पारुल ने दीदी के चेहरे में नजरें गड़ा दी। देखना चाहती थी कि उसकी बातों का उसकी दीदी पर क्या असर हुआ। लेकिन उसकी दीदी उसी तरह उदास स्वर में बोली, " उसने कहा था वह आएगा . . उसने कहा था आशाओं के दीप कभी बुझने न देना . . ."
" तुम समझती क्यों नहीं दीदी . .", पारुल कृतिम क्रोध दिखाते हुए बोली थी, " आशाओं के दीप जले और जलकर बुझ भी गए। कभी सोचती हूं . . . तुम्हारी उससे मुलाकात न होती तो अच्छा था . . . उससे कभी बात न होती तो अच्छा था . . और उससे कभी मोहब्बत न होती तो और अच्छा होता।
पारुल उसी कृतिम क्रोध को लिए कमरे से बाहर चली गई। उसे यादों का मृदुल स्पर्श मिला।
" मुंबई वैरायटी शो ", प्रदर्शनी की जान हुआ करती थी। किशोरवय से लेकर उम्र दराज तक के लोग दर्शक दीर्घा में होते। मादक फिल्मी गानों की प्ले के साथ कम वस्त्रों में थिरकते यौवन को देखने की जिज्ञासा किसमे नहीं होती ! हर तरह के लोग और हर तरह के इशारे। एक शहर से दूसरे, शहर दूसरे से तीसरे।
दिन में आठ दस शो होते थे। प्रत्येक शो लगभग आधे घंटे का होता। कभी अर्धविक्षिप्त बाप ने न रोका और न कभी उसके मन में कोई अपराध बोध ही जागा।
जिस्म बेचने से अच्छा था कि उसकी नुमाइश कर ली जाए। एक वर्ष के अंदर ही इस पेशे ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया एक शर्मीली लड़की दुनियादारी सीख गई।
उस वर्ष विदिशा में प्रदर्शनी लगी थी। आठ 10 दिन बीत गए। इन दिनों में उसे महसूस हुआ कि एक लड़का दिन में कम से कम तीन चार शो देखने आता है और अक्सर ही आगे की पंक्ति में बैठता है।
एक दिन जब उसका शो चल रहा था तो उस लड़के के पास ही बैठे एक लड़के ने उसे अश्लील कमेंट किया। फिर क्या था वह लड़का उस लड़के से उलझ पड़ा। इतना कि शो रोकना पड़ा। कुछ देर बाद शो तो फिर से शुरू हुआ लेकिन आगे की दोनों सीटें खाली थी। शायद सिक्योरिटी वालों ने उन दोनों को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
यह सब उसके लिए नया नहीं था, आए दिन होता रहता था। लेकिन एक बात उसके अंदर घर कर गई कि इस दुनिया में कोई है जो उसे पसंद करता है। उसके सम्मान के लिए किसी से लड़ भी सकता है।
वह उससे मिलने के लिए बेताब सी हो उठी। तीन-चार दिनों तक इंतजार किया, लेकिन वह किसी शो में नहीं दिखा। एक दिन जब वह शो शुरू होने से पहले सजसवर रही थी कि ग्रुप की एक लड़की ने उसे बताया कि आज वह आया है। फिर उसे छेड़ा था " जरा झूम के नाचना . . . तुम्हारे दिलबर आए हैं !"
सचमुच उस दिन वह झूम कर नाची थी। निगाहें बराबर उसी पर थी। उसकी हर एक अदा केवल उसी के लिए थी। और वह भी मंत्रमुग्ध सा स्टेज पर झूमते हुए यौवन को न देख केवल उसे ही देख रहा था। पल भर के लिए दोनों की नजरें मिली भी थी।
दूसरे ही दिन सुबह से ही जमकर बारिश हुई थी। मैदान में चारों तरफ पानी ही पानी भर गया।
उस दिन कोई शो न हो सका। फिर भी वह आया था। उसे प्रदर्शनी के चक्कर लगाते देख उसी लड़की ने उसे खबर दी, " देख तो सही ! इस तूफानी बारिश में भी तेरे दिलबर आए हैं! मिलेगी उनसे ? उसने हां में सर हिलाया, " लेकिन कैसे ?"
कुछ देर बाद वह उसके पास आई। चल वह तेरा इंतजार कर रहा है। वह उसे लेकर टिकट काउंटर पर आई , " डर मत 15 मिनट के लिए काउंटर वाले को पटा लिया है, वह मुझ पर फिदा है "।
उसने उसकी तरफ देखा, बारिश अभी हो रही थी और वह खिड़की के दूसरी तरफ खड़ा भीग रहा था। उसने हौले से मुस्कुरा कर पूछा, " कैसी हो पायल ? "
उसके मुख से अपना नाम सुन वह रो पड़ी वर्षों बाद किसी ने उसे आत्मीयता से पुकारा था, कुछ पूछा था। महसूस हुआ जैसे जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। उसने खिड़की से हाथ डाल उसके गालों में लुढ़क आए आंसुओं को पूछ बोला था , " रो मत" ।
उसे उसके स्पर्श में जादू सा महसूस हुआ। इतना गहरा प्रेम जिसमें वह डूबती चली गई। केवल 15 मिनट में ही दोनों ने एक दूसरे का सुख दुख बांट लिया। उसी से पता चला कि वह भी इस शहर में नया है। पढ़ाई करने आया है। पहला साल ही चल रहा है।
इसके बाद न तो ऐसा कभी दिन आया और न ही कभी ऐसी बरसात हुई । न ही फुर्सत के लम्हे मिले कि जब वे मिल सके। वह अभी भी शो देखने आता था और सच जिस शो में वह होता पायल के कदम स्टेज पर न पढ़ते।
प्रदर्शनी खत्म हुई और सामान ट्रकों में भरा जाने लगा। उसी लड़की की मेहरबानी से वे दोनों कुछ पल के लिए फिर मिले थे। उसने आशाओं के दीप उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा , " पायल ! दुनिया भी तो एक स्टेज है. तुम इस छोटे स्टेज को छोड़ बड़े स्टेज में आओ, मैं तुम्हारे साथ हूं "
आशाओं के दीप प्रज्जवलित करने के लिए वह उसके शहर आया। उसके शहर में उसकी जान पहचान के तमाम लोग थे। वह उन सब से मिला। बैंक मैनेजर से भी, और पायल की धूल खा चुकी सर्टिफिकेट काम आई। फिर शहर के मेन लोकेशन में खुल गई एक मोबाइल शॉप।
पायल को शंका थी कि वह दुकान चलेगी भी या नहीं । लेकिन वह कहता है, " ऐसा क्यों सोचती हो भला आज की दुनिया में कोई भी इंसान मोबाइल के बिना रह सकता है? "
उसकी सोच कामयाब हुई। मोबाइल बेचने का बिजनेस चल निकला। महीने दो महीने में वह आता रहता। उसकी उपस्थित उसे उत्साहित करती। इसी तरह दो साल और गुजर गए।
एक दिन उसने कृतज्ञ भाव से कहा, " तुमने मेरे लिए इतना सब किया ! कैसे इसका बदला चुका सकूंगी ? "
तब वह हंसते हुए बोला, " मैंने जो कुछ किया अपने लिए किया . . "
उसने आश्चर्यचकित स्वर में पूछा, " मैं समझी नहीं . . ."
कुछ पल के लिए उसकी हंसी रुक गई फिर मुस्कुराते हुए बोला, " मैं भी बिजनेस करना चाहता हूं, यह क्या कम है पूजी तुम्हारी, रिस्क तुम्हारा और एक्सपीरियंस मुझे भी मिला।
उसका मुंह लटक गया, लेकिन वह अपनी ही धुन में आगे कह रहा था, " मेरी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है लेकिन मैं नौकरी करने के इरादे में नहीं हूं। मैं भी बिजनेस ही करूंगा, लेकिन उसके लिए मुझे पैसे जुटाने होंग पायल !"
तब उसने झट से पूछा, " कितने ! "
" अभी तो मुझे खुद नहीं पता . . . ",
पायल ने उससे कहा " कुछ पैसे मेरे पास है, बचा के रखे हैं, लेते जाओ . . . "
कुछ देर वह खामोश रहा फिर बोला था " ठीक है, लेकिन एक शर्त है? जब भी मैं ब्याज के साथ वापस करूंगा, मना मत करना !"
" ब्याज !! ", उसने मन ही मन सोचा, " ब्याज में तो मैं तुमसे, दो प्यारे प्यारे से बच्चे लूंगी, समझे ! "
फिर वह अपनी ही सोच पर शर्म से लाल हो गई।
उसे छोड़ने वह स्टेशन तक आई थी। जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म आई तो उसकी आंखों से गंगा जमुना बहने लगी। वह उसे दिलासा देते हुए बोला, " मेरी मां ने मेरे लिए बहुत कुछ सोचा है, सपने देखें हैं, बहुत परेशानियों का सामना भी किया है। मैं अपने पैरों में खड़ा होना चाहता हूं। छोटा भाई अभी पढ़ रहा है, उसके लिए भी कुछ करना चाहता हूं। इसलिए हो सकता है कि अब मैं चार पांच महीने ना आ सकूं।
ट्रेन ने सिटी दी वह जाने के लिए उठा लेकिन पायल ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया। बस बेबस आंखों में से उसकी तरफ ताकती रही।
वह भी भावुक हो गया, " मैं जानता हूं कि तुम मुझसे क्या सुनना चाहती हो . . . अरे पागल ! वह तो मैंने पहली मुलाकात में ही तुमसे कह दिया था। देखो ! क्या इन आंखों में तुम नहीं दिखाई देती हो ?
वह कुछ नहीं बोली, अश्रुकण लगातार बहते ही जा रहे थे। वह प्यार से उन आंसुओं को पोछता हुआ उसी स्वर में बोला , " और देखो मैंने मदद इसलिए नहीं की थी कि मुझे एक्सपीरियंस . . . बहुत सी बातें हैं जो तुमसे करनी है, लेकिन अभी नहीं। अभी तुम्हारी भी जिम्मेदारियां हैं और मेरी भी। एक बार ये सभी पूरी हो जाए तो फिर अपने बारे में भी हम सोचेंगे और हां तुम मुझसे वादा करो कि इन आशाओं के दीप को कभी बुझने नहीं दोगी ! "
" देखो तो दीदी! उसका लेटर आया है ", पारुल लगभग भागती हुई सी कमरे में दाखिल हुई ।
उसकी तंद्रा भंग हुई, स्मृतियां बिखर सी गई। वह खुशी से पागल चहक उठी, " क्या . . सच !! " अगले ही पल खत को पारुल के हाथ से झपट सा लिया . . .
to be continued . . . 2
Shailendra S.
आगे इंतजार रहेगा 👍
ReplyDeleteBehtareen presentation 👏🏻👏🏻👏🏻 bhavnao se ot prot kriti 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻🙏🏻🙏🏻
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