहीं मंगल मुझे शराब नहीं चढ़ती, देवताओं का वरदान हैं मुझ पर ...", मैने हंसते हुए कहा।
"फिर भी साहब इतनी न पिया कीजिए ... आखिर शरीर को नुकसान तो करेगी न ...? किसको भूलने के लिए ...."
"ठहरो मंगल ... जरा ठहरो .... मै किसी को भूलने के लिए नहीं पी रहा ... अब ये बात दुबारा न कहना। समझ गए न ? अब जाओ, मुझे सोने देना, सुबह-सुबह न उठा देना ..."
मंगल हाथ जोड़ के चला गया। मै असमान की तरफ देखता रहा। अतीत में गुजरी हुई न जाने कितनी मधुर चांदनी की वो रातें मुझे याद आई। कुछ मिलन की तो कुछ विरह की ... कुछ रातों को याद कर मेरे होठों में सजीली मुस्कान आई तो कुछ को याद करके आंखों से आंसू भी बहे। अपने लिए किसी की दीवानगी याद आई, उसका समर्पण याद आया। दिल से एक आह निकली ... जाओ .....
मिले तुम्हें मुकम्मल जहां मेरे बगैर भी,
मिले तुम्हें मुकम्मल खुशी मेरे बगैर भी ...."
मै पीता रहा, रात ढलती रही। मैने दूसरी बॉटल खोली, एक लार्ज पैग बना तो लिया लेकिन एक घूट से ज्यादा पी नहीं पाया। खाली बॉटल को दूर खिसका दिया। भरी गिलास को खाट के नीचे पेपर से ढक के लेट गया। मंगल को गए हुए एक डेढ़ घंटे तो हो गए होंगे ! मैंने कम्बल को कंधे तक ओढ़ा और आंखें बंद कर लीं।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो देखा बोर चल रहा था। पानी खेतों की तरफ बराबर जा रहा था। मंगल और कमली दोनों खेत पर काम करते हुए दिखाई दिए। मै खाट से उठा, कंबल को तह करके पैर की तरफ रखा, बिस्तर को टावेल से झटक के साफ किया। लेकिन टावेल तो बेग में थी ... ये बाहर कैसे !! तभी मेरी नजर सिरहाने में पड़ी। अंडर-गारमेंट्स, एक जोड़ी कपड़े, तेल, कंगी, शीशा, परफ्यूम एक तरफ रखे मिले। बैग और जाम गायब थे। लगता है मंगल ने व्यवस्थित मड़ैया में रख दिया होगा। मै चहरी के पास गया और पहले जी भर के मुंह धोया। शराब की खुमारी थी। मैंने मंगल को आवाज दी। वह लगभग भागते हुए मेरे पास आया।
"अरे सर जी जाग गए !! कल तो आप हंगामा कर दिए ....", मंगल पास आते हुए बोला।
"हंगामा ... ! मैने किया !! क्या कह रहे हो ... ", मैने आश्चर्य से पूछा।
"वो सब बाद में बताऊंगा। पहले यह लीजिए पानी, और उधर निकल जाइए फ्रेश होइए और फिर अच्छे से नहा लीजिए ...."
मैंने उसकी आज्ञा का पालन किया। अच्छे से स्नान किया। कपड़े चेंज किया। बालों में तेल- कंघी की। फिर मंगल से मैंने पूछा, "हां बताओ, क्या हुआ।
"बड़े सुबह खोजते हुए पहले भैया जी आए, आपको देखे और लौट गए फिर अभी कुछ देर पहले पीहू बिटिया आईं थीं। उन्होंने ही आपके कपड़े निकाल कर रखते हुए मुझसे बोलीं कि नहला धुला कर अपने सर जी को घर भेज देना और बैग अपने साथ लेकर चली गई ...", मंगल मुस्कुराते हुए बता रहा था।
"ओह !! .... लेकिन मंगल ... खाट के नीचे ..."
"गिलास न ? उसके बारे में उन्हें नहीं मालूम, वो मैने आम की जड़ के पीछे पत्थर से ढक के छुपा दिया था .... और पेपर को आपके बैग में ही डाल दिया था।
"चलो ठीक है, जाओ कुछ ताजी गाजरें ले आओ, खाने का मन है ..."
मैने शुद्ध देशी गाजर और अमरूद खाए। फिर हैंगओवर को दूर करने के लिए छुपा के रखे पैग को पिया। उसकी महक को दूर करने के लिए खूब सारा परफ्यूम शर्ट के ऊपर और बटन खोल के सीने में भी डाला। लेकिन तब भी मुझे घर जाने की न तो हिम्मत हो रही थी और न ही इच्छा। मैंने मंगल से कहा, "यार मंगल खाने की ही तो बात है .... और यहां कौन सी कमी है .... तुम जाओ लेते आना ..."
"बात सिर्फ खाने की नहीं है। खाना तो कमली भी बना कर खिला देगी सर जी। बात पीहू बिटिया के गुस्से की है ... मुझे दस बातें सुना कर गई हैं, और आपसे भी बहुत नाराज हैं ... अब देर न करिए चलिए ... 11 बज रहे होंगे ..."
"यार ऊपर वाले से तुम्हारा कोई डायरेक्ट कनेक्शन है क्या ! बिना घड़ी देखे तुम टाइम का अंदाजा लगा लेते हो ..? ये सुनो कल रात को मेरे गिरने पड़ने की बात तो किसी को तो नहीं बताई ?....", मैंने उसके साथ चलते हुए पूछा।
"अरे नहीं सर जी ... लेकिन निसान ..."
"वो शर्ट की बांह से ढका है, किसी को पता नहीं चलेगा ..."
टेढ़ी-मेढी पगडंडियों के बीच से गुजरते हुए हम कुछ ही देर में घर के दरवाजे के सामने खड़े थे। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, और उतनी ही तेजी से मैं मन ही मन ज्ञान प्रकाश को गालियां भी दे रहा था, साले ने कहां फसाया है। पाबंदियों की आदत मुझे नहीं थी । मंगल ने दरवाजा ठोका, "दाऊ साहब !"
किसी के आने की आहट हुई। कुछ देर बाद दरवाजा खुल गया। सामने पीहू खड़ी थी। मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर और कुछ मुस्कुराते हुए कहा, "जी नमस्ते ..."
"नमस्ते ... आइए ", उसने भी जवाब दिया लेकिन इस जवाब में अपनत्व कम और बेरुखी अधिक थी।
मैं अंदर आ गया। बैठक में बाबा को तख्त में लेटे हुए देखा। मैंने बढ़कर उनके पैर छुए, "बाबा प्रणाम !", तभी मेरी नजर सामने दीवाल घड़ी पर पड़ी 11 बज के 15 मिनिट्स हो चुके थे।
"अरे तुम आ गए ... चलो अच्छा है, मैने तो पीहू से कहा था कि तुम्हारा खाना वहीं बगिया में पहुंचा दे, तुम्हें यहां आने में असुविधा होगी ... लेकिन इसी ने बताया कि तुम्हारी इच्छा आज हमारे साथ खाने की है। लेकिन बेटा हमने कुछ देर तक तुम्हारा इंतजार किया। लेकिन क्या है हमारा एक बना हुआ रूटीन है। अधिकतम साढ़े दस, बस अभी खा के उठा हूँ.... सत्य को भी आज माइंस की तरफ जल्दी जाना था ... "
मेरी इच्छा है !!! मैने पीहू की तरफ देखते हुए प्रत्यक्षतः बोला, "कोई बात नहीं बाबा .... मै अकेला खा लूंगा। खाना ही तो खाना हैं ...अभी तो प्यास लगी है ...", मैने हाथ जोड़ते हुए कहा।
बाबा मेरी तरफ देखते हुए बोले, "तुम्हारी समझ, बात करने का तरीका .... बहुत कुछ सत्य से मिलता-जुलता है ... जब वो पहली बार इस घर में आया था तो इसी तरह ... लेकिन तुम अकेले क्यों खाओगे ... अभी पीहू ने भी नहीं खाया होगा ..."
"बाबा अब ये वेट करें ... मैं कुछ काम निपटा लूं, उसके बाद ही खाना मिलेगा ... समझ ले की लेट होने की सजा है ..", उसने मेरे हाथ में पानी का गिलास देते हुए कहा।
मैने धीरे से बोला, "हां बाबा, सजाएं ही तो मेरा मुकद्दर है ...", फिर मैंने बाबा की तरफ देखते हुए कहा, "वैसे भी बाबा बगिया से मै कंद-मूल-फल खाकर आ रहा हूं ... वेट कर लूंगा ..."
उसने भी उतनी ही आवाज में मुझे सुनाया, "सजा से डर लगता है तो गलतियां क्यों की जाती हैं ...",
फिर वह रसोई में चली गई।
"चलो ठीक है तो फिर इंतजार कर लो ... वैसे तुम सुबह-सुबह मॉर्निंग वॉक करते हो ये अच्छी बात है, लेकिन बाहर से कुंडी बंद करके चले गए ... हम लोग सुबह उठ जाते हैं। बता दिया होता ..."
कल रात की घटना को बाबा के सामने कैसे और किस रूप में प्रस्तुत किया गया, यह मैं नहीं जानता था। और मैं समझ गया कि यदि मैं कुछ देर तक यहां और बैठा तो बताई गई बात और मेरी बात में कनफ्लिक्ट पैदा होगा।
"सॉरी बाबा ! ... मैने सोचा आप लोग सो रहें होगे, सुबह-सुबह क्यों डिस्टर्ब करूं ... कुत्ता बिल्ली या कोई और जानवर न घुस पाए इसलिए बाहर से कुंडी लगा दी थी ..." मैं उठाते हुए बोला, "बाबा मैं पछे घूम कर आता हूं ... मंगल आओ .."
और यह बहाना करके मैं कच्चे घर की तरफ आ गया। मंगल मेरे साथ था, "बच गए मंगल, उफ पता नहीं मेरे बारे में कल रात की कौन सी कहानी बताई गई है ... तुम ऐसा करो जाओ और बता देना कि मैं अटारी में बुक पढ़ रहा हूं। जब फुर्सत हो जाए तो बुला लेंगे, मैं आ जाऊंगा ..."
मंगल चला गया। मैं अटारी में आया, खिड़की खुली हुई थी। मेरा बैग एक तरफ रखा था। वह अखबार जिसमें मेरी कहानी पब्लिश हुई थी, तकिया के पास रखा हुआ था। मैंने चित्रलेखा उठाई और बिस्तर में आराम से लेट कर उसे पढ़ने लगा।
लगभग आधे घंटे के बाद पीहू आई थी, "ओ हो ... आप कितना परफ्यूम लगाते हैं ? पूरी अटारी तो क्या पूरा घर तक महक रहा है ... लीजिए उठिए लंच ग्रहण कीजिए" ... उसने टेबल चारपाई के पास रख उसने ऊपर खाने की थाली रखते हुए कहा।
"अरे ! अपने इतना कष्ट क्यों किया ... मुझे नीचे बुला लिया होता ..."
"बात तो वही है ... बुलाने तो आना ही पड़ता न... "
"अपने खा लिया ...."
"हां मैं अभी जस्ट खा के ही आ रही हूं ... आप लीजिए ..."
मैने खाना शुरू किया ... ,"कल के लिए सॉरी ..."
कुछ जिद्दी मक्खियां भी खाने पर झपट पड़ी, मै बाए हाथ से उन्हें दूर भागता हुआ खाने लगा। वह पास ही एक कुर्सी में बैठी थी। वह उठी, आलमारी से एक पंखी निकाली और उसी से मक्खियों को दूर भागते हुए बोली, "आप आराम से खाइए...."
पीहू को अभी तक मैंने जितना देखा और समझा था उससे मैं बखूबी अंदाजा लगा सकता था कि यह संस्कारी लड़की जब तक मैं खाना खा नहीं लूंगा तब तक कोई शिकायत दर्ज नहीं करेगी। लेकिन मैं यह जानने के लिए उत्सुक था कि मेरे कल के आचरण से क्या हआ और किस पर क्या असर पड़ा। मैंने ही बात को आगे बढ़ाने के लिए उससे कहा, "सच में बहुत शर्मिंदा हूँ ... रियली आई एम सॉरी .."
"सॉरी तो मैं भी कहूंगी आपसे कि आपका हम ध्यान नहीं रख पाए। सुबह जब सीढ़ी के पास लोटे को रखे हुए देखा तब एहसास हुआ कि कम से कम एक जग या लोटे में पानी तो रखना ही चाहिए था ... कल डिनर में भी मैं और सत्य आपस में खोए रहे, आपकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया ... बिल्कुल अजनबी जैसा व्यवहार किया आपके साथ। ... लेकिन शिकायत तो इस बात की है कि यदि आपको कोई दिक्कत थी तो आप हमें कह सकते थे, बुला सकते थे ? ... चलिए मान लिया कि हम लोग नीचे थे लेकिन जब पानी पीने के लिए आप बैठक तक आ ही गए थे, तब तो बुलाना चाहिए था ...?"
"जी जरूर बुला सकता था ... यहां तक कि जब मैं आप दोनों कमरे के पास से गुजर तो आपकी बातचीत कुछ-कुछ सुनाई पड़ रही थी। जहां तक सत्य ने मुझे बताया है कि आप उसकी दोस्त हैं, तो इस तरह एक साथ बेडरूम शेयर करते देख मुझे खुद आश्चर्य हुआ था तो फिर ऐसे में आपको बुलाना और एहसास दिलाना मुझे ठीक नहीं लगा ... बस इसीलिए आप लोगों को नहीं बुलाया ...", मैने सच कह दिया।
"लेकिन आप यहां से गए ही क्यों ...? जानते नहीं रात को कुछ जंगली जानवर भी आसपास घूमते रहते हैं। यदि आपको कुछ हो जाता तो ? तो हम आपके दोस्त को क्या मुंह दिखाते ? इतना तो सोचना चाहिए था न ?"
मैं जानता था कि उसकी बात गलत नहीं है। एक अनजान जगह में वह भी जंगली इलाके में रात को साढ़े दस और ग्यारह के बीच एक किलोमीटर दूर बगिया जाना सेफ नहीं था। लेकिन मैं अब इस लड़की को क्या बताऊं कि मैं यहां से क्यूं भगा ...? मैंने बात को समाप्त करने के इरादे से अपनी नजरें झुकाते हुए कहा, " मुझे रात को यहां घुटन महसूस हो रही थी ... बड़ा अजीब-सा लग रहा था इसलिए चला गया और इसके लिए मैं आपसे फिर एक बार सॉरी कहता हूं ... मैं जानता हूं सत्य भी नाराज होगा उससे भी क्षमा मांग लूंगा ..."
"और अब हम आपको अकेला छोड़ेंगे भी नहीं .... और यह बताइए आप इतनी शराब क्यों पीते हैं ? .... जब सुबह बगिया गई तो एक बॉटल खाली लुढ़की, दूसरी का भी ढक्कन खुला हुआ मिला। पूरी रात पीते रहे क्या ? आप तो पढ़े-लिखे समझदार इंसान नजर आते हैं ... सुबह कपड़े निकालते समय आपके बैग में रखा हुआ अखबार देखा, सोचा ऐसे ही रद्दी होगा, फेंकने को हुई तो मंगल ने बताया कि आपकी कहानी छपी है, तो साथ लेती आई। अच्छा लिख लेते हैं ... देखिए आप अपने आप को यूं बर्बाद मत कीजिए ...", उसकी आवाज में क्रोध और अपनत्व दोनों था।
मैं चुपचाप खाना खा रहा था और वह आगे कह रही थी, "सच बताइए यदि सुबह बैग उठा न लाई होती, तो आप फिर सुबह से ही शुरू हो गए होते ? क्या आपके घर में आपको डांट नहीं पड़ती ... कोई गर्लफ्रेंड नहीं है जो आपको डांटे..?"
"घर में पीता ही नहीं। रही बात गर्लफ्रेंड की तो उसके सामने जब पी तो वह डांट रही है ....", मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं ! गर्लफ्रेंड !! आपकी !!! ".... उसने आश्चर्य से पूछा था।
"हां ...", मैंने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा।
"फ्लर्ट कर रहे हैं ...?", उसने मेरे चेहरे में नजर गढ़ाते हुए कहा।
"नहीं फ्लर्ट नहीं कर रहा, प्रूफ कर सकता हूं ...... लेट मी ट्राई ... अच्छा बताइए आप मुझे अपना दोस्त मानती हैं ...?"
"हाँ मानती हूं, ...तो इससे क्या ? "
"और आप लड़की यानी गर्ल भी हैं...?"
"हां हूँ ...लेकिन ..."
"लेकिन-वेकिन क्या, प्रूफ हो गया ... तो हुई ना आप मेरी गर्लफ्रेंड ... देखिए महिला-मित्र और पुरुष-मित्र शब्द का प्रयोग करते समय क्या प्रेमी-प्रेमिका वाली फिलिंग्स महसूस होती है ? नहीं न ? तो फिर बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड में क्यों होनी चाहिए ? लड़का-मित्र और लड़की-मित्र नहीं हो सकते ...?
उसने हंसते हुए कहा, "वाह क्या जस्टिफिकेशन है ! मान गए आप राइटर हैं !! ... चलिए यह तो मजाक की बात है, मैं रियल में पूछ रही हूं ..."
"नहीं, यदि आपका मतलब उस तरह की गर्लफ्रेंड यानी प्रेमिका या प्रेयसी से है तो नहीं है ... वैसे भी मुझ जैसे इंसान की कोई प्रेमिका हो सकती है क्या ? सोचा ही नहीं जा सकता ..."
"क्यों आपने क्या बुराई है ..."
"अब छोड़िए पीहू जी, एक हो तो बताएं। यहां तो बुराइयां और कमियां कूट-कूट कर भरी हुई हैं ... कुछ तो आप देख ही चुकी हैं, और कुछ का तो मुझें खुद पता नहीं। वो क्या कहते हैं ...
न काबिल थे, न काबिल हैं, न होंगे तेरी मोहब्बतों के,
अपना गुजर तो अब खुद से या फिर खुदा से होगा।
"वाह ! क्या बात है, ये भी उसी किताब की है ?"
"नहीं ...", फिर मैंने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा, "शायरी मे कोई त्रुटि हो तो नजरअंदाज कर दजिएगा, साइंस और अब कॉमर्स का स्टूडेंट हूँ, यह लिटरेचर -विटरेचर मुझे नहीं आता ..."
"नहीं, मैने मान लिए कि आप शायर हैं ... डेमो तो मैं अभी कुछ देर पहले बैठक में ही सुन चुकी हूँ जब आपने ने संजीदगी से कहा, हां बाबा ! सजाएं ही तो मेरा मुकद्दर है ..... वैसे मुझे ज्यादा उर्दू नहीं आती है। आपको डरने की जरूरत नहीं ..", उसने हंसते हुए कहा।
"जी तो मैंने कौन सी पीएचडी कर रखी है, दिल की बात हिंदी में कहो तो कविता, और कुछ शब्द उर्दू के मिला लो तो शायरी। बस फर्क इतना ही है। हां फर्क शब्द से एक और याद आई सुनिएगा ...?
"जी ..."
" अभी आठ-दस पंक्तियां ही लिखी है, उसकी शुरू की कुछ पंक्तियां बताता हूं ...."
"बिल्कुल ..."
तो सुनिए ......
तू हंसती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपने ग़म भी भूल गया हूँ,
जब से तेरी इन आंखों में,
तिरते आंसू देखे हैं।।
उसने मुझे ध्यान से देखते हुए कहा, "अब तो मुझे पक्का विश्वास हो गया है, नहीं ... आप कुछ भी कहिए ... इस दिल में कहीं न कहीं बहुत बड़ा दर्द छुपा है। नहीं पूछूंगी .... बिल्कुल नहीं पूछूंगी ... जब तक आप खुद नहीं बतएंगे .... लेकिन इससे इनकार भी मत कीजिए ... देखिए लिटरेचर मैंने भी बहुत पढ़ा है। लेकिन पढ़ना एक अलग चीज है और अपने जज्बातों को शब्द देना एक अलग बात है। और फिर आप तो दूसरे के दर्द को महसूस कर रहे हैं ... सच ए ब्यूटीफुल पोयम मैं तो इसे लिखूंगी ... इजाजत मिलेगी ?"
"ज्यादा सर पर मत चढ़ाइए ... कहीं यदि धोखे से राइटर बन गया न, तो सबसे पहले मेरी किताबें आप तक पहुंचेगी। मुझे पढ़-पढ़ कर परेशान हो जाएंगी ... और फिर इस दिन को कोसेंगी कि क्यों मैंने इतनी तारीफ की थी ...", मैंने हंसते हुए कहा और मेरी इस हंसी में उसकी हंसी भी शामिल हो गई थी।
"अभी एक दो दिन और रुकूंगा तो इसे पूरा करके आपको देकर जऊंगा ... आपको लिखने की जरूरत नहीं है .. लीजिए मैं खाना खा चुका अब यह बताइए मैं हाथ कहां .."
"अरे इसी थाली में धो लीजिए ... "
मैं हाथ धो रहा था कि उसने पूछा, "अंतिम लाइन में तिरते शब्द क्यों यूज किया, आंसू तो बहते हैं न ?"
"हां, लेकिन जब इंसान रोते-रोते थक जाता है तब उसकी आंखों से आंसू बहते नहीं बल्कि आंखों में तैरते हैं, इसे ही कहते हैं आंखों का डब-डबाना ...। एक ऐसे इंसान का दर्द जिसके आंसू पोछने के लिए उसके पास कोई अपना नहीं और न ही वह अपने दर्द को किसी और से कह पा रहा। तो अब उसने रोना छोड़ दिया है, बस उसकी आंखों में आंसू तैरते रहते हैं ... यह दर्द की इंटेंसिटी को बयां करता है।"
"ओह! क्या डीप इमोशन है और कहते हैं लिटरेचर-विटरेचर नहीं आती है ..", उसने कुछ उलाहना भरी नजरों से मेरी तरफ देखा। प्रतिउत्तर में मेरे होठों में एक फीकी मुस्कान तैर गई।
वह थाली लेकर नीचे चली गई। मैं खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। पीछे से आते हुए उसने पूछा, "सिगरेट का पैकेट निकालू....?"
शायद खिड़की के पास मुझे खड़ा देखकर उसने अंदाजा लगाया होगा कि मैं सिगरेट पीने के लिए खड़ा हूं। मैंने उससे कहा, "कल एक बात मैंने मंगल से भी कही थी और आज आपसे भी कहता हूँ... मैं कोई शराबी नहीं, और न ही स्मोकर हूँ। पिछले एक हफ्ते को छोड़ दिया जाए तो मैंने जीवन में एक ही बार पी थी, वह भी हॉस्टल में। वेलकम पार्टी में जब सीनियर ने काफी फोर्स किया था तो थोड़ी सी बीयर पी ली थी। यह सिगरेट शराब सिर्फ एक हफ्ते की देन है। घर जाऊंगा तो यह सब छूट जाएगा ... और आप जैसी गर्लफ्रेंड ने समझाया है, तो कुछ लिहाज तो करना पड़ेगा न ? लेकिन जब तक यहां हूं .... तो थोड़ा सा आजादी दे दीजिए ..."
"ठीक है ... लेकिन केवल रात को .... दिन को नहीं ... आपकी बॉटल अभी भी बैग में सुरक्षित रखी हुई है ... मैंने फेंकी नहीं है। ... वैसे मैंने आपके बारे में सही कहा था न कि आप अपनी उम्र से ज्यादा मेच्योर्ड दिखते हैं ..."
"तो ..?"
"आप लेखक हैं इतनी समझदारी की बात करते हैं .... तो हेंस प्रूव्ड ...", कुछ मैथमेटिक्स मैंने भी पढ़ी है।
"और शायद मैंने यह भी कहा था की लड़कियों को बच्चे पसंद नहीं ..."
"यहां पर आप गलत है। लड़कियों को हमेशा बच्चे ही पसंद होते है ... उनके हृदय का सच्चापन उनकी मासूमियत उन्हें पसंद आती है ..."
"और शायद इसीलिए आप सत्य को बहुत-बहुत चाहती हैं। बहुत पसंद करती है ...सॉरी लेकिन मैं आपकी आंखों में उसे देख रहा हूं। .... सत्य ने खुलकर कुछ नहीं बताया और सही भी है ... एक अजनबी जिससे अभी दो दिन पहले जान पहचान हुई है, अपने दिल की सारी बातें बता पाना मुश्किल है। आपने मुझे सहजता से अपना दोस्त समझा, उसके पीछे भी हम दोनों का साहित्य के प्रति प्रेम ही है ... "
"जानते हो शैल, मैंने लगातार सत्य को दो-ढाई महीने तक लगातार उसी शीशम के पेड़ के नीचे खड़ा हुआ इसी खिड़की से देखा था ... मुझे आश्चर्य होता कि आखिर यह लड़का यहां करता क्या है ? पहले सोचा कि किसी से मेरे बारे में मालूम पड़ा होगा, तो ट्राई कर रहा है। कुछ दिनों तक मैं देखती रही लेकिन ऐसा कुछ नहीं पाया, वह अपना काम करता ... ट्रक आते, रुकते, वह कुछ नोट करता और फिर ट्रक आगे बढ़ जाते। इतना तो समझ में आ गया था कि माइंस में नौकरी करता होगा ...
धीरे-धीरे क्यूरियोसिटी बढ़ती गई। तभी कहीं न कहीं इस हृदय से एक आवाज आई की एक न एक दिन यह जरूर मुझ तक आएगा और फिर बरसाती हुई शाम में इसी गौशाला में मैंने इसी खिड़की से उसे कुछ भींगते हुए खड़ा देखा ... बस उसी शाम से मेरी दुनिया बदल गई ....। मैं उससे कुछ कहूं या न कहूं वह मेरे दिल की हर बात समझ जाता है। यदि कभी दिखावटी गुस्सा भी किया तो मुस्कुरा के रह जाता है। ऊपर से सामान्य दिखने वाला अंदर से बहुत ही भावुक इंसान है। उसकी भावुकता उसके चेहरे में दिखाई देती है, और कभी-कभी तो वह आंखों में उमड़ आती है। उसे मेरे सामने रोने से भी कोई परहेज नहीं ..."
बाहर का मौसम अच्छा था। तेज धूप सामने से गुजरती रोड, और खिड़की पर खड़े हम दोनों। पीहू खुल कर अपने और सत्य के बारे में बता रही थी। बड़े ही अपनत्व से अपनी जिंदगी के हसीन और रुला देने वाले लम्हों को भी वह मुझसे शेयर कर रही थी। उसके हृदय और मन की पवित्रता, उसकी विनम्रता और जिंदगी के प्रति उसका दृष्टिकोण देखकर मैं हैरान था। इसके बारे में मंगल से मुझे कुछ बातें पहले से ही पता थी। घरेलू हादसे, बाबा का स्वभाव, उनकी खेती-पाती, जमीन जायदाद और यहां तक की ध्रुव के बारे में भी काफी कुछ जान गया था।
लेकिन इस वक्त पीहू और सत्य के बीच का संबंध मुझे मेरे अतीत की तरफ खींच कर ले गया। मैं उनकी कहानी को अपनी जिंदगी से को-रिलेट करके महसूस कर रहा था। प्यार की कशिश, मोहब्बत की रूमानियत, दर्द, आंसू और इन सब पर भरी प्रतिष्ठा और अभिमान।
मैने ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना की, ..... ऐसा पल उनकी जिंदगी में कभी न आए जिन लम्हों और अंजामों से मैं गुजरा हूं। लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली हो रही थी कि यदि बाबा की स्वीकृति है, जो कि मैं देख और महसूस भी कर चुका हूं, ..... तो जात-पात, कुल-गोत्र, धर्म और सबसे बड़ी चीज प्रतिष्ठा और अभिमान इनके संबंधों के बीच में रुकावट नहीं होंगे।
पीहू की कहानी को मैं केवल सुन नहीं रहा था बल्कि उसे अंदर से भी महसूस कर रहा था। उसके जज्बात, उसकी प्रखर और उज्जवल भावनाएं, चेहरे के भाव सभी कुछ मुझे बता रहे थे कि यह लड़की सत्य को कितना और किस हद तक प्रेम करती है। और उस के प्रेम में कितना अपनापान और समर्पण है। पहली मुलाकात में इसके प्रति मैंने जो धारणा इसके व्यक्तित्व और पहनावे को देखकर बनाई थी वह सही साबित हो रही थी।
कुछ देर बाद मैं चारपाई पर लेटा था और वह कुर्सी पर बैठी अपनी अब तक की जिंदगी की कहानी बता रही थी। मुझे कुछ असहजता महसूस हुई, मैंने उससे कहा, "अब आप आराम करिए मैं धीरे-धीरे बगिया निकल जाऊंगा ... "
"नहीं आप लेटे रहिये, मैं ऐसे ही ठीक हूं ... ,"
तभी एक बाइक की आवाज सुनाई दी। पीहू झट से उठी, "सत्य आ गया ....", उसने खिड़की से झांक कर देखा, "बाइक गौशाला के अंदर खड़ी कर दो ... मैं अभी नीचे आती हूं ..."
कुछ देर बाद वह सत्य के साथ अटारी में आई। सत्य मेरी तरफ देखकर मुस्कुराया, "कितनी डांट पड़ी दोस्त ? इसने तो तुम्हें बिल्कुल नहीं छोड़ा होगा सुबह से नाराज बैठी है ? और तुम भी भाई अजीब हरकतें करते हो। अपनी शादी में मुझे जरूर बुलाना ताकि मैं तुम्हारी बीवी को तुम्हारी ये हरकतें बता सकू कि भाभीजी इसे रात को बांध कर रखिएगा नहीं तो साहब रात को मिस्टर इंडिया बन जाते हैं ... गायब", अंतिम शब्द कहते-कहते वह जोर से हंसा था और उसके पीछे मैं भी।
फिर पूरी अटारी ठहाकों से गूंज उठी। भरपूर हंस लेने के बाद मैने कहा, "यार कल रात के लिए सॉरी ... देखो मैं सबसे माफी मांग चुका हूं ... प्लीज यार तुम भी माफ कर दो .."
"चालो किया, लेकिन तुम इतनी बात तो समझो, तुम मेरे सबसे अच्छे और फास्ट फ्रेंड की अमानत हो मेरे पास। यदि तुम्हें कुछ हो जाएगा तो मैं उसे कैसे ...."
"यार मैं समझ गया, जब से पीहू ने बताया कि रात में यहां जंगली जानवर भी घूमते हैं तब से मेरी भी फटी पड़ी है ... यार चलो तुम आ गए हो तो इसी खुशी में एक-एक कप चाय पीते हैं .."
"यार पीने की तो इच्छा मुझे भी थी लेकिन ..."
"हां यार पीहू ने अभी बताया है कि बाबा को पसंद नहीं है, सुबह और शाम दो बार वह भी तुम्हारी कृपा से इस घर में चाय बनने लगी है ..."
समस्या का हाल पीहू के पास था, "कोई बात नहीं आज आपकी कृपा से बनेगी। बाबा से कह दूंगी की आपको चाय पीनी है, तब वह मना नहीं करेंगे .."
"तो जाइए फिर बना कर लाइए ...", सत्य ने शिष्टता दिखाते हुए पीहू से कहा।
पीहू जाने को पलटी की सत्य भी कुर्सी से उठता हुआ बोल, "रुको पीहू मैं भी आता हूँ...", फिर वह मेरी तरफ देखते हुए बोला, "बाबा से मिल लूं एक बार ..."
"जाओ भई, एक बार नहीं कई बार मिलो ... इत्मीनान से मिलो और जी भर के मिलो ... हम भी यहीं पर मिलेंगे ....", मैने मुस्कुराते हुए कहा, "तखलिया...!"
"जो हुक्म आलमपनाह ...", सत्य ने भी मुस्कुराते हुए कहा।
लगभग पंद्रह बीस मिनट बाद दोनों एक साथ फिर हाजिर हुए, ट्रे सत्य के हाथ में थी। मैंने चित्रलेखा एक तरफ राखी और चारपाई पर पैर नीचे करके बैठ गया। चाय के साथ हंसी मजाक का दौर भी चल रहा था लगभग 4 बजे सत्य उठता हुआ बोला, "मैं थोड़ा माइंस तक जाऊंगा, 6 के लगभग लौट आऊंगा ..."
मुझे जिस ढंग से बताया जा रहा था उससे मैं अंदाजा लगा सकता था कि इस बात का डिस्कशन उन दोनों में पहले ही हो चुका है, और यह जानकारी सिर्फ मुझे दी जा रही है, "ओके जाओ ... हम इंतजार करेंगे ... खुद हिफाजत करें ... "
"थैंक यू ... थैंक यू ... कहता हुआ सत्य सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, पीहू भी पीछे-पीछे हो ली।
पीहू जब लौट कर आई तो मैंने उससे कुछ संकोच में कहा, "पीहू ! यह बात कहते हुए मुझे बहुत संकोच हो रहा है, लेकिन मुझे कुछ पैसों की जरूरत है, क्या है न, मैं अपना वॉलेट ज्ञान के ही घर में भूल आया हूं। जब ज्ञान मुझे लेने आएगा तो मै उससे आपको दिलवा दूंगा ..."
"अरे ! इसमें इतना संकोच कैसा, वैसे कितने चाहिए आपको ...."
"वन थाउजेंड .... हां इतने में हो जाएगा ...",
"ओके मिल जाएंगे .... लेकिन आप बुरा न माने तो ..."
"मै जनता हूं कि आप यही पूछेगी न कि इतने पैसे मुझे क्यों चाहिए ...", मै नजरे चुराते हुए बोला, "मुझे शराब मंगानी है ..."
"किससे मंगाएंगे .... पहले बताया होता तो मैं सत्य से..."
"मेरी मंगल से बात हो गई है ... देखिए उसे ..."
"नहीं डाटूंगी... ओके। बस इसीलिए चाहिए था .... कि किसी और काम के लिए ..."
"नहीं ... लेकिन एक बात और ... एक्चुअली बात नहीं है बल्कि इस दिल की आरजू है ...."
"आरजू ... वो भी दिल की... तो वह अवश्य पूरी होगी ... कहिए ...", उसने कहा।
मै उसे समझाते हुए बोला, "देखिए मैं आज रात को यहां हूँ ... हो सकता है कल शाम को या फिर परसो ज्ञान मुझे लेने आ जाए और मैं चला जाऊं ... फिर पता नहीं कब आना हो ... तो आज रात को आप, सत्य, मंगल और कमली हम सभी एक छोटी सी पार्टी यानी गेट टू गेदार करे ...."
"ये होल्ड ऑन ....भूल जाइए ... इस घर में ये सब नहीं चलेगा ... ", उसने मुझे रोकते हुए कहा।
"मै ये कब कह रहा हूँ कि इस घर में .... मैं तो बगिया की बात कर रहा हूं ... वही खाना बने, हम सब मिलकर बनाए ... चुटकुले सुने, सुनाए। हंसी मजाक कुछ होश में कुछ बेखुदी में ... मतलब फुल एंजॉय ..."
... समझ रही हैं न... "
"मै तो समझ रही हूं ... बाबा कैसे समझेंगे ? और उन्हें समझाएगा कौन ....?", पीहू ने चिंता जाहिर करते हुए कहा।
"और कौन ! बिल्ली के गले में घंटी सत्य ही बांधेगा ...", मैने हंसते हुए सुझाव दिया।
"ये मेरे बाबा को बिल्ली न कहिए। लेकिन सत्य तो लेट आयेगा .... आप 6 के बाद ही मानिए ... लेकिन एक तरीका है .... बाबा को आप कन्वेंस कर सकते हैं ... आप राइटर है ... जस्ट एश्यूम... मै आपकी प्रेमिका हूँ .. और आप उसके साथ एक खूबसूरत शाम बिताना चाहते हैं .... और उसके लिए आप बाबा को कन्वेंस कर रहे हैं ...."
"पीहू जी ! ये तो मुश्किल काम है ... लेकिन चलिए राइटर होने की सजा भी भुगत लूंगा ..."
"क्या मैं सजा हूँ ... थैंक्स कहिए कि राइटर होने से इतनी खूबसूरत लड़की को अपनी लवर एश्यूम करने का मौका मिल रहा है ..."
"जरा रुकिए ... रुकिए ... मेरी वाली आपसे भी ...", कहते-कहते मै रुक गए, मेरी नजरों में एक चेहरा आया और ठहर गया।
इधर पीहू ने बात पकड़ ली, "हां .. हां .. बोलिए ... आप वाली ..."
मुझे झटका लगा, अरे ये मैं क्या कहने जा रहा था, यदि मेरी कहानी का आगाज हुआ तो इस शाम का अंजाम आंसुओं से भींगा होगा। और इसलिए उसकी शुरुआत ना हो तो ही बेहतर है। वैसे भी सत्य और पीहू की रोमांटिक और खुशियों से भरी प्रेम कहानी में, दर्द और आंसुओं में डूबी मेरी प्रेम कहानी का क्या औचित्य ? यदि हम दोनों के रास्ते अलग हैं, तो उनके माइलस्टोन भी अलग होने चाहिए।
मैंने बात बदलते हुए कहा, "अधिक खूबसूरत होगी .... समझीं ? है नहीं .... होगी ... तो चलिए तब तक आप से ही काम चलाते हैं।
"हम से ही !!! दोस्त, मेरी इतनी इंसल्ट तो न कीजिए ...", उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"सॉरी . अब चलिए भी ...", मैने उठते हुए कहा।
बड़ी मुश्किल से मैंने बाबा को कुछ शर्तों के आधीन कन्वेंस किया। मसलन रात के समय किसी भी हालत में कोई भी खेत से घर तक पैदल नहीं आएगा। या तो बाइक से या तो फिर वही रुकेगा। पीहू ने बाबा के लिए फटाफट डिनर तैयार किया। तय हुआ कि सत्य 8 बजे आएगा और डिनर गर्म करके बाबा को खिलाएगा। इसके बाद यदि लौटना हो तो पीछे के दरवाजे में बहार से ताला लगा के जाएगा और लौटने पर वही से घर के अंदर प्रवेश करेगा। किसी भी हालत में उनकी नींद डिस्टर्ब नहीं होनी चाहिए।
पीहू ने एडवांस में बाबा के शाम की पूजा की तैयारी की। अब हम फ्री थे। पीहू ने बाबा से कहा कि जब सत्य आ जाए तो बाइक से वही भेज दें। कुछ देर बाद हम दोनों बगिया में थे। पीहू के हाथ में मेरा बैग था। उसे मंगल को देते हुए बोली, " इसे रख दो, और साइकिल सही है न तुम्हारी .... ?"
"सही है ... क्यूं ?"
"जो सर जी कहें लेकर आओ ...", उसने सौ-सौ के कुछ नोट उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, "जल्दी जाओ फिर अभी घर भी जाना है ... बाबा के पूजा पर बैठने से पहले .... गाय को बांधना होगा ... ये कमली कहां है ...", फिर वो कमली को देख उसकी वतरफ बढ़ गई।
मैने मंगल से कहा, "देखो तो कितने है ..."
"दस नोट है सर जी ..."
"ऐसा करना मिले तो विस्की लाना, नहीं तो वही तुम्हारी काली वाली रम... और देखो तीन ही लाना, और गांव में कोई किराना की दुकान हो तो कुछ नमकीन और एक पैकेट सिगरेट और माचिस ले लेना ... और भी जो तुम ठीक समझो .... अब जल्दी जाओ और आओ भी ... "
मंगल सायकल ले कर चला गया, कुछ देर बाद पीहू मेरे पास आई उसके हाथ में धुले हुए ताजे गाजर थे। मुझे देती हुई बोली, "लीजिए खाइए ..."
मै मड़ैया के अंदर गया। खाट में रखे बैग को खोला, वही पत्थर में दोनों कांच की गिलास भी रखी थीं। जैसे ही इत्मीनान से एक पैग बनाने वाला था कि वह सामने आ गई , "बस थोड़ सा ..."
"अरे पीना मुझे है, डिसाइड मैं करूंगा ..."
"नहीं पहला पैग मैं ..."
"आप !!! ..."
"और नहीं तो क्या, आज पार्टी है ... और इतने से काम न चले तो समझिए अपनी दोस्ती के नाम ...", उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो समझो अपनी दोस्ती के नाम ... आप .... लीजिए ,.... कीजिए .... दीजिए..... जैसे शब्दों को रिप्लेस करते हैं ... तुम .... लो ....करो ...दो शब्दों से। जस्ट ए नेचुरल फ्रेंड बात करेंगे .... ओके"
"ओके ... ओके राइट जी ... ये ! नशा तो नहीं होगा ...?", उसने मासूमियत से कुछ डरते-डरते पूछा।
"बिल्कुल नहीं होगा, बस आपको खुद से यही कहना है और खुद को यही एहसास दिलाना है ... क्या ? ... मैने नहीं पी ..."
"ओके .... ",
"क्या ...?"
"मैने ... नहीं ... पी, .... इट्स ओके .. ?"
"हूँ... ओके ..."
मै शराब कम और पानी अधिक मिलते हुए बोला, "इसे एक सांस में पीना है, मतलब बीच में रुकना नहीं है ..."
और फिर उसने एक सांस में खींच ली, "उफ़ कितनी कड़वी है ... पता नहीं यार तुम पी कैसे लेते हो ..."
"कैरेट किस दिन के लिए हाथ में पकड़ रखे हैं, उसे खाओ ...", मै अपने लिए एक पैग बनाते हुए कहा, "पीहू सत्य को तुम्हारा यूं पीना बुरा तो नहीं लगेगा ... ?"
वह पत्थर में बैठते हुए बोली, "यूं ...से तुम्हारा मतलब ?"
मैने पैग खाली करते हुए कहा, "यूं से मतलब था बिना उससे पूछे, मेरे साथ ..."
"ओ कम ऑन... हमारे बीच इतनी कमजोर अंडरस्टैंडिंग नहीं है ... अब मुझे थोड़ी-सी और दो ...", उसने अपने पास रखी गिलास मेरे सामने बढ़ा दी।
मैने वहीं किया, शराब कम, पानी ज्यादा ... और उसने फिर एक सांस में खींच ली। फिर अपने लिए एक पैग बनाया, और उसे ले कर मड़ैया के बाहर आ गया, "पीहू खाट बाहर निकाल लेते हैं ... अभी काफी उजाला है ... निकाल लोगी कि मैं कमली को आवाज दू...."
"क्यों नहीं निकाल लूंगी ..? कौन-सी मैंने पी रखी है ... पी तो तुम रहे हो ... चलो हटो किनारे ..."
मैं किनारे हो गया और मन ही मन बोला, "शाबाश ! शागिर्द हो तो ऐसा !!"
उसने खाट को निकला ही नहीं, उसके ऊपर दरी फिर चद्दर बिछाया। तकिया को सिरहाने, कंबल को पैर के पास रखा। अंत में मेरा बैग मेरे नजदीक रख दिया।
"फिर मेरे पास सामने एक बड़े पत्थर में बैठते हुए बोली, "पार्टी में खाने की क्या व्यवस्था की जाए ... लिट्टी चोखा बनाए ... और मिक्स वेज हरी सब्जियों की ... साथ में बढ़िया सलाद ... सच में मजा आ जाएगा .…"
मैने शिप लेते हुए कहा, "बिल्कुल सही है ..."
"चलो तो ठीक है मैं कमली को प्रोग्राम के बारे में सब समझा दूं .… और हरी ताजी सब्जियां तोड़ लाती हूँ ... तुम आराम से बैठो और बिंदास पियो ... कुछ और दू... "
"हा एक जग पानी और ...", उसके हाथ की कैरेट छीनते हुए बोला, "और ये .... तुम अपने लिए खेत से उखाड़ लेना ..."
वह गाजर मुझे देकर चली गई। उसके जाने के कुछ देर बाद मंगल हांफता हुआ आया, "सर जी ज्यादा टाइम तो नहीं लगा ... बड़ी तेज साइकल चलाई ...", उसने झोला बिस्तर में रखते हुए आगे कहा, "सर जी! आप वाली नहीं मिली, वही काली वाली मिली है, तीन है, छ सौ की। सिगरेट, नमकीन और कुछ गरम मसले भी ले लिए। घर में खत्म थे। कुल मिलाकर छ सौ अस्सी रुपए, और ये रहे बाकी के .. ", उसने बचे हुए पैसे बिस्तर में रख दिए।
"मंगल तुम काली वाली खोल लो ... एक पैग जल्दी से लो ... और पीहू की मदद करो, देखो वो सब्जी तोड़ रही हैं .."
"अभी दूसरी क्यूं खोले सर जी ..? अभी तो कल वाली ..."
"उसे दोनों तीनों पियेंगे ..."
"मतलब ..."
"मतलब, सत्य और पीहू ..."
"हे ..."
"हे ... कहा था न कि तुम्हारा रिकॉर्ड जल्दी ही टूटने वाला है ... मुबारक-ए-मंगल ... तुम पीहू के सामने नहीं साथ में लेने वालो हो ..."
"हे...."
"हे ... लेकिन किसी से कभी भी नहीं कहना ... कसम मंगल .... वो भी मां की ...क्या है, आज पार्टी है। सब खाना-पीना यहीं होगा, मतलब फुल एंजॉय ..."
उसने रम का एक पैग खींचा, "राम-राम सर जी !! कभी नहीं .... ये तो कुछ मीठी-मीठी है ..."
"मीठी के चक्कर में ज्यादा न ले लेना ... चढ़ती भयंकर है ..."
"हे .."
"हे ... ट्रिपल एक्स रम है, वो भी मिलिट्री वाली .... अब जाओ ..."
"वह गया और जल्दी ही वापस आ गया, मैने पूछा, "क्या हुआ ...?"
"पीहू बिटिया ने घर जाने के लिए कहा है, गाय, बछड़ों की व्यवस्था करनी है ... फिर जब भैया जी आ जाएं तो उनके के साथ ही आना है ... सर जी अब मैं घंटे भर के लिए बुक ... "
"अच्छी बात है ... पीहू ठीक ही तो कह रही है ... तुम ऐसा करो पहले प्लेट में नमकीन निकाल लो, उसे खाओ फिर एक लार्ज खींचो और साइकिल से ही घर जाओ ... लेकिन ध्यान रखना बाबा से दो नहीं पांच से दस कदम दूर ..."
मंगल ने वैसा ही किया। उसके जाने के कुछ देर बाद पीहू एक टोकरी में धुली हुई सब्जी, एक खाली टोकरी और दो चाकू ले कर आई और सामने पत्थर में बैठते हुए कहा, "लो अब कटवाओ साथ में, कमली चोखे के लिए इंतजाम कर रही है ..."
अब हम दोनों सब्जी काट रहे थे। मैने उससे पूछा, "जब चोखा बन रहा है तो मिक्स वेज की जरूरत क्या ? ..."
"वो क्या है ... देखो तुम हंसोगे तो नही ...?"
"बिल्कुल नहीं ... तुम कहो तो ...?"
"मुझे उनके हाथ की बनी सब्जी खानी है .."
"उनके ? किनके ?? ओ .. हो... मतलब सत्य के ...."
उसने लजाते हुए अपना सर नीचे करते हुए हां में सर हिलाया, "लेकिन तुम्हे इतना आश्चर्य क्यूं हुआ ...?"
"आश्चर्य की बात ही है ... मैने अभी तक इतने रिस्पेक्टफुली शब्द उसके लिए तुम्हारे मुख से नहीं सुने थे ..."
"वो क्या है कि हमारा सबसे पहला रिश्ता अजनबी का, फिर दोस्ती का, फिर मोहब्बत का और अब ...
"हां अब ... ?"
"इस जीवन से उस जीवन तक का ... इसलिए उनके लिए इस दिल में बहुत रिस्पेक्ट है ..."
अब मैं क्या समझूं पीहू ने पी की नहीं पी ?, "पीहू सच कहता हूँ, मै खुद को प्राउड फील कर रहा हूँ कि तुम मेरी दोस्त हो ..."
"दोस्त नहीं गर्लफ्रेंड, और वो मेरे हसबैंड ... अब एक बनाओ मेरे लिए भी ...", उसने लजाते हुए कहा। मेरी समझ से अब पीहू ने पी है लेकिन थोड़ा सा।
"ये पीहू ! तुम पहली बार पी रही हो, अधिक तो नहीं होगी ..."
"अधिक !! अरे अभी मैने पी ही कहा है ..!!"
"अरे हां, मै तो भूल गया था ... लेकिन पहले तुम कुछ नमकीन खाओ ... तब तक मैं बनाता हूं ..."
वह प्लेट से नमकीन उठा कर खाने लगी। मै जनता था कि उसे कैसे ट्रीट करना है। मैने शराब कम और पानी ज्यादा मिलाया और उसे पकड़ा दिया, "सत्य को तुम सम्हाल लेना, पता चला नव-विवाहित जोड़े के विवाह-विच्छेद का का कारण मैं बनू ..."
" ये क्या होता है ..."
"डाइवोर्स ... तलाक...", मैने उसे डराते हुए कहा।
"अरे बाप रे! नहीं ... नहीं ...तुम चिंता मत करो, मै सब सम्हाल लूंगी ...", फिर उसने कमली को पुकारा, "कमली ! ओ कमली जी ... इधर आओ ..."
कमली भागती-दौड़ती पास आई, "क्या हुआ ..."
"हुआ क्या ... आओ इस पत्थर में बैठो, देखो आज पार्टी में हम सभी इंजॉय करेंगे ... ", फिर मुझसे बोली, "एक इसके लिए ..."
"मैने रम का एक सामान्य पैग बनाया और उसकी तरफ बढ़ा दिया। उसने कुछ संकोच में गिलास ली और दूसरी तरफ मुंह करके खींच लिया।
"ये अच्छी है ... मीठी-मीठी है ..", वह पीहू से कह रही थी, "एक बार तुम्हारे मंगल चाचा नदी तीर से महुआ वाली लाए थे, इतनी कड़वी ...! हे भगवान ...!! और बदबू ... पूछो मत ..."
"हाय राम ! तो मंगल मेरे चाचा हैं, और मैं बचपन से मंगल ही कहती रही, मंगल ये करो, मंगल वो करो, मंगल यहां आओ, मंगल वहां जाओ ... मै कितनी बुरी हूँ कमली चाची। नहीं तुम कमली ही ठीक हो, मंगल में चाचा सूट करता है, आज से नो मंगल, ओनली मंगल चाचा ... ठीक है न शैल ?"
अब मैं नहीं आप बताए कि क्या पीहू ने पी या नहीं ? और यदि हां, तो कितनी ? ताकि मुझे निर्णय लेने में सुविधा हो कि आगे कितनी और दी जा सकती है !!
"हां आज से मंगल चाचा, हम सभी के ...", मैं भी पीहू के स्वर में स्वर मिलते हुए गंभीरता से बोला।
हंसी मजाक का दौर चलता रहा, सब्जी कटती रही। कमली ने इस बीच एक और पैग खींचा और चोखा बनाने में जुट गई।
तभी सत्य की बाइक की आवाज सुनाई दी। मैने देखा, बाइक की हेड लाइट के आगे-आगे मंगल सायकल चलता हुआ आ रहा था ... पीहू गेट की तरफ भागी, मै पीछे से चिल्लाया, "जरा सम्हल के ..."
"तैयार रखना मैं अब पाऊंगी ...", वह गेट की तरफ भागते हुए बोली।
कुछ देर बाद वो तीनों किसी बात पर तेजी से हंसते हुए मेरे पास पहुंचे। मेरे हाथ में जाम देख कर सत्य ने कहा, "तो पार्टी शुरू हो चुकी है ... ", फिर वो मेरे पास चारपाई पर बैठते हुए बोला, "ये सही किया यार, कल संडे है, ड्यूटी की भी टेंशन नहीं .. कभी-कभी लाइफ में ऐसे मोमेंट आने चाहिए ... यार तुमने बाबा को राजी कर लिया ... ये बहुत बड़ी बात है ..."
"ये सुनो ...", कमली की पुकार मंगल के लिए थी।
"आया ...", कहता हुआ वह उसकी तरफ चला गया।
"कैसे न कर पाते, आखिर ... राइटर हैं ... और मेरे ब्वॉयफ्रेंड भी ..."
"अच्छा !! वेलडन पीहू !!! क्या बात है !! इतनी जल्दी शैल का प्रमोशन, सत्य ने हंसते हुए कहा।
"अच्छा ये बताओ ...", वह सत्य को समझाते हुए बोली, "ये लड़का यानी बॉय है न, और हम दोनों दोस्त हैं, तो ये हुआ न मेरा बॉयफ्रेंड और मैं इसकी गर्लफ्रेंड ... अब आगे तुम इसी से पूछ लो ... ?"
सत्य ने मेरी तरफ देखते हुए इशारे से पूछा, "हूँ ..."
"हूँ ...."
उसने सिर हिलते हुए धीरे से फिर पूछा, "कितने ..."
"एक के तीन ... छोटे-छोटे ..."
"तब ठीक है ..."
"ये तुम लोग क्या कोडवर्ड में बाते कर रहे हो ... मेरी बुराई तो नहीं ...", उसने कुछ गुस्सा जाहिर करते हुए पूछा था।
"अरे नहीं पीहू ! तुम्हारी बुराई भला क्यूं करेंगे ... मै तो शैल से पूछ रहा था कि पार्टी में मेरी लिए भी कुछ है ... कि नहीं ....?"
"हाय ! ... तुम दारू पियोगे !! ..... गलत बात, देखो मैने तो नहीं पी .... कसम से टच तक नहीं की ... और तुम पियोगे.... वेरी बैड ..."
"नहीं ... बिल्कुल नहीं ... ", सत्य अपने कान छूते हुए बोला।
"लेकिन चलो पार्टी है न ... तो थोड़ी सी पी लो ... लेकिन साथ में मै भी एक, ... बस ... प्लीज ..."
सत्य ने मेरी तरफ देखा, मैने उसे इशारा करते हुए कहा, " हां सत्य बस थोड़ी सी, कौन सा हम लोग शराबी हैं ... बस इंजॉय के लिए थोड़ी-थोड़ी ... ठीक है न ...?"
मैने दो पैग बनाए, एक कंसंट्रेट और एक बिल्कुल लाइट, "लो अब दोनों चीयर्स करो ...."
दोनों ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हुए चीयर्स किया और एक साथ खत्म भी, "यार पीहू तुमने बॉयफ्रेंड बनाया भी तो ऐसा जिससे कोई जलन नहीं होती यार, बल्कि प्यार आता है ...", वह उसके गाल में चिकोटी काटते हुए बोला, फिर उसके हाथ मेरी तरफ बढ़े तो मैने अपना गाल स्वयं उसकी तरफ करते हुए कहा, "यार चिकोटी क्यों, तुम तो पप्पी ही ले लो ... ", उसने मेरे गाल में प्यार से थपकी दी फिर एक जूते के लेस खोलते हुए कहा, "यार मैं थोड़ा हाथ-पैर धो लूं.."
अगले ही पल पीहू ने दूसरे पैर की लेस खोलते हुए कहा, "मोजे अभी धो देती हूँ, सुबह तक सूख जाएंगे ...."
फिर उसने अपने पैर की स्लीपर उतार सत्य के सामने रखते हुए कहा, "तुम इसे पहनो ... "
"लेकिन ये लेडीज, और फिर तुम ... ?"
"अरे मुझे नंगे पैर चलने की खूब आदत और प्रेक्टिस है ... और ये लेडीज-जेंट्स क्या है ? सोसाइटी मॉडर्न हो गई है, अब यहां सब बराबर हैं। तुम पहनो और चलो पंप हाउस, ... मैं बोर चला देती हूँ .. अच्छे से मुंह हाथ धो लेना ..."
"लेकिन पंप हाउस क्यों जाना, दो जग पानी में यहीं ही जाएगा ...", सत्य ने उसे रोकना चाहा।
"नहीं होगा .... अब तुम चलो बस ... समझते नहीं हो ...", उसने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा।
"सॉरी यार, मै अभी आया ..."
मै उसकी तरफ देख कर केवल मुस्कुरा दिया। दोनों साथ में पंप हाउस पहुंचे। एक तो उजली रात ऊपर से मंगल ने वहां भी एक बिजली बल्ब का इंतजाम कर रखा था। मैने अपने लिए एक पैग बनाया और दो तीन शिप लेने के बाद खाट में लेट गया। पंप हाउस से दोनों की अटखेलियां, हंसी-मजाक की आवाजे आ रही थी। विस्की अभी भी हाफ से कुछ अधिक ही बची थी। कुछ देर बाद मैने बैग से पेन और एक डायरी निकाली और दोपहर की पोयम को पूरा करने की कोशिश करने लगा।
इधर मेरी पोयम पूरी हुई और उधर दोनों को हंसते- मस्कुराते अपनी तरफ आते हुए देखा। मैंने डायरी को तकिए के नीचे दबा दिया। सत्य ने पास आते हुए कहा, "यार, पीहू ने अभी बताया कि तुम स्टोरी राइटर भी हो ...? और आश्चर्य की बात कि तुम्हारी कहानी पेपर में छपती भी है !!!....
"यार ! अप्रिशिएट कर रहे हो या डिप्रैस ..?", मैंने हंसते हुए कहा, "वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि अखबार में छपी हुई कहानी को पढ़कर ही पीहू ने जाना है कि मैं राइटर हूं ... "
" ओह ! वेरी गुड...?", उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम लोग बैठो बातें करो, तब तक मैं खाने की व्यवस्था देख कर आती हूं ...", फिर उसने धीरे से मेरे कान में कहा, "इन्हें ज्यादा मत देना, चढ़ जाएगी .."
"ऊं... हूँ .... बिल्कुल नहीं... तुम फिक्र न रहो ....", मैंने उतने ही धीरे से उससे कहा।
जब वह चली गई तो सत्य ने मुझसे पूछा, "मैडम जी क्या कह के गई हैं ...?"
मैंने कुछ मुस्कुराते हुए कह, "तुम्हारी फिक्र करके गई है, कहां है ज्यादा मत पिलाना ..."
"अच्छा !... ज्यादा नहीं तो कम ही पिला दो ...", उसने हंसते हुए कहा। तभी मंगल पास आया, "ये पीहू बिटिया को क्या हो गया ? पता नहीं कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है ?"
"अरे मंगल !! हुआ क्या ?", सत्य ने उत्सुकता से पूछा था।
"अभी मुझसे कहा कि मंगल चाचा ! जाओ उनको बुलाकर लाओ, आज उनके हाथ की सब्जी खानी है। अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि किसको ले जाऊं ..", मंगल ने दुविधा में अपना सर खुजाते हुए कहा।
"मंगल चचा !! तुम्हें मंगल चाचा कहा ...", सत्य ने आश्चर्य से पूछा।
"हां भैया जी ... सुनकर मुझे भी अजीब लगा ..."
उनकी हालत देखकर मुझे तेजी से हंसी आई फिर अपने आप को सामान्य करते हुए कहा, "मंगल तुम अपनी व्यवस्था खुद बनाओ ..."
फिर मैंने सत्य के लिए एक पैग बनाया। और शिप करते हुए मैने "मंगल चाचा" और "रिस्पेक्ट" वाली पूरी कहानी शेयर की। जब कहानी पूरी हो गई तो सत्य बोला, "ओह ! तो फिर मुझे जाना चाहिए ..."
"बिल्कुल जाना चाहिए ...."
जब सत्य चला गया तो मैंने मंगल से कहा, "मंगल कुछ व्यवस्था हुई कि नहीं ...?"
मंगल अपने लिए कुल्हड़ में लिए मड़ैया के पत्थर में बैठा था, मेरी बात सुनकर वह नजदीक आकर मेरी खाट के पास रखे पत्थर में बैठ गया, फिर भावुकता से बोला, "जब पीहू बिटिया का जन्म हुआ मैं 12-13 साल का था सर जी ... बहुत दिनों बाद इस घर में बिटिया हुई थी। बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया था। मुझे अच्छी तरह से याद है, दाऊ साहब ने जी- खोलकर दान-पुण्य किया था। आज जब मंगल चाचा कहा तो बड़ा अपना-सा लगा। बिटिया हमेशा खुश रहें ..", अंतिम शब्द कहते-कहते उसकी आंखें भर आईं थीं।
"शांत मंगल ... रोते नहीं ...", मैंने उसके कंधे में हाथ रखते हुए कहा।
"यह तो खुशी के आंसू है सर जी ! इस दिल से यही दुआ निकलती है कि बिटिया हमेशा खुश रहें, देखिए तो दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है ....", मैने देखा दस कदम दूर पीहू और सत्य चूल्हे में एक साथ मिक्स वेज बना रहे थे।
"मंगल !! बताओ तो टाइम कितना होगा ?"
वह चंद्रमा की तरफ देखते हुए बोला, " आठ और साढ़े आठ के लगभग होगा।....सर जी ! मै थोड़ा गरम मसाला दे कर आता हूँ ..", मंगल ने अपना कुल्हड़ खाली करते हुए कहा।
मैने सत्य को आवाज लगाई, "बाबा का डिनर ..?"
सत्य पास आते हुए बोला, "बाबा ने आज पूजा जल्दी फिनिश कर ली थी। उन्हें खिला-पिला के, पीछे ताला लगा के आ रहा हूं ... सब इंतजाम कर के आया हूँ। ... दिक्कत की कोई बात नहीं ..."
"चलो तो ठीक है ... उन्हें कोई कष्ट न होने पाए ...", मैने गिलास धोई। एक नॉर्मल, एक लाइट बना के उसे देते हुए कहा, "जाओ चीयर्स करो, और देखो जरा मंगल को भेज देना .... "
सत्य गया और मंगल आया, "मेरे लिए भी एक कुल्लड निकालो ... देखो मेरे लिए भी मीठी वाली ही बनाना ... और लाओ सलाद भी काट लेते हैं ..."
मंगल ने वैसा ही किया। सलाद काटते हुए मैने मंगल से कहा, मंगल खाने के लिए कैसे व्यवस्था करोगे। और बर्तन ? हो जाएंगे ...?"
चटाई है न, उसी को बिछा दूंगा ... आप तीनों उसी में बैठ जाइएगा। मेरे और कमली के लिए ये पत्थर ही बहुत है, और बर्तन हो जाएंगे ...आप चिंता मत कीजिए .."
मंगल ने सही कहा था, सब कुछ व्यवस्थित हो गया, फिर हममें से किसी ने नहीं पी ... सिर्फ मिलजुल कर डिनर की तैयारी की। ... पीहू-सत्य और मंगल-कमली की थाली एक थी। देशी शुद्ध धी की महक, लिट्टी-चोखा, मिक्स वेज, ताजी सलाद और एक दूसरे के हृदय में एक दूसरे के लिए ढेर सारी आत्मीयता। खुला असमान, चंद्रमा की श्वेत धवन चांदनी से धुली हुई शांत रात। और इस कहानी के चार किरदार आपस में हंसी-मजाक करते हुए डिनर का पूरा आनंद ले रहे थे।
पांचवा यानी इस कहानी का राइटर मैं; जो इस समय खुद एक किरदार था। अपने अतीत की कुछ घटनाओं को आज की उज्ज्वल शांत रात में उन्हें करवटें बदलते हुए देख रहा था। अतीत अर्थात आपके जीवन का गुजरा हुआ कल: चाहे वह अच्छा हो, बुरा हो; चाहे खुशियों से भरा हो या आसुओं में मुस्कुराता हुआ हो, आपका पीछा कभी नहीं छोड़ता। और शायद इसीलिए मैं उनसे दूर भगाने की नाकाम कोशिशें नहीं कर रहा था, बल्कि उन्हें पूरी शिद्दत के साथ महसूस और आत्मसात् कर रहा था।
डिनर समाप्ति के बाद जब मंगल मेरे बिस्तर को झाड़-झटक रहा था कि उसी समय मेरी डायरी चारपाई के नीचे गिरी जिसे पीहू ने उठा लिया, "ये क्या है ?", कहते हुए डायरी को खोला, जिस पेज में पेन दबी थी वही पेज खुला और उसमें थी आज ही पूरी की गई वही कविता। रोशनी पर्याप्त थी, उसने कविता को ध्यान से पढ़ा, फिर मेरी तरफ देखते हुए पूछा, "पूरी हो गई ...?"
"हां जो लिख सकता था, लिख दी ... ?", मैने चारपाई पर बैठते हुए कहा था ।
"सत्य इधर बैठो", उसने मेरे बगल में बैठते हुए सत्य को अपने पास बुलाया था। वह मेरी दूसरी तरफ बैठते हुए पीहू से बोला, "क्या बात है ..."
"इसे पढ़ो ..", उसने डायरी उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, "शैल ने लिखी है ..."
सत्य ने ध्यान से पढ़ा, "बहुत ही सुंदर ... वेरी गुड ... वैसे इस पोयम की थीम्स क्या है .. मतलब क्या ध्यान में रख के लिखा है ....?"
"थीम्स ....? हूं .... कैसे बताऊं ..... ", मै कुछ सोचते हुए बोला, "हां तुम ऐसा समझो ... एक लड़का और एक लड़की मिलते हैं .... दोनों के बीच प्यार होता है ... एक दूसरे से शादी भी करना चाहते हैं ... लेकिन कुछ इश्यू के कारण लड़की को दूसरी जगह शादी करनी पड़ती है। लेकिन उस लड़की के दिल में उस लड़के के लिए हमेशा वही प्यार रहता है और जिसका एहसास उस लड़के को भी है। वह उसे धोखेबाज और बेवफा नहीं समझता है बल्कि उसके दर्द में, उसकी तकलीफ में खुद को शामिल पाता है, और फिर एक दिन वो लड़का उसी लड़की से मिलता है, और अपने दिल के जज्बातों को कविता में कहता है ... यही सोच कर लिखा है .…"
तभी मंगल पास आया, "सर जी! पी-पा लिया, खाना-पीना भी हो गया। अब कुछ प्रोग्राम हो जाए..."
"क्या भई ! खिलाने-पिलाने के बाद मुजरा-उजरा करवाओगे क्या ?", मैंने डरने का अभिनय करते हुए कहा।
"नहीं सर जी, कुछ चुटकुले, हंसी मजाक, गीत-गाना, शेरो-शायरी, ऐसे ही प्रोग्राम। अभी दस भी नहीं बजा होगा..."
"बिल्कुल सही ... ", सत्य ने मंगल का पक्ष लेते हुए कहा, "अभी साढ़े नौ बजे है ... कुछ प्रोग्राम तो होना चाहिए ... क्यों पीहू ?"
"सही है ... हमारे बीच इतना अच्छा राइटर है, मौका छोड़ना नहीं हैं ...", पीहू में भी सहमति दे दी।
"एक मिनट ... यदि पूरी महफ़िल के इंटरटेनमेंट का नारियल मेरे सिर पर फोड़ना है, तो गलत बात है। योगदान सभी का होना चाहिए ....", मैंने पीहू की बात को बीच में काटते हुए कहा।
शुरुआत मंगल और कमली से हुई। एक आदिवासी लोकगीत गाते हुए दोनों झूम के नाचे। डांस खत्म होने के बाद कमली ने कहा, "पीहू बिटिया गाना बहुत अच्छा गाती है, इनकी आवाज बहुत मधुर है ...", फिर पीहू की तरफ देखते हुए बोली, "वही वाला गीत सुनाओ न ..."
"कौन सा ? पूरबे पश्चिमवाँ से आयल जोगिया ?", पीहू ने गीत की पुष्ठि की, "कमली यह तो आदिवासी गीत है, तुम मुझसे अच्छा गाती हो, तुम्ही से तो सीखा है, तुम ही सुनाओ न ...."
तभी सत्य बीच में ही बोला, "प्लीज पीहू , मेरे लिए ..."
अब पीहू के पास मना करने की कोई वजह नहीं रह गई। सत्य के हृदय में कोई इच्छा हो और उसकी पूर्ति पीहू के अधिकार क्षेत्र में हो और वह पूरी न हो, क्या कभी ऐसा हो सकता है ? कभी नहीं ।
पीहू थोड़ी देर तक आंख बंद कर बैठी रही। शायद वह गीत को पूरी तरह से ध्यान कर रही थी। फिर उसने गाना शुरू किया,
पूरबे पश्चिमवाँ से आयल जोगिया,
पेड़ेतरे आय डेरा डाले।
सिरी किसुन बंसिया बजावे,
साब सखी सुनि आवे।
कवन गोरी हांसे,
कवन गोरी मुसुके।
एत बड़की त हांसे,
मझली गोरी मुसुके,
छोटकी त चील्ह निहार झपटे।
सिरी किसुन बंसिया बजावे।
उसकी मनमोहन और मधुर आवाज में इस लोक गीत को केवल हम लोगों ने ही नहीं अपितु इस पूरी प्रकृति ने सुना। आसमान में अपना सफर तय करते हुए निशा पथिक और उसकी उज्जवल चांदनी ने सुना। चलती हुई हवाओ ने, बगिया के हर एक पेड़-पौधों ने सुना। सत्य के हृदय की प्रत्येक धड़कनों ने सुना। और ? ... और एक राइटर की कलम ने सुना।
सत्य तो इतना आत्म विभोर हो गया कि उसने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाले और पीहू पर न्योछावर कर कमली को पकड़ा दिए। फिर वह मेरे गले लगते हुए बोला, "ठीक हुआ जो ज्ञान में तुम्हें मेरे साथ भेजा ...", और एक राइटर अपने जीवन में अपनी मोहब्बत से दूर हो कर भी, अपने किरदारों में उसकी कशिश और महक को महसूस किया।
अब सब की निगाहें मुझ पर थी, लेकिन मेरी सत्य पर, मैंने तीर की दिशा बदल दी, "देखो पीहू ! सत्य के कहने पर तुमने इतना अच्छा गीत सुनाया तो क्या अब इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है...? बताओ सत्य अब तुम क्या कर सकते हो .. हु ?"
"एक्टिंग कर सकता हूँ। स्कूल के समय ड्रामा में कुछ रोल किये थे .... चलो अभी तुमने जो उस लड़की और लड़के की कहानी बताई थी उसका रोल करता हूं। क्यों पीहू साथ दोगी ...?"
"लेकिन कैसे ... उस कहानी को तुम यहां कैसे प्ले कर पाओगे ...?", मैंने आश्चर्य से पूछा था।
"तुम्हारी लिखी गई पोयम के द्वारा, अब तुम यह समझ लो कि मैं वह लड़का हूं और पीहू वह लड़की है। इसकी शादी किसी और से हो गई, लेकिन यह मुझे उतना ही प्यार करती है जैसा कि पहले, और मैं भी इसे उतना ही प्यार करता हूं जितना पहले। यह चेहरे के एक्सप्रेशन देगी और मैं तुम्हारी पोयम को पढ़ूंगा ... ओके ?"
"लेकिन मुझे तो एक्टिंग नहीं आती न ...!", पीहू ने विरोध किया। तब मैंने उसे समझाते हुए कहा बिल्कुल आसान है, मैं समझा देता हूं। यार तुम यूं चुटकी बजाते हुए कर ले जाओगी। बस तुम्हें सचमुच महसूस करना होगा उस लड़की को अपने अंदर ... चेहरे में एक्सप्रेशन अपनी आप आ जएंगे। एक मिनट मैं अभी समझता हूं, पहले तुम इसे पढ़ो,
तू हंसती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपने ग़म भी भूल गया हूँ,
जब से तेरी इन आंखों में,
तिरते आंसू देखे हैं।
अब इसे इस तरह एक्ट करना है। जब तुम मुझसे नेचुरल कुछ हंसते-मुस्कुराते बात कर रही होगी तो सत्य पहली दो लाइंस पढ़ता हुआ तुम्हारे नजदीक आ रहा होगा, लेकिन जैसे ही तीसरी लाइन पढ़े तुम्हें धीरे-धीरे अपना फेस उसकी तरफ टर्न करना है। सत्य तुम्हारे और नजदीक आयेगा, तुम्हारे कदमों के पास बैठेगा और फिर तुम्हारी आंखों में देखता हुआ अंतिम की दो लाइन कहेगा। उस समय तुम्हें अपनी आंखों में, अपने चेहरे में वह एक्सप्रेशन लाना होगा जैसी वास्तव में तुम्हारी आंखें भर आई हों ... ठीक ?
"हाय ! मतलब तुम मेरे हसबैंड और यह मेरा बॉयफ्रेंड ... लेकिन यहां तो ..", कहते कहते वह सत्य की तरफ देख कर लजाते हुए रुक गई।
".... नहीं मैं तुम्हारा हसबैंड नहीं तुम्हारा दोस्त हूं। तुमसे बातें कर रहा हूं तुम नैचुरली मुझसे हंसी मजाक में बाते कर रही हो बस ... तो तैयार सत्य ..? सीन समझ में आ गया ...", मैंने किसी कुशल डायरेक्टर की तरह उससे पूछा था।
"ओके सर.... गॉट इट...", सत्य में भी एक कुशल अभिनेता की तरह रिप्लाई दिया।
पूरा सेटअप तैयार कर लिया गया पीहू मेरी खाट पर मेरे नजदीक बैठ गई। सत्य पांच कदम की दूरी पर खड़ा हो गया। पीहू की पीठ सत्य की तरफ थी। लेकिन एक्शन कौन बोले ? उसका हल मैंने ही निकला। मैंने पीहू की चप्पल मंगल को पकड़ते हुए कहा, "तुम भईया जी के सामने खड़े हो जाओ और जैसे ही मैं हाथ दिखाऊं एक्शन करके एकदम से किनारे हट जाना ... ठीक है"
मैंने इशारा किया। मंगल ने दोनों चप्पल एक दूसरे पर तेजी से ठोकी और तेज आवाज में बोला एक्शन। पूरी बगिया चटाक की आवाज के साथ गूंज उठी। आवाज इतनी तेज थी कि एक पल के लिए हम सब सहम गए। लगा कान के पास कोई बड़ा फटका फूटा हो। जब समझ में आया तो हंस-हंस के बुरा हाल था। सत्य, पीहू यहां तक कि कमली और मैं अपना पेट पकड़ जोर-जोर से हंस रहे थे। सिर्फ मंगल कुछ ही दूरी पर खड़ा यह सोच रहा था कि उससे ऐसी क्या गलती हो गई ? उसने तो सब कुछ सही किया था ....
जब हम पेट भर हंस लिए तो मैंने मंगल को अपने पास बुलाया। उससे चप्पल ली और उसे समझाते हुए कहा, "बिल्कुल धीरे से ठोकना है, ऐसे। कैसे ... ऐसे, ... और एक्शन तो तुमने ठीक कहा बस थोड़ा सा आवाज कम। ठीक है न ...", मंगल ने किसी बंदर की तरह अपना सर हां में हिलाया।
लेकिन पीहू तैयार नहीं हो रही थी, "यार इतनी कॉमेडी के बाद यह सीरियस सीन मुझसे नहीं होगा .…"
"क्या पीहू ! आज तुम प्रूफ कर दो कि तुम बॉलीवुड से संबंध रखती हो ... यही तो एक्टिंग है, यही तो इसकी स्किल है ...", लगभग पांच मिनट बाद सीन का सेटअप फिर से हुआ। पीहू और सत्य दोनों ने कमाल का अभिनय किया, सीन फर्स्ट टेक ओके।
मैंने सत्य से पूछा, "अब किस लाइन में एक्ट करना है ?"
लेकिन सत्य कोई जवाब देता इससे पहले पीहू बोल उठी, "डायरी इधर लाओ मैं बताती हूं ...", कुछ देर पढ़ने के बाद उसने कहा, "यह लास्ट वाला ...."
तू प्यार किसी को करती होगी,
तो फिर कैसे करती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपना प्यार भूल गया हूँ,
जब से तेरे नयनों में,
खुद को बसते देखा हैं।
मैंने पीहू से कहा, "अब इस सीन को तुम खुद ही डायरेक्ट करो, जो भी सोच कर तुमने इसे सिलेक्ट किया वह तुम सत्य को समझाओ ..."
"हूं देखो ... जस्ट फील मेरी इनसे शादी हुई है, मैं इन्हें प्यार देने की कोशिश करती हूं लेकिन दे नहीं पा रही हूं .... क्योंकि इन आँखों में .... इन नजरों में तुम हो। मैं और शैल पास बैठे एक दूसरे से प्यार भरी बातें कर रहे होंगे, मेरा हाथ इनके कंधे में होगा और तुम उस तरफ से पोयम पढ़ते हुए आओगे और शैल के पीछे यानि मेरे ऑपोजिट बैठोगे। मेरी तरफ देखते हुए जब तुम अंतिम की तीन लाइन पढ़ रहे होंगे तब मेरी नजर इनकी तरफ से धीरे धीरे हट कर तुम्हारी तरफ जाएगी और अंतिम लाइन में मेरी नजरों में तुम होगे ... ओके समझ गए न ..."
"वंडरफुल !!! क्या इमेजिनेशन है ... मानते हो न, मेरी पीहू बहुत इंटेलिजेंट है ? ... इस पोयम के लिए क्या सीन दिया है ..."
मैंने प्रशंसा भरी नजरों से सत्य की तरफ देखा था, "ऑफकोर्स ... आफ्टर ऑल शी इज योर ...!!"
सेटअप किया गया, मंगल एक बार फिर तैयार। कहानी वही थी किरदार वही थे। लेकिन अभिनेता बादल गए। सत्य मेरे किरदार को निभाने जा रह है। लेकिन मैं और पीहू ? दो ऐसे किरदारों को निभाने जा रहे थे जो यहां से कई किलोमीटर दूर अपनी रियल लाइफ में न जाने क्या कर रहें होंगे। मेरी इस सोच ने, दिल से उठते इस प्रश्न ने मुझे एक पल के लिए पागल और असमान्य कर दिया था। सत्य की तरह मेरे हृदय की बात भी मेरे चेहरे में दिखाई देने लगती है जिसे पीहू ने पढ़ लिया और उसने पूछा, "आर यू ओके ..."
"या ... ओके, लेट्स ट्राई ...", सहज होने की कोशिश करते हुए मैंने कहा।
यह सीन भी बहुत ही नेचुरल और शानदार ढंग से पूरा हआ। सभी ने ताली बजाई। लेकिन मैं जड़ था। पीहू ने मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए पूछा, "डायरेक्टर जी क्या हुआ, कमी रह गई हो तो दूसरा टेक लें ...?"
ख्यालों की दुनिया से बाहर आते हुए मैंने तकिया के पास से रखे हुए कुछ पैसे उठाए। सत्य को पीहू के पास बैठने को कहा, फिर दोनों पर न्योछावर करके मंगल को पकड़ा दिए। मंगल को भी उसके काम के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कहा और इनाम के तौर पर एक नोट अलग से थमा दिया।
अब बारी मेरी थी। मेरे दिल की बेचैनी हृदय की धड़कन सब कुछ एब्नार्मल हो चुकी थीं। मैंने बहुत कोशिश की मना करने की लेकिन मानने वाला कौन था। थकहार कर मैं अंत में कहा, "मैं भी एक्टिंग करूंगा और मैंने चुना दिलीप कुमार द्वारा अभिनित देवदास मूवी का एक सीन। जिसका डायलॉग मुझे हूँ-ब-हूँ याद था, "कौन कमबख्त है जो बर्दाश्त करने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूं कि बस सांस ले सकू ..."
पीहू के द्वारा विरोध दर्ज किया गया, मुझे पसंद नहीं है ये मूवी। यह कौन सी बात है की प्यार में महबूबा से शादी न हुई तो शराब पी-पी के मर जाओ, अरे जिंदगी में जीने के लिए बहुत सी वजह है। ... और उसे कैसा लगेगा कि कोई उसकी याद में शराब पी-पी के मर गया ? वह तो जिंदा जी मर गई न ।आपकी पसंद मुझे अच्छी नहीं लगी ..."
"बात तो सही है....", सत्य ने भी पीहू का साथ दिया, "कोई अपना सुनाओ .."
अब मैं उससे कैसे कहता कि मेरा किरदार तो तुमने निभा लिया मेरे दोस्त। और ईश्वर न करें की वास्तविक जीवन में मेरे किरदार का अभिनय तुम्हे करना पड़े। मैंने बात संभालने की कोशिश की, "तो चलो ठीक है, मैं इसे पॉजिटिव ढंग से रिप्रेजेंट करूंगा ... ओके ... डन.... मंगल कांच वाली गिलास और ब्लैक वाली बॉटल तो लाना ..."
सत्य ने फिर विरोध किया, "अब ये क्या यार ...!",
"रुको तो . ..", मैंने सत्य को समझाते हुए कहा, " फिलिंग्स लाने के लिए और सीन को परफेक्ट बनाने के लिए जरूरी है कि हाथ में कुछ हो...."
मैने मंगल की तरफ देखा, "लाओ मंगल तुम .... !"
मंगल ने वही किया। मैने ग्लास में ट्रिपल एक्स रम फुल भरी, तीन चार घूंट पी तो अंदर जल रही आग को और आग मिली। मैं कुछ और असामान्य हुआ। एक पल के लिए सोचा कि मुझे क्या कहना है, फिर मैंने मंगल को समझाते हुए कहा, "इस सीन में मै और तुम हैं ... तुम समझलो कि मेरे सेवक हो, मुझे बहुत चाहते हो ... मै जिस लड़की को चाहता हूँ, उसकी कुछ दिनों पहले शादी हो गई है, उस गम में मैं कुछ दिनों से लगातार शराब पी रहा हूँ। तुम रोज देखते तो हो लेकिन मुझे रोकने की हिम्मत नहीं कर पाते हो। एक दिन तुम हिम्मत जुटा के मुझसे कहते हो ... हूँ ... क्या कहोगे ?", मै कुछ सोचते हुए बोला, " ... हां तुम बस ये कहना ... सर जी किसको भूलने के लिए इतना पीते है ... जब मैं गिलास को अपने होठों में लगाऊं और जैसे ही एक शिप लूं तब मेरा हाथ पकड़ कर कुछ उदास ढंग से कहना है, कह लोगे न ?"
उसने हां में सर हिलाया।
"सत्य इस बार एक्शन तुम बोलोगे ... और देखो मंगल जैसे ही सत्य एक्शन बोलेगा मैं धीरे-धीरे गिलास को अपने होठों की तरफ ले जाऊंगा और जैसे ही एक शिप लूं तुम्हें मेरा हाथ पकड़ कर यही कहना है। कहो तो एक बार ..."
"सर जी किसको भूलने के लिए इतना पीते है ..."
"शाबाश !!!" .... फिर मैंने सब की तरफ देखते हुए कहा, "दोस्तों ऐसे क्या देख रहे हो, इस सीन को मेरी निजी जिंदगी से को-रिलेट मत करो। आई एम राइटर, डायरेक्टर एंड अलसो अ गुड एक्टर ..."
सभी के चेहरे में मुस्कान वापस आ गई। और पीहू तुम, मैं जो कुछ भी बोलूं जरा लिखते जाना। हो सकता है किसी कहानी में यूज कर लूं।
सीन सेटअप हुआ। मैने चारपाई के ऊपर पैर किए, तकिए में कोहनी टिका का बिल्कुल रिलेक्स लेट गया। एक हाथ में अधूरा जाम था। सत्य ने एक्शन कहा और मेरे हाथों में पकड़ा प्याला धीरे-धीरे मेरे होठों की तरफ बढ़ा, मैने एक शिप ली। मंगल मेरी चारपाई के नीचे घुटने के बाल बैठते हुए मेरा हाथ पकड़ उदास स्वर में बोला, "सर जी किसको भूलने के लिए इतना पीते हैं ..."
मंगल का पूछना था कि पांच साल पहले एक अधूरी कहानी का किरदार मेरे वजूद में सांसे लेने लगा। एक ऐसा किरदार जिसने 18 वर्ष की उम्र में एक लड़की को बेहद चाहा और उस लड़की ने अपने माता-पिता के सम्मान के लिए उसका त्याग किया।
फिर 23 की उम्र में उसकी शादी के मण्डप में पहुंचा ... विवाह की सारी रस्में देखी ... रोया ... टूटा और फिर नियति उसे इस जगह ले आई। बाबा, सत्य, पीहू, मंगल और कमली जैसे किरदारों से मुलाकात हुई।
मैंने अपने चेहरे में अधूरी ख्वाहिश, टूटे-बिखरे अरमान, और अपनी मोहब्बत से दूर एक आशिक के दर्द को पैदा किया जो कि मेरे लिए बहुत ही आसान था। फिर मैं थके-हारे हताश शब्दों में कहता गया और पीहू लिखती गई,
"कौन कमबख्त है जो उसे भूलने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूँ कि उसे और शिद्दत से याद कर सकूं।
मै तो पीता हूँ कि उसे अपने अंदर रोता हुआ महसूस कर सकूं ... इन चमकते हुए सितारों से कह सकूं कि इस दुनिया में तुमसे भी अधिक एक चमकदार सितारा है। यहां से उठ कर जाने की ताकत नहीं न ..... बस इन्हें देखता पड़ा रहता हूँ ... पीता रहता हूं। तब भी कुछ होश रह ही जाता है। ... होश से कह दो .... अब कभी होश न आने पाए ...
इसलिए पीता हूँ कि ..... इन बहती हुई हवाओ को अपनी मुट्ठी में कैद कर, उन्हें चूम कर, फिर इन्हीं फिजाओं में छोड़ कर कह सकूं .... कि जाओ उसकी रूह की चोट पर तुम मेरी तरफ से मरहम लगाना ... इस दर्द को कोई महसूस क्यूं नहीं करता मंगल ?
क्यूं सब कुछ बदल गया एक रात में .... वह शादी की राह पर चली ... और मैं बर्बादी की राह पर। क्यूं किसी की मर्जी के बगैर बारात सजाती है ? क्यूं शहनाई बजती है ? किसी को उसकी आँखो के आंसू क्यूं न दिखाई दिए ? ... क्यूं उसकी पीड़ा को किसी ने महसूस न किया ? और जो महसूस कर सकता था न मंगल ... उसे तन्हा एक कमरे में बंद कर दिया गया। .... मेरे ज़ेहन से वो क्यूं नहीं निकलती ?.... क्यूं मेरे दिल से उसकी याद नहीं जाती .... .... मैं उसे क्यूं नहीं भूल सकता .... हर पल उसकी याद क्यूं सताती है ? .... इन अश्कों में अब खुद का इख्तियार क्यूं न रहा ... क्यूं बहते हैं इन आंखों से ...
एक टूटे और जुदा हुए आशिक के दर्द को तू नहीं समझ सकता ..... जिसे तूने चाहा तेरे साथ है न। और हम ? हम दूर .... बहुत दूर इन महफिलों में हैं। जश्न-ए-महफिल क्या होती है, तू मुझसे पूछ मंगल ...
सुलगते हैं दिलों में अंगार, जलते हैं कुछ हसीं ख्वाब,
मुर्दे भी जहां सजते हैं, पहन दुल्हन के पोशाक ...!
चल ले चल मेरे भाई ... इन महफिलों से दूर ..... कहीं ऐसी जगह जहां मेरी रूह को सुकून मिल सके ... चल ले चल मेरे भाई ...
सभी चुप, एकदम शांत। मैंने उनकी तरफ देखते हुए अपनी दो फिंगर की कैंची चलते हुए कहा, "कट ..", परफॉर्मेंस अच्छी लगी हो तो ताली-वाली बजा दो, ऐसे हाथ जोड़े सुन रहे हो जैसे सतनारायण की कथा कह रहा हूं।
फिर सभी ने जोरदार ताली बजाई। सत्य ने कहा, " व्हाट अ नेचुरल परफॉर्मेंस ..."
"थैंक्यू ... थैंक्यू ...", मै खाट पर सामान्य ढंग से बैठते हुए बोला।
फिर सभी ने जोरदार ताली बजाई। सत्य ने कहा, " व्हाट अ नेचुरल परफॉर्मेंस ,..."
"थैंक्यू ... थैंक्यू ...", मै खाट पर सामान्य ढंग से बैठते हुए बोला। इसी बीच पीहू डायरी को मेरे नजदीक रख धीरे से मेरे सामने घुटने के बल जमीन पर बैठी और मेरा हाथ अपने हाथ में लेती हुई बोली, "मुझे नहीं लगा तुम एक्टिंग कर रहे थे ...."
"क्यों... ठीक से नहीं कर पाया क्या ... दूसरा टेक ... लेकिन वही सब बोलने के लिए तो अब डायलॉग रटने पड़ेंगे, क्यूंकि जो मन में आता गया बोलता गया था ... अब तो ...
उसने मुझे बीच में रोकते हुए कहा, "नहीं ... दूसरा टेक नहीं चाहिए .... एक्टिंग कुछ ज्यादा ही नेचुरल थी ... अब समझ में आ गया कि तिरते आंसू क्या होते है, इससे अच्छा तो रो ही लिए होते बॉयफ्रेंड ..."
सत्य ने भी पास आते हुए कहा, "एक्टिंग तो हमने भी की लेकिन तुम्हारे बोलने के अंदाज ने तो हमारी भी आंखों में आंसू ला दिए दोस्त, और खुद देखो तुम्हारी भी आंखें कैसे भरी हुई हैं ... क्या बात है दोस्तों से भी न कहोगे ?"
"अरे यार ऐसा कुछ भी नहीं है, बस एक्टिंग थी ... अब इसमें मेरी क्या गलती है कि मैं तुम दोनों से अच्छा एक्टर हूं ... क्यों मंगल ?", मैने हंसते हुए कहा।
मंगल तपाक से बोला, "जी, सर जी ..."
"हां मंगल चाचा तुम तो कहोगे ही ... उनके पक्के सुग्गा जो ठहरे .... हां में हां मिलाने के लिए। फिर उसने विषय बदलते हुए कहा, "मुझे आपकी पोयम आपके मुख से सुननी है ..."
"बिल्कुल सुना दूंगा ...", मैंने डायरी खोलते हुए कहा।
सत्य ने भी पीहू का पक्ष लिया, "हां बिल्कुल ... जिसने लिखा है उसके मुख से और अच्छी लगती है .."
"ये क्या तुम ऊपर क्यों बैठ हो, इतने बड़े राइटर की बराबरी में बैठते हो ? शर्म नहीं आती ? .... आओ इधर बैठो मेरे पास ...", उसने अपने बगल वाले पत्थर की तरफ इशारा करते हुए सत्य से कहा।
मैने सत्य को कहा, "जाओ .... तुम वही अच्छे लगोगे .... कुछ तो समझा करो यार ..."
मैंने अपनी डयरी में लिखी पोयम को फिर सभी के सामने पढ़ना शुरू किया। कविता के शब्दों के साथ-साथ मेरे चेहरे में आ रहे भावों को पीहू बड़े गौर से पढ़ने की कोशिश कर रहे थी। उसकी एक्स-रे नजरों से खुद को बचत-बचाता और दिल की बेचैनी को बीच-बीच में शराब के घूट में डुबोता मैं पढ़ रहा था ...
तू हंसती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपने ग़म भी भूल गया हूँ,
जब से तेरी इन आंखों में,
तिरते आंसू देखे हैं।
X
तू शरमाती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
खुद का रोना भूल गया हूँ,
जब से तेरे इन गालों में,
लुढ़के आंसू देखे हैं।
X
तू गाती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपने गीतों को भूल गया हूँ,
जब से तेरे ओंठो में,
विरह गीत सजते देखे हैं।
X
तू मुस्काती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनी मुस्काने भूल गया हूँ,
जब से तेरे गालों के,
गढ़ों को भरते देखा हैं।
X
तू रूठी होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनी किस्मत भूल गया हूँ,
जब से तेरी किस्मत को,
तुझसे ही रूठे देखा हैं।
X
जागी होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनी नींदें भूल गया हूँ,
जब से तेरी तकदीरों को,
गुम-सुम सोते देखा हैं।
X
सोती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनी राते भूल गया हूँ,
जब से तुझको प्रिय-बाहों में,
रातों को जगते देखा हैं।
X
तू रोती होगी तो कैसी लगती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपना हंसना भूल गया हूँ,
जब से तेरे अपनों को,
तुझ पर हंसते देखा हैं।
X
तू प्यार किसी को करती होगी,
तो फिर कैसे करती होगी,
अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपना प्यार भूल गया हूँ,
जब से तेरे नयनों में,
खुद को बसते देखा हैं।
जब मैंने कविता पूरी पढ़ ली तो एक बार सभी ने फिर से ताली बजाई और मुझे प्रोत्साहित किया। यह तय हुआ कि मेरी खाट मड़ैया के अंदर लगा दी जाए ताकि रात को ओस और ठंड से बचाव हो सके। कमली पास ही घर के अंदर सोएगी। और मंगल मेरे पास मड़ैया के अंदर लंबे से पत्थर में। सत्य और पीहू बाइक से वापस घर जायेंगे।
जब कमली, पीहू और सत्य चले गए तो मैने मंगल से कहा, "बताओ मंगल कितना टाइम हुआ होगा ?"
मंगल ने चंद्रमा की तरफ देखते हुए कहा, "ग्यारह और साढ़े ग्यारह के बीच होगा। सर जी आप भी भईया जी की तरह घड़ी पहना कीजिए न ..."
"मंगल तुम कहते तो ठीक हो, लेकिन ये सब बोझ लगता है यार, यूं कह लो साली ये जिंदगी बोझ लगने लगी है ....",
"अरे नहीं सर जी... ऐसा न कहिए ... क्या कमी है, पढ़े लिखे हैं, पैसा कमाते हैं ... और क्या चाहिए ..?", मंगल ने मुझे समझाते हुए कहा।
"हां मंगल तुम ठीक कहते हो .... और क्या चाहिए। अपना कुल्हड़ ला न ...", मैंने एक लार्ज अपने लिए बनाते हुए उससे कहा।
"सर जी पहले मड़ैया के अंदर आपके सोने-पड़ने की व्यवस्था कर दूं .... उसके बाद। अब चलिए उठिए ....", मंगल ने अधिकार पूर्वक मुझसे कहा।
" नहीं मंगल, मुझे अंदर घुटन होती है यार, मुझे यही पड़ा रहने दे ... कौन सी बहुत ज्यादा ठंड है। और कम्बल है न ... बस थोड़ी देर मेरे पास बैठ ...",
मंगल अपने कुल्हड़ के साथ मेरी खाट के पास बैठ गया। मैने बॉटल उसकी तरफ बढ़ाई और कहा, "जितनी इच्छा हो बना ले ..."
मंगल ने अपने लिए बनाई और दो घूट पीने के बाद बोला, "सर जी चंदा मामा कितने अच्छे लग रहे हैं न ?"
मैंने भी अपने पैग से दो घूट लिए, आसमान की तरफ अर्धचंद्र को देखते हुए बोला, "हां बहुत प्यारे लग रहे हैं, और दूर उस सितारे को जरा देख, चंद्रमा की इतनी तेज रोशनी के बाद भी वह कैसे चमक रहा है .... जानता है मंगल .... वह मेरा सितारा है .... देख तो मुझे कैसे प्यार से देख रहा है ... जैसे लास्ट एक्ट में पीहू ने सत्य की तरफ देखा था ... वो लास्ट की पोयम क्या थी, .... देख मै ही लिखता हूं और मैं ही भूल जाता हूं यार ..... हां याद आई ...".
मैने खोई-खोई सी आवाज में आगे कहा, "तू प्यार किसी को करती होगी ... तो फिर कैसे करती होगी .... मंगल .... ये मंगल .... बता न ..... वो प्यार उसे करती होगी ... तो फिर कैसे करती होगी ... कैसे करती होगी मंगल .... यूं कंधे में हाथ रख के ... जैसे पीहू मुझे .... नहीं ... नहीं करती होगी .... और करती भी होगी तो क्या ? हां मंगल तो क्या हुआ ? ...अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको ..... क्या मंगल ? अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको ....अपना प्यार भूल गया हूँ मैं ..... जब से उसके नयनों में .... फिर क्या था मंगल ? हां .... खुद को बसते देखा हैं .... ", और फिर मैं जोर से हंस पड़ा, और दिल खोलकर हंसता गया ...."
मंगल ! जानता है ? जब वह हंसती थी न, तो उसके गालों में डिंपल पड़ते थे यार ..… अब वह तो हंसना भी भूल गई होगी .... अब उसके गालों में डिंपल कहां पड़ते होंगे यार... भर गए होंगे न ... मंगल यार तू सुन .... वो तो यहां है नहीं न ... तो तू ही सुन .... वो मुस्काती होगी तो कैसी लगती होगी .... अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको .... कैसे फर्क नहीं पड़ता मंगल ? ... उसके लबों से .... उसके चेहरे से .... उसकी हंसी चली गई यार ..... तो फर्क पड़ता है न .... तो अब मैं भी नहीं मुस्कुराता ....अब तो खुद की मुस्काने भूल गया हूँ ....जब से उसके गालों के ....गढ़ों को भरते देखा हैं ....
"सर जी आपको लग गई है ...", मंगल ने एक घूट पीते हुए कहा।
"हे ! ... लग गई !! .… जब पी तू रहा है तो मुझे कैसे लगेगी ? ... देख ! मै तो नहीं पी रहा .... क्या तुझे नहीं मलूम मुझे शराब नहीं चढ़ती है .... अरे देवताओं का वरदान है मुझ पर .... देख अब पी रहा हूं .... ", मैंने गिलास खाली करते हुए कहा, "और डाल ..."
"सर जी बिना पानी मिलाए एक गिलास पहले ही पी चुके हैं .... अब रहने दीजिए ... ", मंगल ने बड़े ही अपनत्व से कहा।
"अच्छा ! बिना पानी मिलाए एक गिलास पी गया !! वेरी बैड ... कब ? .....यार मुझे तो कुछ याद नहीं ... चल मान लिया पी होगी ... पर थोड़ी सी और दे न ... ताकि मैं सो तो सकूं यार। ... अच्छा बता क्या स्लीपिंग टैबलेट्स का नाम सुना है ? ... अरे यार वही नींद की गोली .... वही समझ कर दे दे ... फिर मैं सो जाऊंगा ..."
मंगल ने फिर मेरी बात नहीं काटी। बॉटल को मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोला, "जितना मन हो बना लजिए ..."
मैंने कांपते हाथों से अपनी आधी गिलास भरी ... फिर मंगल से बोला, "अब थोड़ा सा पानी तो मिला दे ..."", मंगल जग से पानी डालने लगा, "अरे बस ... बस ... रुक, देखता नहीं छलक जायेगा ... छलकाए जाम ... आपके नाम ... आपके होंठों के नाम ... मंगल देखना तुम .... आज से बहुत साल बाद .... एक दिन मैं अपने उस सितारे से मिलने जाऊंगा और फिर उससे पूछूंगा .... बताओ मेरे दोस्त कैसे हो .... क्या हाल-चाल है ... सब ठीक न ? ... पीहू सही कहती है ... मुझे देवदास नहीं बनना है। मैं शराब पी-पी के नहीं मर सकता। वादा है तुझसे और अपने उस प्यारे सितारे से भी ..."
एक ही सांस में जाम खाली और मैं लेट गया। कुछ देर तक मेरी आंखों में वह सितारा चमकता रहा फिर रात के स्याह अंधियारों में कही खो गया ....
मंगल ओ मंगल सुन न ... सो गया क्या... एक और बना न .... अरे मुझे नहीं चढ़ेगी, देवताओं का वरदान है मुझ पर .... अच्छा चल मत बना .... लेकिन सुन तो ....
सोती होगी तो कैसी लगती होगी ..... अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको ..... हां मंगल अपनी राते भूल गया हूँ ..... जब से उसको प्रिय-बाहों में ..... रातों को जगते देखा हैं। सुना न मंगल .... अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको ....", मै अर्ध-बेहोशी में बड़-बड़ा रहा था ....
" ... मंगल ! ... मंगल !!.... ओ मंगल !!! चल यार एक आखिरी सुन ले फिर परेशान नहीं करूंगा। क्या वह भी जाग रही होगी ? .... कैसी लगती होगी मंगल ? मैं तो उसे देख भी नहीं सकता ..... वो जागी होगी तो कैसी लगती होगी ..... अब कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको .... देख मंगल मैं भी सोना भूल गया हूं ..... क्या किस्मत है यार हम दोनों की ... उधर वह जाग रही होगी ... और इधर मैं ! .... तुझे मालूम है मंगल किस्मत क्या होती है ? ..... अरे वही यार मुकद्दर, तकदीर ..... शुद्ध हिंदी में नियति ..... और अंग्रेजी में ? अंग्रेजी में क्या कहते हैं मंगल ? सॉरी, रॉन्ग क्वेश्चन टू रॉन्ग पर्सन .....
...... हां याद आया ...... डेस्टिनी ..... डेस्टिनी कहते हैं अंग्रेजी में। .... कहती है ... हमारा मिलना तक़दीर में नहीं था .... अरे नहीं था तो नहीं मिले न .... तो क्या बड़ी बात हो गई ? ... है न मंगल ?.... कोई बड़ी बात नहीं हुई ..... पीहू ठीक कहती है .... नहीं है जिंदगी में तो न सही .... तो क्या मैं शराब पी-पी के मरू ? जीने की और भी वजह हैं .... मेरे मां-बाप नहीं हैं क्या ?
लेकिन फिर भी मंगल ? अपनी नींदें भूल गया हूँ ..... जब से उसकी तकदीरों को .....गुम-सुम सोते देखा हैं .... सो गई उसकी किस्मत और .... मेरी भी ... मैं भी सो जाता हूं .... और तू भी सो जा .... गुड नाइट ...
रात के गुड नाइट की मॉर्निंग मेरे लिए सुबह सात बजे हुई। रात में व्हिस्की और रम का कॉकटेल हुआ, शायद इसलिए सुबह थोड़ा सा हैंगओवर अधिक महसूस हो रहा था। बाकी नींद पूरी हुई थी, क्यूंकि मैं बेसुध सोया था। कमली खेत के काम कर रही थी किंतु मंगल आसपास कहीं नहीं दिखा। मैं बिस्तर तह करके खाट के एक किनारे रख दिया। मेरा जूता और बैग मंगल पहले से ही मड़ैया के अंदर रख चुका था।
मैंने मटकी से एक लोटा पानी निकाला और अच्छे से मुंह-हाथ धोया। पिछले आठ दिनों में मैं इतना जान चुका था कि यदि रात की पूरी तरह उतारनी हो या फिर हैंगओवर को दूर करना हो तो सुबह थोड़ी - सी पी लेनी चाहिए। मैंने बैग खोल के देखा, विस्की और रम की अधूरी बॉटल बैग में ही थी और शेष मंगल की कस्टडी में होगी। सबसे पहले मैंने अपना हैंगओवर दूर किया और मढैया से बाहर आ गया। मैंने कमली को आवाज़ लगाई और उसके आने पर मंगल के बारे में पूछा। उसने बताया कि आज सब्जी वाले सब्जी लेने के लिए नहीं आए थे। फालतू में सूख जाती तो वह गांव की दुकानों में सब्जी सप्लाई करने के लिए गया है। वह खुद सुबह गाय बछड़ों का इंतजाम और घर की साफ सफाई करके पीहू के घर से आई है।
मैंने कमली को कहा कि तुम ऐसा करो मेरी खाट और मेरा यह बैग पंप हाउस के पास आम के पेड़ के नीचे रख दो। मैं वही नहाऊंगा। कमली ने वैसा ही किया। लगभग एक घंटे में मैं नहा-धोकर फुर्सत हुआ और बैग से एक मात्र साफ-सुथरे कत्थई कलर के पेंट और सफेद कलर की टी-शर्ट को पहनने के लिए निकाला। विस्की बॉटल में अभी भी एक चौथाई से कुछ अधिक थी मैने नीट ही दो घूट और ली, अब दुनिया पूरी तरह दिखने लगी। मैने कपड़े पहने और कल की तरह ही परफ्यूम लगाया। तभी मंगल और पीहू को एक साथ आते हुए देखा। मैं जब तक जूते पहनता वे दोनों मेरे नजदीक आ गए थे।
"गुड मार्निंग ...", पीहू ने पास आते हुए कहा।
"मॉर्निंग जी, कैसी हैं आप ?", मैंने कुछ मुस्कुराते हुए पूछा।
"वेल .... फाइन....", उसने भी जवाब दिया।
"इस तरफ कैसे आना हुआ ....", मैंने फिर से पूछा।
"कैसे आना हुआ !! मतलब ? यह मेरी बगिया है ... क्या नहीं आ सकती ...?"
"बिल्कुल आ सकती हैं .... सत्य नही है ...?", मैने फिर पूछा।
"वो सुबह छ: बजे आ के आपको देख गया, आप सो रहे थे ... इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया .... "
"अच्छा ! और अब कहां है ?"
"कल बताया था न कि घर के पास की नौकरी अच्छी भी और बुरी भी ... अभी कुछ देर पहले एक ट्रक वाला मैसेज ले कर आया था कि मेजमेंट ने तुरंत बुलाया है ... कोई ह्यूमन राइट्स का इशू है .... जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और चला गया ... ", पीहू उचक्कर चहरी की दीवार में बैठी हुई बोली।
"और बाबा तो होंगे न ...."
"हां है, वो बेचारे कहां जाएंगे !... अभी जाऊंगी तो खाना बनाऊंगी ... तीन लोगों के खाना बनाने में कितना टाइम लगता है ... मुश्किल से आधा घंटा ... अभी तो साढ़े आठ भी नहीं बजे होंगे ... जाऊंगी तो बनाऊंगी और गरमा-गरम खिलाऊंगी ...."
"मतलब आज मुझे खाने-पीने की व्यवस्था यही करनी पड़ेगी ...", मैंने कुछ मुस्कुराते हुए कहा।
"क्यों ? क्यों करनी पड़गी ! ", उसने आश्चर्य से पूछा था।
"अभी तो आपने कहा न कि तीन लोगों के खाना बनाने में कितना टाइम लगता है ... मैं तो चौथा हूँ ...", मैंने हंसते हुए कहा।
" अरे! मैने तो और दिनों के परिपेक्ष में कहा था ,...", उसने भी हंसते हुए कहा।
"परिपेक्ष .... वाह कितनी शुद्ध हिंदी ... इसी खुशी में कंद-मूल-फल तो खिलाओ मंगल इन्हें ...?"
"अरे हां मंगल चाचा, सलाद के लिए गाजर, मूली, शलजम, हरी मिर्च, धनिया की पत्ती तोड़ देना, घर में खत्म हैं ...", उसने याद करते हुए कहा।
मंगल चला गया। मंगल के जाने के बाद उसने मुझसे कहा, "मंगल चाचा बता रहा थे कि कल आप नशे में बहुत रात तक बड़बड़ाते रहे, अपनी पोयम को पढ़ते रहे और हां किसी लड़की का भी जिक्र कर रहे थे .."
"मै ? हो सकता है। यदि मंगल कह रहा होगा तो झूठ थोड़ी कह रहा होगा ... लेकिन मैं किस लड़की का जिक्र कर रहा था ? मुझे तो याद नहीं .... ", मेरे हृदय की धड़कने बढ़ गई।
"अपने कोई नाम तो नहीं लिया, लेकिन उससे कह रहे थे, मंगल यहां मैं जाग रहा हूं ... वहां वह जाग रही होगी ... वह हंसती थी तो उसके गालों में डिंपल पड़ते थे ... हमारा मिलना किस्मत में नहीं था .... पीहू ठीक कहती है, मुझे शराब पी-पी के नहीं मरना है ... और भी बहुत कुछ बताया उसने ... कौन है वह लड़की क्या नाम है उसका ....", उसने मेरे चेहरे पर अपनी नजर गढ़ाते हुए पूछा।
"ओह तो ये बात है ...", मैंने मन ही मन अपने आप को धन्यवाद दिया कि नशे में होने के बाद भी मेरी जुबान पर उसका नाम नहीं आया। अब मुझे फटाफट कोई कहानी बनानी थी क्योंकि जो सामने बैठी है ... वह कोई बेवकूफ और नासमझ लड़की नहीं है। यदि मुझे इसे विश्वास दिलाना है तो बात अंत में सिद्ध होनी चाहिए अर्थात प्रमाणिक होनी चाहिए।
मैंने उससे कहना शुरू किया, "यदि ऐसे ही बोलूंगा तो कहोगी कि झूठ बोल रहा हूं, मानती हो न कि पीने के बाद इंसान झूठ नहीं बोलता ? देखो थोड़ा सा रात का स्ट्रेच भी है और थोड़ा सा हैंगओवर भी है। तो इजाजत हो तो मैं एक दो घूंट ले लेता हूं और फिर समझाता हूं ...", मैंने उसके हां या न बोलने से पहले ही जल्दी दो घूट लिए, दिमाग की बत्ती तुरंत जली।
"देखो ज्यादा नहीं ! क्या कहा था कल ? ...", वह मुझे डांटते हुए बोली, "अब बताओ क्या सफाई देनी है ..."
"सफाई !!! क्या मैं किसी कटघरे में खड़ा हूं या फिर मैंने कोई जुर्म किया है कि सफाई दूं ... तुम कुछ इस तरह समझो यदि नशे में मैं तुम्हारा नाम ले सकता हूं तो यदि कोई लड़की होती तो क्या उसका नाम मेरी जुबान पर नहीं आता ? आता न ? इसलिए नहीं आया कि कोई लड़की है कि नहीं ... कल देवदास मूवी के सीन को जब मैं एक्ट करने वाला था तब तुमने कहा था न कि तुम्हे यह मूवी पसंद नहीं है ... कोई किसी के लिए शराब पी-पी कर मर जाए, अच्छी बात नहीं है ... तो एक्चुअली में कल मैं कैरेक्टर में ज्यादा घुस गया था, बहार निकल ही नहीं पाया .... और रही कविता की बात, तो तुम्हारी और सत्य की परफॉर्मेंस जबरदस्त थी, मेरी कविता के शब्दों को इतना अच्छा एक्सप्रेशन और इमोशन दिया तुम दोनों ने कि मैं काफी प्रभावित था। ये सब घटनाएं सबकॉसियस माइंड में बैठ गई, और रिफ्लेक्ट हुई ..."
उसके चेहरे की प्रतिक्रिया देखने के लिए मैं रुक गया। वह विश्वास और अविश्वास के झूले में झूल रही थी। उसके दिमाग में मैं शंका के बीज बो चुका था, अब उसे हवा-पानी और धूप देने की जरूरत थी। मैंने आगे कहना शुरू किया, "अच्छा एक बात और .... सबकॉसियस माइंड से वही बात या घटना रिफ्लेक्ट हो सकती है जो मनुष्य के जीवन में कम से कम एक बार अवश्य हुई हो। मेरे सबकॉसियस माइंड को आपका नाम मालूम था तो आपका नाम रिफ्लेक्ट हुआ क्योंकि मैं आपको जानता हूं और उस लड़के-लड़की को नहीं जिसकी कहानी कल सुनाई थी, दिमाग को सिर्फ कहानी पता थी, नाम नहीं। क्योंकि मेरे वास्तविक जीवन से उसका कोई संबंध है ही नहीं। इसलिए मेरे सबकॉसियस माइंड ने मंगल को पोयम से कनेक्टेड कहानी तो सुनाई लेकिन नाम नहीं लिया .... दिमाग को मालूम ही नहीं था .... जस्ट सिंपल यार ... इटस साइंटिफिक फेक्ट ..", मैं फिर रुका यह देखने के लिए कि फसल अच्छी हुई है कि नहीं। और मुझे देखकर यह संतुष्टि हई कि फसल बिल्कुल लह-लहा रही थी।
उसने खोए-खोए स्वर में कहा, "हां ... यही हुआ होगा ...!!"
मैंने उसे फिर टोका, "हुआ होगा नहीं ... हुआ है, प्लीज करेक्ट इट..."
तभी मंगल एक छोटे से झोले में सभी सामान लेकर हाजिर हुआ, "ले जाएंगी कि मैं पहुंचा दूं ...?"
झोला खोलकर देखते हुए उसने मंगल से कहा, "मिर्ची है न ..."
"हां है ... क्यों ?", मंगल ने पूछा था।
"तुम्हारे सर जी को खिलानी है .... बहुत सुग्गा जैसे बोलने लगे है ... और झूठ भी ...", फिर उसने मुझसे पूछा, "कैरेट खाओगे ..."
"जी बिल्कुल...",
उसने चार कैरेट निकाल के अपने हाथ में लेते हुए मंगल से कहा, "लो इस झोले को सर जी के बैग में ही एडजेस्ट करके डाल दो ..."
मंगल ने जैसे ही झोला खोला तो मुझे अचानक याद आया, "यार मगल कपड़े धोने वाली साबुन नहीं है क्या ? मेरे सभी कपड़े गंदे हो गए हैं सिर्फ यही बचा है जो पहन रखे हैं ... न हो तो कल वाले पैसे जो बचे होंगे उसी से लेते आना ...",
"मंगल चाचा तुम कपड़े बैग में ही रहने दो ... वही घर में धूल जाएंगे ...", वह मेरे पास आते हुए बोली, "अब चले ...?", और उसने मंगल के हाथ से बैग ले लिया और मुझे मेरे हिस्से की दो गाजर पकड़ा दीं।
मंगल हम लोगों को गेट तक छोड़कर वापस बगिया में चला गया। कुछ दूर चलने के बाद उसने मुझसे कहा, "कल कहा था न कि दिन में नहीं पीना है तो फिर क्यूं पी ... अब उसका भी कोई साइंटिफिक रीज़न है ...?"
"अरे यार तुम सवाल भी खुद ही करती हो और जवाब भी खुद ही दे देती हो ...", मैंने गाजर चबाते हुए कहा, "बिल्कुल है साइंटिफिक रीजन ... लेकिन वो मुझे नहीं मलूम। जस्ट प्रैक्टिकल की बात बता रहा हूँ, यह मान लो कि पिछले सात-आठ दिन का अनुभव है। .... जब रात को थोड़ा सा ज्यादा हो जाए तो सुबह थोड़ी सी ले लेना चाहिए ... रात का नशा उतर जाता है .... यदि तुम्हें भी ज्यादा हो गई हो तो तुम भी ...."
"नहीं मुझे कोई ज्यादा नहीं हुई, लगता है कि मैं तुम्हारे साथ दो-चार दिन और रही न तो मैं भी शराबी बन जऊंगी ....", उसने कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए मेरी तरफ देखा।
"शराबी नहीं शराबिनी ... प्लीज करेक्ट इट..."
"अभी तक तुमने मुझसे माफी नहीं मांगी ...",
"माफी ? वह क्यों मांगू..."
"तुम्हें समझ में नहीं आता कि मैं तुमसे नाराज हूं, कैसे बॉयफ्रेंड हो ...", उसने दूसरी तरफ मुंह फेरते हुए कहा।
"अच्छा ... अच्छा... अब समझा !! सुबह दो घूट पी ली, इसलिए नाराज हो ... अरे जी, बॉयफ्रेंड नासमझ होते ही हैं, उनमें हसबैंड जैसी समझ कहां ...? अब क्योंकि मुझे समझ में आ गया है तो आई एम रियली रियली एक्सट्रीमली सॉरी ...", मैंने अपना हाथ दिल पर रखते हुए कहा।
"अच्छा एक बात बताओ क्या सच में तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है ....", उसने फिर मेरे चेहरे पर अपनी नजर रखते हुए पूछा।
"दूर ....दूर .... तक नहीं है जी .... एक तुम ही बनी हो .... ", मैंने आह! भरते हुए फिर अपने दिल पर हाथ रखा।
"नहीं मैं तो हूँ ही, लेकिन मेरा मतलब उस टाइप से था ...", उसने मुझे समझाने की कोशिश करते हुए कहा।
"उस टाइप मतलब प्रेमिका ... ? यार तुम यह बताओ तुम मेरे और मेरी होने वाली प्रेमिका के पीछे क्यों पड़ी हो ... कभी सत्य से भी पूछा था ....?"
"हां पूछा था .... सच में, और उसने मुझे बताया भी ... उसकी एक गर्लफ्रेंड थी, कॉलेज में ... थैंक गॉड उसने उसे डंप कर दिया ...", हंसते हुए वह मुझसे बोली।
"बेचारा डंप हो गया था और तुम्हें खुशी हो रही है ,... वेरी बैड थिंकिंग ....", मैंने सीरियस होने का नाटक करते हुए कहा।
"हां सही मे ..... अब जरा तुम ही सोचो यदि उसने सत्य को डंप नहीं किया होता तो वह मुझसे कैसे मिलता है, मुझे क्यों चाहता ?", उसने फिर मुझे समझाया।
"हां यार ... तुम कह तो ठीक ही रही हो ...", मैंने उससे सहमत होते हुए आगे कहा, "अच्छा तो इसीलिए तुम्हें लग है कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड थी, जिसने मुझे डंप कर दिया और उसकी बेवफ़ाई में मैं शराबी बन गया ...?"
"मे बी, और नहीं भी, लेकिन तुम अच्छे हो तुम्हें भला कौन डंप करेगा ...!", उसने आत्मविश्वास जताते हुए कहा।
"अच्छा !! तो सत्य अच्छा नहीं है ? ..."
"मैने कब कहा ...?"
"मतलब सत्य अच्छा है फिर उसे डंप किया गया ? मेरी सुनो तो अच्छे लोगों की किस्मत एक जैसी ही होती है, हो सकता है कल को मेरी कोई गर्लफ्रेंड हो मतलब प्रेमिका वाली और वह मुझे डंप कर दे ..."
"नहीं करेगी ... लगा लो शर्त ,... ", उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया था और मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "अभी नहीं ... वह देखो सामने वहां इस हाथ की जरूरत पड़ेगी ... "
उसने मेरे साथ सामने देखा क्योंकि फसल की कटाई चल रही थी तो रास्ते में किसी ने फसल के कई गट्ठे रख दिए। चूंकि रास्ता अवरुद्ध हो गया था और आगे निकलने ने लिए खेत के अंदर से घुस के जाना पड़ेगा।
जब हम उसे जगह पहुंचे तो उसने अपना दाहिना हाथ खुद मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने चलते हुए उससे कहा, "यदि कोई किसी को छोड़ दे यानी कि डंप कर दे तो मेरी समझ से उससे नाराज़ हो कर उसे बददुआ नहीं देनी चाहिए ..."
"क्यों ...?"
"यार कोई किसी को यूं ही नहीं छोड़ता, होती हैं सबकी अपनी अपनी मजबूरियां ..."
"कैसी मजबूरियां ..."
"मेरी समझ से यदि कोई किसी को छोड़ने का फैसला लेता है तो उसकी चार वजह हो सकती हैं। पहली कि उसने जो आपसे एक्सपेक्ट किया था आप उसे पूरा नहीं कर पाए, दूसरी यह कि उसे आपसे बेहतर मिल गया, तीसरी उसके सामने कोई बहुत बड़ी मजबूरी आ गई और चौथी यह कि दोनों को कोई गलतफहमी हो गई है। पहले में कुछ गलती आपकी कुछ उसकी, दोनों ही एडजस्ट नहीं कर पाए।
दूसरी को बेवफाई या रॉन्ग चॉइस कह सकते हैं ... जरूरी नहीं कि आपकी पहली पसंद सही ही हो ... तो आपको अपनी आगे की लाइफ को ध्यान में रखते हुए खुद फैसला लेने का हक़ है ...."
"जरूरी तो नहीं ... दूसरा से अच्छा न मिले ? मिल गया तो ...?", उसने तर्क दिया।
"हूं मिल गया तो ... तो यदि संभव हो वही सही ... वैसे भी ये जीवन लगातार प्रयोग करते रहने का नाम है ..."
"लेकिन कहीं न कहीं तो रुकना होगा न, नहीं तो रिश्ते कैसे बनेंगे ?", उसने सवालिया निगाह से मुझे देखते हुए कहा था।
"कहा न कि यदि संभव हो, जहां रुकने में आपको अपनी भलाई समझ में आए तो रुक जाना चाहिए .."
"ओह ! और तीसरी ...?", उसने उत्सुकता से मेरी तरफ देखते हुए पूछा था।
"अब किसी की मजबूरी को क्या नाम दिया जा सकता है ? यदि आपको अंदाजा था की इस तरह की कोई मजबूरी सामने आएगी और फिर भी आप ने किसी से मोहब्बत की, उसे अपना होने का एहसास दिलाया तो आप दोषी हैं, और यदि सचमुच अचानक ही कोई मजबूरी सामने आई है तो फिर यह तो मुकद्दर की बात है ..."
"मतलब ? मैं समझी नहीं .."
"ओके, लेटस मी ट्राई टू एक्सप्लेन विद एग्जांपल ... यदि आपको पूरा विश्वास होता कि आप और सत्य के बीच के रिश्ते को बाबा कभी स्वीकार नहीं करेंगे ... और फिर भी आप सत्य को एहसास कराती कि आप उससे प्यार करती हैं, और बदले में उससे भी उसी तरह का प्यार चाहती और फिर एक दिन आप सत्य को कहती कि बाबा नहीं मानेंगे और उसे डंप कर देती तो यह गलत होता। मानता हूं कि प्यार होना या न होना हमारे हाथ में नहीं होता। लेकिन उसका इजहार करना तो अपने हाथ में होता है न ? यदि आपको किसी रुकावट की अशंका हो तो आप उसे बेशक एकतरफा प्यार कर लीजिए लेकिन उसे अपने प्यार में शामिल मत कीजिए। लेकिन जब आपने देख लिया की बाबा को कोई आपत्ति नहीं, तब आपने अपने आप को इस रिश्ते में लाना उचित समझा, और सत्य को अपने प्रेम की इंटेंसिटी का एहसास कराया। यहां आप बिल्कुल सही हैं।
"और चौथी ... गलतफहमी के बारे में ...", उसने कुछ मुस्कुराते हुए और मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"अब छोड़िए भी, आप मुझसे ज्यादा समझदार हैं सब जानती ..."
"नहीं ... बिल्कुल नहीं कहूंगी कि मैं कुछ नहीं जनती ... बहुत इनोसेंट होने का ढोंग नहीं करूंगी। लेकिन हर इंसान का दृष्टिकोण अलग-अलग होता हैं न ? और एक बात बता दूं ... हंसी उड़ाने के लिए राइटर नहीं कहती हूं ... जब मैंने तुम्हारी कहानी पेपर में पढ़ी तो मालूम पड़ा कि तुम्हारी डेप्थ क्या है। तो मेरी रिक्वेस्ट है कि जिस बात को शुरू किया है उसे पूरा करो ..."
मैंने कुछ मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा, "पहले तो तुमने मुझे जो मान-सम्मान दिया है, उसका मैं सदैव आभारी रहूंगा और वह जो देवदास वाली बात भी जो कल मुझसे कहीं थी मैं उसे हमेशा याद रखूंगा। ... तो ग़लतफहमी होने का कारण है एक दूसरे के प्रति विश्वास का न होना और कम्युनिकेशन गैप। कभी-कभी घटनाओं और परिस्थितियों को देखकर हमारे अंदर अविश्वास की भावना जागती है, जैसे कि हम दोनों ने सत्य के सामने एक दूसरे को बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड कहा। उसने इसे कैजुअल लिया ... मतलब हंसी मजाक में।
लेकिन इस वक्त वह आपका हाथ मेरे हाथ में देखकर आप पर अविश्वास करें और वह सचमुच आपको मेरी गर्लफ्रेंड मान ले या मुझे आपका बॉयफ्रेंड मानले और यह गांठ वह अपने अंदर ही लिए रह जाए आपसे कोई बात न करें, तो यह कम्युनिकेशन गैप हुआ और इसी से अविश्वास फलता-फूलता हैं .. जबकि हम दोनों की नियत साफ है, मुझे सहारे की जरूरत है और मित्र होने के नाते मुझे सहारा देना तुम्हारा धर्म है। यदि यह बात बिना कहे सत्य समझ जाए तो इसे कहते हैं विश्वास ...."
"वाव !! क्या बात है !! जितनी तारीफ की जाए उतनी कम, क्या फिलासफी है यार और क्या बेहतरीन सोच है ... रियली आई इंप्रेस्ड ...", उसने प्रशंसा भरी नजरों से मेरी तरफ देखते हुए कहा, "मैं इसीलिए कहती हूं कि तुम अपनी उम्र से कहीं ज्यादा मेच्योर्ड हो। इतनी मैच्योरिटी आई कहां से ?"
"अरे कोई फिलासफी नहीं और न ही कोई मैच्योरिटी है। यह रियल लाइफ है, बहुत कुछ देखता-सुनता रहता हूं। अब बात वही हो गई न कि शादी नहीं हुई तो क्या हुआ, बारातें बहुत सी देखी हैं .... और फिर लेखक होने के लिए प्रगतिशील चिंतन और जिंदगी के प्रति निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है ..."
तभी सामने से सत्य आता हुआ नजर आया। पीहू का हाथ मैंने अभी भी पकड़ रखा था। अभी मेरे और पीहू के बीच हुए वार्तालाप की टेस्टिंग सत्य पर होने वाली थी। सत्य ने नजदीक आकर मुझे सहारा देने की कोशिश नहीं की बल्कि वह पगडंडी पर खड़ा होकर पीहू से बोला, "पीहू जरा संभल के अच्छे से पकड़ना ..."
कुछ देर में ही हम दोनों सत्य के पास पहुंच गए। मैंने उसका हाथ छोड़ दिया। सत्य ने पीहू के हाथ से मेरा बैग अपने हाथ में लेते हुए पूछा, "आर यू ओक ? मैं बाइक ले आऊं घर से ?"
"नहीं यार ... बचा ही कितनी दूर है ... चलो पैदल ही चलते हैं। हा ..... पीहू बता रही थी की फैक्ट्री में अचानक ह्यूमन राइट्स का कोई इशू हो गया है... "
"हां यार ... कुछ मजदूरों ने कंप्लेन कर दी है कि माइंस में कुछ बेसिक सुविधाओं का अभाव है ... एक टीम आई हुई है। दोपहर को माइंस का इंस्पेक्शन भी करेगी। तब तक मुझे जाकर मजदूरों को समझाना है कि मैनेजमेंट उनकी असुविधाओं को दूर करने की कोशिश कर रही है, तब तक वे कोई गलत बयान न दे .... नौकरी के दस पचड़े होते हैं यार क्या बताऊं। ... पीहू चलो जल्दी से खाना पीना बनाओ, मुझे फिर माइंस जाना है, सॉरी यार मैं तुम्हें सही ढंग से कंपनी नहीं दे पा रहा हूं ... पीहू तुम ध्यान रखना ... देखो मेरे दोस्त को किसी भी प्रकार की कोई शिकायत न हो ....."
पीहू ने सत्य की तरह प्यार भरी नजरों से मुस्कुराते हुए देखा, "नहीं होगी .... ", फिर एक पल के लिए मेरी तरफ देखा जैसे उसकी नज़रें मुझसे पूछ रही थीं, "बताओ मेरा सत्य कैसा है ...", मैंने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा, "यही तो है राइट चॉइस बेबी अ...हा !"
पांच मिनट में ही हम तीनों घर पहुंच गए। पीहू ने फटाफट खाना बनाया। उसने सच कहा था, उसे रसोई घर में आधे घंटे से अधिक नहीं लगा और खाना बनाकर तैयार हो गया। रोटी-सब्जी, दाल-चावल, सलाद, अचार-पपड़, सभी कुछ। परफ्यूम की महक के कारण बाबा को शराब की महक नहीं आई और मैंने भी उनसे कुछ डिस्टेंस मेंटेन कर रखी थी। आखिर पीहू और सत्य के इंप्रेशन का भी सवाल था।
कुछ देर बाद टहलने के लिए हम लोग कच्चे मकान के पीछे आ गए और टहलते-टहलते उस शीशम के पेड़ के नीचे भी पहुंचे। मैंने सत्य की थोड़ी-सी खिंचाई करते हुए कहा, "तो जनाब इसी पेड़ के नीचे से उस खिड़की के दीदार होते थे ... ?"
"खिड़की के भी और खिड़की वाली के भी .... लेकिन ये रुको ! यह सब तुम्हें कैसे मलूम ...!! ओ .. हो तो तुम्हारी गर्लफ्रेंड ने बताया है ...", सत्य ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे यार कोई गर्लफ्रेंड नहीं है मेरी ... दोस्त है, वह तो यूं ही हम लोग हंसी-मजाक में एक दूसरे को कहते रहते हैं। तुम कोई गलतफहमी न पाल लेना ..."
"अरे कैसी बातें करते हो यार ... मैं जानता हूं ... लेकिन मुझे खुशी भी है यदि उसने तुम्हें बॉयफ्रेंड बनाया तो एक्चुअल में प्रमोशन तो मेरा हुआ न। कम से कम मुझे हसबैंड समझा तो ... मुझसे न सही तुमसे तो स्वीकार किया ... यार मैं सारी उम्र तुम्हें उसका बॉयफ्रेंड मानने के लिए तैयार हूं, बशर्ते तुम उसे मेरी वाइफ बना दो। किसी भी तरह से उसे कन्वेंस कर लो... देखो यार मैं जानता हूं मुझसे प्यार तो बहुत करती है .... लेकिन पता नहीं क्यों मुझसे सीधे स्वीकार नहीं करती।
.... हम लोग एक ही बेडरूम शेयर करते हैं। एक दूसरे के प्रति भले ही फिजिकल न हो, लेकिन बिल्कुल पति-पत्नी की तरह रहते हैं, बातें करते हैं, एक दूसरे का दुख-दर्द समझते हैं। यहां तक की एक दूसरे की बाहों में सोते भी है। ... खुद स्वीकार करती है कि जब मैं उसके साथ होता हूँ, तो वह बिल्कुल निश्चिंत और गहरी नींद सोती है। सच कहता हूं, एक नींद में उसकी सुबह होती है शैल। ...... बाबा को ऐतराज नहीं, न मेरे घर वालों को होगा। .... फिर भी पता नहीं शादी के नाम पर वह खामोश हो जाती है।
... फिर मैं सोचता हूं चलो हो सकता है एकदिन उसका इरादा बदल जाए। जब मुझसे प्यार करती है तो शादी किसी और से तो करेगी नहीं .... इतना मैं जानता हूं ..."
यह मेरे लिए चकित करने वाली बात थी। अभी तक मैंने सत्य और पीहू की बीच के संबंध को एक ही दृष्टिकोण से देखा था। यदि दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं तो निश्चित ही इनकी इंगेजमेंट हो चुकी है, और भविष्य में जल्द ही उनकी शादी होने वाली है। लेकिन लिव इन रिलेशनशिप ! वह भी बाबा की सहमति से साथ !! यह कैसे संभव हो सकता है ? ना तो बाबा इतने मॉडर्न दिखाई दे रहे हैं और ना ही सत्य और पीहू कैरक्टरलेस !! और भविष्य में भी पीहू की तरफ से सत्य को सिवाय प्यार के किसी भी अन्य संभावित संबंध की कोई सिक्योरिटी नहीं है ! फिर भी सत्य इसके साथ है, इस आशा के साथ कि कभी न कभी पीहू का हृदय परिवर्तित होगा और वह मान जाएगी !!!
मैं जब खुद उलझ के रह गया, और मेरे पास मेरे ही सवालों के कोई जवाब नजर नहीं आ रहे थे, तो सत्य को क्या रास्ता दिखाता ? प्रत्यक्षत: मैंने उसे समझाते हुए कहा, "कोई बात नहीं यार होगी कोई उसकी ,वजह, और मैं पूछूंगा भी तो क्या पूछूंगा ? जब वह तुम्हें बताने के लिए तैयार नहीं है, जबकि वह तुम्हें बेइंतहा प्यार करती है, तो फिर यह बात मुझसे कैसे शेयर करेंगी ? ... और जब तक वह कोई बात शेयर नहीं करती है तब तक मैं उसे कैसे कन्वेंस कर पाऊंगा ? ... फिर भी सत्य मै पूरी ईमानदारी से कोशिश करूंगा ... सच कहता हूं तुमसे ..."
वह मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया, "थैंक्स यार, आई विश कि उसे कन्वेंस करने का कोई ना कोई रास्ता निकल आए। ... चलो तुम अटारी में आराम करना और मैं अब माइंस निकलता हूं, शाम को मुलाकात होगी।
सत्य अंदर चला गया, शायद पीहू और बाबा को अपने जाने की सूचना देने के लिए: और मैं धीरे-धीरे अटारी की सीढ़ियां चढ़ने लगा। चित्रलेखा पूरी हो चुकी थी। मैने शेक्सपियर की ओथेलो उठाई और बिस्तर में लेट गया। लगातार पढ़ता रहा। ओथेलो की पत्नी डेंसडेमोना और इयागो के षड्यंत्र के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी, विश्वास और अविश्वास की परिधि निश्चित कर रही थी। कुछ देर पहले मैंने जो पीहू से अविश्वास और कम्यूनिकेशन गैप की बात कही थी यह नाटक उसे सही साबित करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश कर रहा था। लगभग डेढ़ घंटे बाद पीहू मेरा बैग उठाए अटारी पर आई।
"क्या पढ़ रहे हो बॉयफ्रेंड ...", उसने मुस्कुराते हुए पूछा और धम्म से कुर्सी में बैठ गई, मैंने महसूस किया जैसे उसकी सांसे तेज चल रह थी।
"ओथेलो पढ़ रहा हूं और यह बताओ गर्लफ्रेंड, .... कौन सा मैराथन दौड़ के आई हो, जो इतना हाफ रही हो ...", मैंने मजाक में उससे पूछा।
"अरे यार कुछ नहीं बस ऐसे ही घर के काम थे, मैंने सोचा निपटा लिया जाए फिर तुम्हारे साथ बैठते हैं। पूरी पढ़ ली ?", उसने तेजी से सांस लेते हुए मुझसे पूछा।
"नहीं पूरी तो नहीं पढ़ी पर आधे तक पहुंच गया हूं। .... अब क्या है न, मेरी इंग्लिश तुम्हारी जैसी तो अच्छी है नहीं, तो समझ समझ के समझना पड़ता है। ... पढ़ने में टाइम लगेगा ...", मैंने बुक की तरफ देखते हुए उससे कहा।
"आराम से पढ़ लेना यार, न पढ़ पाओ तो ले जाना; मैं सत्य से कह के दूसरी मंगा लूंगी। मैंने भी अभी थोड़ी सी पढ़ी है ... अब इसे किनारे रखो चलो कुछ बातचीत करते हैं। हो सकता है कल ज्ञान भैया आ जाएं और तुम चले जाओ .... फिर न जाने कब मिलना होगा "
मेरे लिए मौका था। मैंने सत्य से जो कहा था, उसे पूरा करने का, "मिलना क्यों नहीं होगा ? अरे जब तुम दोनों की शादी होगी तो क्या मुझे इनवाइट नहीं करोगे ?"
"हम दोनों की शादी होगी !! यह किसने कह दिया ? क्या सत्य ने ?", उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"अरे सत्य मुझसे क्यों कहेगा ? यह तो सामने दिखता है। तुम लोग एक दूसरे से प्यार करते हो और मैंने देखा कि बाबा को भी कोई आपत्ति नहीं तो फिर ...? एक मिनट, कहीं सत्य के पेरेंट्स की तरफ से तो कोई दिक्कत ? "
मैंने उसकी शादी की बात की और इधर पीहू खामोश और इतनी खामोश कि कुछ देर तक कोई बातचीत नहीं। मैंने ही बात को आगे बढ़ाया, "ये गर्लफ्रेंड !! बात क्या है कुछ तो कहो ? हो सकता है मैं कोई .... ?"
"अरे यार !! ऐसी कोई बात नहीं है, उससे प्यार करती हूँ तो शादी भी उसी से करूंगी, और हां तुम्हें जरूर बुलाऊंगी ... ठीक ?", उसने मुस्कुराते हुए कहा।
इस तरह से उसने संभावित किसी भी वार्ता को एक ही क्षण में समाप्त कर दिया। मेरे लिए दुविधा की बात यह होने वाली थी कि न तो मैं पीहू से कह सकता था की सत्य से मुझे कौन सी जिम्मेदारी सौंपी है, और ना ही सत्य को सच बता सकता था की किस तरह पीहू ने संभावित किसी भी वार्ता को समाप्त कर दिया है। यदि मैं ऐसा करता हूं तो निश्चित ही सत्य के हृदय को ठेस पहुंचेगी। यदि वह मेरी तरह संभावित किसी भी संभावना में जीना चाहता है तो फिर मैं उसे कैसे रोक लूंगा जबकि कभी मैं खुद को ही नहीं रोक पाया था।
मैं बिस्तर से उठा और खिड़की पर आ गया। खिड़की से बाहर देखते हुए मैंने उससे पूछा, "पीहू ! तुम खामोश क्यों हो ... ?"
पीहू मेरे पास आई और मेरे बगल में खड़ी हो गई। मेरे साथ बाहर देखते हुए बोली, "तुमने कहा था कि यदि हमें किसी रुकावट की आशंका हो तो किसी को अपने साथ रिश्ते में नहीं लाना चाहिए ? एकतरफा प्यार करो लेकिन उसे अपने प्यार में शामिल न करो ? अब मान लो यह गलती किसी से हो जाती है तो फिर वह क्या करें ? क्या इस गलती को सुधारने का कोई रास्ता है ? "
"नहीं ...", मैंने सपाट लहज़े मे कहा, "कुछ गलतियों को नहीं सुधर जा सकता और ना ही उनके लिए कोई मुआफी होती है, ऐसे गुनाह, साधारण गुनाह नहीं, गुनाह-ए-अजीम कहलाते हैं, इनकी सजा मिलती हैं। और केवल गुनाह करने वाले को नहीं उसको भी जिसके प्रति गुनाह किया जाता है ..."
"कैसे ..?", उसने अपनी नजर मेरे चेहरे में टीका दी।
"कभी-कभी इंसान को उसकी मासूमियत की सजा मिलती है। देखा जाए तो दोनों ही मसूम है। एक ने अपने प्रेम का इजहार किया यह उसकी मासूमियत ही है। यदि दूसरे ने उसके प्रेम को स्वीकार किया है तो यह निश्चित है कि वह भी उससे प्रेम करता था, तभी तो उसने स्वीकार किया। दोनों ही एक दूसरे से अपने प्रेम का प्रतिफल चाहते हैं, जो कि किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं स्वाभाविक है।
यह जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया अपराध नहीं है, लेकिन फिर भी ऐसे गुनाहों की सजाएं ही मिलती हैं। और मजे की बात ये है कि दोनों को ही मिलती हैं। वे जीवन भर एक दूसरे को नहीं भूल पाते है, कभी भी मूव ऑन नहीं कर पाते। हां दुनिया को दिखाते रहेंगे सब ठीक है, लेकिन अंदर से कुछ भी ठीक नहीं होता है।
एक कसक, एक टीस हमेशा रहती है। कुछ दृढ़ इच्छा शक्ति के होते हैं और इसे पार्ट आफ लाइफ समझ कर स्वीकार कर लेते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ कुछ कमजोर इच्छा शक्ति के भी होते हैं। जो या तो सुसाइड कर लेते हैं या फिर देवदास बन जाते हैं"।.... मैंने अंत में उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा था, "जो कि तुम्हें मंजूर नहीं ...?"
" हूं .... वो तो है .... मान लो तुम्हारे जीवन में कोई ऐसा फेज आए तो तुम क्या करोगे ?", उसने पूछा।
मैंने कुछ सोचते हुए और फिर उसकी तरफ देखते हुए कहां, "उस वक्त मैं तुम्हें याद करूंगा और देवदास बनने से बच जाऊंगा क्योंकि ये मेरी गर्लफ्रेंड को मंजूर नहीं .."
"और सत्य ? ... वो किसे याद करेगा ?", प्रश्न पूछते हुए उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। उसकी आवाज का कंपन यह बता रहा था कि यह पूछते- पूछते उसकी आंखों में आंसू जरूर आ गए होंगे। मैं चकित था कि आखिर पीहू के पूछने का अर्थ क्या है।
"ये इधर देखो ..… पीहू ... देखो मेरी तरफ .… ", मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसका फेस अपनी तरफ टर्न करना चाहा, लेकिन वह इस तरह जड़ खड़ी रही कुछ देर बाद उसके हाथ उसके चेहरे की तरफ गए जैसे कि उसने अपने आंसू पोछे हों।
"मैं भी क्या पूछ बैठी ... अरे ! सत्य को जरूरत ही क्यों होगी ? मैं रहूंगी न उसके साथ .... और फिर तुम भी तो होंगे न ? "
"अरे पागल ! यह भी कोई पूछने की बात है।", मैंने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा था।
मैं उसका मित्र हूं। यदि उसके दर्द को कम नहीं कर सकता तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं उसका ध्यान वहां से हटा दूं और मैंने यही करने की कोशिश की।
"पीहू ! थोड़ा-सा पानी ला दोगी .… प्यास लगी है ... और टाइम क्या हो गया होगा ...?"
"प्यार तो मुझे भी लगी है, रुको ... नीचे से मैं पानी भी लाती हूँ और घड़ी भी देख कर आती हूँ। ... ऐसा करो तुम भी क्यों नहीं चलते ... मैं तुम्हें अपना घर दिखाती हूँ ....", उसने मेरी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए कहा।
"ठीक है .... चलो चलते हैं ...", मैंने सीढी की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"वह मेरे आगे थी, और मैं उसके पीछे। सीढ़ी के पहले पायदान में पैर रखते हुए उसने मुझसे कहा, "दिक्कत हो तो मेरा हाथ पकड़ लो ..."
"नहीं कोई दिक्कत नहीं होगी एक तरफ दिवाल है न, उसी का सहारा ले लूंगा, तुम उतारो ...", मैंने उसे समझाते हुए कहा।
हम नीचे आए बाबा तख्त में सो रहे थे। सबसे पहले उसने मुझे पानी पिलाया और खुद भी पिया। फिर रसोई घर दिखाते हुए कहा, "ये किचन है, .... जानते हो शैल, सत्य बहुत अच्छा कुक है। सब्जियां तो बहुत ही लजीज बनता है ... और भी बहुत सारी चीज बना देता है ... बाबा से छुप के। ... वो क्या है न बाबा को पसंद नहीं है कि पुरुष खाना बनाए। ... कहते हैं मर्दों का खाना बनाना उचित नहीं है। ... बस इसी प्वाइंट पर वे बहुत ट्रेडिशनल हैं ..."
वह मुस्कुरते हुए यह सब बातें मुझसे शेयर कर रही थी। मैंने किचन को ध्यान से देखा। सभी चीज अपनी जगह पर साफ-सुथरी रखी हुई थी। मैंने प्रशंसा भरे शब्दों में कहा, "वेरी गुड .... तुमने रसोई को बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखी है ... रसोई ही क्यों पूरे घर को ..."
"थैंक्स, वैसे भी मैं बहुत सफाई पसंद हूं। थोड़ी-सी भी गंदगी हो जाए तो जब तक मैं उसे साफ नहीं कर लेती मुझे चैन नहीं पड़ता है..."
"वाह !! यदि तुम मुस्लिम होती तो मैं तुम्हारा नाम सफीना बेगम रखता....", फिर मैं जोर से हंसने को हुआ कि उसने अपना हाथ मेरे मुंह दबाते हुए रोका, "देखते नहीं बाबा सो रहे हैं ..."
चूंकि उसने मेरा मुंह दबा रखा था तो मैं कुछ बोल तो सकता नहीं था। मैंने अपना सर हां में हिलाया, और हाथ से इशारा किया कि छोड़ो।
"ओह सॉरी !! ...", उसने झट से अपना हाथ मेरे मुख से हटाते हुए कहा।
"क्या यार दम घोट के मार डालने का इरादा है क्या ...?", मैंने तेज-तेज सांस लेते हुए कुछ नाटकीय अंदाज में कहा।
"सॉरी कहां न, .... अब चलो पूजा घर दिखाती हूं ....", फिर मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया।
हमने पूजा घर को बाहर से ही देखा क्योंकि बिना हाथ पैर धोए पूजा घर में प्रवेश करना वर्जित था। पूजा घर को भी काफी अच्छे से मेंटेन किया गया था। देवी मां की एक चमकदार मूर्ति थी, शायद किसी महंगी धातु की बनी।
फिर वह मुझे लेकर बड़े मम्मी-पापा के कमरे में आई। एक बड़ी पलंग, लकड़ी का बना हुआ सोफा, जिसे तांत से बीना गया था, एक तरफ डबल बेड, उसके बगल से बड़ी आलमारी, दिवाल कवर्ड और सामने की दिवाल पर दो फ्रेम में फोटो। एक फ्रेम में बड़े मम्मी-पापा और दूसरे फ्रेम में ध्रुव की फोटो। वह कमरा भी साफ-सुथरा था।
उसी के जस्ट ऑपोजिट गैलरी के दूसरी तरफ उसके मम्मी पापा का कमरा था। परसों की रात मैंने इसी कमरे से पीहू और सत्य की आती हुई आवाजें सुनी थी। कमरे में पहुंचते ही मुझे अंदाजा हो गया कि दोनों कमरे की बनावट एक जैसी है। ठीक उसी तरह रैक, अलमारी, बेड, सोफा, ड्रेसिंग टेबल और सामने फ्रेम में फोटो। इन दोनों कमरों को देखकर कहीं से नहीं लग सकता था कि यह ग्रामीण परिवेश का बेडरूम होगा। दोनों ही बेडरूम काफी बड़े थे, सामान्य से कहीं ज्यादा। एक तरफ की दिवाल में अंदर की तरफ खुलती हुई बड़ी-बड़ी दो खिड़कियां। इस कमरे को देखकर मैंने अंदाजा लगा लिया कि यह बेडरूम अभी उपयोग में लाया जा रहा है। क्योंकि इस कमरे के सोफे में कवर लगे थे और गद्दियां भी पड़ी हुई थी।
मैं सोफे पर बैठ गया। मैंने इस कमरे की तारीफ करते हुए कहा, "पीहू ! लगता नहीं यह किसी गांव में रहने वाले व्यक्ति का बेडरूम है ... "
"सही कहते हो, लगभग 20 साल पहले बड़े पापा ने यह पक्का घर बनवाया था मुंबई में रहते थे न, तो सोच भी उनकी उसी तरह थी ...."
"मंगल बता रहा था कि तुम्हारी एजुकेशन भी तो मुंबई में ही हुई है ... "
"हां, जब मैं पढ़ने लायक हुई तो मेरे पापा भी बड़े पापा क साथ वही काम करने लगे थे ..."
फिर उसने अपनी फैमिली एल्बम दिखाई, जो हमारे बीच नहीं थे सिर्फ तस्वीरों में रह गए थे। सभी से उनका परिचय करवाया। परिचय करते हुए कई बार उसकी आँखें भर आईं। कुछ देर बाद हम कच्चे घर की तरफ आ गए। अटारी के जस्ट ऑपोजिट तरफ बने हुए कच्चे कमरे की तरफ इशारा करते हुए उसने बताया कि इसमें गाय बछड़ों के लिए भूसा और कुछ खेती में यूज होने वाले सामान रखें हुए हैं।
फिर हम बाहर गौशाला के पास आ गए। मैने उसे भी अंदर से देखा, वह भी काफी मेंटेन दिखा। उसी ने बताया, "इसकी साफ सफाई की जिम्मेदारी कमली और मंगल चाचा की है। जब कभी वो नहीं आ पाते तो मैं या फिर सत्य कर लेते हैं। अरे अब तो सत्य गाय दुहना भी सीख गया है, पहले नहीं आता था .."
"तुम्हे आता है ....?"
"और नहीं तो क्या ... उसे मैने ही सिखाया है ..", उसने गर्व से कहा। फिर गौशाला के द्वार पर एक जगह स्थिर खड़ी हो खिड़की की तरफ देखने लगी। जब कुछ देर उसी तरह स्टेच्यू बनी रही तो मैने पूछा, "क्या देख रही हो .... ?"
"देख रही हूँ कि मैं यहां से सत्य को खिड़की में कैसी दिखी रही होऊंगी... जानते हो उस बरसाती शाम में सत्य ठीक इसी जगह खड़ा था ... जब ऊपर मै खिड़की बंद करने आई तो ....
"उसे देख कर तुम रुक गई थी, फिर तुमने इशारे से पूछा ..."
"अरे तुम को तो सब मालूम है ...."
"क्यों नहीं होगा, कल ही तो तुमने बताया था ... याद करो ..."
ये तुम सुन-सुन के बोर तो नहीं हो रहे हो ?", उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"नहीं .... बिल्कुल नहीं ... बल्कि तुम और डिटेल में बताओ, हो सकता है, एक दिन मैं एक कहानी ही लिख दूं ...", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे वाह ! हम धन्य हुए ... तुम लिखोगे तो पक्का अच्छा ही लिखोगे ... "
"इतना विश्वास है मुझ पर ? ...."
"हां, है .... जो इतनी अच्छी पोयम लिख सकता है, जो अपने दर्द के साथ सामने वाले के दर्द को भी महसूस कर सकता है, वो नहीं लिख सकेगा, तो कौन ... ? कहानी का नाम क्या रखोगे ?"
"बच्चा पैदा हुआ नहीं कि बारहों की तैयारी !! पहले लिख तो लेने दो ... वैसे मुझे नहीं लगता कि किसी की रियल लाइफ पर कुछ लिखना चहिए.... एक सामान्य लाइफ में एडवेंचर, थ्रिल, फाइट, ड्रामा कहां होता है ? ... ऐसी कहानियों को कोई पसंद नहीं करता ... सब को फिल्मी कहानी चाहिए ....", कहते-कहते मेरे चेहरे में कुछ मायूसी छा गई।
"ये बॉयफ्रेंड ! ठीक है जो तुमने कहा मान लिया, लेकिन ऐसी कहानियों या कविताएं हमेशा के लिए होती हैं, क्यों कि इनमें ह्यूमन इमोशंस होता है। फेमस होने के लिए नहीं जो तुम्हें पसंद आए वो लिखना .… अपने लिए लिखना ...", उसने समझते हुए कहा।
"तुम ठीक कहती हो ... ध्यान रखूंगा ..."
"और देखो यदि कभी मेरी और सत्य की कहानी लिखना तो उसका टाइटल अजनबी रखना ... समझ लो इसी शर्त पर परमीशन दे रही हूँ ..."
"बिलकुल.... और तुम्हे डेडिकेट करूंगा .."
"नहीं मुझे नहीं ... अपने मम्मी-पापा को ... इस तरह मैं समझूंगी की मेरे मम्मी-पापा को भी समर्पित है ..."
"एक बात और पीहू, मैने अभी तक जो भी कहानियां लिखी हैं, फर्स्ट पर्सन में लिखी हैं, यानी कहानी का मुख्य किरदार अपनी कहानी खुद कहता है ... तो मैं पीहू बन कर लिखूं या सत्य ...?"
"तुम सत्य बन कर लिखना। इससे क्या है कि मुझे उसकी फीलिंग मालूम पड़ेगी ..."
"लेकिन वो मुझे अपनी फीलिंग बताएगा क्या ?"
"बताएगा, अंतर्मुखी स्वभाव का है न, थोड़ा समय लेगा लेकिन एक दिन सब बता देगा ...", उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा था।
"इस तरह लिखने पर तो कहानी में तुम अजनबी बन के रह जाओगी ..."
"अच्छा तो ऐसा करना जब तुम्हें ऐसा महसूस होने लगे तो तुम खुद एक किरदार बन जाना .... और तुम मुझे डिस्क्राइब कर देना ... वेरी सिंपल यार ... तुम तो अच्छी तरह से जानते हो न मुझे ...?"
"कहां जनता हूँ, बस कुछ-कुछ समझने लगा हूँ ..", मैने हंसते हुए कहा।
"अरे !... ये तो और अच्छी बात है, अपने किरदार को जानने से अच्छा समझना होता है, तभी तुम उसे अच्छे से लिख पाओगे ....", उसने भी हंसते हुए कहा।
"चलो शीशम के पेड़ के पास, वहां से भी देख लो कि सत्य को तुम कैसी दिखाई देती रही होगी ..."
"ओह ! वेरी गुड सजेशन....", फिर वह भागती हुई गेट तक पहुंची।
"रुको यार ... मैं तो ऐसे ही मजाक ...."
लेकिन वह गेट खोलते हुए बोली, "अरे आओ भी ..."
अगले ही पल हम दोनों शीशम के पेड़ के नीचे खड़े थे और वह एंगल बदल-बदल कर, कभी एड़ी उठा-उठा कर खिड़की की तरफ देख रही थी, "शैल ये तो काफी दूर है, मै यहां से सत्य को एक परछाई की तरह ही दिखती रही होऊंगी, है न ? तभी तो मैं सोचूं कि खिड़की में इतनी सुंदर लड़की को देख कर भी उसने एक बार भी हाय हेलो का इशारा तक न किया .."
"हां दूर तो है, लेकिन स्पष्ट न दिखने को और भी वजह हैं .... जैसे खिड़की में छड़, अटारी के अंदर बाहर की तुलना में कम उजाला ..."
"लेकिन वो तो मुझे स्पष्ट दिखता था ...."
"देखो मैं समझाता हूं। एश्यूम, सत्य तुमसे दस कदम की दूरी पर खड़ा है, और तुम चलनी अपने फेस के सामने कर उसे देख रही हो ....
"जैसे करवा चौथ में देखते हैं ....", उसने मेरी पूरी मदद करते हुए कहा।
"बिल्कुल ... तो तुम्हें सत्य जितना स्पष्ट दिखेगा तुम सत्य को नहीं दिखोगी ... अब समझ लो खिड़की वही चलनी है ..."
"साइंटिफिक रीजन .... है न ?"
"या साइंटिफिक रीजन ...", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी सत्य की बाइक आती हुई दिखाई दी। हमें पेड़ के पास खड़े देख कर उसने अपनी बाइक वहीं पर खड़ी कर दी, "अरे तुम दिनों यहां क्या कर रहे हो ..?
"कुछ नहीं यार, पीहू देख रही है कि तुम उसे यहां से कैसे देखते रहे होगे .... एक मिनिट रुको ... मुझे करेक्ट करने दो .... एक्चुअली यहां से ये देख रही है कि वो खिड़की पर कैसी दिखती है .... "
"मतलब ... अरे जब ये यहां है तो वहां कैसे दिखेगी ....", सत्य ने फटे मुंह से पूछा था।
"मतलब तुम अब इसी से पूछो....", मैं उनके बीच से एक किनारे होते पीहू की तरफ इशारा किया।
"वो सब बाद में ... सत्य आओ तुम यहां खड़े हो जाओ ...", और उसने जबरन सत्य की बाह पकड़ कर अपनी जगह खड़ा किया फिर वहां से भागती हुई बोली, "मै खिड़की से जब तक इशारा न करूं तब तक यहीं खड़े रहना ..."
"अरे ... पीहू !! देखो मुझे अभी ... फैक्ट्री भी ... ", लेकिन पीहू ने एक न सुनी वह धर की तरफ भागी। सत्य ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा, "भई ये सब क्या है ... ये कौन सी सनक चढ़ गई इसे ..."
"कुछ नहीं .… उसकी वही जाने ... तुम बस खिड़की की तरफ देखते रहो ...", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम भी यार .... मिले हुए हो ...", उसने भी मुस्कुराते हुए कहा था।
"वो .... देखो - देखो ....', मैने खिड़की की तरफ इशारा किया।
खिड़की में एक लड़की का साया उभरा। फिर खिड़की की छड़ पकड़े कुछ देर तक खड़ा रहा। फिर उसने आने का इशारा किया।
"चलो , कटघरे से बारी हुए ...", सत्य ने मुझसे कहा।
हम दोनों अटारी पहुंचे। हम और सत्य चारपाई पर बैठे और वह सामने कुर्सी पर किसी मास्टरनी की तरह।
"अच्छा सत्य ! तुमने मुझे खिड़की में खड़े देखा न...?", उसने पूछा और मैं समझ गया, क्लास हेज स्टारटेड।
"हां ... देखा ..."
"मै कैसी लगी ....?", वह बीच में ही सत्य की बात काटते हुए बोली।
"अच्छी ... बहुत ही सुंदर ... लाजवाब ..."
"जैसे कुछ डिस्क्राइब करो न ?", वह शोखी से कुछ रूठने का अभिनय करते हुए बोली।
सत्य खुश। वह भला ऐसा मौका कहां छोड़ने वाला था, "इस सूट में तुम बहुत ही प्यारी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ...
"और ....?"
"ये तुम्हारा दमकता हुआ चेहरा, सूरज की किरणों से और भी दमक रहा था ..."
"और ....?"
"तुम्हारे कान के टप्स की चमक चन्द्रमा को भी लज्जित कर रही थी ..."
"अच्छा !! और जी ....?", वह कुछ लजाते हुए बोली।
"और ये खुले हुए बाल और भी रेशमी लग रहे थे ....."
" हाय !! और ....?", वह कुछ और लजाते हुए बोली।
"और ....? हां ... ये तुम्हारी गहरी बादामी आंखे लगा कि मैं इनमें डूब ही जाऊं...."
उसकी ये बातें सुनकर मुझे तेजी से हंसी आ रही थी। मैने अपनी हथेली से अपना मुंह दबा लिया था। सत्य ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, "क्या हुआ, मैने कुछ गलत ...."
"ऊं हु ... गो ऑन ...", मन ही मन बोला, "बेटा तुम आज पिटोगे ..."
"अरे हां ये दुपट्टा तो ऐसे ...
"चुप ... बिल्कुल चुप ... झूठे ... वहां पर खड़े इंसान को खिड़की के पीछे खड़े इंसान की शक्ल तो अच्छे से दिखती न होगी, और तुम्हे मेरा दुपट्टा, कान के टप्स और तो और ये बादामी आंखे भी दिख गई। .... और इधर आओ ...", फिर उसने सत्य को खाट से उठा खिड़की के पास खड़ा करते हुए कहा, "कहा से आ रही सूरज की किरणें, बताओ ? और आएंगी कैसे 3 बज गए है, सूरज आंगन की तरफ पहुंच रहा है.... समझे .... तुम एक नंबर के झूठे हो ..."
फिर वो गुस्सा दिखाते हुए मुंह लटका के उदास कुर्सी में बैठ गई। सत्य ने मेरी तरफ देखा, मैने उसे आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया कि तुम कुछ देर चुप हो कर बैठे रहो बस।
लेकिन .... वह किसी राइटर का किरदार नहीं बल्कि पीहू का सत्य था। पीहू गुस्से में हो तो वह चुप रह लेगा। लेकिन पीहू उदास हो, रूठी हो और सत्य चुपचाप बैठा रहे, यह नहीं हो सकता।
वह पीहू के सामने घुटने के बल बैठ गया। फिर उसने उसकी दोनों हथेली अपने हाथ में लेते हुए उसकी तरफ देखते हुए बोला, "पीहू ... देखो मेरी तरफ ... देखो तुम्हे लगता है न कि मैने तुमसे झूठ बोला है .… तो देखो मेरी आंखों में।... देखो क्या इन आंखों में तुम न दिखाई देती हो ..? मैने तुम से कुछ भी झूठ नहीं कहा ... तुम मुझसे कितनी भी दूर रहो ... इन नजरों में तुम हमेशा रहती हो ... और जो नजरों में रहेगा वो हमेशा स्पष्ट ही दिखाई देगा। ... फिर भी यदि तुम्हे ऐसा लगता है कि मैने तुमसे झूठ कहा तो प्लीज माफ कर दो ? ... देखो मैं कान पकड़ कर माफी मांगता हूं ... प्लीज पीहू ... "
"हां सत्य कह लो अभी पास हूँ ... नजदीक हूँ .... तो हूँ तुम्हारी आंखों में .... जिस दिन दूर हो जाऊंगी न तो उस दिन ...."
"नहीं पीहू ! चाहे तुम मुझसे कितनी भी दूर रहो इन नजरों में तुम्हारी ही तस्वीर होगी ..."
"चाहे मैं ...", फिर पीहू ने सत्य की आंखों में देखते हुए एक झटके में पूछा, "मर ही क्यों न जाऊं ...?",
उसका पूछना था कि सत्य के चेहरे के भाव बदल गए। उसके मुखड़े की चमक कहीं खो सी गई। आंखे फटी की फटी रह गईं। वह किसी पत्थर के बुत की तरह उसका हाथ पकड़े उसी तरह जड़ बैठा रहा।
शरीर में कोई हलचल नहीं, हृदय में कोई स्पंदन नहीं। एक ऐसा शख्स मेरी नजरों के सामने था जो शायद सांसे लेना ही भूल गया था। उसकी ये हालत देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। पूरे बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। मेरी छठी इंद्री ने होने वाली किसी अनहोनी का आभास कराया। मैं उठा, सत्य के पास बैठते हुए उसके कंधे में धीरे से हाथ रखते हुए उसे पुकारा, "सत्य ! ..."
उसके चेहरे के भाव एक बार फिर बदले। अब उसके चेहरे में मासूमियत थी, वो मासूमियत धीरे-धीरे करुणा में बदलती जा रही थी, और जब चेहरे में न समा सकी तो आंखों से एक धार बन के बह निकली।
जब कोई इंसान इस तरह बिना हिचकी लिए बिना सिसकारियां लिए रोता है तो समझना चाहिए कि कोई इंसान नहीं एक देवता रो रहा है। मैने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की "हे भगवान ! इन आंसुओं के सैलाब से पीहू को बचाना ..."
"सत्य तुम यहां से उठो, छोड़ो इसका हाथ ...", कहते हुए मै उसके हाथ से पीहू का हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा।
"तुम रहने दो शैल, ये जानती है और समझती भी है ... कि इसकी मौत की बात सुन कर मेरी क्या हालत होती है .... फिर भी ये अक्सर मरने की बातें करती रहती है .... तो सुनो पीहू !! अब तुम सुनो .... और जरा ध्यान से सुनो ...."
अंतिम शब्द सुन मेरी आत्मा कांप गई। मैने उसे एक बार फिर रोकने की नाकाम कोशिश की, "अब कुछ नहीं सत्य .... प्लीज चुप हो जाओ ... बेवकूफ मत बनो ... प्लीज.. रुक जाओ ...."
लेकिन सत्य ने मेरे बात सुनी ही नहीं, वह आगे बोला, "... अब इस जन्म में तुम मर कर देख ही लो कि मेरी इन आंखों में तुम्हारी सूरत रहती है कि नहीं। .... तुम्हारे बिना कैसे जीता हूँ। .... तुम्हे हर पल हर लम्हे याद रखता हूं कि नहीं. ... यह भी देख लेना। .... और जब तुम्हें यकीन हो जाए .…. तुम्हारी परीक्षा में पास हो जाऊं तो मिल लेना किसी जन्म में। ... लेकिन एक वादे के साथ उस जन्म में मै तुम्हे छोड़ कर जाऊंगा .... और मेरे इस जन्म के दर्द को तुम अपने उस जन्म में महसूस करना ... यदि दो जन्मों में भी बात न बने तो ये चक जन्म-जन्मांतर तक चलता रहे ... मै उसके लिए भी तैयार हूँ...."
"सत्य !!! ....", मै उसकी बात सुन कर जोर से चीखा था।
उसके कंधे को झंगझोरते हुए हताश स्वर में बोला, "तुमने ये क्या किया सत्य, ये क्या हो गया तुमसे ? .... ओह ! सत्य मै जिससे डर रहा था यार ... वही हो गया। ... बेवकूफ तुमने खुद अपने ही आप को कई जन्मों के लिए श्रापित कर लिया और ... और अपने साथ इसे भी। ... मै यहां आया ही क्यों ?... हे ईश्वर ! यही सब दिखाने के लिए मुझे यहां पर लाए थे ... ?"
मै खाट से टिक कर आंखे मूंदे कुछ देर चुपचाप बैठा रहा। कुछ देर बाद जब मैने आंखे खोली तो देखा पीहू की गोद में सत्य का सर था और उसके सर पर पीहू का सर, उसके दोनों हाथ सत्य के कंधे पर और उसके खुले हुए बाल सत्य के कंधे और पीठ पर बिखरे थे। सत्य हिचकियां ले-ले कर सुबक रहा था। और पीहू रोते हुए उससे बार-बार सॉरी कह रही थी।
मै उठ कर खिड़की के पास आ गया। छड़ पकड़ कर बाहर देखता हुआ कुछ देर वहीं खड़ा रहा। दोनों अभी भी उसी तरह बैठे थे। इसी खिड़की की इन्हीं छड़ों को पकड़े हुए कुछ देर पहले मैने पीहू से कहा था, " कुछ गुनाह, गुनाह नहीं, गुनाह-ए-अजीम होते हैं, जिनकी कोई मुआफ़ी नहीं ... और वो गुनाह इन दोनों मासूमों से हो गया। अब कुदरत यानी नियति तो पूरी ईमानदारी से अपना खेल खेलेगी।
सत्य तुम्हारे राइटर ने तुम्हे चुपचाप कुछ देर बैठने का इशारा किया था न ? काश ! मान लिया होता तो शायद .... नियति को कुछ और मंजूर होता। उसे तुम्हारी जुबान का सहारा तो न मिलता।
पर शायद तो शायद ही होता है न, वो होता कहां है। नियति तो अपना खेल खेल चुकी थी, वह अपने आपको कभी भी दोषी सिद्ध नहीं होने देती, वह हमारा ही सहारा लेती है।
और गर्लफ्रेंड तुम !! कहती थी न कि अपनी उम्र से अधिक मेच्योर्ड दिखता हूँ मैं ?... तो काश ! तुमने भी कुछ मैच्योरिटी दिखाई होती। अपने मृत्यु की बात क्यों छेड़ी बावजूद इसके कि तुम्हें अच्छे से मालूम था कि तुम्हारी मृत्यु की बात सुनकर सत्य पर क्या गुजराती है। तो लो अब तुम भी बन जाओ हमेशा-हमेशा के लिए मेच्योर्ड....!!
और मैं ? मै तो राइटर हूँ ... नियति जो लिखवाएगी वही लिखूंगा। किशोरा अवस्था में मेरे मैथ्स के टीचर ने एग्जांपल दे कर समझाया था कि किसी लाइन को बिना मिटाए छोटा करना हो तो क्या करना चाहिए ? उसके समानान्तर उससे भी बड़ी एक लाइन खींच देनी चाहिए। वही बात एक बार फिर प्रैक्टली मेरे सामने थी। मेरे दर्द के समानान्तर मेरे जीवन से कहीं ज्यादा बड़ा एक दर्द कुदरत ने ला खड़ा किया और कहा देखो तुम्हारे दर्द से भी बड़े इस दुनियां में दर्द हैं, और लोग उसे सहते भी हैं।
होनी तो हो चुकी थी, लेकिन इस राइटर को अपने इन दो किरदारों को लेकर आगे बढ़ना ही था। क्यूकि इस कहानी का ये अंजाम नहीं, इसे तो अभी और सफर तय करना था। मै सत्य और पीहू के पास घुटने के बल बैठ गया। धीरे से दोनों पीठ में हाथ रखते हुए बोला,
"इट्स ओके ... मै भी तुम दोनों से सॉरी कहना चाहता हूँ .... काश कि मैं यहां न आया होता तो शायद तुम दोनों एकदूसरे को यूं हर्ट न करते। इसके लिए तुम दोनों मुझे माफ कर दो प्लीज। और मेरे कहे पर तो बिल्कुल मत जाना, अरे यार ये कहानी-कविता पढ़-पढ़ के दिमाग पागल हो गया है। कुछ भी कह देता हूं। एक्चुअली में यार लिटरेचर की किताबों ने मुझे और पीहू दोनी को कुछ-कुछ साइको कर दिया है। ... अब देखो 21वीं शादी आने वाली है, और मैं बाते श्राप की कर रहा हूँ, ऐसा कहीं होता है, नहीं न ? ये गर्लफ्रेंड ! तुम भी तो कुछ कहो। अपने 'इनसे', अपने बॉयफ्रेंड की कुछ तो सिफारिश कर दो कि मुझे माफ कर दें ,.. प्लीज"
"हूं ... और नहीं तो क्या सत्य! हम इक्कीसवीं सदी में पहुंचने वाले हैं, ये श्राप-वराप कुछ नहीं होता, कर दो न मेरे ब्वॉयफ्रेंड को माफ। देखो तुम्हे अपनी ... वाइफ की कसम ...."
"हां सत्य ये कलजुग है, यहां अब श्राप का नाम बदल कर शराब कर दिया गया है, और वो लगने के लिए नहीं लगाने के लिए बनी है ... कहो तो निकालू ? बैग में है ... हूँ ... बोलो ..?", मैं उसे थोड़ा सा गुदगुदाते हुए बोला।
"तुम्हें माफ कर दूंगा, लेकिन इससे कहो एक बार फिर बोले ...", सत्य ने उसकी गोद में उसी तरह सर रखे हुए किसी बच्चे की तरह ज़िद की।
"हां ... बिल्कुल ... एक बार क्या अनंतबार कहेगी ....", मैने पीहू की तरफ देखा था।
"बिल्कुल कहूंगी ... और मानूंगी भी ... मेरे प्यारे हसबैंड ...मेरे पूज्य पति-परमेश्वर। अब देखो उठो भी। अपनी वाइफ को और मत रुलाओ ... प्लीज ..."
"जाओ शैल तुम्हे माफ किया ... और थैंक्स भी ..."
"सॉरी तो समझ में आया लेकिन यह थैंक्स किस बात का ...", मैं आश्चर्यचकित था।
"याद करो उसी शीशम के पेड़ के नीचे मैंने तुमसे कुछ कहा था, एक्चुअली मैं तुमसे मांगा था, और तुमने कहा था कि तुम पूरी ईमानदारी से कोशिश करोगे ... कंग्रॅजुलेशन तुम्हारी कोशिश कामयाब हुई।", वह मेरी तरफ देख कर थोड़ा सा मुस्कुराया था।
"ओह ! तो तुमने भी एक वादा किया था निभाओगे न ...", मैं उसे बॉयफ्रेंड वाली बात याद दिलाने की मंशा से बोला था।
"ऑफकोर्स मेरे दोस्त ! फॉरएवर .... मरते दम तक...", फिर खड़ा होते हुए बोला, "यार आज तो जश्न होगा ... कल तुमने बाबा को मनाया था आज मैं मनाऊंगा ... और देखो पीहू, खबरदार जो आज तुमने मेरे दोस्त को चाय पिलाई तो .... मैं तो कहता हूं तुम दोनों ही मत पीना। शैल खोल लो ढक्कन और इंजॉय करो। आफ्टर ऑल यू आर बॉयफ्रेंड ऑफ माय वइफ ... और डार्लिंग तुम भी साथ दो ..."
सत्य खुशी से पागल हो रहा था। फिर वह पीहू को गले लगाता हुआ बोला "थैंक यू पीहू ... थैंक यू। ... आज तुमने जीवन की सबसे बड़ी खुशी दे दी मुझे .... अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मंत्र पढ़े जाएं या सात फेरे हों। सभी रस्म-ओ-रिवाज से दूर तुम मेरी धर्मपत्नी हो और रहोगी। और मैं सिर्फ तुम्हारा रहूंगा हमेशा-हमेशा के लिए .... इस जीवन से उसे जीवन तक के लिए .... सदैव के लिए ..."
कौन कहता है कि सिर्फ राइटर अपने किरदारों को लिखते हैं। कभी-कभी किरदार भी अपनी कहानी खुद लिख लेते हैं। सत्य, जिसे अभी कुछ देर पहले दर्द में डूबे रोते हुए देखा, अब खुशी से पागल होता देख रहा था।
"पीहू मैं अभी फैक्ट्री गया और आया ... जरूरी ना होता तो ना जाता ... लेकिन तुम चिंता मत करना मैं अभी गया और अभी लौट कर आया। जब तक तुम बाबा और शैल का ख्याल रखना ... अब मैं जाऊं ?", उसने पीहू से जाने की इजाजत मांगी।
"चलो नीचे तक मैं भी चलती हूँ ...", फिर उसका हाथ पकड़ कर वह सीढ़ियां उतारी गई। मैं समझ गया था कि वे दोनों अपने लिए कुछ वक्त एकांत में चाहते हैं ... तो उन्हें देते हैं न। आफ्टर ऑल मैं इस कहानी का राइटर हूँ कोई जासूस नहीं कि पति-पत्नी के बेडरूम में झांक कर देखूं या फिर उनकी जासूसी करूं। और आप ? मेरे साथ इंजॉय कर सकते हैं तो कीजिए क्योंकि अब मैं बॉटल का ढक्कन खोलने वाला हूं। बैग में ग्लास और बॉटल दोनों हैं और पानी जग में रखा हुआ है। क्या चखना ? उसकी कोई विशेष जरूरत है क्या ? यदि हो, तो फिर पीहू का वेट कीजिए मैं तो नहीं करने वाला।
मैंने रम का एक सामान्य पैग बनाया और उसे लेकर खिड़की के सामने खड़ा हो गया। और धीरे-धीरे शिप लेते हुए बाहर देखने लगा। कुछ देर बाद ही सत्य को बाइक स्टार्ट कर फैक्ट्री की तरफ जाते हुए देखा। पीहू उसे गेट तक छोड़ वापस लौटें रही थी कि उसकी निगाह ऊपर मेरी तरफ पड़ी और मैने अपनी ग्लास उसे दिखाते हुए कहा, "चीयर्स ..."
वह अटारी की सीढ़ियां चढ़ते हुए कुछ उलाहना देते हुए बोली, "बस तुम्हें तो पीने का बहना चाहिए, अभी दिन भी नहीं डूबा और तुम शुरू हो गए !!"
"तो कह पीहू कह। मैं क्या करूं ...", मैं किसी उजड़े और बर्बाद आशिक की तरह नाटक करते हुए बोला, "मेरी गर्लफ्रेंड की शादी मेरी नजरों के सामने हो गई .... वह किसी और की हो गई । ... मैं कुछ न कर सका ... सिर्फ़ देखता रहा ! ऐसे आशिक का मर जाना ही बेहतर है ... उसे डूब जाने दे इन शराब के प्यालों में ... मिटा लेने दे उसे अपनी हस्ती इस जमीं से ... ताकि फिर मिल सके हम किसी रूहानी दुनिया में, या फिर किसी और जन्म में। ... जहां इस जमाने की बंदिशे न हों। .... हो किसी गांव की नई पगडंडियां, हों खूबसूरत गलियां। ... एक नया सूरज, .... एक नया चंद्रमा। इसी तरह ढलती हुई एक नई शाम ..... एक नई सुहानी रात। ... जहां हमारी मोहब्बत फिर से परवान चढ़े, जवान हो। ... पीहू ! ओह पीहू !!! यह तूने क्या किया ? .... पल भर के लिए अपने इस बॉयफ्रेंड के बारे में न सोचा !! .... कैसे जिएगा वह तेरे बिना .... हाय मैं कहा जाऊं .... तेरी ये बेवफाई देखने से पहले मर क्यों न गया ? ..."
आशा थी डांट पड़ेगी। लेकिन मेरी आशा के विपरीत उसने घुटने के बल बैठते हुए एक हाथ अपने दिल के पास और दूसरा हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, " ऐ मेरे दिलबर !! तू सच कहता है, तेरी महबूबा कहलाने के लायक ही न रही, लेकिन मेरी जान मुझे किन हालातो में यह फैसला लेना पड़ा, तू क्या जाने ? ... यह फैसला लेने से पहले तेरी इस दिलरुबा को कितनी बार मरना पड़ा, तू क्या जाने ? इसे या तो मैं जानू या मेरा रब जाने। ... तू सच कहता है ... चल मुझे भी मिटा लेने दे अपनी हस्ती इस ज़माने से ... ताकि हम मिल सके फिर किसी रूहानी दुनिया में .... इस आस्मां के पीछे .... चांद सितारों की दुनियां में। .... जहां न इस जमाने की बंदिशे होगी ..... न ये रुस्वाइंया। केवल हम होंगे..... और होंगी हमारी मोहब्बतें। ... ऐ मेरे लुटे आशिक ! दे मुझे भी ये जहर का प्याला ... इसे पीकर मैं भी तेरी बाहों में दम तोड़ना चाहती हूँ ...."
"ये नौटंकीबाज बस बहुत हुआ ... अब उठो ....", मैने अपनी हंसी रोकते हुए कहा।
" ऐ मेरे महबूब ! मेरी मासूम मोहब्बत को फरेब न समझ .... नौटंकी न कह ... कहीं ऐसा न हो कि तुझे दोज़ख की आग में जलना पड़े ..."
"उठो भी यार, मज़ाक छोड़ो ...", मैने खीझते हुए कहा।
"हाय ! मेरे दिलबर को मेरी पाक-संजीदा मोहब्बत मज़ाक नजर आती है ?.... या खुदा ! अब नहीं बर्दाश्त होता .... फ़ौरन मुझे उठा ले इस जहां से ...", इस बार वह उसने अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा।
"तो ले पी ! मेरी महबूबा पी, इस जहर के प्याला को मेरे साथ पी। दोनों ही इस दुनिया को अलविदा कहते हैं ..."।
"ऐ मेरे बर्बाद आशिक ! जरा ठहर, ... मुझे आखरी बार सजदा कर लेने दे, तब तक तू इस ज़हर को अकेले न पी जाना। ..... मेरे लिए भी ज़रा बचा के रखना ... ये मेरे महबूब मुझे पल भर की मोहलत दे ...", फिर वह अपने चेहरे में उसी तरह के भाव लिए सीढ़ियां उतर गई। मैं समझ गया कि वह बाबा के पूजा की तैयारी करने गई है।
मै वापस खिड़की की तरफ मुंह फेर कर खड़ा हो गया, फिर अनयास ही मैने ज़ाम खाली कर आसमां की तरफ देखते हुए कहा, "या मेरे रब ! दोनों जहां के मालिक !! मेरी बंदगी कुबूल कर, उनकी मोहब्बत को मेरी उम्र भी बख्श ...!! अमीन। "
लगभग आधे घंटे बाद वह वापस आई थी। तब तक मैं ओथेलो के कुछ और पन्ने पढ़ चुका था। उसके हाथ में सलाद और नमकीन की प्लेट थी। मेरे सामने छोटे से टेबल में रख कुर्सी में बैठते हुए बोली, "अब लाओ दो ..?"
"क्या ...?", मैंने अनजान बनने का नाटक करते हुए पूछा।
"ज़हर... मेरे महबूब जहर ..."
"बाबा जान गए तो .... ?"
"नहीं जानेंगे ...? वो पूजा घर में घुस गए हैं। अब एक घंटे से पहले बाहर नहीं निकलेंगे। तब तक सत्य आ जाएंगे और फिर वह सब संभाल लेंगे ..."
"बाबा से साजिश वह भी फुल प्रूफ ...", मैंने बैग खोलते हुए कहा।
"अरे ! तुम्हारी गिलास तो तुम्हारे पास है और मेरी ? मैं लेकर आती हूं ... ", वह कुर्सी से उठते हुए बोली।
"नहीं गर्लफ्रेंड बैठो तुम्हारी भी हमारे पास है ....", मैने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा।
"तुम्हारे पास दो ग्लास कैसे ?"
"एक ज्ञान की और एक मेरी, दोनों बैग में थी तो चली आई मेरे साथ ..."
"ओह ! ये मुझे चढ़ेगी तो नहीं ...?"
"नहीं बिल्कुल नहीं, कल वाली बात याद है न ?"
"हां ... याद है ... मैने पी ही नहीं ", उसने हंसते हुए कहा।
"बस तो चिंता नहीं ..", उसके लिए मैंने व्हिस्की का एक छोटा सा पैग बनाया और अपने लिए रम का। उसने मेरे पैग की तरफ इशारा करते हुए पूछा था, "यह मीठी वाली है न ?"
"हां ... "
"तो यही वाली मुझे भी दो न ..."
"मीठा जहर बहुत खतरनाक होता है, बहुत तड़पा तड़पा के मारता है ...", फिर जब मैंने वास्तविक कारण बताया तो वह मान गई और कल की तरह ही पहला पैग एक सांस में खींच गई।
मैने दो घूट ली फिर पीहू की तरफ प्रशंसा भरी नजरों से देखते हुए कहां, "यार तुम्हें तो कमाल की उर्दू आती है .... और कहती हो उर्दू नहीं आती ...?"
"जानते हैं यह सब मेरे बॉयफ्रेंड का असर मुझमें हो रहा है ... तारीफ करनी हो तो उसकी करो ..."
"कर लेंगे यार उसकी भी कर लेंगे पहले तो तुम यह लो ..",. मैंने एक नॉर्मल पैग उसे बनाते हुए कहा, "अब आराम से चाय की तरह ..."
"लेकिन सत्य में तो चाय पीने के लिए मना किया है ...", वह भोले पन से बोली।
"हां चाय के लिए मना किया, न कि चाय की तरह पीने के लिए .... बिल्कुल आराम से रिलैक्स हो के ... धीरे-धीरे एंजॉय करते हुए ...."
"ठीक .... अच्छा शैल ! तुमने सच कहा न कि ये श्राप- वारअप कुछ नहीं होता है ?"
"बिल्कुल सच कहा है ... और फिर बात विश्वास की है। तुम इसी जन्म में सत्य पर विश्वास रखो .... तो किसी और जन्म की जरूरत ही क्यूं होगी ? ... कंडीशन अप्लाइड यार ...", मैंने एक शिप लेते हुए उसे समझाने की कोशिश की।
"ओह थैंक गॉड !! ", वह रिलैक्स होते हुए बोली, "एक पल के लिए तो मैं भी डर गई थी ..."
"वो क्या है न पीहू !! मैंने भी अभी कुछ दिन पहले कुछ इसी तरह की कहानी पढ़ी थी, तो वही सब मेरे दिमाग में था। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता ...", मैंने उसे कन्वेंस करने के लिए कहां, "तुम ज्यादा मत सोचो ... "
"हूँ ... चलो ठीक है ...",
"ये सुनो ...", फिर वह एक झटके से बोली जैसे उसे कुछ याद आया हो, "तुम्हारी शर्ट कोहनी के पास से फटी क्यों है ? ... एक मिनिट ... एक मिनिट, अपनी कोहनी तो दिखाओ ....", क्योंकि मैंने टी-शर्ट पहन रखी थी, इसलिए छुपा भी नहीं सकता था। और उसे कब मेरा इंतजार करना था। वह उठी और मेरा हाथ पकड़ कर कोहनी को देखा।
"तुम्हे चोट लगी है। हे भगवान ! तुमने बताया क्यों नहीं ....", वह थोड़ा-सा इमोशनल होते हुए बोली।
"अरे कुछ नहीं, थोड़ी सी खरोच आ गई थी बस .... अब बिल्कुल ठीक है। देखो ज्यादा कुछ नहीं है, बस ऊपर ही थोड़ा सा लगा है, कोई गहरा घाव थोड़ी हुआ है ..."
"सही कह रहे हो न ? नहीं तो बोलो फर्स्ट एड बॉक्स रखा हुआ ... मैं लाती हूं और पट्टी कर देती हूं ..."
"अरे नहीं पीहू ठीक हूँ, और वैसे भी परसों लगी थी, अब तो लगभग ठीक हो गई है। एक्चुअली में परसों रात को जब मैं यहां से बगिया जा रहा था तो एक जगह गिर गया था, वही थोड़ी सी लग गई, फुल बाह की शर्ट थी तो इसलिए ज्यादा असर नहीं हुआ। जो कुछ होना था शर्ट का हआ होगा ...", मैंने बात को हंसी में उड़ते हुए कहा था ...."
"सच बताओ, कोई दिक्कत तो नहीं न ?"
"होती तो मैं कल ही न बता देता ?"
"कहीं तुम्हे बुरा तो नहीं लगा था ? वो क्या है न कि हमे बाद में फील हुआ था कि हमे तुम्हारे साथ कुछ और टाइम एक्सपेंड करना चाहिए था। और वैसे भी टाइम ही क्या हुआ था ... तुम्हें यूं अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था ...", वह कुछ भावुक होते हुए मुझसे कह रही थी।
"वास्तव में तुम दोनों अच्छे और सच्चे इंसान हो जो किसी के बारे में इतना अच्छा सोचते हो। वरना क्या जरूरत है किसी अजनबी के बारे में इतना सोचने की ? ...."
"नहीं बॉयफ्रेंड ! तुम हमारे लिए अजनबी नहीं हो ...", उसने पूरी ईमानदारी और अपनत्व से मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"यह अब महसूस हो रहा है न जब हम लोगों ने एक दूसरे के साथ टाइम एक्सपेंड किया, अपनी फिलिंग्स शेयर की ... एक दूसरे को समझने की कोशिश की ... एक दूसरे पर विश्वास किया ... पहले दिन तो कोई खास परिचय हुआ ही नहीं था। बल्कि मैंने रुडली बात की ..."
"हां ...!! मुझे तो नहीं लगा था ... और वैसे मैने भी कौनसी फूलों की माला पहना दी थी ...", कहते-कहते वह हंस पड़ी। फिर अपनी गिलास खत्म करते हुए बोली, "तुम भी खत्म करो और चलो मेरे साथ नीचे, बाबा के लिए जल्दी से खाना बना दूं ... तुम रसोई घर के दरवाजे के पास कुर्सी में बैठना, यहां अकेले क्या करोगे ..."
"चलो तो ठीक है चलते हैं ... ", मैंने भी अपनी खत्म करते हुए कहा।
हम बैठक में आ गए। बाबा पूजा करने व्यस्त थे। उसने एक थाली में एक छोटी सी लौकी और चाकू मुझे पकड़ते हुए कहा, "तुम इसे छिलो और काटो, मैं तब तक दाल चढ़ा देती हूँ, फिर दो चार रोटियां बना देती हूँ, उसके बाद सब्जी बना दूंगी, सब्जी पकेगी तब तक दाल फ्राई हो जाएगी ..."
हम दोनों ही अपने-अपने काम पर जुट गए। जब लौकी कट गई तो मैंने कहा, "पीहू ! अब जाऊं ..?"
"कहां जाओगे, यहीं बैठो ...?", उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"वो क्या है .... एक्चुअली ...", जब कह न पाया तो स्कूल के छोटे से बच्चे की तरह पीहू को बाएं हाथ की कनिष्ठिका दिखा दी।
वह अपनी हंसी रोकते हुए बोली, "बाथरूम ? वो उधर है ..."
मैं बैठक से आंगन में आ गया। देखा कि बाथरूम के पास तार में मेरे धुले हुए कपड़े सूख रहे थे। बाथरूम के ऊपर सप्लाई की एक टंकी रखी हुई देखी
और अंदर नल, शावर इत्यादि की पूरी सुविधा थी। मैंने लौटते समय अपने सूखे हुए कपड़े तार से निकाल लिए। रसोई के दरवाजे के सामने उन्हें पीहू को दिखाता हुआ बोला, "इसकी क्या जरूरत थी ... इसी लिए तुम दोपहर की हॉफ रही थी ... हूँ ...?"
"नहीं न ... और ये कौन सा बड़ा काम था, दो जोड़ी कपड़े धो लिए तो कौन सा एवरेस्ट चढ़ लिया। वो तो कभी कभी थकान लगती है ...", वह लापरवाही से बोली थी।
"देखो गर्लफ्रेंड! ज्यादा काम मत किया करो। अपने आप को रेस्ट भी दिया करो। कहीं ऐसा ना हो की दिल की कोई बीमारी लग जाए ...", मैं थोड़ा सा मुस्कुराते हुए कहा।
"वो तो कब का लग चुकी बॉयफ्रेंड ! वह भी ला इलाज ..."
"मतलब !!!"
"मतलब ?", फिर वह थोड़ा सा और मुस्कुराते हुए बोली, "समझा करो बॉयफ्रेंड ...."
"ओह ! .... समझ गया ....", मेरी नजरों के सामने सत्य का चेहरा आ गया।
"तुम इसे इसी कुर्सी में रख दो .... तुम अटारी में चलो, ओथेलो पढ़ो ... मै दस मिनट में आती हूं ..."
मै वापस अटारी में आ गया। एक पैग बनाया और एक शिप ले कर उसे चारपाई के सिरहाने रख दिया। फिर अलमारी से ओथेलो उठाई, बल्ब और पंखे का स्विच ऑन कर आराम से बिस्तर में लेट कर पढ़ने लगा। वह 10 मिनट नहीं बल्कि आधे घंटे बाद आई। उसके हाथ में मेरे तह किए गए कपड़े थे, मैंने ध्यान से देखा उनमें इस्त्री की जा चुकी थी।
"तो इसलिए टाइम लगा ... तुम्हें कितना भी समझा लो लेकिन तुम करोगी अपने मन का ही ... अब बैठो चुपचाप रिलैक्स ...."
"हाय ! मरजावां .... बॉयफ्रेंड हो तो तुम जैसा !! कितना ध्यान रखते हो अपनी गर्लफ्रेंड का ?", मेरा बैक खोलकर मेरे कपड़े रखते हुए उसने कहा।
"पीहू ! अभी मैंने ओथेलो पूरी की है। सोच रहा था, क्या ऐसा भी होता है ? इतना अविश्वास कि किसी की जान ले लो ?"
"यह दुनिया है बॉयफ्रेंड यहां कुछ भी होता है और होता रहेगा, वैसे स्टोरी क्या है ?", सामने कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा।
मैं नहीं चाहता था कि आज की शाम ख़राब हो। मैंने कहा, "कुछ नहीं यार ऐसे ही, तुम तो पढ़ ही रही हो न, तो पढ़ लेना ..."
"हां यार वही मैं भी सोच रही हूँ ....", उसने अपनी खाली गिलास की तरफ इशारा करते हुए कहा, "आज की शाम इन किताबों को रहने ही देते है, लाओ दो मैं इसे अलमारी में रख दूं ..."
मैंने उसकी गिलास में थोड़ी सी व्हिस्की डालते हुए पूछा, "बाबा की पूजा अभी भी चल रही है ..."
"हां बस थोड़ी देर में खत्म हो जएगी ... लेकिन अभी तक सत्य नहीं आया, डेढ़ घंटे तो हो गए होंगे ना यार ... ? ", उसने चिंतित स्वर में मुझसे पूछा।
"हां बल्कि मेरे ख्याल से 2 घंटे हो रहे हैं। आता होगा तुम फ़िक्र न करो। आने-जाने में भी तो टाइम लगता है न और कुछ समय फैक्ट्री में लगेगा ... मान के चलो आधा घंटा और ...",
पीहू में एक दो घूंट और पिया फिर गिलास को किनारे रखते हुए कहां, "टेलीफोन लाइन गांव तक तो आई है .... लगता है बाबा से कहकर घर में भी एक टेलीफोन लगवा लेते हैं। लेकिन लाइन की ही दिक्कत है, गांव से काफी दूर घर है न ...."
जैसे-जैसे बाहर शाम ढल रही थी वैसे-वैसे पीहू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अब न तो उसका मन पीने में लग रहा था और ना ही कुर्सी में एक जगह बैठे रहने पर। कभी वह खिड़की के पास जाकर खड़ी होती तो कभी बेचैनी से अटारी में टहलने लगती। फिर किसी न किसी बहाने नीचे जाकर गौशाला के पास खड़ी होकर सड़क को दूर तक देखती। मैं उसकी इन हरकतों को गौर से देख रहा था। यह है प्रेम की तीव्रता और यह तीव्रता जिसके लिए सर्वाधिक हो, वही है आपका प्रियवर। मैंने उसे समझाने की कोशिश की "चिंता मत करो, वह आ जाएगा ..."
लेकिन पीहू कहां मानने वाली। प्रत्यक्षत: उसने मुझसे कहा, "हां जानती हूँ .... ", फिर वह सीढ़ियां उतरते हुए बोली, "देख कर आती हूँ कि बाबा की पूजा खत्म हुई कि नहीं ..."
फिर कुछ देर बाद भागती हुई आई, "अब क्या करूं ? बाबा की पूजा भी खत्म हो गई है, वो अभी भी नहीं आया ? और मैंने थोड़ी सी पी भी ली है ..."
मैंने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, "तुम एक मिनट बैठ जाओ और जो मैं बोलता हूं वह ध्यान से सुनों.... तुम्हारे आचरण यानी कि बिहेवियर से बिल्कुल नहीं लग रहा है कि तुमने किसी भी प्रकार का नशा किया है ? सो जस्ट रिलैक्स। रही बात स्मेल की तो अपने कमरे में जाओ और कोई बढ़िया सा परफ्यूम डाल लो, और बाबा से दो-चार कदम दूर ही रहना वैसे भी इंग्लिश की है देसी नहीं जो दूर से महकेगी .... "
"मैं जानती हूँ कि यह देसी नहीं है, लेकिन फिर भी यार सत्य जाता तो अच्छा रहता न ... रुको मैं देख कर आती हूँ ...", वह कुर्सी से उठते हुए बोली। लेकिन तभी बाहर बाइक की आवाज सुनाई दी वह झट से खिड़की पर जाकर खड़ी हो गई, "आ गया .... शैल ! सत्य आ गया ... अब वह सब संभाल लेगा। मुझे अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है ... ", फिर उसने अपना बचा हुआ पैग उठाए और पी गई, "मै अभी आई ...."
मैने भी अपने लिए एक छोटा-सा बनाया और खिड़की पर आ खड़ा हुआ, बाहर देखा तो दंग रह गया। सत्य के साथ ज्ञान भी था। बाइक दो थीं। पीहू, सत्य और ज्ञान गौशाला के पास खड़े आपस में बातें कर रहे थे। शायद सत्य पीहू का इंट्रोडक्शन ज्ञान से करवा रहा था। कुछ देर बाद तीनों अटारी में पहुंचे।
"मेरी जान ! कोई दिक्कत ?", ज्ञान मुझे गले लगाते हुए बोला, "मेरे बगैर सुसाइड करने की तो नहीं सोच रहा था ..?"
"अबे साले ! तेरे लिए, वह भी सुसाइड ? किसी जनम में ट्राई तक न करूं, मरने की तो छोड़ ....", मैने उसे कस कर गले लगते हुए कहा।
"हां यार ! अपनी किस्मत उनके जैसी कहां ... ", उसने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा। ज्ञान के जस्ट पीछे पीहू खड़ी थी और उसके बगल से सत्य। ज्ञान के इस कथन ने पीहू के चेहरे के भाव बदल दिए। उसने तपाक से पूछा, "किसके जैसी ज्ञान भैया ?",
उसकी नजर मेरे चेहरे पर गढ़ी थी। यार ज्ञान क्या कर दिया तूने ? मैने धीरे से ज्ञान के पीठ में चिकोटी काटी। वह समझ गया। उसने पीहू की तरफ पलटते हुए कहा, "अरे बहुत फनी स्टोरी है बाद में बताऊंगा, पहले पानी-वानी तो पिलाई, प्यास लगी है ..."
फिर वह मेरे हाथ से गिलास लेते हुए बोला, "ला तब तक इसी से काम चलता हूँ ..."
सत्य ने पीहू को इशारों से कुछ कहा फिर ज्ञान से बोला, "यार तुम दिनों आराम से बैठो, मै अभी आया, थोड़ा बाबा से मिल लूं ..."
दोनों चले गए। मैने ज्ञान से पूछा, "मौसी जी के यहां से कहां कब लौटा ? ..."
"बस समझ ले दो घंटे पहले ... आया और बाइक उठाकर सीधे चला आया ... सोचा कहीं तू बोर न हो रहा हो ... यार तूने तो पहले से ही महफिल जमा ली है। .... चल भई मेरे लिए भी बना ... शादी के काम कर-कर के थक गया यार। और बता सत्य कैसा लगा ...?", उसने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।
मैं दोनों के लिए पैग बनाते हुए बिल्कुल गंभीर मुद्रा में बोला, " कौन सत्य ? बहुत ही सुंदर, सुशील, ज्ञानी, समझदार। सोचता हूं प्रपोज कर दूं ....",
वह हंसते हुए और मुझे हॉस्टल की फेमस गाली देता हुआ बोला, "साले .... (बीप), तो कर देना चाहिए था न, किसका इंतजार कर रहा था ..."
"तेरा ... (बीप), सोचा कहीं तू भी इंटरेस्टेड न हो ? पहला हक तो तेरा ही बनता है न ? तेरा फास्टफ्रेंड जो ठहरा, हम तो स्लो वाले हैं न ..? ", मैंने उसी के अंदाज में कहा।
".... (बीप), तो ये बोल न कि जलन हो रही है ..?", वह अपना पैग खींच नमकीन खाता हुआ आगे बोला, "तो इरादा क्या है ?"
"मतलब ?"
"चलने का ? .."
"तो चल न, मै कौन सा मायके में हूँ जान ..? जब कहे चल दूंगा .. देख बैग भी तैयार है ... अरे यार जाने से याद आया, मेरा पर्स तेरे घर में पैंट की जेब में ही रह गया है ? कुछ पैसे लिए हैं .... "
"हां लिए हैं न .... कितने ...?"
"एक हजार ..."
ज्ञान ने 500 के दो नोट मेरी तरफ बढ़ते हुए पूछा, "कुछ खरीदना है क्या ?"
"खरीद लिया ... दारू। ... पैसे पीहू से लिए थे, उसे लौटने हैं ...", मैने बताया।
"पीहू से !! उससे क्यों लिए, सत्य से ले लेता ? ... वो भी क्या सोच रही होगी ...?"
"एक ही बात है न ..."
"एक ही बात है !! मतलब ?", ज्ञान ने चकित सा पूछा।
उससे अधिक आश्चर्य मुझे हुआ। यदि सत्य ज्ञान का बेस्टफ्रेंड है तो ज्ञान को मालूम होना चाहिए था। लेकिन नहीं है, अर्थात सत्य ने उसे कुछ ज्यादा अभी तक नहीं बताया !! तो कुछ कारण होगा। यह उनकी निजी जिंदगी है और यदि किसी भी कारण से मेरे सामने आ गई तो अब मेरा फर्ज बनता है कि इस बात को मैं अपने तक ही रखूं । वैसे भी दोनों बेस्टफ्रेंड है, जब शेयर करना चाहेंगे तो कर ही लेंगे।
लेकिन बात तो यह भी है न कि सत्य ने ज्ञान को कुछ ना कुछ तो पीहू के बारे में बताया ही होगा। तो फिर किस स्तर तक ? जब तक यह न जान लूं तो ज्ञान से दोनों के संबंध के बारे में कुछ भी कहना गलत होगा।
मैंने उसके हाथ से रुपए लेकर अपनी जेब में डालते हुए बोला, "ज्यादा तो मुझे भी नहीं मालूम है, पर मुझे ऐसा लगा, और मैं गलत भी हो सकता हूं। वैसे भी जब मुझे पैसे की जरूरत थी तो सत्य घर पर नहीं था, तो उसी से मांग लिए । .... लौटा दूंगा ... सिंपल ”
"लेकिन यार एक बात कहता हूं, जो भी पूछना हो या शंका ही जाहिर करनी हो तो उसमें मेरा नाम कहीं भी नहीं आना चाहिए ... वो क्या है ना कि मान ले बात गलत साबित हुई तो मेरा इंप्रेशन खराब हो जाएगा .... यह उनकी निजी जिंदगी है।"
"ठीक है, तो तो तैयार न ? अभी चलेंगे तो अधिकतम 9 बजे तक घर पहुंच जायेंगे...
"अरे कहां जा रहो हो यार तुम दोनों...", पीछे से सत्य आते हुए बोला।
"कही नहीं यार घर जाने की बात कर रहा था ....."
ज्ञान की बात पूरी भी ना हुई थी कि सत्य बोल उठा, "आज कोई कहीं नहीं जा रहा .... समझे ! ... साले स्कूल के बाद हॉस्टल में रहने लगा। कभी कभार ही आता था। और अब जब इतने दिनों बाद एक साथ में टाइम बिताने का मौका मिल रहा है तो तू जाने की बात कर रहा है। और वैसे भी तेरे आने से पहले आज रात की पार्टी निश्चित हो गई थी ... तो अब जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है ..."
"पार्टी !! और वह भी तू दे रहा है ? भई कौन सी खुशी में ...?", ज्ञान ने आश्चर्य से पूछा।
"तू आम खा न यार, गुठलियां क्यों गिर रहा है,? तुझे पार्टी से मतलब है कि उसकी वजह से ...?"
"चल फिर भी तेरी पार्टी मुझे अटेंड नहीं करनी। साली पार्टी क्या होगी सब सूखा-सूखा होगा ? वैसे घर में बता के नहीं आया हूँ रुकने के लिए। चिंता करेंगे ... ", ज्ञान ने सत्य को समझाना चाहा।
"बस इतनी सी बात ... चल अभी। गांव से मैं फौरन फोन करता हूं। बात करता हूं आंटी से ... और रही बात सूखी-सूखी की तो समझ सब गीली-गीली होगी ...", फिर सत्य मेरी तरफ देखते हुए बोला, "तुम ज्ञान के साथ बाइक में बगिया निकल जाओ। मैं बाबा को डिनर करवा के पीहू के साथ आधे घंटे से आ रहा हूँ ..."
"अबे ! बाबा से तो मिला .... थोड़ा तो उनकी भी बंदगी कर ली जाए ना ..", ज्ञान कुर्सी से उठता हुआ बोला।
"एक मिनिट ...", मैंने बैग से परफ्यूम निकला और ज्ञान के ऊपर स्प्रे करते हुए बोला, "हो सके तो दो कदम दूर से ही बाबा की बंदगी कर लाइयो, ज्यादा गले मिलने की जरूरत न है ... अब जा मेरे मुन्ना राजा ..."
ज्ञान सत्य के साथ नीचे चला गया। बाहर अंधेरा हो गया था और साथ में अर्धचंद्र जी मुस्कुराने की कोशिश करने लगे थे। मैंने बैग खोल, सभी सामन को सेट करके रखने लगा। तभी मुझे कुछ याद आया। मैने डायरी के दूसरे पन्ने में उसी कविता की कॉपी की। कुछ देर बाद ज्ञान आया, "बहुत जल्दी दुकान समेट ली मेरी जान, एक-एक हो जाए फिर चले !"
मैं बैग से वापस रम की बॉटल और दोनों गिलास निकल लिए और उसके सामने रखते हुए कहा, "ले बना ले ! "
ज्ञान पैग बनाने में जुट गया और मैं उठकर खिड़की के पास आ गया। छड़ पड़कर बाहर देखने लगा। सामने गौशाला उसके पीछे से गुजरती कच्ची मुरूम की सड़क और उसके उस पार शीशम का पेड़। ये सभी चंद्र की मृदुल स्निग्ध ज्योत्सना में धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे।
"ओ राइटर ! कहां खो गया, ले पकड़ ...", ज्ञान ने मेरी तरफ गिलास बढ़ाते हुए कहा। मैंने उसके हाथ से गिलास थाम लिया और खिड़की के ऊपर रख दिया। ज्ञान कुर्सी पर जाकर दोबारा बैठ गया। मैं कुछ देर तक यूं ही खिड़की के पास खड़ा रहा, बाहर देखता हुआ। फिर मैंने धीरे से गिलास उठाई और खिड़की से बाहर हाथ निकाल कर उसे धीरे-धीरे उड़ेल दिया।
"ओए ! यह क्या किया !! छोड़ दी क्या !!!", ज्ञान कुर्सी से उठकर मेरे पास आते हुए बोला।
मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया था, "नहीं यार, कभी न पीने की कसम नहीं खाई है, लेकिन दो वादे किए हैं ?"
"वादे!! कैसे वादे ?", उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
पता नहीं क्यों मेरा रोने का मन कर रहा था और मैं पूरी ईमानदारी के साथ रोना चाहता था। मैंने ज्ञान को कसकर गले से लगाते हुए कहा, "कभी सुसाइड करने की कोशिश नहीं करूंगा। और दूसरी मैं कभी देवदास नहीं बनूंगा ..."
ज्ञान ने भी मुझे कसकर गले लगाते हुए कहा, "थैंक यू यार !! साले तूने तो मेरी जान ही ले ली थी ... अब मैं निश्चित हुआ ... अब चले ?"
"हां ... चल लेकिन एक मिनट", मैने अपना बैग खोला, डायरी निकाली। उसके चार पन्ने फाड़े, उन्हें अच्छे से तह किया फिर उस रैक के पास पहुंचा जहां पर पीहू की बुक्स रखी हई थीं। सांसों की तार उठाई और तह किए कागज को बुक्स के उन्हीं पन्नों के बीच दबाया जिसकी एक कविता मैंने पहले दिन पीहू को सुनाई थी -
औरों का धन सोना चांदी,
अपना धन तो प्यार रहा,
दिल से जो दिल का होता है,
वह अपना व्यापार रहा।
फिर दूसरे पेज में ज्ञान के द्वारा दिए गए पैसे दबा दिए। ज्ञान बराबर मेरी हरकतें देखा रहा था। मुझे पैसे बुक्स में दबाते देख वह बोला, "डायरेक्ट हाथ में दे देना, पता नहीं यह बुक्स पड़ती भी है कि नहीं ?"
"मैं जानता हूं सीधे वह कभी नहीं लेगी। और रही बात पढ़ने की तो कभी न कभी तो पढ़ेगी ही "
"और डायरी के पन्ने ? देख ...", फिर वह मुझसे दो कदम पीछे हटते हुए बोला, ".... देख मेरी बात को आदर्वाइज़ मत लेना .. यदि कोई लव एंगल हो तो मैं पीहू से ..."
मैंने उसे घूर कर देखा, "इसीलिए पहले ही दो कदम पीछे हट गया था न ...?"
"देख उन दोनों का वैसे भी मुझे कुछ क्लियर नहीं समझ आ रहा है, यदि कुछ होता तो सत्य मुझसे जरूर कहता ... समझ रहा है न ?"
"हूँ... बिलकुल समझ रहा हूँ। और देख यदि पार्टी में पीने के बाद तूने ऐसी-वैसी कोई भी हरकत की या कुछ भी दोनों से कहने की कोशिश की तो समझा ले इस दुनिया में या तो मैं रहूंगा या फिर तू ....."
"हां ... हां ठीक है न...वैसे एक बीच का भी रास्ता भी है, .... तलाक का ... अब चले ...?", वह मुस्कुराते हुए बोला।
पहली बार मेरे कदम कुछ-कुछ डगमगा रहे थे। अभी तो अपनी क्षमता की एक चौथाई भी नहीं पी तो फिर ये क्यूं ? सीढ़ियां उतरने के लिए मैंने ज्ञान के कंधे का सहारा लिया। हम बाहर आए।
ज्ञान ने बाइक स्टार्ट की। मैं बैग को अपनी गोद में रख पीछे बैठ गया, "रास्ता तो मालूम है न ?"
"हां थोड़ा आगे से बाएं तरफ की पगडंडी पर उतार लेना ...", मैं ज्ञान को समझाते हुए बोला।
कुछ ही देर बाद हम दोनों बगिया के गेट पर खड़े थे बाइक की रोशनी देखकर मंगल भागता हुआ आया, "सर जी ! आप आ गए ? ", फिर ज्ञान की तरफ देख मेरी तरफ देखा।
"इनका नाम ज्ञान है। मेरे और तुम्हारे भैया जी के बहुत अच्छे दोस्त। देखो मंगल इनके आने की खुशी में आज भी कल की तरह पार्टी होगी। तुम्हारे भैयाजी और पीहू भी आ रहे हैं ..", और फिर हाथ से इशारा करते हुए पूछा, "अपने दोनों नन्हे मुन्हें सुरक्षति तो हैं न ....?"
"बिल्कुल सर जी ! ज्ञान भैया आप बाइक को अन्दर ही लेते चलिए, मड़ैया के पास ही खड़ा कर दीजिएगा .... "
"ठीक है मंगल, तुम गेट बंद कर आओ ... "
कुछ देर में मंगल सामने खड़ा था, "मंगल एक और चारपाई का इंतजाम हो सकता है क्या ?"
"सब हो जाएगा ... पहले आप दोनों इसमें बैठिए ...", उसने मड़ैया से खाट बाहर निकलते हुए कहा। फिर कमली के साथ बगिया के पास ही बने अपने घर गया। जब लौटा तो एक खाट, दो प्लास्टिक की कुर्सी और एक टेबल का इंतजाम हो गया था।
उसने सभी को व्यवस्थित रूप से बिछाया। टेबल को लगभग सेंटर में रखते हुए बोला, "सर जी एक मिनट और ..."
कुछ देर में एक बड़ी सेठानी में कटी हुई सलाद और एक प्लेट में कल की बची हुई नमकीन रखते हुए बोला, "अब लाऊं सर जी ..."
"हां कुल्हड़ कितने है ...?"
"पर्याप्त हैं, और दो कांच की गिलास भी मिल जाएगी ..."
"ठीक है, अभी तुम अपने लिए ले कर आओ ..."
अगले ही पल वह अपने लिए एक कुल्हड़ और एक बोतल रम की लेकर हाजिर हो गया। तीन पैग बने और खत्म भी हुए। मंगल सलाद खाते हुए बोला, "सर जी! खाने पीने में क्या इंतजाम किया जाए ...?"
"रुको ! भैया जी को आ जाने दो फिर डिसाइड करते हैं ..."
"तब तक सर जी थोड़ी-थोड़ी और हो जाए ..?"
"आवश्य हो जाए ..."
दूसरा बना तो लेकिन उससे पहले ही सत्य और पीहू आ गए थे। सत्य को देखकर ज्ञान ने मंगल से कहा, "मंगल एक और ...."
लेकिन सत्य ने मंगल को रोक दिया और फिर ज्ञान से बोला, "यह सब तो चलता रहेगा यार, चलो पहले गांव चलकर तुम्हारे घर फोन कर लेते हैं ... और मंगल देखो घर से कुछ सामान लाया हूँ, खाने पीने के लिए। लो पकड़ो या झोला और आगे पीहू से समझ लेना .... चलो ज्ञान ..."
ज्ञान ने अपनी गिलास खाली की और उठता हुआ बोला, "चलो ..."
दोनों चल गए। मंगल ने पीहू से पूछा, "आज क्या बनाया जाए ...",
पीहू मेरी ही खाट में मेरे बगल से बैठते हुई बोली, "चावल धो के दस मिनट भिगो के रख दो। फिर उसके बाद पकाने के लिए चढ़ा देना। सब्जी क्या-क्या है ?"
"सभी हरी सब्जियां हैं ...", मंगल ने जवाब दिया।
"तो ले आओ ... पहले सब्जी काट लेते हैं फिर जब चावल पक जाएगा तो उसका पुलाव मैं बनाऊंगी अपने तरीके से। मंगल चाचा ! तुम कमली का ध्यान रखना उसे कोई दिक्कत न होने पाए। बराबर उसके साथ में रहना ...."
मंगल के जाने के बाद मैंने सलाद और नमकीन के प्लेट की तरफ इशारा करते हुए उससे कहा, "पीहू कुछ खाओ न ..."
उसने सलाद खाते हुए मुझसे पूछा, "बॉयफ्रेंड ! जा रहे हो ..."
उसकी आवाज में मुझे एक अजीब सा सूनापन महसूस हुआ। एक अनकही-सी उदासी। चेहरे में किसी अपने से बिछड़ने का दर्द। उसके मन के अंदर ही अंदर कुछ चल रहा था जिसे वह बार-बार अपनी फीकी मुस्कान के पीछे छुपा लेना चाहती थी। वह सलाद के एक टुकड़े को उठाती, उसे ध्यान से देखती, फिर मुंह में डाल धीरे-धीरे चबाने लगती। उसने अभी तक एक बार भी पीने की कोई फरमाइश नहीं की। मैं उसके इस मौन को तोड़ना चाहता था।
तभी मंगल हरी सब्जियां और चाकू मेरी खाट पर रखते हुए बोला, "सर जी सलाद और काट दूं ? खत्म हो रही है ...."
"हां जरूर ....", मैंने मंगल को इशारों ही इशारों में एक गिलास भी लाने को कहा।
मंगल अपना काम पूरा कर वापस कमली के पास चला गया। मैने पीहू की तरफ भरी हुई गिलास बढ़ाते हुए कहा, "लो ..."
वह गिलास से एक-एक शिप लेते हुए लगातार कुछ सोचती जा रही थी। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, "पीहू क्या सोच रही हो ...?
वह अपनी आंखों के कोर साफ करते हुई बोली, "कुछ नहीं ... बस ऐसे ही रोना आ रहा है ..."
खुद पर नियंत्रण पाने में उसे कुछ समय लगा। उसकी सिसकियां बंद हो गई और फिर उसने शांत मन से मुझसे कहा, "बॉयफ्रेंड! आज तुमसे मैं अपने लिए कुछ मांगना चाहती हूं, दोगे ?"
"हूं .... कहो !"
"पहली .... जब तक तुम हो, मेरे साथ रहोगे। वही करोगे जो मैं कहूंगी, बिना कोई सवाल पूछे। ... दूसरी तुम्हारी जिंदगी का सबसे हसीन और यादगार पल की एक्टिंग करना चाहती हूँ, बिल्कुल नेचुरल तुम्हारी तरह। तुम उसकी स्क्रिप्ट अभी लिखोगे, इसी वक्त। जब तक मैं सब्जी काट रही हूं ..."
फिर उसने अपने लिए व्हिस्की का और मेरे लिए रम एक फुल पैग बनाया। फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा "चीयर्स ..."
मैंने भी उसी के अंदाज में कहा, "इस बगिया के नाम, इन पेड़ पौधों के नाम, बहती हुई इन हवाओं के नाम, इस जमीं और आसमां के नाम, इस चंद्रमा के नाम, असंख्य सितारों के नाम, कमली और मंगल के नाम ...", फिर दोनों ने एक-एक शिप ली और शेष टेबल पर रख दिया और अपने-अपने काम पर जुट गए।
"पीहू ! दो सीन लिख रहा हूं, एक रोमांटिक, दूसरा थोड़ा सा सेड। तुल सिलेक्ट कर लेना .... तुम्हे जो पसंद हो ...."
"ओके ...", फिर वह सब्जी काटने में व्यस्त हो गई और मैं स्क्रिप्ट लिखने में। बीच-बीच में एकदूसरे को देखकर मुस्कुरा देते।
गहरे बादामी कलर का सलवार सूट जो उसकी आंखों से मैच करता था, चंद्रमा की इस खूबसूरत चांदनी रात में उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। मैंने प्रशंसा भरी नजरों से उसे देखते हुए कहा, "तुम्हारा यह सूट तुम पर बहुत अच्छा लग रहा है "
"अच्छा ! बहुत जल्दी ध्यान दिया ... तीन साल पहले पापा ने बर्थडे पर गिफ्ट दिया था ... सत्य को भी बहुत पसंद है, अच्छा है न ?"
"हां सचमुच बहुत अच्छा लगता है.... वैसे भी गोरे लोगों को डार्क कलर ज्यादा खिलता है ... रंग-रूप उभर कर सामने आता है ...."
"तुम्हें तो डायरेक्ट, राइटर और एक्टर के साथ-साथ
कॉस्टयूम डिजाइनर भी होना चाहिए था ...", वह हंसते हुए बोली।
"था नहीं हूँ... प्लीज करेक्ट इट ...."
लगभग 15 मिनट में उसका काम पूरा हुआ और मेरा भी।
"लाओ देखूं तो क्या लिखा ? ", उसने मेरे हाथ से डायरी लेते हुए कहा। फिर उसे ध्यान से पढ़ने लगी।
पहले सीन को पढ़ने के बाद उसका चेहरा कुछ उदास हो गया। उसकी उदासी को दूर करने के लिए मैने उसे दूसरा सीन पढ़ने के लिए कहा।
"वॉव!! क्या रोमांटिक सीन है, बॉलीवुड की किसी रोमांटिक मूवी जैसा ... क्या सचमुच ... हूँ ?"
"हूँ ... लेकिन थोड़ा सा एक चेंज है .. किस .... वो यहां नहीं यहां था ...", मैने सकुचाते हुए बताया।
"क्या सच में ...!! यू मीन ... नॉट ऑन द फॉरेहेड बट ऑन द लिप्स ... वह भी ... जस्ट एट्टीन .में..!! वॉव। .... देखो ... देखो तो कैसे शरमा रहे हो ... तो फिर चेंज क्यों किया ...?", उसने पूछा।
"सेंसर बोर्ड .... पीछे देखो ...", मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
उसने पलट कर देखा। गेट पर ज्ञान और सत्य दिखाई दिए। उसने डायरी मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा, "अभी इसे अपने पास रखो ..."
मैने डायरी को कल की तरह तकिया के नीचे दबा दिया। उन दोनों के पास आने पर मैंने पूछा, "बता दिया घर में ?"
"हां, दोपहर तक की मोहलत मिली है। यार इन गेस्ट से तो परेशान हूं मैं। शाम को कल गेस्ट आएंगे मम्मी ने कहा दोपहर तक पहुंच जाना ... पर जान ! रात अपनी है ... पर क्या बात है ... पैमाने अधूरे रखे है ....", ज्ञान सामने कुर्सी में बैठता हुआ बोला।
"तुम लोगों का इंतजार था ... "
"तो इंतजार खत्म हुआ। महफिल सजाई जाए, जश्न शुरू हो ..."
"जी आलमपनाह ! ....", मैने दो पैग बनाए और दोनों के सामने रख दिए।
"लेकिन इतना टाइम कहां लगा दिया ...?", मैने उत्सुकता से पूछा।
इसबार जवाब सत्य की तरफ से आया, "टेपरिकॉर्डर लेने घर चल गया था, देखा सेल खत्म थे, तो फिर गांव की दुकान चले गए ...",
फिर उसने टेपरिकॉर्डर और कुछ कैसेट्स
निकालकर टेबल पर रखते हुए कहां, "सोचा पार्टी में म्यूजिक न हो तो अधूरी लगती है ...?"
"चलो तो फिर लगाओ कोई .... मै अभी आती हूँ ...", पीहू उठते हुए बोली।
ज्ञान ने एक कैसेट लगाई। एक रोमांटिक गीत बज उठा, "छलकाए जाम आइए आपकी आंखों के नाम .... आपके होठों के नाम ..."
वाह ... वाह ... के साथ महफिल शुरू हुई। तीन दोस्त, चार जाम, तीन खाली हो रहे थे और भर रहे थे और एक अधूरा एक शिप पिया हुआ उदास उसी तरह रखा हुआ था। कुछ देर में मंगल आया, "भईया जी ... चावल पक गया, रोटियां बन रही है ..."
"तुम अपना कुल्हड़ लाओ और हां कमली के लिए भी ... ", मैने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा फिर उसके लिए दो लार्ज पैग देते हुए बोला, "इंजॉय ..."
तभी पीहू ने मुझे पुकारा, "ये शैल ! इधर आना ... मेरे पास ... आओ तुम्हे सब्जी बनाना सिखाऊं .."
आठ दस कदम पर ही दो चूल्हे जल रहे थे। एक में रोटी बनने की तैयारी हो रही थी। दूसरे में पीहू की कढ़ाई चढ़ी थी, तेल गरम हो चुका था। चूल्हे के पास रखे पत्थर में मै बैठते हुए बोला, "चलो तो सिखाओ "
"क्या ..?"
"अरे ... तुमने ही तो अभी बुलाया है ...", मैंने आश्चर्य से कहा।
"इसमें सीखने जैसा कुछ नहीं, देखते जाओ और सीखते जाओ। मैंने तो तुम्हें अपने पास बातें करने के लिए बुलाया है ... मेरी गिलास कहां है .... ", उसने पूछा।
"वहीं रखी है ... रुको मांगता हूँ.... ", फिर मैं मंगल को पास बुलाते हुए समझाया कि उसे क्या करना है। वह सब्जी बना रही थी और मैं देख रहा था। बीच-बीच में शिप और बातों का दौर भी। 15 मिनट में सब्जी पक गई, उसने सब्जी को कढ़ाई से एक दूसरे बड़े बर्तन में निकाल उसे खाली कर लिया।
फिर जीरा, हरी मिर्च, थोड़ी सी कटी हुई प्याज, और भी कुछ मसालों के साथ मिक्स वेज को अच्छे से भून लिया फिर पके हुए चावल को अच्छी तरह से उनमें मिक्स किया। थोड़ी देर बाद हल्दी और नमक मिक्स कर उसे धीमी आंच में पकने के लिए छोड़ दिया।
"चलो ! ... अब कमली और मंगल चाचा देख लेंगे ..", हम दोनों सत्य और ज्ञान के पास आ गए। यहां मंजिल सबब पर थी। टेपरिकॉर्डर में 1942 का गाना प्ले हो रहा था, "भीगी भीगी रुत में ..."
पीहू ने जिद करके सत्य के साथ थोड़ा सा डांस भी किया। सभी ने डांस पर ताली बजाई। मंगल भी ताली बजाता हुआ मुझसे धीरे से बोला, "सर जी ! कमली को ये वाली बहुत पसंद आई, थोड़ी सी और दे दूं ..?"
मैने उसे बॉटल देते हुए कहा, "ध्यान रखना, ये मीठा जहर हैं, आराम से ...."
थोड़ी देर बाद खाने का दौर शुरू हुआ। कल की तरह ही चटाई बिछाई गई। देशी धी, हाथ की बनी रोटी, मिक्स वेज और ढेर सारी सलाद और अंत में गरमा-गरम चावल का पुलाव एक अलग ही स्वाद। हम सभी ने कमली और पीहू के खाने की तारीफ की, खास कर पुलाव की। टेप रिकॉर्डर में रोमांटिक गत
लगातार बज रही थे।
खाने के बाद बर्तन और चटाई समेटे गए। फिर कल की रात की तरह कुछ करने का तय हुआ। इस बार मैंने मंगल और कमली को आदिवासी गीत पर नहीं बल्कि दिल मूवी के गीत पर नचाया। "नाच मेरी जान जरा दम दमा दम" मैंने पहले काम भी और मंगल दोनों को भी गीत सुनाया मंगल तैयार नहीं हो रहा था, "अरे सर जी कैसे ! "
"अरे कैसे क्या, जैसे बने वैसे ... कुछ नहीं, कमर मटका मटका के कमली के आसपास थोड़ा सा डांस करना है बस .... "
"आओ मंगल मै समझता हूँ ...", ज्ञान मंगल के गले में बाह डालकर उसे कुछ दूर ले जाकर समझने लगा, फिर उसने कमली को भी अपने पास बुलाया और उसे भी कुछ समझाया दोनों ने बड़ी मुश्किल से अपनी सहमति दी। गाना बजा, दोनों ने डांस किया और मैं इस बात से एग्री कर गया की ज्ञान चाहे तो एक अच्छा कोरियोग्राफर बन सकता है।
अब सभी ने ज्ञान की तरफ देखा, उसने मेरे, पीहू और सत्य की तरफ देखते हुए बोला, "यार तुम लोगों को कल का अनुभव भी है, इसलिए पहले तुम लोग। तुम लोग को देखकर मैं भी लास्ट में कुछ ना कुछ कर ही लूंगा ",
"सत्य ने मेरी तरफ देखा क्यों राइटर कोई स्क्रिप्ट है मेरे लिए ... हम तो ठहरे अभिनेता एक्टिंग ही करेंगे ..."
"ऑफकोर्स ! उसे पोयम को एक्सटेंड करके एक कहानी लिखने की सोच रहा हूँ। दो सीन मेरे दिमाग में भी है और डायरी में भी लिखें है आज शाम। सिलेक्ट कर लो उनमें से कोई एक। लेकिन हां एक सीन तुम्हारा है, और एक सीन मेरा है ... पीहू तुम भी देख लो ...", मैंने अपनी डायरी सत्य की तरफ बढ़ते हुए कहा।
दोनों में कुछ डिस्कशन हुआ फिर सीन नंबर 2, एक्ट के लिए फाइनल हुआ। एक्ट सभी के समझ में आए और इसलिए मुझे इसकी बैकग्राउंड स्टोरी सभी को बतानी जरूरी थी।
"तो दोस्तों ! यह कहानी है दो नादान दिलों की। दोनों ही टीनएज में ही एक दूसरे से मोहब्बत ,कर बैठे। नायिका अर्थात कहानी की हीरोइन, नायक अर्थात कहानी के हीरो के गांव में मेहमान बन के आई। तो सीन ये है कि हीरोइन, हीरो से मिलने के लिए उसके घर आ रही थी कि रास्ते में बरसात होने लगी और वह एक गाने को गुनगुनाते हुए इस बरसात में डांस करने लगी। कहानी का हीरो अपने घर में दरवाजे के पास खड़ा हुआ उसके डांस को देख रहा फिर उसके बाद क्या हुआ यह दोनों एक्टिंग करके और डायलॉग बोलते हुए हम सभी को दिखाएंगे ...", फिर मैं पीहू और सत्य दोनों को उसे सीन के डिटेल और इमोशंस के बारे में बताया। सीन का सटअप किया जाने लगा, एक साफ सुथरी तौलिया मैने अपने बैग से निकाल कर निर्धारित जगह पर रखवा दी।
मंगल ने बल्ब को ऐसी जगह लगाया कि उसकी रोशनी हीरो और हीरोइन के फेस पर अच्छे से पड़ सके। अब बारी थी गाना सेलेक्ट करने की। पीहू ने 1942 मूवी का वही गाना सेलेक्ट किया जिसमें अभी कुछ देर पहले दोनों ने डांस किया था। मैंने पीहू को समझने की कोशिश की कि इसमें हीरो को नहीं भींगना है। लेकिन उसने ज़िद की कुछ भी करो गाना यही होना चाहिए। मैंने सत्य को अपने पास बुलाया और उसे समझाते हुए बोला,
"देखो यार पीहू को यही गाना चाहिए तो इसलिए तुम थोड़ा-सा स्क्रिप्ट में चेंज करना है अब यह समझ लो कि तुम दोनों बाहर घूमने निकले हो और अचानक पानी बरसने लगता है और इस गाने में तुम लोग डांस करते हैं तभी तुम्हें यह मड़ैया दिखती है। पीहू को भीगने से बचाने के लिए उसका हाथ पकड़ कर उसे मड़ैया की तरफ भी ले जाते हो। लेकिन पीहू तुम्हारा हाथ छुड़ाकर फिर बाहर आ के डांस करने लगती है। फिर जहां पर जेंट्स को गाना हो वहां तुम मड़ैया के द्वार से ही थोड़ा डांस करते हुए चेहरे का एक्सप्रेशन दो। जरूरत पड़ने पर पीहू तुम्हारे पास आएगी कुछ स्टेप करेगी और फिर बाहर निकल जाएगी। अब यही हो सकता है ...", फिर मैंने ज्ञान को अपने पास बुलाते हुए कहा, "ये कोरियोग्राफर तू भी तो कुछ हेल्प कर अपने ब्रेस्टफ्रेंड की ..."
टेप रिकॉर्डर में गाना बजाया गया और तय किया गया कि कितने में सत्य को पीहू के साथ डांस करना है और कहां पर मड़ैया के द्वार पर थोड़ा-थोड़ा डांस के स्टेप करने के साथ चेहरे के एक्सप्रेस देना है। किस स्टेट को वे दोनों मड़ैया के द्वारा के सामने ही फॉलो करेंगे। इत्यादि।
स्क्रिप्ट के मुताबिक मुझे मड़ैया के अंदर रहना है और लास्ट में अपीयर होना है, अर्थात बल्ब की रोशनी की ज़द में सत्य के पीछे से आना है।
न २
.........
एक्शन के साथ ही टेप रिकॉर्डर में पीहू का पसंदीदा गाना बजा।
"रिमझिम रिमझिम
रुमझुम रुमझुम
भींगी भींगी रुत में
तुम हम हम तुम ...
सत्य और पीहू ने शुरू के स्टेप फॉलो करते हुए मड़ैया के द्वार तक पहुंचे। फिर सत्य पीहू को ले मड़ैया की द्वारा की तरफ भागा। लेकिन पीहू उसका हाथ छुड़ाकर बाहर ही डांस करने लगी और जब सत्य की बारी आती तो वह द्वार के पास से ही डांस करता चेहरे के एक्सप्रेशन दे रहा था।
जैसे ही गाना खत्म हआ, पीहू भाग कर मड़ैया के द्वार पर खड़े सत्य के पास उसका हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई। फिर उसकी आंखों में देखती हुई मासूमियत से बोली, " देखते नहीं, मैं भीग गई ... "
सत्य ने भी उसकी आंखों में देखते हुए और मड़ैया के बांस में लटकी तौलिया निकाल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, "तो बरसाती हुई बारिश में डांस काने का शौक तो तुमने ही पाल रहा है न, तो कौन भीगेगा ? अच्छा चलो भींग गई हो तो लो पोंछ लो ..."
पीहू ने उससे कुछ और सटते कुछ तुनकते हुए कहा, "अब जब टावेल दे ही रहे हो तो तुम्हीं पोंछ दो न, देखते नहीं मेरे बाल गीले हो गए हैं ? "
सत्य ने मुस्कुराते हुए उलाहना दिया, "गीले हो गए तो मैं क्या करूं? बरसात में भीगने के लिए मैंने कहा था क्या ?"
तब पीहू भोलेपन से बोली, "मुझे अच्छा लगता है न ..... प्लीज .."
सत्य जब तरह मुस्कुराता खड़ा रहा तब उसने कुछ प्यार से डांटते हुए कहा, "अब तुम पोंछ भी दो, ज्यादा भाव मत खाओ ... "
सत्य ने उसके सर में तोलिया डालकर धीरे-धीरे बाल सुखाने शुरू किए। धीरे धीरे उसके हाथ पीहू के सुंदर से चेहरे के पास पहुंचे। 100 वॉट के बिजली के बल्ब की रौशनी उसके चेहरे में पड़ रही थी।
सत्य की हथेलियों के बीच उसका चेहरा उसी तरह जगमगा रहा था जैसे सूरज की किरणें पा चंद्रमा खिल उठता है। उसके खुले हुए केश, सुंदर गोरा-सा मुखड़ा जो सत्य की नजरों के सामने था उसे सत्य अपलक देख रहा था।
"क्या ... ऐसे क्यूं देख रहे हो...", पीहू ने सत्य की आंखों में देखते हुए धीरे से पूछा।
सत्य ने उसे छेड़ा, "देख भी रहा हूं और सोच भी रहा हूं ..."
"क्या ..."
"यही कि तुम कितने साल की होगी ? बालिग या नाबालिग ..?"
पीहू ने जवाब दिया ," वो सब नहीं पता मुझे, पर 17 की हूँ, और तुम ?"
सत्य ने हंसते हुए कहा, "16 का ... "
वह भी हंसी थी, " झूठे कहीं के, 12th पास हो और अभी भी 16 के ?"
सत्य ने मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा चलो मान लो 18 का, तुमसे एक साल बड़ा, बस न ?"
"हूं ....",. कुछ लजाते हुए पीहू ने अपनी नज़रें नीचे कर ली।
सत्य ने पीहू के चेहरे को थोड़ा अपने पास खींचा। उस पर झुका, उसके होंठ पीहू के होठ के बिल्कुल नजदीक थे, पीहू की आँखें बंद, होंठ अध-खुले। फिर अगले ही पल सत्य ने पीहू के माथे को धीरे से चूमते हुए कुछ मजाकिया लहजे में पीहू से बोला, "चलो पीहू छोड़ दिया, नाबालिग हो न, नहीं तो ये किस माथे से चार अंगुल नीचे होता ..."
सत्य का इतना कहना था कि पीहू लजाते कुछ सकुचाते सत्य की बाहों में समाते हुई बोली, "बदमाश कहीं के ..."
फिर मड़ैया के अंधेरे कोने में खड़ा मैं उजाले में उनके नजदीक आया और साथ ही बैकग्राउ की आवाज दी,
"मोहब्बत की दुनिया में समझदारियों का कोई मोल नहीं होता है। वैवाहिक रिश्ते के लिए उम्र और मैच्योरिटी का होना जरूरी हो सकता है किंतु प्यार करने के लिए नहीं। किसी को सच्चे मन से स्वीकार करना, अपनी उज्जवल और पवित्र भावनाओं में उसे स्थान देना ही पर्याप्त है। इस गुजरते हुए लम्हे में कोई दुनियादारी नहीं। यहां तो हैं दो पवित्र मन जिन्होंने अपनी अंतरात्मा से एक दूसरे को अपना मान लिया है ..."
मेरी आवाज के साथ सीन कट हुआ। सभी ने जोरदार ताली बजाई। ज्ञान भागता हुआ मेरे पास आया, मेरे हाथ को चूमते हुए बोला, भाई क्या सीन लिखा, मान गया कि तू राइटर है। मेरी आंखें छलक आने को थीं, मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें रोक रखा था। सभी मेरी लिखावट को और पीहू सत्य की अदाकारी की प्रशंसा कर रहे थे। इन सबसे दूर पीहू की नजर बार-बार मेरे दर्द की तीव्रता का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही थी। अपने हृदय में बसी एक मूरत से मैने पूछा, "कहो जी ! कैसी लगी रिक्रिएशन और एक्टिंग ...?"
"ठीक थी ... लेकिन हमने इससे अच्छी की थी ..", मूरत ने मुस्कुराते हुए और अपनी आंखों में मेरे लिए दुनिया जहान की मुहब्बत लिए हुए कहा।
"अरे पागल हो क्या ? वो एक्टिंग थोड़े न थी ... चलो दूसरा सीन देखना ... उस सीन में मै एक्टिंग कर रहा हूँ ...", मैने भी मुस्कुराते हुए कहा।
"अच्छा ...! तुम कर रहे हो !! तो देखो तब तो एक्टिंग ही करना ..."
"हूँ ... जेलस !! ...
"हूँ... तो क्या ? मेरा हक है .... तो जाओ करो एक्टिंग ... मै भी देखूंगी कि कितने बड़े एक्टर हो ...?, उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा।
सीन १
...…..
इस सीन की पृष्ठभूमि समझाते हुए मैने बताया, "अब मानलो हीरो का नाम सत्य और हीरोइन का नाम पीहू है। सत्य और पीहू से बीच किसी बात पर शर्त लगी थी और सत्य वह शर्त जीत गया था। बदले में सत्य ने पीहू से उसकी मोहब्बत के साथ शादी का प्रस्ताव भी रखा। पीहू ने स्वीकार किया कि वह हृदय और आत्मा से उसका वरण करती है किंतु यदि किसी वजह से सशरीर उसके पास नहीं रह पाती तो सत्य उसे दोषी नहीं समझेगा और उन दोनों के प्यार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
फिर दोनों एक दिन दोपहर को ऐसे घर में मिलते हैं जहां पर पीहू के रिश्ते में एक बूढ़ी नानी रहती हैं। दोनों हंसी खुशी समय बिता रहे होते हैं कि तभी इसकी बड़ी बहन चार बातें सुनते हुए वहां से उसे ले जाती है। उसी दिन शाम को फिर से उनकी मुलाकात उसी घर के आंगन में हुई। पीहू अपनी नानी के बाल संवारने के बाद सत्य के पास ही उसकी चारपाई पर आ कर बैठती है, ये सीन में उसके आगे की बात है। फिर मैने पीहू को उस सीन के इमोशन के बारे में कुछ और बाते बताई और यही का कि मेरी जगह तुम्हे सत्य को ही फील करना है, और ये कहानी तुम्हारे जीवन से गुजर रही है, तभी एक्ट अच्छा होगा।
लाइट के अनुसार लोकेशन का सेटअप किया गया। जब सीन का सेटअप हो गया तो ज्ञान ने एक्शन कहा।
एक्शन के साथ पीहू कुछ मुस्कुराते हुए शीशा कंघी ले मेरे बगल में बैठ गई।
मैंने धीरे से पूछा, "हो गई नानी की कंधी ?", मैने पूछा तो उसने हां में धीरे से सिर हिला दिया।
"क्या हुआ ... दोपहर दीदी गुस्से में लग रही थी …. बहुत डांट पड़ी क्या ?", मैंने कुछ मुस्कुराते हुए और उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
' हां डांट तो पड़ी। मुझे खोजते हुए वह सबसे पहले तुम्हारे घर तक ही पहुंची थी, जैसे उन्हें पूरा विश्वास था कि मैं वही मिलूंगी। जब नहीं मिली तो फिर यहां आई थीं ..."
"ओह ! बड़ी दूर-दृष्टि रखती हैं ... तो तुम्हें यहां दोबारा नहीं आना चाहिए था ...", मैंने उससे कहा।
"मैं जानती हूं कि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो। यही डर है न कि वह फिर आ जाएंगी ? तो आने दो, वैसे मैं कौन-सा तुमसे छुपकर मिल रही हूं और फिर मैं क्यों डरूं, क्या इसलिए कि मैं तुमसे प्यार .…. ?"
"नहीं मेरा मतलब यह नहीं पीहू, मैं तो इतना चाहता हूं कि मुझे लेकर तुम बदनाम ना हो .... तुम्हें कोई कटघरे में ना खड़ा करें .... कोई तुम्हें उलाहना न दे ", मैंने उसे समझाना चाहा।
"जानते हो सत्य, पहले मैं भी यही सब सोचती थी। लेकिन आज उनके व्यवहार ने मेरा नजरिया बदल दिया। आखिर हमने किया क्या था ? एक साथ कुछ पल ही तो गुजारे थे। वह भी अकेले नहीं, मेरी नानी मेरे साथ थी। और घर ले जाकर मुझे सबके सामने इस तरह से पेश किया जैसे मैं तुम्हारे साथ बिस्तर में .…. ",
आगे के शब्द पीहू की जुबान पर घुट के रह गए। आंखें छलक आने को थी। फिर उसके होठों में एक फीकी सी मुस्कान आ गई, " छोड़ो यार जाने दो, जो बीत गया उस पर मिट्टी डालो .… हम भी ना जाने किन बातों को लेकर बैठ गए .…."
फिर पीहू ने अपने हाथ में पकड़ा शीशा मेरे चेहरे के सामने किया और अपना चेहरा थोड़ा सा मेरे चेहरे के नजदीक ला मुस्कुराते हुए बोली, "ये देखो न ... हमारी जोड़ी कितनी अच्छी लगती है ... है न ?"
मैंने उसे लगभग डांटते हुए कहा, "हटाओ यार क्या करती रहती हो ... ", मैंने उसके हाथ में पकड़ा हुआ आईना छीन कर दूसरी तरफ रख दिया और कुछ खीझते हुए धीरे किंतु मजबूत इरादे लेकर बोला था, " कौन सी जोड़ी ... कैसी जोड़ी ?"
फिर मेरी आँखें खुद-ब-खुद भींगने लगी। आवाज में कंपन आ गया, "..... क्यों सपनों में जीती हो पीहू, इससे बाहर आओ .... यह तुम्हारी काल्पनिक दुनिया है। .... वास्तविक दुनिया में आकर देखो ... हम दोनों का कोई सह-अस्तित्व नहीं। और यह बात तुम मुझसे बेहतर जानती हो, तभी तो तुमने पहले से ही एक वचन .....", यह कहते हुए मेरी आंखों से आंसू बह निकले। फिर मैने अपने गालों में लुढ़क आए आंसुओं को धीरे से पोछा।
आगे कुछ उलाहना भरे स्वर में कहा, "क्या नाटक करती रहती हो .... बंद करो यार यह सब ... मुझसे इतना ही प्यार होता तो पहले ही एक वचन न ले लिया होता ...", मेरे स्वर और मुस्कुराहट में उपहास था।
उसकी चंचलता एक पल के लिए चेहरे से गायब हो गई। मेरी तरफ पीहू गहरी दृष्टि से से देखते हुए बोली, "सत्य! यदि तुम्हें मंजूर नहीं, तो मैं अपना वचन वापस ले सकती हूँ .... तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। जब तुम्हे अपने हृदय में बसाया .... अपनी आत्मा तक दे दी ..... मन से तुम्हें अपना सर्वस्व मान लिया तो फिर इस शरीर में क्या रखा है ? ..... तुम इसे जब चाहो पा सकते हो, तुम्हें रोकूंगी नहीं। .... लेकिन जरा इस बात का ध्यान रखना कि यदि कहीं कोई है जिसे केवल मेरा यह शरीर मिलेगा, और वह भी इसे मुकम्मल नहीं पा सकेगा, तो सोचो उस पल क्या होगा ? क्या मैं उससे कभी नजरे मिला पाऊंगी ?"
मै उसकी तरफ देखते हुए बोला, "नहीं चाहूंगा कि तुम कहीं भी, किन्हीं भी हालातों में किसी से नजरे चुराओ, तुम्हारी नजरें झुके पीहू। मैं तो यही चाहूंगा कि तुम हमेशा नजरें उठाकर बातें करो, मेरी मोहब्बत किसी के सामने शर्मिंदा न हो। लेकिन तुम भी मुझे गलत मत समझो। .... मुझे तुम्हारा शरीर नहीं चाहिए ..... मुझे तो तुम चाहिए।.... हां तुम चाहिए .... इस जीवन में तुम्हारा साथ चाहिए। ..... इसके लिए जरूरी है कि तुम मुझे स-शरीर मिलो एक रिश्ते में मिलों। .... बात सिर्फ इतनी सी है, मैं तुम्हारे साथ यह जीवन जीना चाहता हूं .... तुम्हारे बगैर गुजरना नहीं ....", मै फिर रो पड़ा।
पीहू भी मेरे कंधे में सर रख रो पड़ी। आंसुओं का प्रबल वेग, अपनी सारी सीमाओं को तोड़ लेने के लिए व्याकुल था। मैं उसे दिलासा देते हुए कह रहा था, "पीहू ! चुप हो जाओ ..… शायद यही हमारी नियति है .… अब इस भ्रम में मुझे ही जीने दो तो अच्छा है .….. कम से कम तुम तो बाहर आ जाओ। ... ये आंसू तो मेरे हिस्से के हैं.... कम से कम तुम तो इन्हें न बहाओ पीहू ... ", मैं हर एक वाक्य को पूरा करते-करते अंत में खुद ही रो पड़ता था, मेरी आवाज कांप-सी जाती।
जो भावनाओं के अधीन हो तो शायद वो एक अच्छा इंसान तो हो सकता है, किंतु एक अच्छा अभिनेता नहीं। एक अच्छा अभिनेता तो अपनी निजी भवनाओं को नियंत्रित कर सिर्फ उतना ही अभिनय करता है जितना कि उसके किरदार के लिए जरूरी है। इस एक्ट के अंत में मुझे खुद को मजबूत दिखाते हुए पीहू को दिलासा देना था। लेकिन मैं तो खुद अपनी निजी भावनाओं के अधीन हो रो रहा था। उस दिन मैंने जाना कि मैं एक अच्छा अभिनेता नहीं हूँ।
इसलिए मेरे सभी दिलासे उसकी मासूम-सी हिचकियों के रास्ते बन रहे थे। उसका सर अभी भी मेरे कंधे पर लुढ़का हुआ था। उसने अभी भी अपने दोनों हाथों से मेरी एक बाह पकड़ रखी थी। सीन ये था कि मुझे कस के पकड़ के वह भी रो ही रही थी। जब भी खुद को रोकने का प्रयास करती हिचक पड़ती। उसके शरीर के साथ मेरी आत्मा और शरीर दोनों ही कांप जाते।
तभी बैकग्राउंड में सत्य की आवाज़ आई। वह हम लोगों के पीछे टहलता हुआ कह रहा था .....
आसान नहीं था ये सब होगा,
किंतु नियति भाग्य यह होना था।
दे दिलासा इस कोमल मन को,
मर्यादाओं पर मिट जाना था।
दुनिया के सामने पीहू बहुत ही मजबूत बनी रही। कभी किसी से कुछ नहीं कहा। लेकिन आज सत्य के शब्दों ने उसे आहत किया। कोई गैर सितम करें तो इंसान मन को समझा लेता है, गैर था, उसने किया तो किया !!!
लेकिन कोई अपना ही जब सितमगर हो जाए जो बहुत प्रिय हो, जिसे आपने अपनी अंतरात्मा में बसा रखा हो, तब ?
फिर वह हम लोगों के पीछे आ कर खड़ा हो गया। फिर झुक कर हम दोनों के कंधे में हाथ रख गमगीन आवाज में आगे कहना शुरू किया ,...
हृदय रोता है, सिसकियां लेता है। आंसुओं का सैलाब उमड़ता है। और देखो तो, तब सहारा भी उसी सितमगर की बाहों का ही मिले। उसी के कंधे पर सर रखकर रोना पड़े !! उफ !!! ये ईश्वर ये कैसी नियति है इन दोनों की -
स्वप्न सुंदरी बन क्यों, अब छलती है यह माया।
जैसे प्रेम, प्रेम न हो, हो जैसे चंदा की छाया।
पाकर अतुलित जीवन निधि,
आह! फिर मैंने तुमको क्यों खोया।
फिर सीन को सत्य ने कट किया। उसके द्वारा भावपूर्ण बोली गई अंतिम पंक्ति मेरी आत्मा में गूंज गई, "आह ! फिर मैंने तुमको क्यों खोया ...", खुद को रोने से रोकने की कोशिश में मेरी हिचकी निकल गई। मुझे कहीं से प्रतीत नहीं हो रहा था कि इस एक्ट की स्क्रिप्ट मेरी है, इन शब्दों को मैंने ही लिखा है।
किंतु यह क्या पीहू अभी भी मेरे कंधे में सर रखे क्यों हिचकी ले रही है, मैं उसे रोक क्यों नहीं पा रहा हूँ ? सत्य धीरे से पीहू के बगल में आकर बैठ गया फिर उसने पीहू को अपनी बाहों में समेटे लिया, "पीहू चुप, देखो सीन कट हो चुका है ..."
इस सीन के कट होने के बाद भी किसी ने ताली नहीं बजाई। शायद इसलिए कि एक बेहतरीन अदाकारा अपने कैरेक्टर से बाहर अभी तक नहीं आ पाई। वह तो अभी भी सत्य के सीने में सिमटी लगातार रोए जा रही थी। मै चारपाई से उठा मंगल के पास पहुंचा और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीरे से बोला, "मंगल एक बना ... ऊं हु... मना नहीं मंगल ...."
मै मड़ैया के अंदर पत्थर में आ कर बैठ गया। मेरी अंतरात्मा में बैठी मूरत मुझ पर उपहास से हंस पड़ी, " कर ली एक्टिंग ...? करा ली न बेइज्जती .…? बहुत बड़े एक्टर बनते थे ..?"
पीछे से मंगल आया उसने वही किया जो मैने कहा था, और मैने भी वही किया जो मैं कर सकता था। सत्य और ज्ञान पीहू को चुप करने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर बाद ज्ञान मेरे पास आया, "यार ये तूने क्या किया ? तीन दिनों में इसे कुछ जाना-समझा नहीं था क्या ? इतनी इमोशनल है तो अपनी कहानी का ये सीन उससे क्यों करवाया ?
मैं उठा, ज्ञान के कंधे में अपना हाथ रखते हुए कहा, "वो इसलिए कि इनकी कहानी का अंजाम भी मेरी कहानी की तरह न हो ... उस दर्द को अभी महसूस कर ले तो अच्छा है। दोनों आज ही समझ जाए तो बेहतर है। ... और रही बात पीहू के चुप होने की तो आ मै करता हूँ चुप...
मै उन दोनों के पास पहुंचा, "गर्लफ्रेड ! महसूस हुआ न कि बिछड़ना, छोड़ देना, भूल जाना जितना आसानी से कह देते है, समझ लेते हैं, वास्तव में उतना आसान होता नहीं है ? ... कुछ फैसले हमे ही लेने पड़ते हैं ... अब उठो भी .… ", मैने सत्य को इशारा किया, "एक-एक हो जाए यार, तुम्हारी नेचुरल एक्टिंग के लिए ... है न सत्य ..देखो हम दोनों ऐक्टर्स के बीच एकमात्र तुम ही तो क्लासिकल अभिनेत्री हो। यदि तुम्हें कुछ हो गया तो हमारी तो दुकान बंद हो जाएगी न ? यार समझा करो ...",
उसने अपने आंसुओं को पोंछाते हुए मेरी तरफ थोड़ा सा मुस्कुरा कर देखा, मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, " मंगल पांच बनाओ ...",
जब कमली पर मेरी निगाह गई तो अभिनेता राजेश खन्ना के अंदाज में बोला, " .... पांच नहीं छः बना रे..."
दोनों खाट फिर से बिछाई गई। सेंट्रल टेबल फिर से रखी गई। और उसमें सजे छः कुल्हड़।
"सर जी ! ज्ञान भैया ने तो कुछ किया ही नहीं .....", मंगल ने हम लोगों को याद दिलाते हुए कहा।
"मंगल ! ओ मंगल !! तुझे याद है रे पगले !! ... फसा दिया न ?", मंगल के गले में हाथ डालते हुए ज्ञान बोला।, "ठुमका लगाऊं क्या ? "
"लगा लीजिए भैया जी ! आप से अच्छा भला कौन लगाएगा ...", मंगल भी मजाक के मूड में आते हुए बोला।
चीयर के साथ सभी ने अपने-अपने कुल्हड़ उठा लिए। ज्ञान में टेबल पर रखी एक कैसेट उठाई और उसे प्ले कर दिया, "बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा .... सलामत रहे यह दोस्ताना हमारा ..."
और इस गाने को उसने हम सभी के चारों तरफ हाथ में जाम लिए धूम-घूम कर एक्ट कर रहा था। बीच में उसने सत्य को भी कुर्सी से उठा लिया। गाना समाप्ति पर दोनों गले लगे। हम लोगों ने जोरदार तालियां बजाई। बातचीत का दौर चल रहा था कि तभी पीहू ने ज्ञान से कहा, "ज्ञान भैया ! ... थोड़ा इधर आइए ... "
ज्ञान उसके पास पहुंचा तो दोनों पंप हाउस और मड़ैया के बीच के खाली रास्ते पर बात करते हुए टहलने लगे। कमली घर गई। मंगल पंप हाउस की तरफ खेतों में पानी की व्यवस्था देखने चला गया।
और इधर मैं और सत्य पीहू को लेकर चर्चा कर रहे थे। सत्य पीहू की एक-एक विशेषताएं वह बता रहा था। उसकी योग्यता, उसका नजरिया, पढ़ाई के प्रति रुचि इत्यादि। और अंत में उसने बताया कि पीहू ने प्राइवेट ग्रेजुएशन करने के लिए उसके बार-बार कहने पर फॉर्म भी भरा है। लगभग पन्द्रह मिनट बाद ज्ञान हम लोगों के पास पहुंचा और पीहू उसी तरह टहलती रही ..."
"क्या बात है ज्ञान कौन सा सीरियस डिस्कशन चल रहा था ?....", सत्य ने ज्ञान की तरफ देखते हुए पूछा।
"कुछ नहीं यार बस सामान्य चर्चाएं चल रही थी। हाल-चाल, मेरी एजुकेशन और तुम्हारे और शैल के बारे में, कब दोस्ती हुई, कैसे हुई, यही सब। .... मुझे पहली बार मिली है न, तो जिज्ञासा समझ लो ..", ज्ञान ने उसे समझाते हुए कहा।
"मेरे बारे में कुछ कहा ...?", सत्य ने रुकी-रुकी सांसों से पूछा।
"उसने तो नहीं पूछा लेकिन मैंने उससे जरूर पूछा था ...."
"क्या .... क्या पूछा था ..?"
"यही कि सत्य आपके यहां ... पेइंग गेस्ट है क्या ? ... ", फिर ज्ञान उसके पास से हट कर हंसते हुए बोला।
"साले तेरी तो ....", सत्य ने उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए बोला।
"साले क्या ? हूँ ... क्या साले ? अबे तुम दोनों के बीच सीन क्या है ? बताएगा ? ... न उसने कुछ कहा ! न तू बता रहा !! भई माजरा क्या है ? न घोड़ी छोड़ रह, न बारात सजा रहा ? ....", एक तो ज्ञान का शुरूर, दूसरा दोस्त के लिए फ़िक्र। दोनों की मिली- जुली प्रतिक्रिया थी उसके चेहरे में।
मैने ज्ञान को शांत रहने का इशारा किया। जिस पर वह और बौखला गया। मुझसे बोला, "बचपन से साथ हैं। एक ही स्कूल में पढ़े हैं दोनों। रास्ते चलते बेस्टफ्रेंड नहीं बना है। साले की फ़िक्र होती है यार ... लेकिन ये क्या जाने ... तू तो लिख के दिल की बात निकाल देता है .... ये क्या करेगा .... बेस्टफ्रेंड कहता है। अबे मत कह चलेगा, लेकिन दोस्त की तरह बात तो शेयर कर लिया कर ? सात महीने से कुल तीन बार घर गया ! जनाब! घर कोई लंदन में नहीं है, अभी चले न तो डेढ़ घंटे से अधिक नहीं लगेंगे ... ठीक है यहां पीहू और बाबा को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन तेरे घर में पड़ेगा ... भाई कोई दिक्कत हो तो बता मै बात करूं ...?"
लेकिन सत्य की तरफ से कोई जवाब न मिला तो वह पीहू की तरफ चला, "ठीक है ... न बता ... मैं उसी से पूछता हूँ ... देखता हूँ कैसे नहीं बताती ...?"
सत्य जल्दी से उठा और ज्ञान को जबरन कुर्सी में बैठता हुआ बोला, "बताता हूँ न यार ... लेकिन सुबह ... देख अभी टाइम हो गया है। अभी आराम से सो ... सुबह मिलते हैं ... शैल मै चलू ?"
मैने हां में सर हिला दिया। वह मंगल के पास गया, उसे कुछ बोला फिर पीहू से थोड़ी देर खड़ा बाते करता रहा। कुछ देर बाद पीहू ने मुझे हाथ हिला कर बाय का इशारा किया और दोनों बगिया के गेट की तरफ चल दिया। मंगल मेरे पास आया। ज्ञान के लिए मड़ैया के अंदर बिस्तर बिछाया। ज्ञान गुड नाइट कह के सोने चला गया।
"कितना टाइम हुआ होगा मंगल ? अपने चंदा क्लॉक से पूछो तो ?", मैने कहा।
"साढ़े दस के आस-पास होगा सर जी ...", फिर उसने इशारा किया। मैने हां कर दिया। वह दो कुल्हड़ भर लाया। खाट के नजदीक पत्थर में बैठता हुआ बोला, "कल कितने बजे जाएंगे सर जी ..?"
"पता नहीं, कल की कल देखेंगे ? लेकिन हां दोपहर के पहले ही निकल जाएंगे ...", मैने थोड़ी सी पीते हुए कहा।
"सर जी कभी इस तरफ आना हो तो यहां जरूर आइएगा ... आप के साथ तीन दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। आपकी बहुत याद आएगी ... पीहू बिटिया और भइया जी भी आपको बहुत याद करेंगे ...", मंगल थोड़ा-सा भावुक होते हुए बोला।
"मै भी मंगल ..! यार देख बैग में सिगरेट होगी, जला न ? एक-एक पीते हैं ..", मैने बात बदल दी।
मंगल खेत में पानी की दिशा मोड़ता जा रहा था ताकि सभी पौधों को पानी मिल सके। मै उसे और सूनी रात में सफर कर रहे चंदा क्लॉक को बहुत देर तक देखता रहा।
सुबह आठ बजे मंगल ने उठाया, "सर जी ! उठिए... ज्ञान भैया तो नहा-धो कर भइया जी के साथ गए, मुझसे कह गए हैं कि आपको उठा दूं ? आप भी तैयार हो जाइए .... मैने एक खाट और आपका बैग आम के पेड़ के नीचे रख दिया है .... चलिए ...."
मै उठा और मंगल के साथ पंप हाउस के पास आ गया। मंगल पानी, तोलिया, कपड़े इत्यादि की व्यवस्था कर चला गया। स्नान करने के बाद मैंने कपड़े पहने और बैग को सिरहाने रखकर आराम से लेट गया और मंगल का इंतजार करने लगा कुछ देर बाद मंगल हाजिर हुआ, , "रेडी सर जी ?"
"हां तैयार हूं और बताओ क्या करना है, क्या कह गए हैं तुम्हारे ज्ञान भैया जी ?"
"मुझे तो कुछ और कह कर नहीं गए हैं, आते होंगे ....", मंगल ने बताया।
"चलो तो ठीक है तब तक मैं यही इंतजार करता हूं .... ", मैं उसी तरह लेटे हुए बोला।
"सर जी, कुछ खाने के लिए ले आऊं ? मतलब कंद, मूल, फल और शाम का पुलाव भी बचा है। कहिए तो उसे भी गरम करवा कर ले आता हूँ ...", मंगल ने पूछा।
"मंगल पहले अमरूद तो तोड़ो। आज खाने का मन है, और हां तुम्हारे खेत की ताजा गाजर तो और भी मीठी है .... फिर पुलाव का देखेंगे ... खराब तो नहीं हुआ होगा ?"
"अरे नहीं सर जी अभी 9 बजे हैं, रात को ठंड पड़ने लगी है न, मैने तो अभी थोड़ा-सा खा के भी देखा है। रुकिए अभी मै अमरूद और गाजर लता हूँ ....",
कुछ देर में मंगल सारा इंतजाम करके वापस आ गया, "बनाऊं सर जी ?"
"हूँ .... अपने लिए बना लो ... मै नहीं ...", मैं अमरूद खाते हुए बोला।
"क्यों सर जी ? ..."
"इच्छा नहीं है ... तुम लो ...."
मंगल ने बैग से निकाली अपने लिए बनाई, और वही खाट के पास बैठ कर पीने लगा। मैंने अपनी बैग से वही अखबार निकाला जिसमें मेरी कहानी छपी थी। उसमें और भी लघु कथाएं, कविता एवं अन्य सामयिक खबरें थीं। मैं उन्हें पढ़ने लगा।
"अरे पीहू बिटिया ...", मंगल ने आश्चर्य से कहा, "सर जी पीहू बिटिया आ रही हैं ... मै अभी आता हूं ..."
मैने देखा पीहू गेट से कुछ ही दूर पर थी। मंगल भागता हुआ गेट तक पहुंचा। मैं उसी तरह लेटा अखबार पड़ता रहा। कुछ देर बाद मंगल और पीहू एक साथ पहुंचे। मंगल ने मुझे पुकारा, "सर जी !"
मैने ध्यान दिया तो देखा मंगल के हाथ में झोला था। मैं चारपाई पर उठकर बैठ गया। वह मेरे पास आती हुई बोली, "जी नमस्ते !"
"जी नमस्ते ! आप पीहू ?", मैने मजाक में पूछा।
"जी पीहू ... और आप ...?", उसने भी मजाक करते हुए पूछा।
"जी मैं सत्य का दोस्त हूं .... मुझे यहां छोड़ कुछ देर में आने के लिए कह कर गया है ... अभी तक आया नहीं। क्या आपको मालूम है कहां गया होगा ... ?"
"ओह ! तो आप ही सत्य के दोस्त है !! उसने मुझे बताया था .... वो तो अपने एक और दोस्त के साथ माइन्स गए है .... आपका खयाल रखने के लिए मुझे कह गए हैं ...", उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो रखिए खयाल ...", मैने भी मुस्कुराते हुए कहा।
"मंगल चाचा ! जाओ साहब के लिए पानी और सलाद ले आओ, इन्हें ब्रेकफास्ट करना है ..."
मंगल चला गया। मैने कहा, "बैठो पीहू ! बहुत हो गया मजाक ....", मैने उसे अपने पास बैठने का इशारा करते हुए कहा।
वह मेरे पास बैठते हुए बोली, "कुछ याद आया ..?"
"क्या ....?"
"हमारी पहली मुलाकात ? .... ", वह अतीत में खोती हुई बोली।
"हां .... मैं उसे कैसे भूल सकता हूँ ...", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
", क्यूं .... क्यूं नहीं भूल सकते ...", उसने उत्सुकता से पूछा।
"बताऊंगा .... पहले तुम बताओ पहली मुलाकात में तुमने मेरे प्रति क्या सोच बनाई थी।
"मतलब मैने क्या धारणा बनाई थी ...? देख कर ही अजीब लगा था। बिखरे उलझे बाल, बढ़ी दाढ़ी, एक हाथ में सुलगती सिंगरेट, दूसरे हाथ में बुक, सिरहाने शराब की बॉटल, आधी भरी गिलास। सत्य के ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि न जाने किसे ले आया है ! दिल कह रहा था कि मैं तुमसे कह दूं, ये मिस्टर ! फौरन अपना सामान उठाओ यहां से और निकलो .... लेकिन फिर सोचा की चलो सत्य के दोस्त हो तो बर्दाश्त कर लेती हूँ ..."
"अभिमानी .... एरोगेंट.... है न ..?", मैं हंसता जा रहा था और मेरे साथ वह भी हंस रही थी।
"अब तुम बताओ ....", उसने एक अमरूद को दांतों से कटते हुए मुझसे पूछा।
"एक तो पहला इंप्रेशन ही सही नहीं था, शराब और सिंगरेट ..... यही सब। सच कहूं तो कोई गलत धारणा बन ही नहीं पाई। हां पहले यहां का परिवेश देखकर एक देहाती, सीधी-साधी, कम पढ़ी-लिखी लड़की होने का अनुमान लगाया था। लेकिन जैसे-जैसे बातें होती गई तो अंदाजा हो गया कि मैं गलत हूँ ... जब तुम ने जावा का इतिहास तक बता दिया तो और फट गई। जवाबों से मैं इतना प्रभावित हुआ था कि मुझे तुमसे कुछ-कुछ डर भी लगने लगा था। तब मैने तुम्हे ध्यान से देखा था ...", मैने मुस्कुराते हुए उसे बताया।
"ध्यान से देखा ? ... मतलब .…?", उसने उत्सुकता से पूछा।
"मेरा मतलब मनोवैज्ञानिक दष्टिकोण से ... ",
मैने उससे कहा।
"यार कुछ तो बताओ न ... प्लीज ?"
"मैने तुमको चुपके-चुपके देखा किंतु बड़े ध्यान से। तुम्हारे बाल खुले हुए लेकिन पीछे क्लिप लगाकर संवारे गए थे। तब अनुमान लगाया कि तुम आधुनिक तो हो लेकिन तहजीब वाली भी हो ....
"ओह ! और ..."
"दुपट्टा सही जगह पर था, मतलब लड़की में संस्कार हैं .... कान के टप्स आधुनिक किंतु छोटे-छोटे थे .... सलवार सूट की फिटिंग ज्यादा चुस्त नहीं थी .... पांव की चप्पल महंगी जरूर लग रही थी, किंतु कलर ज्यादा भड़कीला नहीं था। चेहरे की ब्यूटीनेस नेचुरल लगी, यानी मेकअप का बहुत ज्यादा रोल नहीं था। और बातचीत का तो लहजा और ज्ञान का कुछ प्रदर्शन तो पहले ही हो चुका था ....
"अच्छा !! इतना तुमने चुपके-चुपके देखते हुए देख लिया !! और मुझे हवा तक न पड़ी !!! वॉव ...... क्या बात है ... फिर ..."
"फिर अंत में मैंने निष्कर्ष निकला की लड़की खानदानी, रहीश, आधुनिक और प्रतिभा संपन्न है, जिसमें फैशन और आधुनिकता का दिखावा नहीं है। ये गांव की साधारण लड़की के लक्षण नहीं हो सकते .... इसकी पूरी डेप्थ जाने बिना अपना एटीट्यूड दिखाने का मतलब है .... आ बैल मुझे मार। तो फिर मैं बैकफुट पर आ गया ... "
मेरी बात सुन कर वह हंसती जा रही थी, "ओह गॉड! ... तुम ने मेरा ड्रेस-सेंस देखकर मेरे बिहेवियर का अनुमान लगाया !! .... बड़े दिलचस्प इंसान हो यार ....."
"अच्छा ! जो भी पी थी, डर के मारे उतर गई थी। दो पैग और लेनी पड़ी।
तभी मंगल चटाई, पानी, सलाद, एक थाली में गर्म पुलाव और कुछ साफ- सुथरे खाली बर्तन ले कर हाजिर हो गया। उसने आम के पेड़ के नीचे ही चटाई बिछाई, फिर सभी खाने-पीने का सामान व्यवस्थित रखा।
"पीहू ! क्या बनाया है ...?"
"दाल-चावल, रोटी-सब्जी और सैंडविच के साथ टमाटर की तीखी चटनी, सत्य और ज्ञान भैया सुबह ही सैंडविच और थोड़ा सा दाल-चावल खा के माइन्स चले गए .... ह्यूमन राइट्स वाले केस में ..."
"और बाबा ? ...", मैने पूछा।
"उनकी इच्छा आज सिर्फ दाल-रोटी खाने की थी ... एक सैंडविच भी खाई फिर बोले जाओ शैल को भी खिला आओ ... फिर दोपहर को जब सत्य आ जाएगा तो साथ में खाना खा लेगा ...", उसने थाली में सैंडविच निकाल कर रखते हुए कहा।
"आज तुमने नहीं पी ?", उसने मंगल को एक प्लेट में सैंडविच और चटनी निकाल कर देते हुए पूछा।
"नहीं ...!"
"क्यूं....?"
"क्यूं क्या .... मन नहीं किया .... तो नहीं पी ..."
"आज हैंगओवर नहीं था ....", उसने फिर पूछा।
"सच बताऊं .... सुबह थोड़ा-सा महसूस हुआ ... बैग में थी भी .... एकबारगी मन किया भी ... लेकिन फिर सोचा ... ऐसे कब तक चलेगा ...? फिर रोक लिया अपने आपको ... और फिर ...", कहते कहते मैं रुक गया।
"और फिर ...?"
"तुम भी तो नहीं चाहती न कि मैं देवदास की तरह पीते-पीते एकदिन मर ...."
"मर्रे तुम्हारे दुश्मन ... खबरदार अब जो सोचा भी तो .... लो खाओ ....", उसने सैंडविच का एक शिरा चटनी में डुबो कर मुझे देते हुए आगे कहा, "नहीं कहती कि तुम कसम खा लो न पीने की .... कभी पीना हो तो एंजॉय के लिए, रिलेक्स होने के लिए .... इसके आदी मत बनना .... "
"जो हुक्म ! ...ये तुमने ब्रेकफास्ट किया ...", मैने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
और उसने मुस्कुराते अपना सर इंकार में हिलाया।
"यार तुम मुझे सत्य से पिटवाना मत .... कहेगा मैं नहीं था तो अपनी गर्लफ्रेंड का ध्यान भी न रख पाए ... चलो उठाओ एक ...?", मैंने उस पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा।
"एक नहीं दो खाऊंगी.... और तुम्हारे साथ रिलेक्स हो कर पिऊंगी भी ....", उसने सैंडविच उठाते हुए मंगल से कहा, "मंगल चाचा ! सर जी का बैग तो उठाना ..."
"लेकिन पीहू बाबा और सत्य क्या सोचेंगे ...?"
"बाबा खाना खा चुके ... अब वह आराम करेंगे ... उनसे सामना होगा नहीं और सत्य तो जानता ही है ", उसने सैंडविच खाते हुए कहा।
मंगल ने बैग उठाकर उसके सामने रख दिया। उसने कहा, "चाचा खोलो बैग और निकालो सब कुछ .."
मंगल ने बैग खोल के रम और व्हिस्की की दोनों बॉटल और गिलास रख दिया। उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा, "लो बनाओ ..."
मैने उसके लिए एक व्हिस्की और अपने लिए रम का बनाया। फिर मंगल की तरफ सवालिया नजर से देखते हुए पूछा, "तुम्हारे लिए किसमें ...?"
सवाल पूछना था कि मंगल तेजी से मड़ैया की तरफ भागा।
"यार शैल ! तुम्हारे हाथ तो बिल्कुल लड़कियों जैसे हैं ... पतले-दुबले तो तुम हो ही और हाथों की फिंगर तो देखो, वो भी ... तुम्हारी तरह पतली-दुबली और लंबी है !!"
"चलो तुम्हें कुछ तो पसंद आया ...मुझमें ...?", मैंने अपनी सैंडविच खत्म करते हुए उससे कहा।
"यह पूछो कि तुममें क्या पसंद नहीं आया ..", उसने भी अपनी सैंडविच खत्म की। फिर पूछा, "एक सांस में न...?"
मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही उसने अपनी ग्लास खाली कर दी, और उसके पीछे मैने भी। तब तक मंगल भी आ चुका था। मैंने उसे इशारा किया वह समझ गया। उसने अपनी कुल्हड़ भरी। मैने एक सैंडविच उसकी तरफ बढ़ा दी। वह सब ले कर पंप हाउस की तरफ चला गया।
पुलाव की थाली आगे बढ़ते हुए मैने पीहू से कहा, "पुलाव खाते हैं पहले, ठंडा हो रहा है ..."
"हूं ... ठीक है ...तुम भी लो ", हम साथ ही पुलाव और ताजी सलाद खाने लगे।
"पीहू ! तुम खाना स्वादिष्ठ बनाती हो ...", मैने उसकी तारीफ करते हुए दूसरा बनाया।
"अब रिलेक्स हो कर न ...?", उसने पूछा।
"हूँ... एक-एक शिप ... ऐसे ..", मैने डेमो देते हुए कहा।
वह हंसी थी, "तुम मुझे शराबी बना दोगे ..."
मैंने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, "शराबी नहीं ... शराबिनी... करेक्ट इट .."
"हां वही .... शराबिनी ! ... ऐसे-ऐसे शब्द तुम्हारे दिमाग में आते कहां से हैं ....", उसने जोर से हंसते हुए पूछा।
"आफ्टरऑल, आई एम ए राइटर ...", उसके साथ मैं भी जोर से हंसने लगा।
"बॉयफ्रेंड .... रुक जाओ न .... देखो आज ? ... कल नहीं रोकूंगी ... कल चले जाना ..."
"हे बालिके ! मुझे मोह माया के इन सांसारिक बंधनों में ना बांध .... जाने दे। .... ", मैंने किसी तपस्वी की भांति कहा, "संसार है एक नदिया ... सुख-दुख दो किनारे हैं .... न जाने कहां जाएं ..... हम बहती धारे हैं ....
"तू कल चला जाएगा तो मैं क्या करूंगी .... तू याद बहुत आएगा तो मैं क्या करूंगी ...", उसने भी गीत गया।
"कल नहीं आज ... करेक्ट इट ..."
"नहीं कल ....", उसने अपना पैग खत्म करते हुए कहा। फिर खुद ही तीसरा बना लिया। मैने रोकने की कोशिश की, "आराम से पीहू ... आराम से ..."
वह सूफियाना अंदाज में बोली, "सुना नहीं क्या .... आराम .... हराम है ...?"
"ये सैंडविच कौन खत्म करेगा ...?"
"वो तो खत्म होगी ही। पहले सलाद ... देख नहीं रहे कितनी ढ़ेर सारी बची है ... मंगल चाचा ! तुम भी ले लो ... कहां चले गए ?", फिर वह मेरे कान के पास बोली जैसे कोई रहस्य हो, "मंगल चाचा को अधिक नहीं देना है ... कहीं लग न जाए ..."
"ओह हां !... बिल्कुल नहीं देना है ....", मैने सहमति से अपना सर हिलाते हुए कहा।
मंगल खाली कुल्हड़ लिए प्रकट हुआ। मैने कहा, "मंगल ! सलाद तुम भी खाओ ... बहुत बची है ..."
मंगल ने एक नजर रम की बॉटल में डाली और फिर मेरी तरफ देखा। मैने आंखों के इशारे से उसे शांत रहने के लिए कह। उसकी प्लेट में सलाद डालते हुए बोला, "मंगल तुम कमली को भूल गए ... जाओ उसे दे कर आओ ...", मैने उसके कुल्हड़ को भर दिया। मंगल समझ गया।
"जी सर जी ..."
"अब जाओ ...", मैने सलाद खाते हुए कहा।
मंगल समझ गया। अपनी प्लेट और कुल्हड़ ले कर किनारे हो गया। वैसे भी वह पीहू का लिहाज करता था। मैने दो घूट ली फिर पीहू से बोला, "पीहू ये दो सैंडविच बची हैं, चलो ईमानदारी से इसे उठाओ ..."
"एक बेईमान इंसान मुझे ईमानदारी की सीख दे रहा है। अपने बारे में सब कुछ छुपा ले और हमारे बारे में सब कुछ जान ले .... नॉट फेयर", उसने थोड़ा सा गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"मैंने कहा न कि मैं तुम्हें क्या बताता ? और अब बताने के लिए कुछ बचा भी नहीं। ... तुम्हारी हंसी-खुशी की जिंदगी में अपनी दर्द भरी दास्तां क्यूं सुनता ? और फिर यह सोचो कि कहीं तुम्हारे मन में भी आ गया होता कि तुम्हारी सहानुभूति पाने के लिए मैंने यह सब किया तो गलत होता न ? इसलिए खामोश रहा। ... फिर ज्ञान ने कल रात को तो बता ही दिया होगा ..."
"हूँ .... वैसे क्या नाम है उसका ...?"
"सॉरी नहीं बता सकता ... खुद से वादा किया है कि अब इस जुबान पर उसका नाम कभी न आयेगा ...", मैने शिप लेते हुए कहा।
"इतनी नफरत करते हो ...", उसने गौर से मेरी तरफ देखा।
"नहीं नफरत नहीं करता ... कर ही नहीं सकता। और क्यों करूं ? उसका क्या दोष ?"
"तो तुम्हें किस बात की सजा मिली ?", उसने हमदर्दी से पूछा।
"परसों दोपहर को कहा था न, कि सजाएं तो मेरा मुकद्दर है, कोई क्या कर सकता है ...?", मैने उसे याद दिलाते हुए कहा।
"तो फिर उसका नाम क्यूं नहीं बताते ...", उसने फिर पूछा।
"बात आदत की है, ये आदत छोड़ना चाहता हूँ ... और वैसे भी ... एक गीत है न ... जिस दिल में बसा था प्यार तेरा, उस दिल को कभी का तोड़ दिया, .... बदनाम ना होने देंगे तुझे, तेरा नाम ही लेना छोड़ दिया .... ", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"ज्यादा मत मुस्कुराओ ... ये मुस्कुराहटें झूठी और फीकी नजर आती है मुझे ... अब दूसरे का नहीं कुछ अपना सुनाओ ...", उसने सैंडविच खाते हुए कहा।
मैं भी एक बाइट लेते हुए बोला, "अपना सुनाऊं ...? पुराना तो कुछ है नहीं। नया ही बनाना पड़ेगा। तो चलो तुकबंदी करता हूं ....
जब नाम तेरा वह लेता होगा,
फिर तुझको कैसा लगता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
इकबार बुलाने पर तुझको,
सौ बार पलटते देखा है।
"ओह! क्या गहराई है यार !! माय गॉड ..... ये कंप्यूटर-वामपुटर छोड़ो ... तुम शायर बन जाओ ... सच कहती हूँ ..."
"मैं शायर बन जाऊं ? न जाने कितने शायरों को भटकते देख रहा हूँ ... पैसे-पैसे के लिए मोहताज देखा है। न बाबा, अपनी कंप्यूटर साइंस ही अच्छी है जो काम से कम रोटी तो देती है। हां .... यदि तुम मुझे अपने यहां नौकरी में रखने का वादा करो तो सोच सकता हूँ ..."
"नौकर !! कैसी बात करते हो बॉयफ्रेंड ... बराबर का हक है। छोड़ो यार ... मिस्टर सत्य प्रकाश की मालिका-ए-आलिया के दिल पर इकलौती तुम्हारी बादशाहत होगी ...", उसने अपना जाम मेरी तरफ दिखाते हुए कहा।
"ये होल्ड ऑन ... लग गई क्या ... "
"कमबख्त इन प्याले में कहां इतना दम ... हमें तो घायल तुम्हारी शायरी करती हैं ... अब महफिल जम गई तो जम गई... अब रुकनी नहीं चाहिए ...", उसने आम के पेड़ के तने में अपनी पीठ टिकाते हुए कहा
मैं जानता हूँ कि पीहू नशे में नहीं बल्कि एक अलग जोन में है, और इस जोन में मै उसका इकलौता हमसफर हूँ ....
बुझते चिरागों से महफिल रौशन नहीं होती,
टूटे दिलों से आशिया सजाया नहीं करते।।
बदस्तूर जारी है मेरे दिल में उसकी हुकूमत,
रियासतें बदलने से बादशाह नहीं बदलते।।
"अभी यह नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता, अभी तो उसकी कोई कड़ी बनाओ ...", उसने मुझे रोकते हुए कहा।
"यार तुमने मुझे ऑल इंडिया रेडियो के फरमाइसी नगमों का प्रोग्राम समझ रखा है क्या ... ये वाला नहीं वो वाला कर रही हो ", मैंने दिखावटी गुस्सा जाहिर करते हए कहा ... तो चलो सोचने दो ...
जब तेरे बदन को वह छूता होगा,
फिर तुझको कैसा लगता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
इकबार तुझे छूने पर,
तेरी सांसों को रुकते देखा है।
"वाह ... क्या बात है ... गो ऑन...", उसने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा।
उसके खयालों में जब तू आती होगी,
तो फिर तुझको कैसा लगता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
मेरे ख्यालों के आने पर,
तुझको लुटते देखा है।
"अरे मार डाला यार ! क्या गहरी बात कह दी ... वाह ... वाह ...", उसने अपना हाथ दिल के पास रखते हुए कहा, "... उसके ख्यालों तक पहुंच गए और वहां उसको कैसा लगता होगा !! क्या गहराई है ... वाह ... इसी तरह का एक और हो जाए ...",
"जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि ... नहीं सुना ? जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, वहां एक शायर के ख्याल पहुंच जाते हैं। ..."
"तो आगे इसी तरह का सुनना है .... तो जरा सोचने दो ... हां तो गौर फरमाइए ...
उसकी बाहों में जब तू जाती होगी,
तो फिर तुझको कैसा लगता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
मेरी बाहों में आने पर,
शीशे-सा पिघलते देखा है।
"हा .... हा ... हा .... अब तुम रूको, बस करो", वह जोर से हंसते हुए बोली, "मै नहीं चाहती कि तुम्हारा मर्डर हो जाए, कहीं 'उसके' .... 'उसने' सुन लिया न तो बच्चे तुम गए काम से ...."
"हां यार तुमने सही कहा ...", मैंने डरने का अभिनय करते हुए कहा, "जबकि ऐसा तो कुछ था ही नहीं ... झूठे आरोपों को मैं खुद ही सिद्ध कर रहा हूं ....", फिर उसके साथ में भी जोर से हंस पड़ा।
"चलो एक-दो मेरी तरफ से .... "
"रुको ... रुको ... एक मिनिट .... जो हों गईं हैं उनको पहले लिख लेते है ....", उसने बैग से पेन और मेरी डायरी निकलते हुए कहा।
कुछ उसे याद था, कुछ मुझे। हमने याद कर-कर के उन्हें लिखा। उसने कहा, "हां ... अब अगली हो जाए ... तुम्हारी तरफ से ...
उसके संग जब तू होती होगी,
तो फिर कैसे होती होगी।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
तेरी दिल की धड़कन में,
खुद को धड़कते देखा है।
अब कौन कहां पर होगा,
तो फिर कैसा होता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनो की ही चौखट पर,
जब दोनों को मरते देखा है।
"तुम निहायत भी बेहूदा इंसान हो ....", उसने अपनी गिलास खाली करते हुए कहा, "बंद करो अपनी बकवास .... रुलाते हो ... सच कहा था तुमने .... मुझे शराबिनी बना दोगे ....", फिर उसने गिलास को खुद से दूर फेक दिया।
"जब बर्दाश्त नहीं, तो सुनती क्यों हो ....?", मैने हंसते हुए उसे चिढ़ाया।
"कल के एक्ट में ये पीहू तुम दोनों के दर्द को फील कर के रोई थी, ये सब गुजारा है तुम्हारी जिंदगी से ... वो भी इतनी कम उम्र में ...?"
"नहीं यार सिर्फ कहानी का एक पार्ट था ... वो क्या कहते है, हां इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है ...", मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"तुम और तुम्हारी कहानी तुम ही जानो, कौन सच्ची कौन झूठी ... ", उठते हुए उसने कहा।
"कहां चल दी ...?", मैंने टोंका।
वह चुपचाप आम के पेड़ से कुछ दूर जहां पर खेत खत्म होता था और तार बड़ी की बाउंड्री थी, जाकर चुपचाप खड़ी हो गई और दूर तक देखने लगी। तभी मंगल मेरे पास आया। मैं उसी से पूछा, "मंगल ! वहां पर खड़ी पीहू क्या देख रही है ?"
मंगल ने गमगीन स्वर में बताया, "वो दूर टीन-शेड देख रहे हैं न ? यह इनके खानदान का पुश्तैनी शमशान घाट है। सभी का अंतिम संस्कार यही होता है। लगभग तीन साल पहले यहीं पर पांच लाशे एकसाथ जली थी .... जब कभी यहां आती हैं तो कुछ देर वहीं खड़ी बस टीन-शेड की तरफ देखती रहती हैं ...."
यादें ! दुखद यादें !! जिससे हम दूर भागना चाहते हैं लेकिन भाग कहां पाते हैं !!! यदि मैं उसका मित्र हूं, तो इस वक्त मुझे उसके पास जाना चाहिए, और मैं गया। लेकिन बिल्कुल सामान्य ढंग से। कोई शोक प्रकट करने के लिए नहीं बल्कि उसे शोक-सभा से बहार निकालने के लिए। मैंने उससे एक बार भी नहीं पूछा कि तुम यहां क्यों खड़ी हो और टीन-शेड की तरफ क्यों देख रही हो। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पीछे से कहा, "गर्लफ्रेंड ! यहां धूप में क्यों ? ठंड लग रही है क्या ?
उसने पलटते हुए कहा, "नहीं ... बस ऐसे ही .."
उसकी आंखों के कोर गीले थे। हम चटाई में पुनः आकर बैठ गए। लेकिन इस बार मैं आम के पेड़ पर टिक कर बैठा था और वह मेरी जगह पर। उसने एक और प्याले की फरमाइश की मैंने चुपचाप उसे थोड़ी सी बनाकर दी। उसने पीने के बाद मुझसे कहा कि मैं अपने पैर सीधे करू। और मेरे घुटने के पास अपना सर रखकर वह लेट गई।
"बॉयफ्रेंड !! तुमने अभी नौकरी की बात की थी न, तुम नौकर नहीं मेरे दोस्त बनकर रह जाओ। तुम्हें यहां कोई कमी नहीं होगी। कभी बाबा से कुछ नहीं मांगा ... तुम्हारे लिए सैलरी मांग लूंगी ... और वह दे भी देंगे .... विश्वास करो। मेरे पास रुपए-पैसे, जमीन-जायदाद ये सब इफरात है ... लेकिन मन की बात कहने के लिए मेरे पास सत्य के सिवाय और कोई नहीं। लेकिन उसकी भी अपनी कुछ मजबूरियां हैं। नई-नई नौकरी है न ..... तो काम में बहुत बिजी रहता है। बेचारा फैक्ट्री, माइनस, मेरे घर और अपने घर के बीच भागत-दौड़ता रहता है। बाबा से बात करो भी तो कितनी करो ... हादसे के बाद वह स्वयं आधे सदमे में हमेशा रहते हैं। .... ये बॉयफ्रेंड ! मैं मजाक नहीं कर रही हूं बताओ न तुम्हारी सैलरी कितनी है ... तुम्हें उससे ज्यादा दूंगी ...."
"और मुझे क्या करना होगा ...?", मैने उसके सर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"ज्यादा कुछ नहीं ... बस मेरे दोस्त बनकर मेरे पास रहो ... जब थक जाऊं तो इसी तरह मुझे अपनी शायरी, कविता, गीत और अपनी कहानियां सुनना ... और कभी कभी मेरे साथ बैठ कर पीना भी ... लेकिन देखो रोज़ नहीं .... समझे ? तुम हमेशा मेरे आस-पास रहना ..."
"कहीं तुम्हारे हसबैंड को मेरा यहां रहना अच्छा न लगा तो ...?"
"क्यूं न अच्छा लगेगा ? ...", पीछे से सत्य ने कहा। रास्ते की तरफ मेरी पीठ थी तो उसे आता हुआ मैं नहीं देख पया था।
मैंने पलट कर उसकी तरफ देखते हुए पूछा, "अरे सत्य ! कब आए ? और ज्ञान कहां है ... तुम्हारे साथ दिखाई नहीं दे रहा ..."
"वो बाबा के पास बैठा है ... मै तो तुम लोगों को खाने के लिए बुलाने आया था ... ", फिर वह पीहू के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "पीहू ! तुम ठीक हो न ?"
"हूं.... सत्य तुम आ गए ... मै थक गई हूं ... थोड़ी सी पी भी ली है .... नींद आ रही है ... मै सो जाऊं ...?", उसकी आवाज कुछ भारी हो रही थी। व्हिस्की के चार पैग अपना असर दिखा रहे थे। सत्य ने सवालिया निगाह से मेरी तरफ देखा। मैंने उसे सभी कुछ डिटेल में बताया। यह भी की टीन-शेड की तरफ देख कर वह कैसे अपसेट हो गई थी। सत्य चुपचाप सुनता रहा, फिर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "इसने बहुत कम उम्र में बहुत कुछ सहन किया है ... मैं भी इसे प्रॉपर टाइम नहीं दे पा रहा हूं ... मुझे इस बात का कभी-कभी बहुत दुख महसूस हता है
.... अपने आप को दोषी भी समझ लेता हूं ... कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं कि यह हमेशा खुश रहे ..."
"हर इंसान की जिंदगी में एक ऐसा फेज आता है, जब वह अपने कामकाज और कैरियर को लेकर व्यस्त हो जाता है, यह कोई गलत बात नहीं है। पर कोशिश करो यार कि इसे समय दे सको .... ये सिर्फ तुम्हारी है ... इसका ख्याल रखना ... ", उससे कहते हुए मेरी भी आंखों के कोर भींगने लगे।
"सत्य ने उसके सर को चूमते हुए मुझसे कहा, "काश ! तुम जैसा दोस्त इसके पास हमेशा के लिए रहे ... "
"देखो सत्य जो मुमकिन नहीं तो उस पर बात करने का कोई मतलब नहीं ... मैं तुमसे यथार्थ की बातें करूंगा। ये प्रॉब्लम तुम दोनों को ही मिलकर सुलझानी है .... कोई तीसरा आएगा तो मतभेद निश्चित है ... देखो यह सो गई, इसे उठा कर तुम चारपाई पर लिटा दो ... हम दोनों ने पर्याप्त खाना खाया है ... मुझे और खाने की इच्छा नहीं है। जाओ तुम और ज्ञान खाओ ... तब तक मैं इसके पास हूँ ... और देखो बाबा को इस तरफ मत आने देना ... "
सत्य ने उसे गोद में उठाकर चारपाई पर अच्छे से लिटा दिया और उसकी चुनरी ऊपर से ओढ़ाते हुए बोला, "ठीक है ... मै जा रहा हूं ... अभी कुछ देर बाद फैक्ट्री भी जाना है, मैं ज्ञान को अपने साथ ले जाऊंगा ... आज तुम लोग नहीं जा रहे हो ...। कुछ नहीं ... मै ज्ञान को देख लूंगा ... और बाबा दोपहर को आराम ही करते है ... सोचेंगे पीहू अटारी में होगी ... शाम को मैं जल्दी आ जाऊंगा .... तब तक तुम इसका ध्यान रखना .."
सत्य चला गया। मै भी पेड़ की जड़ में सर रख वही चटाई पर लेट गया। कुछ देर बाद मंगल पास आया, "सर जी ! कुछ और चाहिए ... ?"
"हां मंगल, देखो अमरुद और तोड़ो, मीठे हैं। और थोड़ा सा नमक लेते आना ..."
थोड़ी देर बाद मंगल थाली में अमरूद और नमक और चाकू लेकर हाजिर हो गया। अमरूद काट कर थाली में रखते हुए बोला, "ये इस बगिया के सबसे मीठे अमरूद हैं ... लीजिए .."
मैं एक टुकड़ा मुंह में डाल चबाते हुए बोला, " वाकई मीठे हैं ... तुम भी खाओ ..."
मेरे साथ अमरूद खाते हुए मंगल ने पूछा, "सर जी ! बिटिया को ज्यादा हो गई क्या ? .... इतनी क्यों पिला दी ...?"
मैंने उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा, " इस बार खुद ही पैग बनाए थे। और फिर मंगल कभी-कभी पूरी तरह होश में आने के लिए बेखुदी की हद पार करना जरूरी होता है ...",
"मतलब... ?", मंगल ने आंखें फैलाए हुए मुझसे पूछा।
"मतलब यह मंगल यदि तुम्हें यह बात समझ में आ जाती तो मेरी जगह पर राइटर तुम होते और मैं तुम्हारे लिए अमरुद काट रहा होता ...", मैंने उसकी तरफ देख कर थोड़ा-सा हंसते हुए कहा आगे कहा, "चलो एक-एक बनाओ ... और हां रम ही वह भी कम- कम, जेंटलमैन की तरह ..."
पीहू निश्चिंत सो रही थी और हम दोनों एक-एक शिप लेते हुए अमरूद खा रहे थे। कुछ देर बाद मेरी भी आंख बोझिल होने लगी। सोने से पहले मैंने मंगल से इतना कहा, "मंगल हम दोनों का ध्यान रखना ..."
कितना सोया पता नहीं चला किसी ने मेरे चेहरे में पानी का छीटा मारकर मुझे जगाया, "उठो भी कितना सोते हो .... ज्यादा पी ली थी क्या ...?"
मैं उठा तो देखा बगल में पीहू बैठी अमरूद खा रही है। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ? यह सवाल तो मुझे करना चाहिए था ..."
"तो करो किसने रोका है ... लेकिन पहले उठो तो ...", उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
मैं उठा और जग में रखे पानी से अपना मुंह अच्छी तरह से धोते हुए चारों तरफ देखा। धूप अभी भी तेज थी ... अर्थात शाम न तो हुई थी और न ही जल्दी होने वाली थी .... फिर भी मैंने पूछा, "टाइम क्या हुआ होगा ?"
"3 बजे होंगे ... और टाइम की बहुत फिक्र हो रही है तुम्हे ...? तो सुन लो आज तो नहीं जाने दूंगी ...", उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
"कौन कमबख्त है जो यहां से जाना चाहता है, मैं तो इसलिए जाना चाहता हूं कि फिर से लौट कर यहीं वापस आ सकूं ... फिर से इन्हीं वादियों में तुम से मिल सकूं ... और इस दुनिया से यह कह सकूं कि दुनिया में सबसे हसीन गर्लफ्रेंड मेरी है ... और तुमसे ... तुमसे कह सकूं कि ....", यहीं पर आकर मैं रुक गया। उसने कुछ देर तक इंतजार किया, जब मैं कुछ ना बोला तो उसने खुद ही पूछ लिया, "हां आगे बोलो ... क्या कह सकूं ?...."
"हां ... कह सकूं कि ... अब जाने भी दो न, देखो अभी कुछ नहीं सूझ रहा है .... जब दिमाक में जाएगा तो बता दूंगा ..."
"अच्छा तो तुम दिमाग से सोचते हो ...?"
"सभी सोचते हैं मैडम जी। सारा खेल इस दिमाग का ही है .... दिल तो बेचारा बदनाम है ..", मैं किसी ज्ञानी दार्शनिक की भांति कहा।
"उफ़! अदाएं तो देखो लड़की भी शरमा जाए .... और मैने तो दिल का नाम भी न लिया था ...!! आओ बैठो ... अमरूद खाओ ...", उसने अपने पास आने का इशारा करते हुए मुझसे कहा। मैं उसके पास बैठते हुए बोला, "बहुत खा चुका, तुम खाओ ..."
उसने एक बाइट लेते हुए पूछा, "ज्यादा हो गई थी ...?"
"नहीं तो, बिल्कुल भी नहीं, ज्यादा तो मुझे हो गई थी ... सत्य आया था उसी ने तुम्हें चारपाई पर लिटाया था ...."
"हूं। ... सुन रही थी ... लेकिन नशे के कारण आंख बोझिल हो रही थी ... तेज नींद आ रही थी ... इतना सुना कि आज तुम नहीं जा रहे तो फिर निश्चिंत होकर सो गई ... और जब नींद खुली तो देखा तुम सो रहे हो ..."
"खतरनाक हो यार, मतलब नशे में बेहोश समझ कर हम तुम्हारे खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकते ...", मैंने हंसते हुए कहा।
"कभी जुर्रत भी न करना ? ...", उसने मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "वैसे मुझे तुम्हें थैंक्स कहना है .."
"चलो कह दो और बता भी दो कि क्यों कहना है ...", मैंने उसी की तरह मुस्कुराते हुए कहा।
"मुझे खुदगर्ज बनाने के लिए .... आश्चर्य हो रहा है न ? देखो मैं समझाने की कोशिश करती हूं, शायद तुम समझ जाओ ... तुम पिछले तीन दिनों से यहां पर हो तो यहीं पर हो। तुम्हारे लिए पूरी दुनिया सिर्फ यहीं पर सिमट के रह गई है। तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके बाहर क्या हो रहा है। जब मन पड़ता है खाते हो, जब मन पड़ता है पीते हो। तुम हो, तुम्हारे गम है, तुम्हारी बची-कूची कुछ खुशियां हैं, और जिनके बीच हम लोग भी हैं ... लेकिन सिर्फ उतने ही जितना कि तुम चाहते हों। यानी कि तुम सब कुछ भूल कर इस पल को जी रहे हो। जीवन के प्रति तुम्हारा यह दृष्टिकोण देखकर मुझे खुशी भी है और डर भी।
"डर !! वो भला क्यूं?", मैंने पूछा।
"जहां तक मैं समझ रही हूँ, तुमने अपनी मर्जी से एक रिश्ता बनाना चाहा था, किन्हीं भी कारणों से नहीं बन पाया ? तो अब यह तय है कि तुम जल्दी नए रिश्ते नहीं बनाओगे और ना ही उन पर विश्वास करोगे ... अब तुम सिर्फ अपनी जिंदगी जीना चाहोगे ... इसीलिए मैने तुमसे कल विश्वाश के साथ कहां था कि यहां से जाने के बाद तुम कभी भी यहां पर अपनी इच्छा से आने की कोशिश नहीं करोगे। तुम जहां भी जाओगे वहीं के होकर जीने की कोशिश करोगे ? तुम्हे अब किसी की इतनी याद नहीं आएगी कि तुम उसे मिलने की कोशिश करो। अब तुम्हें कोई बंधन या रिश्ता स्वीकार्य नहीं होगा .... कर ही नहीं पाओगे ... हो सकता है कल को शादी भी कर लो, पत्नी आ जाए, बच्चे भी हो जाए ... तो सिर्फ तुम फ़र्ज़ निभाओगे ..."
"क्या मतलब है ? क्या मैं उनसे प्यार नहीं करूंगा ? गलत हो तुम ...", मैने उसका विरोध किया। पता नहीं क्यूं मुझे उसकी बात अच्छी नहीं लग रही थी।
"तो फिर तुम अपने आप को ही नहीं जान पाए .. जानती हूँ कि सुनने में तुम्हें बुरा लग रहा होगा और काश कि मैं गलत साबित हो जाऊं ... अब जो भी तुम्हारे जीवन में प्रतिरोध उत्पन्न करेगा उससे तुम दूर भागना चाहोगे। चाहे वह प्रतिरोध तुम्हारी भलाई के लिए ही क्यों ना हो। अभी मैं रोक लगा दूं.... यह नहीं करना है .... वह नहीं करना है, तो तुम मुझसे भी दूर भागने की कोशिश करोगे ... और सिर्फ तुम्हारे लिए कोई अपनी जिंदगी क्यों एडजेस्ट करेगा ? वह भी तो अपनी आजादी चाहेगा न ? .... "
"तो इसमें नई बात क्या है ? यह तो सभी चाहते हैं ...", मैने जानना चाहा।
"हां लेकिन तुम अपनी पूरी आजादी चाहोगे, सिर्फ अपने शर्तों के अधीन जीवन जीना चाहोगे ? सामाजिक बंधन और रश्ते अपना फर्ज समझ कर निभाओगे ... लेकिन सदैव के लिए उनसे नहीं जुड़ पाओगे .... और यदि मेरी बात का आज विश्वास नहीं हो रहा है तो मैं कल को रहूं या न रहूं तुम एक बार इसी जीवन में उसके पास भी जा कर देख लेना जिसे तुम आज बहुत चाहते हो ... लेकिन अभी तुरंत नहीं। अभी गुजरने दो बहुत से साल, उसे जीने दो अपनी जिंदगी ... फिर उसके बाद जाना ...."
"फिर क्या होगा ... ", मेरे अंदर की उत्सुकता जाग रही थी।
"आज मैं क्या बताऊं तुम खुद ही देख लेना ...", उसकी आवाज में एक रहस्य था।
"ठीक है, यह तो मैंने पहले ही सोच रखा है। लेकिन फिर भी तुमने कुछ तो सोचा होगा कि क्या होगा ...", मैने पूछा।
"होगा यह कि तुम एक आध्यात्मिक प्रेम यानि स्पिरिचुअल लव पर विश्वास कर रहे होंगे और वह तुम्हारे अंदर इसी सांसारिक प्रेम को देखने की कोशिश करेगी। तुमसे रिश्ते बनाने की भी कोशिश करेगी, तुमसे वह उसी तरह का प्रेम चाहेगी जिसे उसने बीच राह पर छोड़ा था, इस बात से बेखबर कि उसने तुम्हें अनजाने में ही सही बदल दिया है। उसे तुम्हारी कविताओं, शायरी, कहानियों की गहराई उसके दर्द समझ नहीं आएंगे। जिस पर मैं आज हृदय से, इसके मीनिंग को समझ कर वाह-वाह कर रही हूँ, उसे यह सब बहुत आर्डिनरी लगेंगी ..."
"ये आध्यात्मिक प्रेम क्या होता है ?", मैंने पूछा।
"एक ऐसा प्रेम जो फूल से नहीं उसकी खुशबू से होता है ..... जो सूरज से नहीं उसकी गर्मी से होता है .... जो चंद्रमा से नहीं उसकी शीतलता से होता है .... जो बादल से नहीं उसकी बारिश से होता है .... जो हवा से नहीं उसकी रवानी से होता है ... जो ज्ञानी से नहीं उसके ज्ञान से होता है .... जो दीप से नहीं उसके उजाले से होता है .... जो व्यक्ति से नहीं उसके व्यक्तिव से होता है। अर्थात जो व्यक्तिपरक नहीं सार्वभौमिक है ... यानी कि ऐसा प्रेम जो होने के कारण से नहीं, बल्कि होने से होता है ..."
"हूं.... वाह !!! फिर ..?", मैने आगे जानना चाहा।
"लेकिन वह तुम्हारे अंदर के इस आध्यात्मिक प्रेम को नहीं समझ पाएगी। जो जिंदगी वह आज तुम्हारे साथ जी सकतीं है, वहीं जिंदगी कल को तुम्हारे साथ जीना चाहेगी। और जब उसकी यह इच्छा पूरी नहीं होगी तो तुम पर तरह-तरह के आरोप लगाएगी। ऐसा माहौल पैदा कर देगी कि तुम खुद ही उससे दूर हो जाओ ... और इसका दोषी भी वह तुम्हें ही सिद्ध करेगी। ... अप्रत्यक्ष रूप से वह तुम्हें यह जताने की कोशिश करेगी की देखो मैं तो अपनी वफाएं निभा रही हूं लेकिन तुम ही बेवफा की तरह मुझसे दूर भाग गए। इस तरह से उसने तुम्हारे साथ जो आज किया है, कल के दिन उसे सही साबित करने की कोशिश करेगी। तुम्हें जताएगी कि इसी तरह तो मैने भी मजबूर होकर तुम्हें छोड़ा था।
मैं कहना यह चाहती हूं कि उसने तुम्हारे साथ जो कुछ भी किया उससे तुम इतने मासूम बन चुके हो कि उसकी ये चालाकियां तुम बर्दाश्त नहीं कर पाओगे। और अंत में तुम उसके पास से खुद ही भाग आओगे ... यह हकीकत है, जिसे आज मैं देख रही हूं लेकिन तुम नहीं देख पा रहे हो ...",
"लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये सब होगा .…", मुझे उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
"मैं ये नहीं कहती कि ये बदलाव आज ही होगा, वह आज तुम्हारे जैसे ही होगी, लेकिन धीरे-धीरे ये बदलाव आएंगे, या यूं कहो कि उनका आना तय है ... तुम में भी आयेंगे... लेकिन ये बदलाव सकारात्मक होंगे और उसका परिस्थितिजन्य या अपराधबोध से युक्त ...
इसीलिए कहती हूं अपने आप को यूं बर्बाद मत करना। खुद को बिजी कर लेना। ... और सुनो ! प्रेम के मामले में तुम उससे कहीं आगे निकल चुके हो। अब तुम्हारे हाथ में या तो जाम होगा या फिर कलम। चुनाव तुम्हे करना है। इसीलिए कहती हूँ, किसी भी जज्बात में आकर अपनी कलम छोड़ने का इरादा कभी मत करना। जब तक यह तुम्हारे हाथ में है तो तुम हो, तुम्हारा वजूद है। जिस दिन ये कलम नहीं होगी तो खत्म समझना अपने आप को ...", उसके चेहरे में एक गहरी मुस्कान थी।
उसकी रहस्यमय बातें सुनकर मैं हैरान था, "ये ! तुमने दर्शनशास्र या मानोविज्ञान भी पढ़ा है क्या ...?"
"हां पढ़ा है ... लेकिन इस प्रेडिक्शन के लिए जरूरी नहीं है ... तुम्हारी गर्लफ्रेंड ही होना पर्याप्त है ... ", उसने हंसते हुए कहा।
"ये रुको, तो तुम सत्य के साथ ऐसा नहीं करोगी ...?", मैंने उसे रोकते हुए पूछा, "वह भी तो तुमसे रिश्ता बनाना चाहता है ...? तुम्हें एक सामाजिक रिश्ते में पाना चाहता है ? .... "
"मै उसे कभी नहीं छोडूंगी ... ये तय है। शादी न करने की एकमात्र वजह यह थी कि मैं उसे हर बंधन से मुक्त रखना चाहती थी ... ताकि कल को ..."
"हा बोलो ? रुक क्यों गई ..."
"अब क्या मतलब कहने का ... मान लिया न, बना लिया न रिश्ता, पहले मन से बाबा के सामने माना था ... अब उसके, तुम्हारे, मंगल, कमली और अब ज्ञान भैया के सामने भी। कल किसी और के सामने भी मानना पड़ेगा तो मानूंगी। लेकिन तब भी मैं यही चाहूंगी कि वह मुझसे किसी भी रिश्ते और बंधन से मुक्त रहे ... अब चलो इन भारी भरकम बातों को छोड़ते है दोस्त। कुछ हल्की-फुल्की और हसी-मजाक की बाते करते हैं। कैसे बॉयफ्रेंड हो, गर्लफ्रेंड सामने है और तुम फ्लर्ट-स्लर्ट भी नहीं कर रहे हो ...?"
"वो मुझे आता ही नहीं ... कभी किया ही नहीं ...", मैने हंसते हुए कहा।
"मै सोचती हूँ कि मैं तुमसे शादी कर लू ... करोगे ?...", उसने कुछ शरमाते हुए पूछा।
"शादी ... मुझसे। क्यों ? तो फिर सत्य ...", मै चौक पड़ा।
"वो इसलिए कि शादी इज बर्बादी, और तुम ऑलरेडी बर्बाद हो .... तो फिर सत्य को क्यूं बर्बाद करूं ...", फिर वह जोर से हंस पड़ी।
"ओह ! तो मजाक किया जा रहा है ..?", मैने भी हंसते हुए कहा।
"नहीं फ्लर्ट करना सिखा रही हूँ ... ", वह फिर हंसी।
लेकिन इस हंसी में मै शामिल न हुआ। मै चुप रहा। उसकी तरफ बहुत ही अपनत्व और प्यार से कुछ देर तक देखता रहा। उसने भी मुझे ध्यान से देखा।
"यूं मेरी तरफ क्यूं देख रहे हो ?...", उसने गंभीरता से पूछा।
उसी तरफ मासूमियत से उसकी आंखों में झांकता हुआ मै बोला, "पीहू ! काश तुम पहले मिली होती ..."
"वो भला क्यूं ..?"
"तो मैं यूं बर्बाद तो न हुआ होता ... और जानती हो तुम्हारे चेहरे में सबसे खूबसूरत क्या है ... ", मैने प्रेम में डूबे हुए आशिक की तरह उससे कहा।
"नहीं ... ", उसने अपनी नजरें नीचे कर कुछ लजाते हुए कहा।
"तुम्हारी ये खूबसूरत बादामी आँखें ... मुझे इसमें पूरी कायनात दिखती है। ... दिल करता है बिना सेफ्टी किट के इनमें कूद जाऊं और हमेशा-हमेशा के लिए डूब जाऊं। ... और फिर इन होठों की मुस्कान बन तुम्हारे पूरे चेहरे में छा जाऊं ...", मै उसी तरह मासूम सूरत लिए आगे बोला, "ये मेरी तरफ देखो न ... मै भी तो देखू कि तुम इतनी खूबसूरत क्यों हो !!"
लेकिन वह खामोश उसी तरह बुत बनी बैठी रही। उसके चेहरे में लाज की लाली, और दुनिया-जहान की शर्म-ओ-हया आ गई। पल भर के लिए मैं उसे यूं ही देखते बैठा रहा फिर अचानक हंस पड़ा, "इसे कहते है फ्लर्ट करना .... जो तुमने किया उसे लतीफा सुनना कहते हैं .... प्लीज करेक्ट इट !!!"
"यू .... ", वह मेरे पीठ पर जोर से मारते हुए बोली, "कितने बदमाश हो तुम .... कितनी ऊंचाई पर ले जाकर धक्का देते हो ...?", फिर वह भी मेरे साथ जोर से हंस पड़ी।
जब कुछ देर हम हंस लिए तो माहौल सचमुच हल्का हो गया। उसने कहा, "तो माय डियर बॉयफ्रेंड ! मुझे एक पल, एक लम्हे की वैल्यू समझाने और दिखाने के लिए एक बार फिर थैंक्स। एक्सेप्टेड न?"
"एस, एक्सेप्टेड ... तो ? ...", मैं सावलिया निगाह से उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
"तो फिर खोलो बॉटल ! हो जाय एक-एक ...", उसने बैग की तरफ देखते हुए कहा।
"जरूर ! .... क्यों नहीं ....", मैने बैग अपनी तरफ खींचते हुए कहा।
"ये अमरूद बहुत मीठे हैं न ...?", उसने एक अमरूद के चार टुकड़े करते हुए पूछा।
"जी ज़रूर, तो क्या इन्हें भी फ्लर्ट करना होगा ...?", मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
"मतलब मैं मीठी हूँ ...?", उसने अपने दोनों घुटनों पर अपना चेहरा रख तिरछी नजरों से देखते हुए पूछा।
"हो सकता है ! ... सत्य से पूछना पड़ेगा ... कल तो सोने को मिला न होगा ... नई-नई शादी जो हुई है ...? ", मैने उसी तरह मुस्कुराते हुए पूछा।
"हां सच !! ...… पहली बार सत्य गहरी नींद सो रहा था और मैं काफी देर तक जागती रही ... सोचती रही ...", उसने उसी तरह देखते हुए कहा।
मैने व्हिस्की का एक छोटा पैग उसकी तरफ बढ़ाते हुए फिर पूछा, " क्या ? ..."
"सच कहूं तो ज्ञान भैया से जब तुम्हारे बारे में पता चला तो ..."
"गर्लफ्रेंड अब छोड़ो उन बातों को ... ", मैने चीयर्स करते हुए आगे कहा, "लेकिन तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिये था। सो बैंड ... पति की बाहों में बॉयफ्रेंड के सपने !! तो डाइवोर्स पक्का ..."
वह हंसते हुए बोली, "अच्छा ! ... तो फिर नहीं देखूंगी ... ये सुनो ! मुझे कैरेट्स खानी है ..."
वह अपना जाम खत्म कर उठते हुए बोली, "क्या शराबियों की तरह धीरे-धीरे पी रहे हो ?... खत्म करो और आओ मेरे साथ ..."
"कहां ...", मैने अपना पैग खत्म करते हुए पूछा।
"फॉलो मी.... नो सॉरी ... आओ साथ चलते हैं ... ", उसने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा।
हम दोनों साथ ही खेत में घुसे। उसने कुछ गाजर और चुकंदर उखाड़े, कुछ ककड़ी, कुछ खीरे भी तोड़े। कुछ मैने पकड़े कुछ उसने। पंप हाउस के पास आए उन्हें अच्छे से धोया फिर चटाई में आ गए। उसने एक-एक कर सलीके से काटे और थाली में मिक्स कर फैला दिए, "थोड़ा सा नमक डालो न ..."
"पीहू ! एक बात पूछूं ... बुरा तो नहीं मानोगी ..?
"नहीं ... तुम पूछो तो ... तुम्हारे लिए सौ खून माफ है ब्वॉयफ्रेंड !", उसने नजाकत से कहा।
"तुमने इससे पहले कभी ड्रिंक किया था ..."
"नहीं बिल्कुल नहीं... स्कूलिंग फिर डेढ़ साल कॉलेज बॉम्बे में ही की ... वहां ये सब आम बात है ... बहुत कम उम्र में लोग मेच्योर्ड और समझदार हो जाते हैं। दुनिया भर का नॉलेज हो जाता है। शराब, सेक्स, लव ये सब बहुत कॉमन होता है ... मैंने नजदीक से देखा है। यूं कह लो थ्योरी पढ़ी है, कभी प्रैक्टिकल नहीं किया ...", उसने बड़ी आसानी से मुझे समझा दिया।
थोड़ी देर में आधी से अधिक सलाद खत्म हो चुकी थी, हमने दूसरा पैग बनाया।
"बाबा के पूजा की तैयारी फिर खाना बनाना होगा, तो तुम जरा सम्हल के ...", मैंने उसे समझाना चाहा।
"हूं ... मुझे शराब नहीं चढ़ती मंगल, देवताओं का वरदान है मुझ पर ... यही कहते हो न मंगल से ....", फिर हम जोर से हंस पड़े।
"तो चले ...?", उसने पूछा।
"कहां ...?"
"घर ... और कहां ...?"
"बाबा के पूजा का टाइम हो गया ..?", मैंने सूरज की तरफ देखते हुए पूछा।
"अभी तो बहुत टाइम है ... लगभग एक घंटे ...", उसने जवाब दिया।
"तो फिर अभी रुकते हैं ...", मैंने पेड़ के तने में अपनी पीठ टीका के पैर फैलाते हुए कहा।
"तो फिर तीसरा बनाओ ... मै अभी आई ...", कहते हुए वह कुछ दूर दूसरे पेड़ की तरफ चली गई। उसके आते-आते तीसरा बन चुका था।
मैंने भी उठते हुए कहा, "मैं भी आता हूं ..."
"हूँ..! तुम भी !! ... पहले कहां होता, साथ ही चलते ...", उसने हंसते हुए कहा।
"तुम भी ! लगता है धीरे-धीरे असर कर रही है ...", मैंने कुछ शरमाते हुए कहा।
हम कुछ देर बाद फिर एक साथ बैठे थे। मैंने उसे समझाते हए कहा, "मैं फिर से कह रहा हूं ... तुम उतनी ही लेना जितने में फ़ाउल न हो .."
"तुम बना रहे हो न, तो नहीं होऊंगी, विश्वास है मुझे। हां यदि खुद बना कर पी रही होती तो हो सकती थी ... "
सूरज अपना सफर तय करते-करते नदी के तीर तक पहुंच चुका था। एक खूबसूरत शाम ढलने को थी। अमरूद के पेड़ों में पक्षियों के झुंड के झुंड हमारे साथ अमरूद का आनंद ले रहे थे। दोपहर में कुछ तेज चल रही हवा मंद-मंद पुरवाई में तब्दील हो चुकी थी। सामने सलाद की थाली, हाथों में जाम, दो छोटे-छोटे पैग का हल्का-हल्का शुरूर। कुछ आध्यात्मिक, दार्शनिक, और मनोवैज्ञानिक बातों के साथ-साथ बहुत-सी हंसी-मजाक की बातें। एक दूसरे के प्रति हृदय में अटूट विश्वास लिए हम दोनों, दुनिया से बेफिक्र इस एक लम्हे को एक साथ जी रहे थे। इस तथ्य को पूरी तरह नकारने की नाकाम कोशिश करते हुए कि प्यार एक ही बार होता है। अब यहां न तो कोई कहानी थी, न कोई किरदार, और न ही कोई राइटर।
"ज्ञान ! देखा तो जिंदगी हो तो इन जैसी !! बेफिक्र, न कोई टेंशन, न कोई भाग-दौड़ ....", पीछे से आते हुए सत्य की आवाज सनाई दी, "क्या बात है दोस्तों फुल एंजॉय !!! हूं ... काश मेरी भी किस्मत तुम्हारे जैसी होती। ... ब्रोकन हार्ट, बगल में मरहम लगाने के लिए एक नई गर्लफ्रेंड ... सामने जाम ... ये खुशनुमा ढलती शाम ... आह ! क्या सीन है !! ",
फिर वह हम दोनों के सामने घुटने के बल बैठ एक हाथ दिल पर और दूसरा हाथ हमारी तरफ करते हुए बोला, "यार इस हरे-भरे दिल को भी इस महफिल में शामिल करो, कि सिर्फ ब्रोकन हार्ट ही एलाऊ हैं ?..."
मैंने भी मजाक में अपने दोनों हाथ उसकी तरफ फैलाते हुए कहा, "नहीं मेरे दोस्त ! वेलकम !! ये सच है कि सोने को चमकने के पूर्व आग में तपना पड़ता है, लेकिन मेरी किस्मत की बात तुम न करो तो बेहतर है। ... तुम हरे-भरे ही बहुत प्यारे और चमकदार सितारे हो ..."
ज्ञान खाट में बैठा हुआ बोला, "ये क्या नौटंकी मचा रखी है ? अबे साले ! देवताओं का वरदान तुझे मिला है .... इसे नहीं !! अपना नहीं तो कम से कम इसका तो ख्याल रखा होता है ..
"मेरे भाई मत रोक, मुझे जी लेने दे आज। क्या पता ये पल, ये लम्हे, ये शामें कल हो न हो। यहां तक कि हम भी कल हो न हों ....", मैंने किसी बूढ़े दार्शनिक की भांति कहा।
"तो ज्ञान, अब कोई ज्ञान की बात नहीं होगी...", सत्य ने मेरी गिलास में रम भरते हुए कहा, "मै तो थक गया भाई, थोड़ा रिलेक्स होना चाहता हूँ... ", वह पीहू की गोद में सर रख लेट गया, "भाई ! तुम कुछ सुनाओ ..."
"जो हुक्म ...", मैने अदब के साथ सुनना शुरू किया।
तेरी रातों का जीता - जागता स्वप्न हूँ मैं,
तेरी बेचैनी, फरेबी वादों की जरूरत हूँ मैं।
"अ... हा !! क्या बात है ....", उसने शिप लेते हुए कहा।
मेरी कहानी का तू हिस्सा नहीं,
फिर भी तेरे होने का गुरुर हूँ मैं।
तेरी बातें, तेरा चेहरा,
न भूल पाऊंगा मैं।
ये प्यार की कशिश,
तेरे चेहरे की ये रूमानियत।
लाख मोहब्बतें सही,
मुस्कुरा के कह देना तेरा,
ऐसी तो कोई बात नहीं।
क्यों तुझ पर यकीन नहीं आता।
मैं कैसे कह दूं कि तुझसे मोहब्बत नहीं मुझे।
जज्बात जो कभी तुझसे मिले,
अब कैसे कह दूं इन्हे अलविदा !
"ओ हो .... अरे पीहू ! कुछ सीखो अपने बॉयफ्रेंड से .... एक अंतिम हो जाए ...", सत्य रोमांटिक होते हुए बोला।
मैने उसके हाथ से अधूरा जाम ले एक शिप लेते हुए आगे कहा ....
जो गुजर रहे हैं हमारे बीच ये पल...
उन्हें सजदे करने का मन करता है! ...
मैं जानता हूँ कि तू मान जाएगी,
पर क्यूं तुझे मनाने को दिल करता है।
यह भी कि तू मान भी जाए गर,
तुझे अपनी बाहों में भरने का मन करता है ....
"देखा ज्ञान ! ये दुनिया का पहला इंसान है जो हसबैंड के सामने उसकी बीवी को फ्लर्ट कर रहा है .....", सत्य ने हंसते हुए ज्ञान की तरफ देख कर कहा।
"और बेचारा हसबैंड कुछ नहीं कर पा रहा ...", ज्ञान ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, "संभल के भाई ... कहीं ऐसा ना हो कि यह पीहू को लेकर भाग जाए और तू देखता रहे ..."
"एक तो भगाई न गई मुझसे और अब इसे लेकर भागूंगा ? तू भी ज्ञान .... ", मैंने पीहू की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"इतनी भी इंसल्ट न करो बॉयफ्रेंड ! और वैसे भी तुम्हें भगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी ...", उसने चुटकी बजाते हुए कहा, "तुम यूं एक इशारा करना बस, मैं खुद ही चल दूंगी ...."
"अब देख लो सत्य, कौन फ्लर्ट कर रहा है ...", मैंने मासूमियत से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
सत्य मुझे देखकर मुस्कुराया, "यही तो जिंदगी है मेरे दोस्त। ...पीहू ! फिलहाल अभी तो घर चलना चाहिए। बाबा के पूजा का टाइम हो रहा है ....",
"अरे हां !! लेकिन पूजा की तैयारी तुम करना मैं खाना बनाऊंगी ..... अब चलो उठो मेरी गोद से ... बच्चे की तरह पड़े हुए हो ...", उसने सत्य का गाल नोचते हुए कहा।
सत्य ने उठते हुए ज्ञान से पूछा, "तुम लोगों को यहीं रुकना है कि चलना है ..?"
"तुम दोनों जाओ ...", ज्ञान ने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा, "हम दोनों यही रहेंगे .... क्यों, है कि सब खत्म ?"
"है न ये जो बची है, रम अपने लिए .... एक और है ... मंगल के पास रखी है। व्हिस्की पीहू के लिए है ... लेकिन आज का प्रोग्राम है क्या ... ?", मैने सत्य की तरफ देखते हुए पूछा, "आज बिल्ली के गले में कौन घंटी ....."
"मैं बांधूंगी ... ", पीहू ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखो .... सब्जी मै घर से लाऊंगी .... रोटियां गरमा-गरम चूल्हे की ...."
"और .... पुलाव भी ... वो तुम लाजवाब बनाती हो ...?", मैने फरमाइश की।
"ओके.... डन .... ज्ञान भैया ... इन्हें ज्यादा पीने मत दीजिएगा ... अब चलो सत्य ... हम लोग आते हैं ..."
दोनों चले गए। ज्ञान मेरे पास उसी जगह बैठ गया जहां कुछ देर पहले पीहू बैठी थी। अपने लिए एक पैग बनाते हुए बोला, "पीहू को तेरी इतनी फिक्र क्यों है ?"
"मुझसे क्या पूछता है, उसी से पूछ लेते ?", मैंने उसकी तरफ देखते हए कहा।
"बात तो सही है .... चल उसी से पूछूंगा .."
"ये दिमाग खराब हो गया है क्या ...? तू भी हद करता है। दोस्त मानती है ... इसलिए फिक्र करती है और तुझे उसकी आंखो में सत्य के लिए जो प्यार है, नहीं दिखता ? बड़ा आया पूछने वाला .... चल मेरे लिए भी बना ...."
"तू खुद ही बना ले ...", ज्ञान ने बॉटल मेरी तरफ खिसकाते हुए कहा, "लेकिन ज्यादा नहीं ...."
"हूं .... वैसे भी ... अब थक गया हूँ यार .... लेकिन चलना तो पड़ेगा .... और यदि रुक भी जाऊं तो ये दुनिया तो नहीं रुकेगी न ....? कहीं न कहीं पीहू सच कहती है ... यदि उसे भूलना आसान नहीं तो कलम ही क्यों न उठा लूं .... "
"हां ... अब तुझे मूव ऑन करना चाहिए ... अपने लिए न सही अपने माता-पिता के लिए ... तूने ही बताया था न एक दिन कि किस तरह तेरी मां ने तेरे लिए संघर्ष किए हैं .... ", ज्ञान ने मुझे समझाते हुए कहा।
"सच है ज्ञान ! लेकिन किसी को भूलना, भूल कर आगे बढ़ना जितना आसान समझ में आता है न, वास्तव में होता नहीं है ... जिस तरह आज पीहू को अपनी जिंदगी में शामिल करके सत्य सपने देख रहा है, वैसे ही एक सपना मैंने भी देखा था। विवाह के प्रत्येक वचन में अपने स्वीकृत देने से पूर्व वह मेरी तरफ देखती, जैसे मुझसे इजाजत मांग रही हो .... उसकी मां को डर था कि यदि मैं कुछ देर और उसके सामने बैठा रहा तो कहीं उनकी बेटी जज्बात की रौ में बह के बगावत न कर दें .... उन्होंने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था। मुझे उसके सामने से हटाकर उसी के कमरे में उसकी यादों के साथ बंद कर दिया। ... मैं रोता रहा, सिसकता रहा। अपने आंसुओं से उसकी ही तकिया भिगोता रहा। मुझे तकलीफ इस बात की नहीं है कि केवल मेरे सपने टूटे बल्कि तकलीफ इस बात की है कि सपने उसके भी तो टूटे हैं। वो सपने हम दोनों के साझा सपने थे ....
हम दोनों ही एक दूसरे से कभी नफरत नहीं कर पाएंगे और इसलिए दोनों के लिए मूव ऑन करना मुमकिन ही नहीं। सारी उम्र दिखावा करने की बस कोशिश करेंगे। रही बात पीहू कि तो सच कहता हूं तुझसे, यदि वह ऑलरेडी सत्य के साथ कमिटेड न होती तो मैं उसे खुद ही प्रपोज करता।
उससे कहता, तुम मुझे पति के रूप में नहीं हमेशा बॉयफ्रेंड के रूप में रखना। मेरी एक अच्छी दोस्त बन के मेरे साथ रहना। हां ज्ञान ! एक पल में मैं स्वार्थी बन जाता, यदि वह ऑलरेडी कमिटेड न होती तो। कहता, जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ। अब तुम ही एक वजह हो जीने की। उसके सामने घुटने के बल बैठने में भी मुझे कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती। कहता, मै भटका हुआ मुसाफिर हूँ, टूटा हूं, बिखरा हूं, मुझे अपनी बाहों का सहारा दे दो। मैं भी सत्य की तरह उसे कहता कि मुझे किन्ही रस्मों की जरूरत नहीं है, बस तुम मेरे पास रहो। हर सुबह खिलते हुए फूलों में, ढलती हुई शामों में, रात्रि की नीरवता में। मेरी हर खुशियों में, मेरी हर उदासियों में।
उसके साथ जिंदगी जीता। इस समय मेरी नजर में वही एक लड़की है जो मुझे समझती है और मुझे संभाल सकती है। लेकिन अब उससे जाहिर करना मतलब उसे हर्ट करना होगा। ... जनता है ? तुम लोगों के आने के पहले वह मुझे यही सब समझा रही थी .... शराब मेरी कमजोरी न तो कल थी ... और न ही आगे होने दूंगा। मेरी तो सबसे बड़ी कमजोरी है, मेरी अपनी भावुकता और खुद के जज्बातों के आधीन हो जाना !! ..."
ज्ञान ! अब इससे अधिक क्या कहूं तुझसे। कैसे बताऊं कि आज मेरे जीवन में पीहू की क्या अहमियत है, वह मेरे लिए कितना मायने रखती है। यदि बीच राह में प्यार छूट जाए तो एक निस्वार्थ रिश्ता मित्रता का होता है। वही आपको बचा सकता है। हम दोनों से बेहतर और कौन जान सकता है। नहीं तो क्या जरूरत थी तुझे मेरे पास आने की ? क्या जरूरत थी दस दिनों तक मेरे सथ रहने की ?
मंगल हमारे पास आते हुए बोला, "सर जी ! समेट लूं ? "
मैने भरा हुआ जाम उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, "हां समेट लो ..."
"लेकिन ये तो आप ने अपने लिए ....", मंगल ने हैरानी जाहिर करते हुए कहा।
"मेरी अभी इच्छा नहीं .... पीहू और सत्य को आ जाने दो ... चल ज्ञान उठ ...", मैने ज्ञान की पीठ ठोकते हुए कहा।
"आज तो हमें चलना था न ? तू रुक कैसे गया ? ....", मैंने चलते हुए उससे पूछा।
"यार सत्य ने ज़िद की .... और गेस्ट का भी आना कैंसिल हो गया तो सोचा रुक ही लेते हैं ...", ज्ञान ने मेरा बैग थाम रखा था और पीछे मंगल खाट, चटाई और दरी पकड़े हुए चला आ रहा था।
"तो कल चलना है न ? ... "
"हां ... दोपहर तीन बजे तक निकल चलेंगे ... सत्य को भी कल शाम को फैक्ट्री जाना है ... अभी मै बाइक अंदर कर लेता हूँ ..."
मै हाथ-मुंह धो के बाहर मड़ैया के बाहर ही खाट पर कुछ रिलेक्स हो के लेट गया।
"तो बाबू साहिब ! किसी को भूलने आए थे, उसे भूले तो नहीं, किसी की नई यादें ले कर जा रहे हो ....?", ज्ञान मुझे छेड़ते हुए बोला।
"यार सर दर्द कर रहा है .. और तुझे मजाक की सूझ रही है ...?", मैने सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"पीना है तो नॉन स्टॉप पीना है, न सुबह न शाम देखना है ? सर दर्द नहीं होगा तो और क्या होगा ? मेरी मान तो अपने मन के अन्तर्द्वन्द को हटा और जो भी कहना है कह दे उससे ...", ज्ञान मुझे समझाते हुए बोला।
"कह दूं ...? एक अच्छे-खासे साधारण और साफ-सुथरे संबंध को कॉम्प्लिकेटेड कर दूं ? जानते हुए कि वह तो मुझे अपना बेस्ट फ्रेंड मानती है, इतना की बॉयफ्रेंड कहने में भी कोई हिचक नहीं ? मै यह भी जानता हूं कि सत्य मेरी फीलिंग को समझेगा। मुझ पर कोई आरोप नहीं लगाएगा, लेकिन फैसला तो पीहू को ही करना होगा न ? एक दोस्त को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दूं ? नहीं ज्ञान ! फ्लर्ट करना हंसी मजाक करना एक अलग बात है लेकिन ये गलत होगा। बेहतर है मैं अपने रास्ते जाऊं शायद मेरी मंजिले मेरे रस्ते अलग है और उन राहों में मुझे अकेला चलना होगा ..."
"अंतरात्मा और दिल का सबसे बड़ा बोझ कौन सा होता है, जानता है ? न कह पाने का दर्द ... और मैं नहीं चाहता कि तू यहां से अब कोई दर्द लेकर जाए। इसलिए कहता हूं कि अपराध ही सही, लेकिन तुझसे हुआ तो है न ? तो उसे सच्चे मन से स्वीकार कर, तुझे मुक्ति मिलेगी ... हो सकता है न कहने का दर्द, कह लेने के दर्द से कहीं अधिक दर्दनाक हो, तो फिर क्या करेगा ? ...", फिर वह मंगल को पुकारते हुए बोला, " मंगल ! भाई इधर तो आना तुम्हारे सर जी को तुम्हारी जरूरत है ..."
"जी सर जी ... ", अगले ही पल मंगल हाजिर।
"बनाओ मंगल, आखरी बार तुम्हारे हाथ के जाम हो जाए, कल की रात न जाने कहां गुजरे ...."
मंगल ने तीन कुल्हड़ निकाले।
"क्या मंगल इतना कम ? ये साकी क्या तेरे मयखाने में शराब न रही, कम से कम पैमाना तो भर दिया होता। अधूरे जाम पीने की आदत नहीं है रे ... वैसे आज की तैयारी क्या है ? पीहू बिटिया तुम्हारी कुछ कह कर गई हैं ? ", मैंने कुल्हड़ खाली करते हुए पूछा।
"जी सर जी ! ... रोटियां बनेगी और पुलाव भी। और एक बात कह कर गई हैं, सर जी को कम पिलाना, हो सके तो न पिलाना ...", मंगल ने धीरे से कहा ताकि ज्ञान न सुन सके।
"अच्छा मंगल तुझसे भी !! तो बंद कर। क्यों पिला रहा है ... चल थोड़ी सी और दे ... और अपने लिए भी ... चावल रख दे, तब तक वही पके। रोटियां तो बाद में बनेगी ?. तो मंगल तुम इतना इंतजार करो फिर आओ। और हां सुनो थोड़ा सा कमली का भी ध्यान रखना। अकेले-अकेले नहीं ... हां ..."
आधे घंटे बाद मंगल फिर हाजिर हुआ। मैंने कहा, "मंगल ! थोड़ा सा सर दर्द कर रहा है। कोई इलाज है ..?"
"हां सर जी है .... मेरे पास एक आयुर्वेदिक तेल है उसी को ठोकता हूँ माथे में...", मंगल उठते हुए बोला।
कुछ देर बाद वह तेल की सीसी लेकर हाजिर हआ और मेरे सर पर तेल ठोकते हुए बोला, "देखिएगा सर जी, बस दस मिनट में सिर दर्द गायब हो जाएगा ..."
वह धीरे धीरे सर दबाते हुए बोला, "सर जी ! हम लोगों की सुध आयेगी ?"
"क्यों नहीं मंगल ... क्यों न आएगी ? जब भी सर दर्द करेगा, कभी पीने का मन होगा ... तो तुम याद आओगे ...", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"क्या सर जी ! आप भी !! यही रह जाइए न .... फिर देखिएगा हम लोग कितनी सेवा करते हैं ...", मंगल कुछ शरमाते हुए बोला।
"मंगल देखो तो वो सामने सत्य आ रहा है क्या ? तुम भाग के जाओ और दो कुर्सियां ले आओ ..."
मंगल उठा और मड़ैया के अंदर से कुर्सियां निकाल बाहर खाट के नजदीक रख दी। इस बीच सत्य और पीहू नजदीक पहुंच गए, "मंगल चाचा ! ये सब्जी का टिफिन रख दो ... और चावल रख दिए न ...? अरे इन्हें क्या हो गया ...?"
सत्य नजदीकी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, "क्यों भाई क्या हो गया ? अच्छा खासा तो छोड़ के गए थे अभी !! ..."
"कुछ नहीं यार, थोड़ा सर में दर्द है ... मंगल मसाज दे रहा है, काफी आराम मिला है ..."
"क्या बॉयफ्रेंड ! तुम भी न जाने कौन-कौन से नए रोग लगा लेते हो ...! मंगल चाचा तुम उठो और चावल देखो ... ", वह कुर्सी को मेरे सिरहाने रख उसमें बैठते हुई बोली, "ये बताओ मेरे जाने के बाद पी कितनी ...?"
"कुछ ज्यादा नहीं, बस थोड़ी सी ... सोचा सर दर्द ठीक हो जाएगा ..."
उसने अपने दोनों मुट्ठी में मेरे माथे के बाल समेटे और कुछ तेजी से खींचा।
"ये क्या करती हो, दर्द हो रहा है मुझे ...", मैंने कुछ डांटते हुए कहा।
"तुम्हारे तो सर के पूरे बाल उखाड़ लेने चाहिए ... काम ही जो ऐसा करते हो ..?", उसके भी स्वर में मेरे लिए डॉट थी। उसने वही प्रक्रिया आठ-दस बार की। और मैंने महसूस किया जैसे मेरे सर का दर्द ठीक हो रहा है। सत्य में हंसते हुए कहा, "जरा संभल के ! बेचारे का बाल मत उखाड़ लेना !!"
कुछ देर बाद मैं पूरी तरह से रिलैक्स था। मैने पीहू को थैंक्स कहा, "थैंक्स ! लेकिन मेरी इतनी सेवा मत करो गर्लफ्रेंड कि मुझे तुमसे मोहब्बत हो जाए .. हो गई तो मुश्किल हो जाएगी ... मेरे सत्य की सोलो लव स्टोरी में ट्राइंगल बन जाएगा ... "
"अरे भई ! ऐसा न करना !! मेरी एक ही बीबी है ... मै कहां जाऊंगा ....", सत्य ने एक कुल्हड़ मेरी तरफ और दूसरी पीहू को देते हुए कुछ घबराने का अभिनय करते हुए बोला।
"हां यार तुम सही कहते हो ... देखो अभी-अभी तो जरा संभले हैं और फिर बर्बाद होने की बातें करने लगे ... ", मैने स्वीकृत में सर हिलाते हुए कहा।
"यार सब डिसीजन तुम्हीं लोग ले लोगे ? कोई मुझसे नहीं पूछेगा ? ..", पीहू ने मुझे रोकते हुए कहा।
"हां सत्य ! बिल्कुल सही कहा इसने ... फैसला तो इसे ही करने दो ...", मैं उसकी बात से एग्री करते हुए बोला।
"अरे यार तुम कैसे दोस्त हो, जो उसकी मोहब्बत को छीनने की कोशिश कर रहा हो ... वेरी बैड ...", सत्य कुछ हंसते हुए बोला।
"मोहब्बत तुम्हारी है, यकीन तुम्हारा है, हो जाने दो आज फैसला ....", मैने पीहू की तरफ देखते हुए कहा।
"वो तो फैसला कब का हो चुका है ... ये मेरा प्यार है, और तुम मेरे दोस्त, बेस्ट फ्रेंड, बॉयफ्रेंड जो भी समझ लो ...", पीहू ने सत्य की तरफ प्यार से देखते हुए कहा।
"अब ? अब तो मुस्कुरा दे मेरे भाई ...! तेरी मोहब्बत ... तेरा यकीन तेरे साथ है ...", फिर मैं पीहू की तरफ देखते हुए बोला, "लेकिन पीहू तुम्हे एक परीक्षा देनी होगी ..."
"परीक्षा ? यू मीन ... जैसे सीता को देनी पड़ी थी ... ", उसने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं उतने हाई लेवल की नहीं, बस छोटी-सी परीक्षा। कल जब मैं यहां से जाऊं तो तुम्हारी आंखों में कोई आंसू ना आने पाए ... बस इतनी सी ... बोलो शर्त मंजूर ?", मैंने उसकी तरफ सवालिया निगाह से देखते हुए पूछा।
"और यदि आ गए तो ...?", उसने भी सवालिया निगाह से मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"तो ... तो कुछ नहीं ... थोड़ा सा रो लेना .... और क्या .... अरे यार तुम लोग इतना सीरियस क्यूं हो गए ? क्या इसे एक दोस्त से बिछाने का दुख नहीं होगा ? ऑफिसियली होगा, तो थोड़ा सा इमोशन में आंसू तो आ सकते है न ? लेकिन आज तो चीयर्स करो ?...", मैने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए कहा।
ज्ञान बोला, "शुरुआत किसने की ? मंगल ! तुम केवल सलाद खिला रहे हो, नमकीन का पैकेट तो निकाल लो ..."
और बात खत्म हो गई। नई बातों का नया दौर शुरू हुआ, दूसरी बॉटल खुल चुकी थी। तय ये हुआ कि आज पुलाव सत्य और पीहू बनायेंगे। रोटियां मंगल और कमली। सलाद मैं और ज्ञान काटेंगे। चावल पक चुका था। पुलाव में डाली जाने वाली हरी सब्जियां जैसे शिमला मिर्च, गोभी, आलू इत्यादि पहले से ही मंगल काट चुका था। सत्य और पीहू दोनों पुलाव बनाने में जुट गए। मैने मंगल से व्हिस्की की बॉटल सत्य के पास रखवा दी। अब हम और ज्ञान दोनों अकेले थे।
"तो कह दिया न ...?", ज्ञान ने पूछा।
मै ज्ञान की तरफ देखते हुए कहा, "लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि दोनों के लिए कहना जरूरी था !! ज्ञान यदि आज मैं न कहता तो हो सकता है एकदिन वक्त पीहू से कहता, और तब वह सत्य से वो सब न कह पाती, जो आज कहना जरूरी था। वह अब चाहकर भी मेरे जाने के समय रो नहीं सकती। जो सवाल मेरे जाने के बाद उठ सकता था, उसका जवाब मैं खुद देकर जा रहा हूं ... यह जरूरी था। मेरे जीवन में पीहू का क्या स्थान है, यह कोई मायने नहीं रखता ज्ञान, बल्कि पीहू के जीवन में कौन मायने रखता है, ये सत्य को जानना जरूरी था। मेरे और पीहू के बीच कुछ आदतों और अभिरुचियों का मिलना था, जिसे वह भविष्य में कभी प्यार समझने की भूल कर सकती थी, लेकिन अब वह ये भूल कभी नहीं करेगी ..."
मैंने मंगल को आवाज़ लगाई, "क्या मंगल, क्या कर रहे हो ? इंतजाम करो, महफिल शुरू हो ..."
अगले पल सब कुछ हाजिर।
"और तूने अपने आप को सजा क्यूं दी ? दूर जाने का फैसला क्यूं लिया ?", ज्ञान ने मेरी तरफ गहरी दृष्टि से देखते हुए पूछा।
"कभी-कभी किसी की मोहब्बत पाने के लिए, उसे साबित करने के लिए, उसके और नजदीक जाने के लिए उससे बहुत दूर जाना पड़ता है .... और फिर सजाएं तो मेरा मुकद्दर है ..", मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा।
सत्य ने चूल्हे की आग को तेज करते हुए पूछा, "ओ राइटर जी ! अकेले बैठे-बैठे क्या सोचा जा रहा है ?"
"यही कि कल गर्लफ्रेंड को अलविदा कैसे कहूंगा ...", मैंने अपने हाथ में पकड़े जाम को उसकी तरफ दिखाते हुए कहा।
थोड़ी देर बाद सत्य हम दोनों के पास आते हुए कहा, "ज्ञान थोड़ा चल, घर तरफ चलते हैं। कुछ सामान लाना है ...", फिर वह पीहू की तरफ देखता हुआ बोला, "मैं दस मिनट से आ रहा हूं। पुलाव के साथ अचार और रोटी के साथ घी अच्छा लगेगा ... तब तक तुम यहां देखना ..."
तब तक मंगल थाली में चाकू और सलाद के लिए सामान लेकर हाजिर हो गया।
"मंगल चाचा ! तुम कमली के पास जाओ मैं काट लूंगी ,...", पीहू ने मंगल को लगभग आदेश देते हुए कहा। मंगल चुपचाप कांच की दो गिलास मेरे बगल में रख कर चला गया। मैंने एक गिलास उठाई उसे पानी से अच्छी तरह से धोया फिर उसमें थोड़ी सी व्हिस्की डाली लेकिन जैसे ही पानी मिलने के लिए मैंने जग उठाया उसने रोक दिया, "मैं मिक्स कर लूंगी ..."
"कल तो रोने के लिए पाबंदी लगा ही दी। आज तो नहीं है न ...?", उसने मेरे पास बैठते हुए पूछा।
मैंने कोई वाद-विवाद नहीं किया। पानी का जग और व्हिस्की की गिलास दोनों ही उसकी तरफ खिसका दिया। पहले तो उसने जग उठाया लेकिन कुछ सोच कर दोबारा रख दिया। और फिर अगले ही पल उसने एक सांस में गिलास खाली कर दी। जाम खत्म होते ही उसने बहुत ही बुरा-सा मुंह बनाया और अपना गला पकड़ कर अपना सिर अपनी ही गोद में रख लिया। मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, "नीट पीने की क्या जरूरत थी, .... रिलेक्स, इट्स ओक ..."
"नो, ....नो ....नो ... इट्स नॉट ओके !!", वह मुझे डांटते हुए पहले से अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोली, "इट्स नॉट ओके ... इट्स नॉट ओके", फिर उसने मेरी बाएं हाथ की हथेली अपने दोनों हथेली में ले कर फिर अपना चेहरा अपनी गोद में उसी तरह रख लिया। उसका चेहरा उसकी गोद में हमारी हथेली के ऊपर था। उसका क्रोध तो शांत हो गया किंतु जो करुणा जागी वह उसे रुलाने के लिए काफी थी। उसने सुबकते हुए आगे कहना शुरू किया, "तुमने सुसाइड करने की कोशिश की ... इट्स नॉट ओके। तुम मर सकते थे ... इट्स नॉट ओके। तुमने यह सब मुझसे छुपाया ... इट्स नॉट ओके। हम नहीं मिलते ... इट्स नॉट ओके। आज तुम मेरे पास नहीं बैठे होते ... इट्स नॉट ओके। ..... तुम कल चले जाओगे .... इट्स नॉट ओके। और मैं जानती हूं कि फिर तुम कभी यहां आने की कोशिश नही करोगे ... इट्स नॉट ओके। .... कल के बाद मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देख पाऊंगी ... इट्स नॉट ओके। .... और तुम कहते हो इट्स ओके !! .…. व्हाय... टेल मी व्हाय ?"
"तुम एक नंबर के झूठे इंसान हो। इतने कि तुम किसी की आंखों में आंखें डाल कर झूठ बोल सकते हो ! तुम किसी को भी धोखा दे सकते हो। ... और मुझसे कहते हो, इट्स ओके ? तुम्हारे लिए किसी के जज्बातों की कोई अहमियत नहीं। तुम इतने खुदगर्ज इंसान हो जो सिर्फ अपनी जिंदगी जीता है। और मुझसे कहते हो, इट्स ओके। मैं इनकार करती हूं, इट्स नॉट ओके। अब तुम्हें कहना है कुछ ?
मैंने अपना सर झुकाते हुए कहा, "नहीं तुम सच कह रही हो ?"
उसके होठों में फीकी-सी मुस्कान आ गई, "इल्जामों को स्वीकार करना तो कोई तुमसे सीखे !!"
मेरे होठों में भी उसी तरह की मुस्कान आ गई। उसकी आंखों में देखते हुए मैंने कहा, "जब इल्जाम सच हों तब उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए .."
"अब समझ में आया न, मैंने क्यों कहा कि तुम किसी की भी आंखों में आंखें डाल कर झूठ बोल सकते हो", मेरी आंखों से बहते हुए आंसुओं को पोछते हुए उसने कहा।
सत्य और पीहू की कहानी में मै एक तीसरा इंसान हूँ, जिसने इस वक्त कलम खुद थाम रखी है। क्योंकि कभी पीहू ने मुझसे कहा था कि जब मैं इस कहानी में अजनबी लगने लगूं तो तुम खुद एक किरदार बन जाना। उसने सच कहा था यदि मैं कलम अपने हाथ में न ली होती तो इस वक्त पीहू की इन फिलिंग्स को कौन डिस्क्राइब करता ? सत्य तो यहां है ही नहीं !!
"मैं तुमसे क्या कहता पीहू, क्या बताता तम्हें ? अब जबकि खुद मुझे वह सब कुछ एक सपना-सा नजर आता है। इस जीवन में तुम लोगों से मिलना लिखा था और भी बहुत कुछ लिखा होगा जो आगे आएगा, जिसे मैं आज नहीं जानता। लेकिन इतना जरुर जानता हूं कि आज जो पल जो लम्हे गुजर रहे हैं, वो कभी दोबारा नहीं आएंगे। अब यह हमारे ऊपर है कि हम उन्हें हंसते-मुस्कुराते जीना चाहते हैं या फिर आंखों में आंसू लिए ? कल तो हमें रोना ही है। तुम क्या समझती हो तुमसे और सत्य से जुदा होना मेरे लिए आसान है ?
फिर भी मैं कल अपनी आंखों के सभी आंसू मुस्कुराहटों में बदलने की कोशिश करूंगा। यही तो तुमने सिखाया है मुझे, और अब तुम खुद ही कमजोर पड़ रही हो। कुदरत ने जिस काम के लिए हम दोनों को एक एकदूसरे से मिलाया, शायद वह काम अब खत्म हुआ। अब हमें जुदा होना ही सही होगा। यदि हम इसमें स्वयं बाधा बनते हैं, तो यह हमारी सबसे बड़ी मूर्खता होगी। और मैं जानता हूं यह बात मुझसे अधिक तुम समझती हो ...", मैं कहता जा रहा था, वह सुनती जा रही थी। और उसके कुछ आंसू उसकी हथेली से होते हुए मेरी हथेली को भिगो गए। मैंने उसे डांटा, ,"पीहू तुम मुझे कमजोर कर रही हो ..."
फिर उसने दो फुल पैग बनाए। फिर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा "चीयर्स, गुजरते हुए इन लम्हों के नाम, गुजरती हुई इस रात के नाम, गुजरती हुई इस जिंदगी, के नाम ... शैल और पीहू के नाम ..."
मैने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा, " चीयर्स, पीहू और शैल के नाम ... प्लीज करेक्ट इट ..."
उसने भी मुस्कुराते हुए कहा, "क्या फर्क पड़ता है? कौन पहले, कौन बाद में। रहेंगे तो दोनों न ?"
"मैं जानता हूं पीहू कि यहां रुक जाना मेरी नियति नहीं, फिर भी पता नहीं क्यों यहीं रुक जाने को मन करता है। तुम्हारे ही पास ठहर जाने को ये दिल कहता है। ऐसा क्यूं होता है कि कभी-कभी हम अपने जज्बातों के इतने आधीन हो जाते हैं कि दिमाग के द्वारा लिए गए सभी फैसले हमे गलत नजर आते हैं, इस दिल को नमंजूर होने लगते हैं।
मेरे हृदय से बार-बार यह आवाज क्यों आ रही है कि मैं कह दूं ज्ञान से कि मुझे अब कही नहीं जाना है। मुझे यहीं रहने दो मेरी पीहू के पास ... मैं भी ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ, गुजारना नहीं ...."
"ये रुको ! क्या कहा तुमने अभी,... मेरी पीहू ..", उसने गहरी दृष्टि से मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
"हां कह दिया न, ... लेकिन यह भी कहा न, कभी-कभी इंसान अपने जज्बातों के अधीन हो जाता है ... सॉरी !", मेरे आंसू उसे दिखाई ना दे इसलिए मैंने चेहरा दूसरी तरफ करते हुए कहा।
"सॉरी ? ... हु...? जब से आए हो तो देख रही हूँ मैं, कई बार बोल चुके हो इस शब्द को ... लेकिन जब अपने मन और हृदय की बात किसी से कही जाए तब नहीं बोलना चाहिए .... यह गलत है ..."
फिर उसने मेरा चेहरा अपनी हथेली से अपनी तरफ करते हुए कहा, "मैं जानती हूँ और समझती भी हूँ कि बेवजह कोई रोता नहीं किसी के लिए ... "
"नियति पीहू नियति ! तुम्हारी ? सत्य की ? मेरी ? या फिर हम तीनों की ? कौन जाने किसकी ? तीन अजनबी एक दूसरे से मिले ... एक दूसरे को जाना-समझा .... एक साथ वक्त बिताया लेकिन ,..."
"लेकिन.... क्या ?", उसने पूछा।
"यही कि एक को जाना पड़ेगा और शायद यह जरूरी भी है। जानती हो पीहू ! अब तक भागता ही रहा हूं मैं ... कभी यादों से ... कभी खुद से ... कभी अपनों से .... कभी यार-दोस्तों से ... तो कभी रिश्तों से। लेकिन पता नहीं क्यूं अब और भागने का जी नहीं करता। ... कभी-कभी सोचता था मेरी और सत्य की किस्मत एक जैसी ही है। दोनों का प्यार पास होकर भी बहुत दूर है। पर अब सोचता हूँ कि सत्य का प्यार तो उसके पास ही है न। ठीक है आज कोई रिश्ता नहीं है, आई मीन सामाजिक तौर पर। तुम लोग का संबंध भी फिजिकल नहीं है, लेकिन तुम दोनों एकदूसरे के साथ हो, पास हो। भावनाओं का संबंध तो है न। तुम उसके सुख-दुःख में उसके पास हो, वह तुम्हारे पास है। और मैं ? होकर भी किसी का नहीं हूँ ... यह मेरी नियति है। और शायद यही वजह है कि मैं अब हर पल, हर लम्हे को जीता हूँ ... कभी होश में तो कभी बेखुदी में। तुम सोचती होगी कि मैं तुमसे यह सब क्यों कह रहा हूँ, है न ?"
"नहीं ... पर तुम बता दो, अब मैं भी जानना चाहूंगी ..?", उसने मेरी तरफ मासूमियत से देखते हुए पूछा।
"दो वजह से। पहली, जो आज हमारे पास सहजता से उपलब्ध है उसकी कीमत हमें आज समझ में नहीं आती, लेकिन उसके दूर चले जाने पर उसकी कीमत समझ में आती है। मैं अभी तक एक संभावना पर टिका हुआ था कि वह मेरी है, कहां जाएगी मुझे छोड़कर। एक न एक दिन वह मेरे पास आएगी ... एक आशा थी तो उसकी कमी इतनी महसूस नहीं हुई। लेकिन जब उसे अपनी इन आंखों से पराया होता हुआ देख लिया तो आज उसकी कीमत समझ में आती है। यदि वह नहीं आ सकती थी, उसने एक कठोर फैसला लिया भी था तो भी, मैं तो उसके पास जा सकता था। मैंने एक बार भी उससे मिलने की कोशिश क्यों नहीं की ? यदि वह कमजोर पड़ गई थी तो मुझे उसका आत्मबल बनना था, ना कि उसे यूं ही बीच में छोड़ देना चाहिए था ... हो सकता है कल को सत्य कमजोर पड़ जाए लेकिन तुम उसका साथ मत छोड़ना उससे दूर मत जाना ...."
"और दूसरी बात ...?", उसकी नज़रें अभी भी मेरे चेहरे पर थी।
"दूसरी बात खुद अपने लिए कह रहा हूं। पूरी ईमानदारी और शिद्दत के साथ कह रहा हूं। जब हमें किसी से मोहब्बत होती है प्यार हो जाता है तो वास्तव में प्यार उसकी पर्सनेलिटी, उसकी ब्यूटीनेस, उसके बिहेवियर, उसकी हैबिट्स इन सभी से होता है। इसलिए तुमसे मिलने के बाद मैं अब यह मानता हूं कि
प्यार जीवन में एक ही बार, एक ही व्यक्ति से नहीं होता .... ऊं हु... कोई और दूसरा क्वेश्चन मत करना प्लीज .... यहां बात लॉयल्टी कि भी नहीं है। जब वह व्यक्ति आपके जीवन में हो ही ना तो फिर कैसी लॉयल्टी ? इसलिए मैं अब इन सभी से मुक्त भी हूँ ... और इसीलिए मैंने यह बात शुरू करने से पहले तुमसे कहा था कि यह मैं अपने लिए कह रहा हूँ, इस बात से तुम्हारा कोई संबंध नहीं ...."
"यह तो अच्छी बात है, इसी को तो मूव ऑन करना कहते हैं न ?"
"नहीं ! किसी के प्यार को भूलकर उससे नफरत करना और फिर उससे दूर चले जाना इसे मूव ऑन करना कहते हैं। यदि मुझे इस जीवन में मेरी पसंद की पर्सनेलिटी, ब्यूटीनेस, बिहेवियर, हैबिट्स किसी में मिली तो मैं अपनी पूरी इंटेंसिटी के साथ उससे प्यार करूंगा, और इसके लिए मुझे किसी को भूलना जरूरी नहीं .... लेकिन हां मुझे उसकी कोई कमी भी महसूस नहीं होगी ..."
"तो फिर जो लोग कहते हैं कि प्यार एक ही बार होता है ..... ?"
"मेरी समझ से गलत है ... और इसका प्रमाण मेरे पास है ... और शायद इसीलिए मैं तुम्हारी और सत्य की कहानी नहीं लिख पाऊंगा ... और मान लो लिख भी ली तो पब्लिश नहीं करूंगा ... "
"वो क्यों..?", उसने पूछा।
"वो इसलिए कि मेरी जिंदगी के अनुभव ने मुझे बता दिया है कि प्यार एक एहसास है। इसे किसी व्यक्ति विशेष से नहीं जोड़ना चाहिए। यह किसी भी ऐसे व्यक्ति से हो सकता है जिसका व्यक्तित्व, सुंदरता, व्यवहार, आदतें आपको पसंद हों। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह शादीशुदा है या अविवाहित। और शायद इसीलिए इसका किसी वफ़ादारी से भी कोई संबंध नहीं है। अगर आप किसी से प्यार महसूस करते हैं तो फिर करते हैं, इसमें कौन सी बड़ी बात है। यह आपकी अंतरात्मा की पसंद-नापसंद का सवाल है, फिर इसकी चिंता क्यों करें कि कौन क्या सोचेगा .."
उसकी खामोश और स्थिर निगाहें अभी भी मेरे चेहरे में थी। मैने चुटकी बजाते हुए पूछा, "मेरी बातों से मुझे जज कर रही हो ...?"
"हां भी और ... नहीं भी ! कितनी पर्सनालिटी एक साथ जीते हो तुम !! कभी बच्चों की तरह मेरे साथ हंसते हो। तो कभी बेपरवाह इंसान की तरह शराब में डूब जाते हो, फिर तुम्हे किसी की फिक्र नहीं ? तो कभी एक दिलकश आशिक की तरह बातें करते हो, मुझे फ्लर्ट करते हो ? तो कभी मुझे रुलाते हो, खुद भी रोते हो ? तो कभी अपनी उम्र से कहीं अधिक मैच्योरिटी की बातें करते हो ? आखिर तुम हो कौन?"
"बॉयफ्रेंड ... वो भी इकलौता ? और रही बात मैच्योरिटी की तो वह तुमसे ही ज्यादा मिली। याद है तुमने आध्यात्मिक प्रेम की बात की थी ...?"
"हूँ .... याद है, एक ऐसा प्रेम जो फूल से नहीं उसकी खुशबू से होता है ..... जो सूरज से नहीं उसकी गर्मी से होता है .... जो चंद्रमा से नहीं उसकी शीतलता से होता है .... जो बादल से नहीं उसकी बारिश से होता है .... जो हवा से नहीं उसकी रवानी से होता है ... जो ज्ञानी से नहीं उसके ज्ञान से होता है .... जो दीप से नहीं उसके उजाले से होता है .... जो व्यक्ति से नहीं उसके व्यक्तिव से होता है। अर्थात जो व्यक्तिपरक नहीं सार्वभौमिक है ... यानी कि ऐसा प्रेम जो होने के कारण से नहीं, बल्कि होने से होता है ..."
"फूलों की खुशबू, सूरज की गर्मी, चंद्रमा की शीतलता, दीप का उजाला, ये सब एक एहसास ही तो होते हैं ... अच्छा बहुत हो गई आध्यात्मिक और दार्शनिक बातें, अब एक भालू सुनो ... तो गौर ...."
"व्हाट!! भालू ...?", उसने आश्चर्य से पूछा, "एक मिनिट, ये भालू सुनाने की चीज है ...?"
"हां यार बिल्कुल ... शेर तो सभी सुनते हैं ...", मैने भोलेपन और कुछ लापहरवाही से कहा, "लेकिन तुम भालू सुनो ...
वह जोर से हंसी थी, "माय गॉड ... भालू !! हु... तो सुनाओ ... इरशाद ....
मैने शराब से भरा प्याला उसकी तरफ बढ़ाते हुए सुनाया....
साकी अभी तो अधूरा जाम बाकी है,
अभी तो ज़िंदगी की शाम बाकी है।।
"वह ... वाह क्या बात है ...", सत्य ने पीछे से आते हुए कहा "भाई एक बार फिर से ... अभी हमने अच्छे से गौर नहीं फरमाया ...",
सत्य और ज्ञान सामने कुर्सी में बैठ गए। सत्य ने मंगल को पुकारा, "मंगल ! आओ भाई, ये झोला किनारे रख दो, और तुम भी महफिल में शामिल हो जाओ और कमली क्या कर रही है ? कमली पुलाव जलना नहीं चाहिए, चलाते रहना ..."
मंगल में आज्ञा का पालन किया। सभी के लिए जाम बना। कमली का उसके पास पहुंचा दिया गया। फिर सत्य ने मुझसे कहा, "हां तो शायर भाई ... जाम भी है, साकी भी है, मौसम भी है, तो इरशाद की जाए ...."
"बिल्कुल होगी ... ", मैने एक शिप लेते हुए कहा,
साकी अभी तो अधूरा जाम बाकी है,
अभी तो ज़िंदगी की शाम बाकी है।।
तू डाल मेरे पैमाने में थोड़ी सी और,
अभी मयखाने में शराब बाकी है।
अभी दिख रहा है ये ज़माना कुछ और
पिला दे नज़र से अभी होश बाकी है।
"एक मिनिट... ", पीहू बैग से डायरी निकलते हुए बोली, "मुझे पहले लिखने दो ...."
मैने सत्य को कुर्सी से उठ कर अपनी जगह आने का इशारा किया। मै कुर्सी में बैठते हुए बोला, "मंगल तुम्हारे इस सलाद से काम नहीं चलने वाल, जाओ दो प्लेट में पुलाव भी लेते आओ ..."
मंगल ने दो प्लेट में पुलाव और चम्मच ला के रख दिया। जब पीहू मेरी डायरी में लिख के फुर्सत हो गई तो सत्य ने उसके मुंह में एक चम्मच पुलाव डालते हुए पूछा, "टेस्ट करो कैसा बना है ...?"
"ये मिस्टर ! बनाया मैने है, टेस्ट तुम करो और बताओ कैसा बना है ... ?", उसने हंसते हुए कहा।
सत्य ने टेस्ट किया, "वाह !! क्या बात है ... यार पीहू तुम्हारा तो हाथ चूमने का मन करता है ..."
"तो रोका किसने है ...", ज्ञान पीहू की तरफ इशारा करते हुए आगे बोला, "बेगम साहिबा पास ही हैं, बादशाह हसरत पूरी करें ..."
इसी के साथ पीहू ने बड़ी नजाकत से अपना हाथ सत्य के सामने कर दिया।
"आई ऑब्जेक्ट माय लॉर्ड ! ", मैने अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा, "वाइफ के बॉयफ्रेंड के सामने एक हसबैंड को इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है ...."
ज्ञान ने किसी जज की भांति अभिनय किया "ऑब्जेक्शन ओवररूल्ड .."
इतना सुनते ही सत्य ने पीहू का हाथ चूम लिया। मैने ज्ञान की तरफ देखते हुए कहा, " आई हर्टेड माय लॉर्ड ..."
उसने मेरे कुल्हड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा, "दो घूट और ..."
"या रब! एक आशिक के कहर से इनको बचाना, अब मेरी शायरी में वो दर्द पैदा कर कि ये महफ़िल आंसुओं में डूब जाए ... "
तू भी चाहती है जुदा होना पर तू कहेगी नहीं,
तू निभा अपनी वफाएं हम बेवफा ही सही...
तू अपनी मोहब्बतों की कीमत तो मांगेगी नहीं,
मैं अजनबी बन गया पहले मुझे लौटा तो सही।
मैं जानता हूँ कि तू मुझसे कुछ कहेगी नहीं,
ज़रा देख मेरी तरफ मैं तुझको पढ़ तो लूं सही।
जा खत्म हुई अपनी आशिकी कोई शिकवा नहीं,
तू निभा अपनी वफाएं हम बेवफा ही सही...
ज्ञान उपहास से बोला, "बेटा तुम्हारी इस शायरी से तो आंखों में आंसू तो आए नहीं, कुछ और ट्राई करो .…"
"ये बेदर्द जमाना क्या जानेगा आशिक का हाल, जब उसकी महबूबा ने ही छोड़ दिया बदहाल ...", चेहरे में भरपूर मायूसी लाने की कोशिश करते हुए मैंने आगे कहा, "ये दुनिया ... ये महफ़िल मेरे काम की नहीं ... इंजॉय करो मैं अभी आया ..."
मै कुर्सी से उठ कर एक तरफ चला तो पीछे से पीहू ने मजाकिया लहजे में कहा, "मैं भी आऊं क्या ..?"
फिर पीछे से सभी की हंसी सुनाई दी, मैंने भी पलटते हुए बड़ी नजाकत से कहा, "जरूर बेगम साहिबा ! बादशाह ने तो अपनी हसरत पूरी कर ली अब आप ही पीछे क्यूं रहें ..."
महफिल फिर ठहाकों से गूंज गई।
मिलियंस वाट का नाइट बल्ब आसमान में धीरे-धीरे अपना सफर तय कर रहा था। उसकी दूधिया शांत रोशनी में मंद-मंद बहती शीतल हवा में इस कहानी के राइटर ने महज पचास कदम की दूरी से पीहू और सत्य को एक साथ एक ही चारपाई पर बैठे देखा। उसकी स्मृतियों में पांच वर्ष पूर्व सितारों से भरे आसमान के नीचे इसी तरह श्वेत स्निग्धा ज्योत्सना में अपने गांव के घर के आंगन में बैठे हुए दो टीनएजर्स नजर आये। उस दिन भी कुछ इसी तरह की रात थी ...
खुले स्वच्छ आकाश में अपनी निर्मल दूधिया चांदनी बिखेरता हुआ चंद्रमा हल्की-हल्की ठंडी हवा, झिलमिल सितारों ने एक रोमांटिक कहानी की पृष्ठभूमि तैयार की थी। एक ऐसा रंगमंच सजा जिसमें दो किरदार अपने जीवन के हसीन लम्हों को एक साथ जी कर जुदा हो गए। एक ऐसी अनकही-सी कहानी की शुरुआत हुई जिसकी परिणिति सजी हुई बारात और एक विवाह मंडप में चंद रस्मों, रिवाजों, मंत्रों और सात वचनों से हुई। एक अपनी मंजिल को चली, और दूसरा ? कभी दोस्तों के कंधों का सहारा लेता हुआ, अपनों के दुख-दर्द को महसूस करता हआ, उनकी खुशी में शामिल होता है, तो कभी खुद को शराब के नशे में डुबोता हुआ आज भी भटक रहा है।
मैने हरी घास में बैठते हुए ज्ञान को इशारा किया। वह मेरा कुल्हड़ और पुलाव का प्लेट ले कर मेरे पास आया, "जब वहां सब इंतजाम था तो यहां क्यों ?"
"प्राइवेसी, ... मेरी जान प्राइवेसी ? दिन भर तो सत्य अपने काम में व्यस्त था, अब इस सुहानी रात में उसे पीहू से कुछ रोमांटिक बातें कर लेने दे यार ! ", मै पुलाव खाते हुए बोला।
"अच्छा ! तो कुर्बानी दी जा रही है ... तो चल चीयर्स...", ज्ञान ने हंसते हुए कहां।
"हां यही समझले ! आफ्टरऑल शी इज माय गर्लफ्रेंड .. चीयर्स ....", मैने भी उसकी हंसी का साथ दिया।
हम लोगों को यूं हंसते देख पीहू ने कहां, "मुझसे डिस्टेंस बॉयफ्रेंड ! .... हु ? कौन से चुटकुले सुनाए जा रहे हैं ?"
"अरे! कुछ नहीं ! तुम लोग लगे रहो ... वैसे भी वेजिटेरियन नॉट अलाउड हेयर ....", हम फिर हंस पड़े।
"यार कल तो चले ही जाओगे ... तब तक तो साथ रह लो ....", सत्य ने शिकायत की।
"बस एक मिनिट अभी आया ...", फिर मैंने ज्ञान से कहा, "चल जल्दी खत्म कर, बादशाह का फरमान जारी हो चुका है ... तामील न हुआ तो कहीं सजा-ए-मौत का हुक्म न जारी हो जाए ...", एक बार फिर हम दोनों जोर से हंसे।
कुछ ही देर में हम दोनों अपनी अपनी कुर्सी में बैठे थे। सत्य ने कहा, "ज्ञान आज इस राइटर की कहानी सुनाओ यार ? तूने बस मुझे उड़ते-उड़ते बताई है ... तुझे तो हॉस्टल में डिटेल में बताई होगी न ? जरा हम भी तो सुने, ... क्यों?"
"ऑब्जेक्शन माय लॉर्ड ! ", मैने सख्त प्रतिरोध किया, "इट्स माई पर्सनल लाइफ। नो वन हेज राइट टू तू लिसन टू इट। दिस ब्यूटीफुल एंड रोमांटिक नाइट शुड नॉट बी वेस्टेड इन लिसनिंग टू द स्टोरी ऑफ टू इनोसेंट टीनएजर्स ..."
ज्ञान ने फिर से जज का रोल निभाया, "ऑब्जेक्शन एक्सेप्टेड .. ! ओनली रोमांटिक थिंग्स आर अलाउड ... प्लीज प्रोसीड "
"थैंक्स यू नी लार्ड ...", मेरे चेहरे में विजयी मुस्कान थी, "किंतु बादशाह सलामत निराश न हों, उनकी बेगम साहिबा ने कल रात को हॉनरेबल जज साहब से पूरी स्टोरी जान ली है। कृपया वे तन्हाई में उनसे सुन लें .."
"ओके ...", सत्य ने सर झुकाते हुए कहा, "तो हमारी पीहू की सुंदरता के बारे में कुछ हो जाए ... एक नए अंदाज में ... क्यूं ?"
"तो शुरुआत तुम्हीं करो सत्य ...", मैने कहा, "पीहू के चेहरे को ध्यान से देखो और किसी एक अंग मेरा मतलब आईज, नोज, लिप्स, चिक्स, हेयर, ईयर किसी एक के बारे में विद रीजन जो तम्हें सबसे अधिक पसंद हो उसके बारे में कहो ?"
सत्य ने पीहू को ध्यान से देखा, "जब पहली बार इसे नजदीक से देखा तो मेरे ख्याल से नोज, आई लाइक सो मच। एंड रीजन ये कि पूरे चेहरे की सुंदरता इसी पर डिपेंड करती है, जो चेहरे को आकर्षक बनाता है ... अब तुम बताओ ?"
"आई फूली एग्री विद यू ... ये तो तुमने सही कहा, चेहरे का यही एक पार्ट है जो ईश्वर किसी-किसी को सुंदर देता है ... अब मुझसे पूछा है तो मुझे इसकी सबसे अधिक गहरी बादामी आँखें पसंद हैं, और इतनी पसंद हैं कि इनमें कूद जाने का मन करता है ...", दिल्फेक आशिक बनते हुए मैने कहा।
"सम्हाल के भाई, तैरना तो आता है न ? ...", सत्य ने हंसते हुए कहा।
"कौन कमबख्त है जो इनमें तैरने के लिए कूदेगा? मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों में डूब जाऊं .... मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों को एक नया स्वप्न दे सकूं ... मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों को अपनी सूरत दे सकूं .... मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों में हमेशा हमेशा के लिए कैद हो सकूं ... मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों में मेरी सूरत से सिवा किसी और की सूरत न दिखाई दे .... मै तो इसलिए कूदूंगा कि इन आँखों में ...."
"रुक जा भाई, रुक जा। तेरी उसकी शादी हुई है, वो मरी नहीं है ? इस दुनियां में अभी भी है, अपना न सही इस पीहू का तो ख्याल कर। इसे जिंदा रखना है मेरे भाई !!..", ज्ञान ने मुझे रोकते हुए संजीदगी का भरपूर अभिनय करते हुए कहा। सत्य और पीहू ठहाका मार के हंसे।
"ओ मंगल ! मुझे एक बना और अपने मून क्लॉक को देख के बता तो टाइम कितना हुआ होगा ?", मैने अपना कुल्हड़ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
उसने कुल्हड़ भरी और फिर चंद्रमा की तरफ देखते हुए कहा, "सर जी नौ बज गए होंगे ..."
"आर्यभट्ट के बाद तू ही सबसे बड़ा गणितज्ञ और खगोलशास्त्री है ... देखा सत्य तुम्हारी ये रिस्टवॉच जो काम करती है वहीं काम मंगल के लिए ये चंदू ... लेकिन मंगल एक बात बताओ ? ... अंधियारी पाख में कैसे पता लगते हो ? "
"तारों को देख कर सर जी ..", मंगल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"गुड ... वेरी गुड ...", फिर मैने आधी से अधिक कुल्हड़ एक सांस में खाली करते हुए ज्ञान से बोला, " हां तो मिस्टर ज्ञान प्रकाश ! आप क्या कह रहे थे ... हूं ... ? सुना न नौ बज गए ? वहां डिनर चल रहा होगा .. फिर ... थोड़ा सा हसी-मजाक होगा ... फिर आई लव यू ... आई लव यू टू. होगा .. मेरी जान मुझे कितना प्यार करते हो या करती हो ... वगैरह-वगैरह फिर ... रूक्मणी ! रुक्मिणी !! .. शादी के बाद के बाद क्या-क्या हुआ ... कौन जीता कौन हारा ... खिड़की से देखो जरा ..."
"घटिया इंसान ...", ज्ञान ने ज़ोर से पेरी पीठ में मुक्का मारते हुए आगे कहा, "कैसी सोच है तेरी ... "
"आप ठीक कहते है ज्ञान भैया ...", पीहू ने ज्ञान का साथ देते हुए कहा, "वेरी चीप ... ऐसी सोच नहीं रखनी चाहिए ..."
"हाय मार डाला इस कमीनें ने लेकिन पीहू ! ", मैने आश्चर्य से कहा, "तुम से ये उम्मीद न थी ..."
"नहीं इस बात में मै तुम्हारा साथ नहीं दे सकती ! कभी नहीं ...", पीहू ने लगभग डांटते हुए मुझसे कहा, "जो गलत है तो फिर गलत है...."
"मेरा मतलब नहीं समझ रहे हो तुम लोग ...", मैने सफाई पेश की, "मै कहना चाहता हूँ कि यदि ऐसा होता है तो बुरा क्या है ? कोई कब तक रोएगा, किसी को याद करेगा, जीवन पथ पर आगे तो बढ़ेगा न ? किसी न किसी पल में सब कुछ भूल कर रिलैक्स होना चाहेगा, अपना फर्ज निभाना चाहेगा ? मै कहां कह रहा हूँ कि ये सब गलत है, नहीं होना चाहिए ? कल को यदि मैं शादी करूंगा तो यही सब मै भी तो करूंगा न? लेकिन उसे लेकर जो सपने मैने देखे उनका क्या ? ... तो क्या बुरा हुआ कि मैने पीहू की आंखो की तारीफ की ? न, फ्लर्ट नहीं किया है, बल्कि सच कहा है। इसकी आँखें सुंदर हैं तो हैं, मै कहूं या न कहूं। और फिर आंखे ही क्यों पूरा व्यक्तित्व ही खूबसूरत है ? यदि मैं पीहू के व्यक्तित्व से प्रभावित हूं ... और कुछ देर के लिए मामलों मुझे पीहू से प्यार हो गया है..... तो भी उसे या फिर सत्य को पीहू और मेरी जान लेने की क्या जरूरत है .. बताओ मुझे ? हां सत्य तुम कहो ? "
"बात तो सच है ...", सत्य ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा, "हम भावनात्मक रूप से, रिश्तों से, संबंधों से एक दूसरे से जुड़े जरूर रहते हैं, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि हम सभी एक इंडिविजुअल हैं। हमारी व्यक्तिगत अपनी पसंद या नापसंद हो सकती है ... वो अपनी जिंदगी जिए ... और शैल अपनी। ...
"नहीं सत्य प्रश्न ये नहीं है कि कौन किससे दूर होता है ? यहां प्रश्न आत्म स्वीकारता का है ? क्या हम खुद स्वीकार कर पाते है ? नहीं ? हम बेवफा कहलाए जाने के डर से इतनी वफाएं निभाते चले जाते हैं की खुद अपनी जिंदगी के प्रति बेवफा हो जाते हैं ? लेकिन मैं स्वीकार करता हूँ? उससे मोहब्बत हुई तो स्वीकार किया, किसी और से होगी तो भी करूंगा। फिर यह सामने वाले के ऊपर है कि वह स्वीकार करता है या नहीं ... इससे मेरी मोहब्बत में कोई फर्क नहीं पड़ता।
पीहू ने कहा, "शिकायतें प्यार का ही एक हिस्सा है, तुम उसे डॉट रहे हो, बुरा भला कह रहे हो लेकिन दर्द से आंखे तुम्हारी ही भर रही हैं .... मै तो ये सोचती हूँ कि तुम दोनों से ऐसा कौन सा गुनाह हो गया कि इतनी बड़ी सजा मिली ...?"
मैने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, "कुछ नहीं पीहू! गुनहगार होते तो अच्छा था, बेगुनाह रह गए ... शायद यही गुनाह हो गया हम दोनों से ... ज्ञान वो कौन-सा गीत है ...? हां याद आया .... सोचा था कि मैं बनूंगा प्यार की राहों का देवता, तूने बना दिया मुझे गुनाहों का देवता ... इसीलिए मेरे जीवन का ये सच दोस्तों में मैने सिर्फ ज्ञान से शेयर किया है, और तुमसे मैं हर बात छुपाना चाहता था, मै यहां कौन सा हमेशा के लिए रुकने आया हूं, एक दिन तो जान ही है। कहीं तुम एक पल के लिए ये सोच लेती कि तुम्हारी सहानुभूति पाने के लिए या तुम्हारा ध्यान अपनी तरफ लाने के लिए ये झूठी कहानी सुना रहा हूँ .. तो मेरी क्या वैल्यू रह जाती ... ? इसलिए जब दूसरे दिन तुमने पूछा था कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है जो तुम्हें शराब पीने से रोके ... तो समझ में नहीं आया कि मैं क्या कहूं ... यह कहूं कि वो मुझे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चली गई ? फिर बात उठती ... कौन थी ... क्या हुआ ... क्यों छोड़ा ? .. क्या-क्या बताता। इसलिए बात को खत्म करने के लिए तुम्हें कह दिया कि तुम हो न गर्लफ्रेंड जो रोक रही हो ... और तुम्हे तर्क दे कर प्रूफ भी कर दिया कि तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो ..."
"इतना सब दिल में लिए तुम जिंदगी जी रहे हो ? वो भी सिर्फ तेईस साल की उम्र में !! सुन के बहुत दुख हुआ यार ...", सत्य ने पूरी सहानुभूति रखते हुए कहा।
"नहीं सत्य ये कोई बड़ी बात नहीं है ? इससे भी कहीं ज्यादा बड़े दर्द को दिल में लिए लोग जी रहे हैं .... अब तो मैं यही चाहूंगा कि वह खुश रहे, जो सपने हमने एक साथ देखे थे वो सपने हमसे जुदा ही सही लेकिन उसके पूरे हों ... चीयर्स यार अब इतना सेड न हो जाओ, इट्स ओके ... मंगल तू क्या कर रहा है भाई ... बना इन लोगों के लिए भी ... इन्होंने मरे कुत्ते को थोड़ी न घसीटा है ..."
"चीयर्स तो होगी मिस्टर राइटर ...", पीहू ने कहा, "बट इट्स नॉट ओके ..."
"अब ज्ञान की बारी ..!!", मैने ज्ञान की तरफ देखते हुए कहा।
"मै तो इनका लक्ष्मण हूँ, सीता मैया के चरण के सिवा और कहीं नजर जाती ही नहीं", ज्ञान ने दोनों हाथ जोड़ पीहू को प्रणाम करते हुए कहा। इसके साथ ही जो ठहाके गूंजे तो पूरी बगिया हिल गई।
"बहुत हुई फिलासफी। गेम को आगे बढ़ते हैं। तो मामलों राइटर कि तुम्हे पीहू से प्यार हो ही गया ... जस्ट एश्यूम। लेकिन तुम्हें यह नहीं मालूम कि इसे तुमसे है कि नहीं, और तुम अपनी फिलिंग्स पहली बार इसे लिख कर देना चाहते हो, तो क्या लिखोगे ? यह रही तुम्हारी पेन और डायरी अब लिखो तुम्हारे पास केवल 10 मिनट है ?"
"लेकिन एक शर्त के साथ कि इससे तुम दोनों के बीच के संबंध में कोई फर्क नहीं आएगा ..", मैने खाली कुल्हड़ मंगल की तरफ बढ़ाते हुए उसे भरने का इशारा किया।
"वादा, बिल्कुल नहीं आएगा ... तुम्हारी कसम ...", सत्य कुछ जज्बाती हो गया।
"तो फिर ठीक है, चलो पीहू तुम भी क्या याद करोगी कि कोई था जिसने हॉफ बॉटल रम पीने के बाद तुम्हें प्रेम पत्र लिखा था ... झूठा ही सही ? मंगल क्या कर रहा है ? भर जल्दी !! एक राइटर को अपने ही कैरेक्टर से प्यार करने का मौका मिल रहा है !!!"
मैने दो तीन घूट लेने के बाद सत्य से कहा, "तुम लोग एंजॉय करो ... लेकिन यार ये तो खत्म होने वाली है, ज्ञान क्या कर रहा है लेकर जा मंगल को .. तू अपना काम कर, मैं अपना .."
"हां यार ये बात तो सही है ...", मंगल को साथ चलने का इशारा करते हुए ज्ञान कुर्सी से उठ गया।
मैंने सत्य से कुछ मुस्कुराते हुए फिर कहा, "तुम लोग इंजॉय करो, मुझे लिखने के लिए कुछ माहौल चाहिए, एकांत चाहिए, आफ्टरऑल राइटर भी एक इंसान ही होता है मशीन नहीं !! मैं अभी आता हूं ..."
मैं वहां से उठ कर टहलते-टहलते पंप हाउस के पास आ गया। आकाश में मिलियन वाट का और पंप हाउस में हंड्रेड वाट का बल्ब।
उजाला पर्याप्त था। मैं अपनी डायरी और पेन लेकर उसी आम के पेड़ की जड़ में बैठ गया जहां शाम को मैं और पीहू एक साथ बैठे थे। मैने आँखें बंद की, अपने आपको समेटा। कुछ ही देर बाद मेरी बंद आंखों में वही दृश्य था, एक बार फिर मैं पीहू के साथ हूँ .... और शाम उसी तरह ढल रही है ...
सूरज अपना सफर तय करते-करते नदी के तीर तक पहुंच चुका है। अमरूद के पेड़ों में पक्षियों के झुंड के झुंड अमरूद का आनंद ले रहे है। दोपहर में कुछ तेज चल रही हवा अब मंद-मंद पुरवाई में तब्दील हो चुकी है। सामने सलाद की थाली, हाथों में जाम, दो छोटे-छोटे पैग का हल्का-हल्का शुरूर है। कुछ आध्यात्मिक, दार्शनिक, और मनोवैज्ञानिक बातों के साथ-साथ बहुत-सी हंसी-मजाक की बातें हो रही हैं। एक दूसरे के प्रति हृदय में अटूट विश्वास लिए दोनों, दुनिया से बेफिक्र इस एक लम्हे को एक साथ जी रहे हैं। अब यहां न तो कोई कहानी है, न कोई किरदार, और न ही कोई राइटर।
यहां तो हैं दो जवां धड़कते दिल ... और दोनों के दिल की धड़कन एकदूसरे से बहुत कुछ कहना चाहती है ... लेकिन बहुत-सी बातों के बीच वो बात नहीं कह पा रहे हैं ... जो वास्तव में एक दूसरे से कहना चाहते हैं। कुछ देर बाद उस लड़की ने उस लड़के से कहा, "ये पैर फैलाओ न ... मुझे लेटना है .."
उस लड़के ने वैसा ही किया। अब वह लड़का इतना तो समझता है कि यूं ही कोई लड़की उसके पैरों को तकिया समझ कर नहीं लेट सकती, इसकी नजरों की कशिश सिर्फ दोस्ती नहीं हो सकती ... और वह लड़की भी समझती है कि एक लड़का जो अपने दिल के सारे राज उससे कह गया उसके लिए वह खास है। लेकिन कहने की पहल कौन करे ... आखिर कौन ?
इस तथ्य को पूरी तरह नकारने की कोशिश करते हुए कि प्यार एक ही बार होता है, उस लड़के ने उस लड़की के सर पर धीरे से हाथ फेरते हुए, उसके बालों को सुलझाते हुए प्यार से पूछा, "मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ...?"
उस लड़की ने अपनी आंखें बंद किए हुए ही किंतु धड़कते दिल से इजाजत दी, "हां कहो न, मै सुन रही हूँ .. लेकिन बात सच्ची होनी चाहिए ..."
उस लड़के ने मुस्कुराते हुए किंतु संजीदगी से कहा, "बात सच्ची है, लेकिन मुझे कहना चाहिए या नहीं इस सच को अब तुम ही निर्धारित करना ..."
फिर वह लड़का कहता गया और वह लड़की सुनती गई।
लगभग बीस मिनट बाद मुझे ज्ञान की आवाज सुनाई दी, "ओए राइटर ! कहां मर गया ? टून्न हो गया क्या ?
"आ रहा हूँ ...", मैं एक हसीन ख्वाब से जाते हुए बोला।
"अबे साले वहां क्या कर रहा है ... सचमुच का राइटर बन गया क्या .... जहांपनाह ने दस मिनट का टाइम दिया था ... दुगना हो गया होगा ... चल जल्दी से दरबार में हाजिर हो ...", फिर उसने दूर से ही बोतल दिखाते हुए कहा, "चला आजा मिल गई ..."
कुछ देर बाद जब मैं पहुंचा तो महफिल फिर से जम चुकी थी। और किसी बात पर सभी जोर-जोर से हंस रहे थे। मैंने पूछा, "क्या हुआ भई कौन सा चुटकुला सुनाया गया ? जरा हम भी तो सुने ?"
"क्या यार तू इतना मूर्ख होगा मैंने सोचा भी ना था ...", ज्ञान कह रह था, "इस साले सत्य को मैं बचपन से जानता हूं ... पहली कक्षा से हम लोग साथ पढ़े हैं। तुझे इमोशनली कुछ देर के लिए दूर कर दिया और देख खुद कैसे इंजॉय कर रहे हैं ... और तू हॉस्टल में रहकर तीन सालों में क्या सीखा बे ? देर करने की सजा यह है कि अब तू बनाएगा ?"
मैं मुस्कुराते हुए बोला, " मंजूर, यदि साजिशन मुझे हटाया गया तो अच्छी बात है ... यदि हमारी उपस्थिति किसी काम की नहीं तो चलो अनुपस्थित ही सही, काम तो आई ! ... लेकिन पहले सेवक को सर्व की जाएगी ... एनी ऑब्जेक्शन ? "
मैने पहले मंगल और कमली के लिए बनाया, फिर दूसरी बॉटल का ढक्कन खुली।
सत्य ने पहल की, "लिख लिया न तो सुनाओ ..."
"क्या सुनाऊं ?", मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
"लेटर आई मीन लव लेटर जो पीहू के लिए लिखा हैं ...", उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा।
"यदि लेटर को लिखा जाता है तो लेटर को पढ़ा ही जाता है, सुनाया नहीं जाता और वहीं पढ़ता है जिसके लिए लिखा गया हो ... "
पीहू ने सत्य से कहा , "कहां तुम उलझ रहे हो .... जानते नहीं राइटर है मेरा बॉयफ्रेंड ... यार मुझे कस के भूख लगी है ... पहले खाना हो जाए ?"
मंगल को पुकारा गया उसने सारी व्यवस्था की। पीहू-सत्य चारपाई में, ज्ञान-मैं टेबल कुर्सी में, मंगल-कमली चटाई बिछा के खाना खा रहे थे। कुछ हंसी मजाक का दौर भी चल रहा था।
"जानता है सत्य ! ये इतना कमीना है कि पूछ मत ...", उसका स्पष्ट इशारा मेरी तरफ था। मैं समझ गया इसे कुछ-कुछ लग गई है, "ये साला ! एक दिन हॉस्टल के कमरे में रात को दो बजे अपनी दुःख भरी कहानी सुना कर इतना रोया कि पूछ मत .... साला खुद तो रोया, मुझे भी रुलाया। और इतना रुलाया कि पूछ मत ... फिर साला मुझे कुछ इस तरह चुप करा रहा था कि ...
"कि कुछ पूछ मत ...", सत्य से बीच में ही रोक कर हंसते हुए कहा।
"अबे नहीं न यार ... देख मै बताता हूँ ... जनता है मुझसे बोला कि चुप हो जा प्लीज ... देख अब गिलसरीन खत्म हो गई है ... चुप हो जा, रात को मिलेगी नहीं ... सुबह जब मिल जाएगी न तो कंटिन्यू करेंगे। ठीक अब चुप हो जा ..."
एक बार फिर महफिल ठहाकों से गूंज उठी। ज्ञान उसी तरह मासूमियत से आगे कह रहा था, "साला इतना कमीना है ... रोते हुए इंसान को हंसा दे, और हंसते हुए इंसान को रुला दे, ... और साला मरने चला था .... ", कहते-कहते ज्ञान भावुक हो गया।
तब मैदान में मुझे कूदना पड़ा, "अबे साले देख रात अभी भी है, ग्लिसरीन अभी भी नहीं मिलेगी। सुबह कंटिन्यू करेंगे ... जब जानता है कि मैं तुझे रोता हुआ नहीं देख सकता हूँ, तो फिर क्यों मेरे साथ रोया था ... और कमीना मुझे बोलता है ?...."
फिर थोड़ी सी हंसी का माहौल बन गया। ज्ञान ने वार्निंग देते हुए पीहू से कहा, "ये सीता मैया ! तुम तो हंसो ही मत ... ऊं हु ... बिल्कुल नहीं। .... इसकी लाल डायरी में न जाने कितने आंसू छुपे होंगे ? ... ये सत्य ! भगवान की कसम खा के कह रहा हूँ, इसे मत पढ़ने देना ... नहीं तो ... ", फिर वह खुद ही जोर से हंस पड़ा, "चलो तब तक मैं भी कुछ हंस ही लेता हूं ..."
ज्ञान की यह बात मेरे दिल को चुभ गई। सही तो कह रहा है, अपने दिल के जज्बात अब पीहू से क्यों कहूं ? मेरे किन्हीं भी लफ्जों को पढ़कर उसकी आंखों में आंसू आ गए तो फिर ? आज तक जिन आंसुओं का बोझ मैं उठाता आ रहा हूं क्या कम है ? मैंने देखा मेरी लाल डायरी चारपाई के सिरहाने में अभी भी रखी हई है! एक पल में मैंने तय किया कि मुझे करना क्या है ?
डिनर समाप्त हुआ। पीहू ने अपना कुल्हड़ उठाया। मेरी निगाह पड़ी, मैंने आंखों के इशारे से मना किया। उसने मेरी तरफ एक उंगली दिखाई, उसके होठ हिले "एक शिप ...",
मैने भी उसी के अंदाज में कहा, "बस एक शिप ..", और जैसे ही उसने एक शिप ली मैने उसके हाथ से कुल्हड़ लेते हुए कहा, "लाओ अब मैं किनारे रख दूं ..."
बर्तन समेत कर कमली और मंगल धुलने के लिए ले गए। पीहू इसी बीच उसी चारपाई पर लेट गई। ज्ञान और सत्य एक दूसरे से बात-चीत कर रहे थे। मैने उसके कुल्हड़ की बची हुई शराब अपने कुल्हड़ में डाल ली, और मैं भी सत्य और ज्ञान की महफिल में शामिल हो गया। हमारे बीच हल्का-फुल्का हंसी मजाक कुछ पुरानी यादों की बातें हो रही थी। आधे घंटे बाद मंगल जब वापस आया तो उसने नोटिस किया कि पीहू सो गई है। सत्य ने उसे उठाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी आँखें खुल नहीं। वह गहरी नींद सो चुकी थी।
ज्ञान ने सत्य से कहा, "यार एक तो रम और फिर आज दोपहर से ही शुरू है, खाने के बाद नशा तेजी से बढ़ता है ... इसे आराम से सो लेने दे ... एकाध घंटे बाद उठाते हैं ..."
सत्य ने ज्ञान की बात मान ली। लेकिन 1 घंटे बाद भी पीहू नहीं उठी। रात को 11 से ऊपर हो चुके थे। पीहू इसी तरह गहरी नींद सो रही थी। अंत में सत्य ने एक रास्ता निकाला, "देखो मैं जा रहा हूँ.... बाबा सुबह 5 उठ जाते हैं। किसी भी हालत में उन्हें पीयू की इस हालात के बारे में पता नहीं होना चाहिए। मैं सुबह कह दूंगा कि तुम तीनों मॉर्निंग वॉक में बगिया की तरफ गए हो ... फिर मैं उनकी पूजा की तैयारी कर के आ जाऊंगा .... "
मैं उसे बीच में रोक कर कुछ कहना चाहता था। लेकिन सत्य नहीं मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "नो ... नो गिल्टी ! मैं सपने में भी नहीं सोच सकता हूँ कि तुम इसका बुरा चाहोगे ... और फिर मैंने तुमसे वादा किया था न कि तुम पीहू को मेरी वाइफ बना दो तो मैं तुम्हें जिंदगी भर इसका बॉयफ्रेंड मानने के लिए तैयार हूँ। मेरा वादा झूठा नहीं था। तुमने अपना वादा पूरा किया। अब तुम्हारी दोस्ती पर विश्वास करने और उसे सम्मान देने की बारी मेरी है ... अब मुझे रोक कर तुम मुझे गिल्टी महसूस मत कराओ ... प्लीज। ... ज्ञान चलो मेरे साथ ... मंगल देखो अब तुम पीना मत ... होश में रहना। सर जी और अपनी पीहू बिटिया का ध्यान रखना।
फिर मंगल ने दूसरी चारपाई मड़ैया के अंदर बिछाई ... सत्य ने पीहू को उठा कर मड़ैया के अंदर वाली खाट में लिटा दिया। उसे अच्छे से कंबल ओढ़ा के माथे को चूमते हुए सत्य बोला, "गुड नाइट पीहू ... सुबह मिलते हैं ...", फिर उसने मुझसे कहा, "तुम्हारे कुल्हड़ में वैसे भी बची हुई है ... और नहीं, ठीक है न ? इसका ध्यान रखना ?"
"देखो सत्य बात विश्वास या आविश्वास करने की नहीं है। मैं अभी भी कहता हूं कि तुम्हें रुकना चाहिए, मैं और ज्ञान चले जाते हैं। तुम सुबह पांच बजे आ जाना ... बाबा को कहीं से पता नहीं चलेगा ..."
"तुम नहीं जानते बाबा भी वृद्ध हो चुके हैं, उन्हें भी रात को कब क्या जरूरत पड़ जाए ... मै रहूंगा तो सब मैनेज कर सकता हूँ ... तुम लोग नहीं कर पओगे। यदि कहीं से भी बाबा को पीहू की इस हालात के बारे में भनक पड़ी तो जिंदगी भर यह उनसे नज़रें नहीं मिला पाएगी ... तुम समझ रहे हो न ...", वह पीहू की चप्पल उठाते हुए मुझसे बोला।
"ये चप्पल क्यूं मेरे भाई ...", ज्ञान ने आश्चर्य से सत्य से पूछा। पीहू की चप्पल दरवाजे के सामने देखकर बाबा समझ जाएंगे की पीहू मेरे साथ सो रही है तो वह कमरे में कभी नहीं आएंगे। और सुन तू कमरे में चुप ही रहना, बात मत करना। और बाहर तो बिलकुल मत निकलना ..."
"अब सोऊंगा की तुझसे बात करूंगा चल ...", फिर उसने मंगल से कहा, "ये बाइक की चाभी रखो, कोई इमरजेंसी हो तो आ जाना ... मैं अटारी में रहूंगा वही आवाज दे देना ..."
दोनों चले गए। जब सत्य पीहू को दूसरी खाट में शिफ्ट कर रहा था तब मैंने मौका देखकर अपनी डायरी बैग में डाल दी थी। पीहू की इस हालत के सामने किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। मंगल ने मेरा बिस्तर लगाया, सर की तरफ का आधा भाग मड़ैया के अंदर और दूसरा भाग मड़ैया के बाहर। वजह कि सुबह ओस पड़ती है, और थोड़ा पास रहकर पीहू की हालत पर भी बराबर नजर रखी जा सकती है। मैंने अपना बैग खोला, थोड़ी सी रम अपने कुल्हड़ में और डाली फिर सिगरेट जला के चारपाई पर पांव झूला कर बैठ गया। मंगल ने ललचाई दृष्टि से मेरी तरफ देखा, मुझे उसकी क्षमता का अंदाजा था ... मैने थोड़ी सी उसके कुल्हड़ में डालते हुए पूछा, "मंगल ! जंगली जानवर तो अंदर नहीं आते ? मतलब शेर, भालू, चीता जैसे खतरनाक जानवर ...?"
"नहीं सर ! कभी-कभी आ भी जाते हैं ... लेकिन आप चिंता न करे, मैं हूँ न ..."
"हां, वो तो तुम हो ही... चलो इसे खत्म करो और चुपचाप सो जाओ और देखो घोड़े बेच के मत सोना कुछ-कुछ जागते भी रहना !", मंगल बड़ी-सी पटिया में अपना बिस्तर बिछा के लेट गया। मैंने धीरे-धीरे अपनी खत्म की, सिगरेट को अच्छे से बुझाया। लाल डायरी को बैग के सबसे नीचे कपड़ों के बीच कुछ छुपा के रखा। देखा, पीहू बिल्कुल निश्चिंत सो रही है। मै उसके पास गया, उसे देख कर लगा कि जैसे एक छोटी सी बच्ची सो रही हो। मैंने उसे अच्छे से कंबल ओढ़ाते समय मेरा चेहरा उसके चेहरे के कुछ समीप आया। उसने आधे होश में मेरे चेहरे को टटोलते हुए कहा, "सत्य मुझे छोड़ कर मत जाओ, मुझे माफ कर दो ..."
उसकी ये बात सुन मेरी आंख भर आई। भरे गले से बोला, "नहीं पीहू ! तुम्हारा सत्य तुम्हे छोड़ कर कभी नहीं जाएगा ... वह हमेशा तुम्हारे पास ही रहेगा, कोई फिक्र मत करना ..."
फिर मै भी आ के लेट गया। थोड़ी देर बाद मेरी भी आंखें बंद हो गई। लगभग 3:बजे मंगल ने मुझे जगाया, "सर जी उठिए .."
"हूं ... क्या हुआ ...", मैंने अपनी आंखें खोलने की चेष्ठा करते हुए पूछा।
"पीहू बिटिया कुछ बड़बड़ा रही हैं ..."
"अच्छा ....", मैं चारपाई से उठते हुए बोला, "रुको मै देखता हूँ ...", मैं पीहू की चारपाई के पास पहुंचा। उसने बिल्कुल एक छोटी-सी बच्ची की तरह अपना कंबल एक तरफ फेंक दिया था। उसका पूरा शरीर पसीने से भींगा हुआ था। मैने मंगल को अपने बैग से टॉवेल निकालने के लिए कहा। उसके माथे और गले से पसीना पोछा फिर उसी टॉवल से उसे हवा करने लगा। उसे कुछ राहत महसूस हुई, लेकिन अभी भी उसकी आंखें बंद थी। वह मुझे सत्य समझ के लगातार कुछ न कुछ कुछ बड़बड़ा रही थी।
मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की, "सॉरी सत्य, रियली ...सॉरी ... मैने ज्यादा पी ली न ? ... लालची हो गई थी ..... स ...सारी जिंदगी को ...एक ही पल में .... ज .. जी लेने की कोशिश की न ... मेरा बॉयफ्रेंड अच्छा है ... जानते हो .... क ...क्यूं ..? वह मुझे कभी भी ज्यादा नहीं पीने देता ... वह ...स...सब मैनेज कर... ल ... लेता है ... मेरा दिल रखने के ..ल .... लिए थोड़ी सी शराब में ..ढ ..ढेर सारा पानी मिला के दे देता है ... और वह समझता है ... क .. कि मैं कुछ भी नहीं समझती हूं ... लेकिन म ..मैं सब समझती हूं सत्य ... लेकिन उससे कुछ कहती नहीं ... जानती हूँ ...न... कि वो मेरे अच्छे के लिए ... क ... करता है ... वो तो तुम्हारे कहने से जब ... मैंने तुम्हारे साथ पी .. थ ... थोड़ी ज्यादा हो गई ... वो होता तो नहीं पीने देता ... ये सत्य .... सच में उसने कुछ लिखा होगा क्या ..?
मैने धीरे से कहा , "नहीं ... पीहू ! वो क्यूं लिखेगा ... जो लिखना होगा .. मै लिखूंगा न ...", मेरी आंखों से आंसू बह निकले।
"तो चलो ... अ ..अच्छा हुआ ... यदि लिखता तो मुझे पढ़ना पढ़ता न... पता नहीं ... क्या कुछ लिख देता .... बड़ा ...र .. राइटर समझता है न ... अपने आप को ... पर मुझे क्यों ऐसा ... ल ...लगता है कि उसकी नज़रें ... क .. कुछ कहती सी हैं .... मैं सब समझती हूँ लेकिन नहीं पूछ पाती .. डर लगता है न ... कहीं उसने ऐसा-वैसा कुछ कह दिया तो !! वैसे तुम बताओ वो क्या कहना चाहता होगा मुझसे ... पर तुम भी क्या जनोगे ...
" हां पीहू ! ... तुमने सच कहा ... मैं भी क्या जानू ?पता नहीं अपने आप को क्या समझता है ... ", उसके माथे में फिर से उभर आई पसीने की बूंदों को पोछता हुआ मैं प्यार से बोला ..."
"लेकिन ! सत्य वो .. बहुत अच्छा इंसान है ...,", उसने अपनी बाहें फैलाते हुए कहा, "... तुम्हारी पीहू उसे बहुत ....बहुत .... पसंद करती है ... ", उसकी निश्चल भावना को महसूस कर मेरे हृदय से उठी हूक मेरे गले तक आ रुक गई। रोने की कोशिश में मेरी हिचकी निकल गई!
"सर जी ... ", मंगल धीरे से बोला, "सर जी ! ये तो आपको भइया जी समझ रही हैं ..."
मैंने इशारे से उसे चुप रहने के लिए कहा।
"सत्य ... लेकिन कल वह .... ह ..हम सब को छोड़कर यहां से बहुत ... द ... दूर चला जाएगा, तुम देख लेना फिर ... वो कभी वापस नहीं ... अ...आएगा ... लेकिन कभी ... उ .. उसकी गर्लफ्रेंड मिली न तो मैं उसे बहुत डांटूगी.… तुम भी डांटना... क्यूं .. छ...छोड़ा उसे ... मै होती न तो ... उसे क ... कभी नहीं छोड़ती ..."
वह लगभग आधे घंटे तक बड़बड़ती रही, और मैं उसके माथे और गले में आते-जाते पसीने को पोंछ कर उसी टॉवेल से हवा करता जा रहा था। फिर वह सो गई। मैं उसकी चारपाई से उठकर अपनी चारपाई पर आ गया, "थैंक यू ज्ञान... इनडायरेक्टली ही सही मुझे उसे प्रेम-पत्र पढ़ाने से रोकने के लिए ..."
सुबह 6 बजे मंगल ने फिर जगाया, "सर जी ! उठिए सुबह हो गई ... देखिए ! पीहू बिटिया अभी भी सो रही हैं ... भैया जी भी अभी तक नहीं आए ... "
मै उठा पहले खुद अच्छी तरह से मुंह धोया, फिर उसके सिरहाने बैठते हुए बोला, "ओए गर्लफ्रेंड ! उठो सुबह हो गई है ...", लेकिन जब वह इस तरह कम सती हुई पड़ी रही तो मैंने तेजी से कंधे में थपकी दी, "उठो जी ... देखो साक्षात सूरज देवता गुड मार्निंग कह रहे हैं ... मंगल ! एक लोटा पानी तो लाना ..."
पानी का नाम सुनकर वह तेजी से उठकर बैठ गई, "ये पानी क्यों .... मै उठ गई न !!"
"हां वो तो मैं देख ही रहा हूं ...", मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "पानी तो मुंह धोने के लिए मंगा रहा हूं .."
"हा ?... मुंह धोने के लिए ?.... तो फिर फिर ठीक है ...", मंगल ने पानी दिया और उसने अच्छे से अपना चेहरा धोते हुए पूछा, "सत्य कहा है ... कहीं दिख नहीं रहा है ... और ज्ञान भैया भी नहीं दिख रहे .."
"शांत बालिके ... शांत ", दोनों घर तक गए हैं आते ही होंगे।
"मेरा सर थोड़ा-थोड़ा भारी क्यों लग रहा है ? ", उसने अजीब सा मुंह बनाते हुए पूछा।
"इसे कहते हैं , हैंगओवर होना ... अब समझी ...रुको ...", फिर मैंने गिलास में थोड़ी सी बनाकर उसकी तरफ बढ़ाया, "लो ! उतारो हगओवर ... अब देख क्या रही हो जहर को जहर ही मारता है ... लो तुम्हारे मिस्टर जी की बाइक आ रही है जल्दी करो ... लो पकड़ो ... नहीं तो पूरा दिन अपना सर पकड़े बैठी रहोगी ...", फिर उसने वही किया जो मैने कहा।
मैने फिर उसे अच्छे से कुल्ला कर मुंह धोने के लिए कहा। इसी बीच मंगल अमरुद लेकर हाजिर हो गया।
"लो खाओ ..", मैने कहा।
"थोड़ी सी और दो ... जल्दी करो ...", इस बार मैंने वह किया जो उसने कहा।
अब वह नार्मल थी। बाकायदा मेरी खाट में बैठकर अमरुद खाने लगी। सत्य ने पास आते हुए आश्चर्य से कहा, "वाह ! सुबह-सुबह अमरूद ... क्या बात है ... सब ठीक तो है न ?"
"अरे भइया जी कहां सब ठीक है, सर जी को रात भर परेशान किया .." मंगल बोला।
"हे मंगल ! तुम्हारा मंगल हो, अब तुम चुप रहो आगे की दास्ता हम बयां करते हैं ... पीहू जी जरा आप भी गौर फरमाइएगा ... तो सत्य ये तीन बजे उठी, कुछ बडबडा रही थी। पूरी ओढ़नी छोटे से बच्चे की तरह किनारे फेंक दी थी .. पूरा शरीर पसीने से तरबतर था। मैंने इनके माथे और गले से इसी टावेल से पसीना पोंछा और आधे घंटे तक हवा करते रहे, मैडम जी को बहुत गर्मी लग रही थी। अब भई रम है, हर कोई नहीं पचा पाता न..."
"और सर जी वो जो बडबडा रही थी कि मेरा बॉयफ्रेंड ....", मंगल कुछ उतावला होते हुए बोला।
मैंने उसके कंधे पर तेजी से हाथ रखकर रोकते हुए कहा, "मंगल ! शांत वत्स ! मै सब बता रहा हूँ न !! ... नहीं इसमें मैं बुरा क्यों मानूंगा ... तो सत्य ये आपकी मैडम जी ये समझ रहीं थी कि आप इनके पास बैठे इनकी सेवा कर रहे हैं ... और कल रात इन्होंने अपने बॉयफ्रेंड की भरपूर शिकायत अपने हसबैंड से की ... हे भगवान सुनने से पहले धरती क्यों न फट गई ..."
"मैने तुम्हारी बुराई की ! हो ही नहीं सकता !! नहीं मानती मै !!! ...", पीहू ने मेरी तरफ आंख दिखाते हुए कहा। मंगल फिर से कुछ बोलना चाहता था। मैंने उसे कुछ तेज नजरों से देखा, aur गौतम पंखा चालू करोह समझ गया।
"जी आप तो नशे में थीं ... तो आपको तो कुछ याद होगा नहीं ... पर मैने बुरा नहीं माना ... तो सत्य ये यह कह रहीं थीं कि मेरा बॉयफ्रेंड बहुत ही बुरा है, इसने मुझे बहुत शराब पिलाई है, .... सत्य इसे अब मत रोकना, .... कुछ दिन और रहा न तो मुझे यह शराबी .... नहीं .. नहीं ... क्या कहा था मंगल ? अरे हा .... शराबिनी बना देगा ... ये तुम्हारे पीठ पीछे मुझे क्या-क्या कहता रहता है .... तुम क्या जानो ...."
"ये बहुत हुआ ... अब एक लफ्ज़ भी नहीं ... सत्य तुम इसे रोकते क्यूं नहीं ? ... मैने ऐसा नहीं कहा है .. आई मीन मैं ऐसा कुछ कह ही नहीं सकती ... जब आज तक मेरे दिमाग में ऐसा कोई खयाल आया ही नहीं, तो मैं नशे में ही सही .... कह ही नहीं सकती ... तुम इसका विश्वास मत करना सत्य ..."
"हा भईया जी !! नशे में आदमी क्या कुछ बोल जाए, नहीं विश्वास करना चाहिए ...", इनडायरेक्टली मंगल मेरा पक्ष लेते हुए बोल रहा था।
"होल्ड ऑन मंगल ... भई तुम चुप रहो ... ", फिर मैने धीरे से लगभग उसके कान के पास कहा, "ज्यादा ओवर एक्टिंग करने की जरूरत नहीं है रे...."
सत्य जोर से हंसा था, साथ में मंगल और मैं भी। लेकिन दो शख्स बिल्कुल नहीं हंस रही थे। वे बराबर मुझे घूरे जा रहे थे। सत्य ने उसी तरह हंसते हुए कहा, "परफ्यूम तो होगा न यार ..."
"हा लेकिन किसके लिए ...", मैंने बैग से अपना परफ्यूम निकाल कर सत्य की तरफ बढ़ाते हुए पूछा, और उत्तर में पीहू के ऊपर स्प्रे करते हुए सत्य ने कहा, "इनके लिए ... कल की महक अभी भी थोड़ी थोड़ी आ रही है ... अब चले पीहू ... जब तक बाबा पूजा कर के उठेंगे तब तक तुम नहा लेना .."
पीहू ने मुझे फिर देखा, लेकिन इस बार उसकी आंखों में करुणा दिख रही थी। दोनों के जाने के बाद मैने ज्ञान से पूछा, "आज चलना है न ..."
"नहीं सोचता हूँ दो तीन दिन और रुक लूं ...", ज्ञान मेरी तरफ देखते हुए बोला।
मैने बैग से बॉटल निकाली तो ज्ञान ने टोंका, "अब ये क्या ?"
"हैंगओवर है यार, थोड़ी सी पी लेनी दे ... देख तुझे रुकना है तो रुक लेकिन मुझे कस्बे तक पहुंचा दे। मैं वहां से कोई साधन पकड़ कर अमरकंटक पहुंच जाऊंगा उसके बाद मुझे बस मिल जाएगी ... पर मैं अब यहां नहीं रुकूंगा ... ", फिर मैंने ग्लास की शराब एक सांस में पी ली .. और दूसरा बनाने लगा।
"इस बार हो सके तो पानी मिला लेना ... वैसे रुकेगा क्यों नहीं ... ?", उसने गहरी दृष्टि से मुझे देखते हुए पूछा।
मेरे होठों में फीकी सी मुस्कान आ गई, "मुझसे बेहतर तू जनता है, मेरे दोस्त ! अभी कुछ देर पहले पीहू का हैंगओवर उतरने के लिए थोड़ी सी शराब देते हुए कहा था, जहर को जहर ही मारता है ....
"तो ...?", ज्ञान ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"तो अब वह जहर मैंने पी लिया ... रही बात पानी मिलाने की तो सारी उमर पानी ही मिलाना है, लेकिन आज इस जाम को नीट ही पीना है .... न यह कभी मत सोचना कि मैं यहां से शराबी बन के लौट रहा हूँ, जो वादा तुझसे और उससे किया है सारी उम्र निभाऊंगा ... "
हम दोनों के अलावा एक तीसरा शख्स भी वहां पर था और वह था मंगल। मैंने इशारे से उसे अपने पास बुलाया। एक फुल जाम उसके लिए बनाया, "लो मंगल ! चुप रहने की रिश्वत दे रहा हूं ... ये जाम तुम्हारे और कमली के नाम। उम्र में छोटा हूं लेकिन ईश्वर से तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूँ कि तुम दोनों की जोड़ी सलामत रहे। अपनी पीहू बिटिया का और सत्य भैया का ध्यान रखना। मंगल के एक हाथ में जाम था और उसका सर मेरी गोद पर, शायद उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
ज्ञान उठते हुए बोला, "मंगल तुम अपनी खत्म करो और मेरे लिए भी एक बना दो, मेरे दोस्त की बर्बाद किस्मत के नाम .... मंगल मैंने इसे सत्य के साथ भेजा ही क्यूं ..."
"नियति यानी डेस्टिनी मेरे दोस्त नियति ! जिसे न तो तुम रोक सकते थे और ना ही मैं। इसे तो होना ही था। लेकिन चलो अच्छा हुआ कहा न जहर को मारने के लिए जहर ही चाहिए होता है, जहर पीने के बाद अमृत पीने का कोई अर्थ नहीं निकलता है, वह आपको जीवित नहीं कर सकता ..."
मैने चारपाई पर पीहू के द्वारा आध खाए अमरूद को उठा कर मड़ैया से बाहर आ गया। कमली रोज की तरह मुझसे कुछ दूर पर ही खेत में जुटी थी। मैने पुकारा, "ओए कमली डार्लिंग ! "
उसने पलट कर देखा, और थोड़ा सा मुस्कुरा दी। मैने भी मुस्कुराते हुए कहा, "लव यू ...., ये मैं नहीं मंगल कह रहा है ...", मै मंगल की तरफ इशारा करते हुए कहा।
ज्ञान अपना जाम ले कर मेरे बगल में आ कर खड़ा हो गया, "हे विचित्र प्राणी ! पहले से ही बता दिया करो कि अगला सीन हंसने का है या रोने का, आदमी कुछ तो प्रिपेयर हो जाया करें"
" .. चल स्नान-ध्यान करते हैं .....", मैने कहा।
मंगल ने एक चारपाई पंप हाउस के पास बिछा दी। हम दोनों ही वहीं तैयार हुए। मंगल ने कंद-मूल-फल की व्यवस्था की। तभी सत्य आते हुए बोला, "तो तुम लोग रेडी न ... चलो ज्ञान ब्रेकफास्ट करने के बाद थोड़ा सा माइंस चलना है, शैल घर में आराम करेगा ..."
"देखो यार मैं कहीं नहीं जाने वाला ... मै बस फल-फूल खाऊंगा ... और फिर यहीं आराम करूंगा ..."
कुछ ही देर बात सत्य और ज्ञान दोनों पीहू,
प्रिय,
मेरी पीहू ! .... बहुत रोका था अपने आपको लेकिन आज सब्र का बांध टूट ही गया। मैं नहीं जानता कि तुम्हें मुझसे प्यार है या नहीं। मैं यह भी नहीं जानता कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। लेकिन पता नहीं क्यूं मुझे तुम्हारी आंखों में खुद के लिए प्यार ही प्यार नजर आता है। तुमसे जुदा होने की सोचने पर भी मेरी रूह क्यूं कांप जाती है ? क्यूं एक पल के लिए मेरी सांसे रुक-सी जाती हैं ? अपनी सारी भटकन को छोड़ अब क्यूं तुम्हारे ही पास ठहर जाने का मन करता है ?
ये शाम, डूबता हुआ सूरज, चलती हुई पुरवाई, ये मौसम, ये बहारें, आकाश में उड़ते हुए बे-शुमार परिंदे, ये सभी मेरी मोहब्बत की गवाही दें। मेरी हर एक सांस, दिल की हर एक धड़कन, मेरे हर एक जज्बात तुमसे कहें, आई लव यू पीहू ! .... आई लव यू। .... मुझे तुमसे प्यार है और बे-शुमार है।
क्यों मेरा भी दिल करता है कि मैं भी तुम्हारी गोद पर सर रखकर निश्चित लेट जाऊं और तुम मेरे बालों को धीरे-धीरे सहलाओ और फिर प्यार से मेरे माथे को चूम कर कहो, आई टू, लव यू ..
... कोई वादा नहीं और न ही अगले जन्म में फिर मिलने की कोई ख्वाहिश है, बस इसी जीवन को मैं तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ। तुम्हारे होठों की मुस्कुराहट, तुम्हारे गालों की सुर्खी, तुम्हारी नजरों की कशिश, तुम्हारे बालों की भीनी-भीनी खुशबू, इन सभी को अपने पूरे वजूद में महसूस करना चाहता हूँ...
मैं इस धरती पर तुम्हारे साथ तब तक रहना चाहता हूं जब तक कि तुम मेरे साथ हो। तुम्हारी हर एक शाम-ओ-सुबह, मै तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ।
तुम्हारी आंखों में डूब कर इस दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रेम कहानी तुम्हारे दिल के कागज़ में लिखना चाहता हूँ। पूरी शिद्दत के साथ तुम्हें गले लगा कर, तुम्हारे दिल की धड़कनों को महसूस कर, तुम्हारे कानों में इस दौर का सबसे अच्छा रोमांटिक गीत गुनगुनाना चाहता हूँ। तुम्हारे सांसों की गर्मी, तुम्हारे लहज़े की नरमी को समेट कर इस दुनिया की सबसे खूबसूरत कविता तुम्हारे लिए लिखना चाहता हूँ।
हां, तुम्हारे साथ जीना भी चाहता हूँ और तुम्हारे ही साथ मरना भी चाहता हूँ.... हर एक वह लम्हा गुजारना चाहता हूँ, जिसमें तुम हो।.... कहो पीहू ! क्या तुम नहीं चाहती ? ... क्या तुम नहीं चाहती कि मैं तुम्हारे पास ही रह जाऊं ? ... और हर शाम तुम मेरी गोद में अपना सर रख के इस ढलती हुई शाम को देख सको, उसे महसूस कर सको, सुकून से सो सको ?
कुछ तो कहो पीहू, कुछ तो कहो ? क्यों ये मोहब्बत इंसान को इतना मजबूत कर देती है कि फिर दुनियों की कोई भी बंदिश उसे रोक नहीं पाती। जैसे कि आज मैं खुद को न रोक पाया और तुमसे अपने दिल की सारी बातें कह दीं..!! अपने दिल की सच्ची बातें तुमसे कह देना यदि तुम्हारी नजरों में कोई गुनाह है तो फिर समझ लो यह गुनाह हो गया मुझसे ! और मेरी इस आत्म-स्वीकृत को मौन होकर सुन लेने से यदि तुम किसी पाप की भागीदार नहीं बन जाती हो तो वह पाप मैं अपनी सर लेता हूं, और तुम्हारी तरफ से हर एक सजा के लिए मैं तैयार हूँ ...
यदि सजाएं ही मेरा मुकद्दर है तो एकबार फिर से यही सही ... अब उन्हें स्वीकार करने की हिम्मत रखता हूँ। ... नियति से बहुत कुछ छीन कर तुम तक पहुंचाया है ... तो अब तुमसे दूर न रह पाऊंगा ... तुम अपनी सारी वफाएं निभाओ ... सत्य के साथ सदैव हंसते-मुस्कुराते जिंदगी जियो... लेकिन तुम्हे गले से लगा के मैं रो सकूं इतना हक तो दे दो मुझे। ... तुम भी अपने जीवन के सभी दुख-दर्द मुझसे बांटना और सारी खुशियां सत्य को देना ... जब भी जीवन पथ पर चलते-चलते थक जाना तो इसी तरह मेरे पैरों को तकिया समझ कर थोड़ी देर के लिए आराम कर लेना। यदि तुमसे जुदा हो जाना मेरी नियति है तो मैं अब इसे बदलना चाहता हूँ .. बस तुम मेरा इतना-सा साथ दे दो
.....
(अब तुम जो भी समझो, खुद ही लिख लेना)
सेकंड नंबर पर मैं इसकी आंखे
तुमने कभी कहा था कि इस कहानी में जब तुम अजनबी लगने लगो तब मैं खुद करेक्टर बन जाऊं, कलम अपने हाथ में ले लूं। तो ले ली, लिख दिया जितना लिख सकता था।।
लेकिन पीहू ! अब तुम्हें मरना होगा। सत्य के साथ इस दुनिया को भी अलविदा कहना होगा। लेकिन उससे पहले तुम मुझे अलविदा कहो, क्योंकि अब इस जीवन में तुमसे दोबारा मुलाकात न होगी। अब ये कलम सत्य की है। वही लिखेगा आगे की कहानी। अपने रिश्तों की, तुम्हारे मृत्यु की, अपनी नियति की।
अब कौन कहां पर होगा,
तो फिर कैसा होता होगा।
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझको।
अपनो की ही चौखट पर,
जब दोनों को मरते देखा है।
"
एक्ट 3
एक्ट 3
दूसरे दिन सुबह से दोपहर तीन बजे तक पीहू मेरे साथ थी। बिल्कुल उसी तरह हंसी-मजाक, सामान्य दिखते हुए। जब मैंने बैग में समान रखना शुरू किया, तब भी उसने एक गर्लफ्रेंड की तरह ही तैयारी करवाई। अच्छे से रहना, अपना ध्यान रखना, कभी उदास मत होना और हां देवदास बनने की तो सोचना मत। फिर धीरे से उसने कहा, "जाते समय मेरे सामने मत आना, ना ही मुझसे मिलने की कोशिश करना ... "
"क्यों... ये कैसी बात हुए ? ऐसा नहीं होगा ...", मैने उसका हाथ पकड़ते हुए विरोध जताया, "मेरी तरफ देखो पीहू और बताओ मुझे। क्या प्यार जीवन में एक ही बार होता है ...?"
"नहीं जानती ..", उसकी आवाज के साथ उसका शरीर भी धीरे से कांप गया।
मैं उसे देखते हुए आगे बोला, "मैं पूछना चाहता हूं की दूसरी बार क्यों नहीं हो सकता ? कभी तुमने पूछा था कि जरूरी नहीं कि आपकी फर्स्ट चॉइस ही बेहतर हो, तब हमें क्या करना चाहिए ? आज वही सवाल मैं तुमसे पूछता हूं ? ..."
"नहीं जानती ... लेकिन हां इतना जरुर जानती हूँ कि तुम मुझसे प्यार नहीं कर सकते ...", उसने विश्वाश के साथ कहा।
"गलत हो तुम। मैं तुमसे कर सकता हूँ, लेकिन तुम मुझसे नहीं कर सकती हो .... प्लीज करेक्ट इट ...",
उसने मेरे हाथ से अपना हाथ धीरे से छुड़ाते हुए कहा, "... अब जाओ, बाबा से मिल लो। सत्य वहीं पर तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा। बैग सीढ़ी के आखिरी पायदान पर रखा हुआ मिल जाएगा ..."
फिर वह अपना मुंह फेर खिड़की की छड़ पकड़ कर बाहर देखते हुए खड़ी हो गई।
"पीहू ! ", मैंन उसे पुकार, "प्लीज टर्न योर फेस"
"नहीं ! अब तुम जाओ ..."
"देखो ! सीढी के नीचे तक तो छोड़ दो ...?"
"नहीं ... अब यहां से तुम अकेले ही जाओ ... प्लीज जाओ ...", उसने उसी तरह सपाट और सीधे शब्दों में कहा।
"इट्स ओके ... जा रहा हूँ ... बाय ",
फिर मैं धीरे-धीरे सीढ़ियां उतरता चला गया। पीछे मैने जानने की कोई कोशिश नहीं की, कि उसने मुझसे किया हुआ वादा पूरा किया या नहीं ? वह परीक्षा में उत्तीर्ण हुई या नहीं ?
ज्ञान बाइक को शीशम के पेड़ के पास खड़ी कर बोला, "रुक, मै भी बाबा से मिलकर आता हूँ ...", फिर वह तेजी से घर की तरफ भगा।
मै बाइक की सीट पर बैग को दिया। फिर उसमें टिक कर खड़ा हो गया। मेरी नजर एकटक खिड़की पर थी। अटारी में बिजली का बल्ब चमक रहा है, अटारी में पर्याप्त उजाला फैला है। तभी एक साया खिड़की के पास उभरा। मेरे और बल्ब की रौशनी के दरमियां खिड़की की छड़ पकड़ कर बाहर की तरफ देखते हुए खड़ा हो गया।
मैंने ध्यान से देखा, उसके बदन पर डार्क बादामी कलर का सलवार-सूट और उसी से मैच करता दुपट्टा हैं। सलीके से पीछे की तरफ संवारे हुए अध-खुले बाल जो पीछे से आ रही बल्ब की लाल रोशनी से कुछ और सुनहरे और रेशमी लग रहे हैं। कानों में पहने छोटे-छोटे गोल टप्स सूरज की किरणें प्राप्त कर चंद्रमा की भांति खिल रहे हैं। होठों में हल्के गुलाबी रंग की लिपस्टिक उसके गालों के रंग के साथ मैच कर रही है।
लेकिन उसके चेहरे पर खामोश रात की उदासी है, गहरी आंखें कुछ भरी हुई है। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। तो सत्य ने उस दिन पीहू से झूठ नहीं कहा था। जो उसने देखा, वही सब तो मुझे भी दिख रहा है !! लेकिन क्यों ?
जब दोबारा मैने अपनी आँखें खोली तो उसके लबों पर एक फीकी सी मुस्कान थी। अपना दाहिना हाथ खिड़की के बाहर निकाला और उसे हिलाते हुए मुझसे कहा, "अलविदा ..."
मैंने भी भरी हुई आंखों से उसी तरह मुस्कुराते हुए और अपना हाथ हिला दिया, "अलविदा ..."
"ये भाई पागल हो गया है क्या ...", ज्ञान ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा, "किसे हाथ हिला रहा है ? कौन है खिड़की में ? ...."
मैंने ज्ञान की तरफ पलटते हुए पूछ, "हूं, कोई नहीं है ?"
फिर जब दोबारा खिड़की की तरफ देखा तो सचमुच वहां कोई नहीं था। मैने ज्ञान से कहा, "लेकिन खिड़की तो है न !"
मैने बैग से बॉटल निकली, खिड़की की तरफ दिखाते हुए एकबार फिर कहा, "पीहू ! अलविदा..."
फिर बची हुई शराब ज़मीन में उड़ेल दी और खाली बॉटल को पेड़ के पास ही लुढ़का दिया, "अब चल ..."
"शैल !!l .... ओ शैल !! .... सो गए क्या...", किसी ने मेरा कंधा हिलाते हुए पुकार।
"ऊं....", मैंने अपनी आंख खोलते हुए पूछा, " कौन ...?"
"मै सत्य ... अभी से ... अधिक हो गई क्या ....?", मैंने पूरी तरह से अपनी आंखें खोली देखा सामने सब और मंगल खड़े हैं।
"नहीं यार ... दो-तीन दिनों से जग रहा हूं न, सोने को अच्छे से मिला नहीं तो तुम्हारा इंतजार करते-करते नींद आ गई ...." फिर मैने मंगल से कहा, "मंगल तुम चूल्हा में आग जलाओ.. और ये दोनों पत्थर उसके पास रखो, आज मैं और सत्य दोनों ही सब्जी बनाएंगे और तुम कमली के साथ लिट्टी बनाओगे ... ओके ..."
"ओके क्या ? तुम कितने स्वार्थी हो मंगल ? एक बार भी अपनी अर्धांगिनी से सोम-रस के लिए नहीं पूछा ! लाओ कुल्हड़ ....", मैने मंगल को कम और कमली के लिए एक लार्ज बनाया, "देखो तुम ऑलरेडी ले चुके हो, जाते-जाते बदल मत लेना ... मैं देखूंगा यहां से ..."
"जी सर जी ! ...", मंगल फिर से काम पे जुट गया।
"सत्य तुम ठीक तो हो न ... मेरा मतलब नशा तो ..."
उसने मेरे हाथ के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, "मैं ठीक हूं ... पूरी तरह से ओके ... और वैसे भी जब दिल में दर्द हो तो ..."
"देखो भाई ... अब दर्द की बात नहीं होगी, वैसे तुम्हारी पीहू से पहली मुलाकात कैसे हुई थी ? देखो एक बार अटारी में मै उसी खिड़की के पास खड़ा बाहर की तरफ देख रहा था, तब पीहू ने मुझे अपने दृष्टिकोण से बताया था, लेकिन आज मैं तुम्हारे दृष्टिकोण से सुनना चाहते हूं ..."
सत्य हंस पड़ा, "तो की न राइटरों वाली हरकत, मेरी जिंदगी से मेरी ही कहानी चुराना चाहते हो, तो तुम्हारी नॉलेज के लिए बता दूं ... इसमें मेरा अकेले का कॉपीराइट नहीं है ... "
"जनता हूँ यार, कल सुबह उससे भी इजाजत ले लूंगा ... यदि चोर-चोर मौसेरे भाई हो सकते हैं, तो हम दोनों लिटरेचर तो पसंद करते ही थे न, तो इस नाते फुफेरे तो हो ही सकते हैं न ? उसकी चिंता तुम मत करो ...", मैने उसके कुल्हड़ में एक पैग बनाते हुए कहा।
"और तुम ..."
"मैने आलरेडी बना ली थी ... ", मैने खाट के नीचे से कुल्हड़ उठाते हुए कहा।
उसने कहना शुरू किया और मैने सुनना। उसके चेहरे की रौनक और खुशी देखकर महसूस हुआ जैसे कोई पांच साल पहले की बात न हो कल की ही बात हो।
नी के इस मोड़ पर मुझे उसकी यह बातें कुछ अवास्तविक प्रतीत हुई, लेकिन जरा ठहरिए ! जब 18 वर्ष का एक लड़का अपनी महबूबा से यह कह सकता है, "मुझे तुम्हारा शरीर नहीं तुम चाहिए। हां तुम चाहिए। इस जिंदगी में तुम्हारा साथ चाहिए ... मैं तुम्हारे साथ जिंदगी जीना चाहता हूं, तुम्हारे बगैर गुजरना नहीं ...", तो फिर यह 23 साल का लड़का ऐसा क्यों नहीं सोच सकता ...?
किसी से दूर हो जाना, किसी और को अपने जीवन में शामिल कर लेना मूव ऑन नहीं कहलाता है। बल्कि किसी को अपने हृदय से निकाल उसके प्रति अपने दिल में घृणा या नफरत पाल लेना मूव ऑन कहलाता है। और जिससे आप एक बार मोहब्बत कर ले वह लाख बेवफा हो जाए, आप उससे मूव ऑन नहीं कर सकते।
मेंरे गांव की ये गलियां, ये मौसम, ये हवाएं, ये बरसाते जो कभी मेरे अपने थे, आज क्यूं अजनबी-से बन गए हैं ?
काश कि तू लौट कर आए, कि मैं तेरी आंखों में इन्हें फिर से देखना चाहती हूं।
काश तू इकबार मेरे सामने बैठे, कि मैं सिर्फ और सिर्फ तुझे देखना चाहती हूं।
तेरी आँखों में खो जाएँ मेरी तन्हाइयां, कि इकबार आ इन आंखों में फिर से डूबना चाहती हूँ।
यूं तो अक्सर तेरी यादों का काफिला चलता है, कि मैं तुझे भी अपने साथ चलते हुए देखना चाहती हूँ।
तुझे सोचते-सोचते सोने की अब आदत-सी हो गई है मुझे, कि तेरी बाहों में सर रख इस आदत को छोड़ना चाहती हूँ।
जो लम्हे, जो दिन, जो शामें, जो रातें गुजरी थी तेरे साथ, कि उन्हें इकबार फिर से गुजरता हुआ देखना चाहती हूँ।
जो तू कैद है इन आंखों में एक हसीं ख्वाब बनकर, कि पलकें बंद हों तुझे आजाद करना चाहती हूं।
जो धड़कती है तेरे दिल की धड़कने मेरे दिल के साथ, कि मेरी धड़कने बंद हों तेरे दिल की धड़कने लौटना चाहती हूं।
जो ले गया बेचैनियां मुझसे जुदा होते वक्त, कि लौटा दे वो बेचैनियां मैं तुझे करार देना चाहती हूँ।
हो सके तो अजनबी आजा इस दुनिया से जाने से पहले, कि इकबार तुझे गले लगा फिर छोड़ना चाहती हूँ।
मैं जानती हूं कि हमे फिर से जुदा होना होगा, कि मैं तेरी आंखों को भी नम देखना चाहती हूं।
(Written by Peeho, Approx)
कोई अकीदत नहीं कोई मोहब्बत नहीं पर क्यूं,
निगाहें ठहर-सी जाती है तेरी तस्वीर देखकर।
तुझसे कोई राब्ता नहीं कोई वास्ता नहीं पर क्यूं,
खुद से ही जुदा हो गया हूँ मैं तुझसे दूर हो कर।
कोई शिकवा नहीं तेरी जुस्तजू भी नहीं पर क्यूं,
हर एक लम्हे में शामिल है तू मेरी याद बनकर।
अजनबी अब कब मिलोगे ? "
अटारी की सीढ़ी से स्टेप डाउन होते मेरे कदम रुक गए। मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए और कुछ मजाकिया अंदाज में पूछा, " अभी भी अजनबी हूं ? तो फिर बताओ ऐसा और क्या करूं कि ..... सभी कुछ तो ...."
"धत ! " , उसने कुछ लजाते हुए मुझे डाटा, " अब आगे एक शब्द भी नहीं ...."
मैं उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था। लेकिन वह संजीदगी से बोली, " तुम्हें अजनबी कहना अच्छा लगता है, जानते हो क्यूं ? क्योंकि मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा मेरे लिए अजनबी बने रहो। जब भी मैं तुम्हें देखूं तो एक नए अंदाज से देखूं। तुम्हारी छुअन में मुझे हर बार नयापन महसूस हो। चाहे तुम जितनी बार मेरा हाथ पकड़ो तो मुझे हर बार यही महसूस होना चाहिए कि जैसे पहली बार किसी लड़के ने एक लड़की का हाथ पकड़ा हो। जब भी तुम मुझे गले लगाओ तो हरबार तुम्हारे दिल की एक नई धड़कन सुनाई दे। जब भी तुम मुझे अपनी बाहों में समेटों तो मुझे वही नयापन, वही एहसास होना चाहिए जैसे कि कल रात हुआ था। जानते हो जैसे-जैसे हम एक दूसरे के करीब आते जाते हैं, एक दूसरे को जानने- पहचाने लगते हैं तो हम मन और शरीर से एकदूसरे से उतने ही दूर होते चले जाते हैं। इसलिए कहती हूं तुम हमेशा मेरे लिए अजनबी बनकर रहना ... "
"और किस ..… ?" , मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा था, " उसके बारे में तुमने कुछ कहा ही नहीं ... ?"
जवाब में उसने कुछ कहा नहीं बल्कि सीढ़ी के पायदान पर उसी तरह खड़ी हो गई जिस तरह मैं ठिठक कर कुछ देर पहले रुक गया था, एक पैर स्टेप-अप और दूसरा स्टेप-डाउन। उसका दाहिना हाथ मेरे बाएं कंधे पर था और बाया हाथ मेरे माथे को सहलाता हुआ, बालों से उलझता हुआ मेरे सर के ठीक पीछे तक पहुंचा था।
मैं नहीं जानता कि वह मुझ पर झुक रही थी या मैं उस पर। मेरी सांसे तेज हो गई, दिल की धड़कने बढ़ गई और कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ जैसे किसी लड़की ने किसी लड़के के होठों को पहली बार चूमा हो।
यूं तो मैंने इसी अटारी की खिड़की से उसे झांकते हुए कई बार देखा था और इस अटारी पर अब से पहले तन्हाई में दो बार और भी आ चुका था। उसकी हथेली को अपने हाथों में ले बहुत सारी बातें भी की, एक दूसरे की आंखों में भी झाक के देखा, उसे गले भी लगाया। और कल रात ..... ?
लेकिन ये सुबह कुछ और सुबह थी। अपने शरीर पर उसकी हर एक छुअन मुझे नई लग रही थी। उसके बालों की उलझन, उसके शरीर की खुशबू, उसकी सांसे, उसकी निगाहें उसके होठों का मीठापन, मैं एक अलग ही एहसास से गुजर रहा था।
कुछ देर पहले उसने जो भी मुझसे कहा मुझे सच लग रहा था। अजनबी बनकर जब हम एक दूसरे के लिए इतने समर्पित हो सकते हैं तो फिर किसी रिश्ते नाते की जरूरत ही क्या ? हम अजनबी ही सही है।
आज 3 साल बाद मिट्टी की पटावदार अटारी और मिट्टी से ही बनी हुई सीढ़ी के उन्हीं पायदान पर मैं उसी तरह खड़ा था। अवाक, आश्चर्यचकित-सा, मन में एकसाथ कई प्रश्न लिए यह सब कब, कैसे और क्यूं हो गया ? खिड़की से कुछ हटकर पड़ी चारपाई पर उसका शरीर पड़ा था। चेहरा ठीक सीढ़ियों की तरफ था, आंखें खुली हुई। मुझे एक अलग ही अंदाज से देखती हुई, किंतु निस्तेज। यहां पर उसके शरीर की खुशबू नहीं थी, थी तो उसके बालों की उलझन। पूरी अटारी में मुर्दा जिस्म से उठाती हल्की दुर्गंध जो मुझसे कह रही थी भाग जाओ यहां से, नहीं ठहर पाओगे तुम कुछ देर और यहां पर।
लेकिन उसकी आंखें ? वह तो मुझे अपने पास बुला रही थी। कहां भाग कर जाओगे ? देखो मुझे !!! जीवन का यह दूसरा पहलू। जिसे तुमने कभी अपनी बाहों में समेटा, जिसे तुमने चूमा, जिसकी सुंदरता के तुमने न जाने कितनी तारीफे की, जिन होठों से फूल झरते थे, जिस बदन से कभी तुम्हें चंदन-सी खुशबू आती थी। जिसके बालों में तुमने अपनी उंगलियां घुमाई, हां जिस शरीर के उन्माद में तुम कभी पानी की तरह बहे थे, मैं वही अजनबी हूं।
अब आओगे न मेरे पास ...... ?
( कहानी "अजनबी " से)
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