" ओह ! कितना शातिर और बदमाश निकला। तुम्हारे सारे सपने चुरा लिए और देखो भेजा भी तो क्या भेजा! पैसे वापस किए उसने !! हम लोगों ने क्या समझा और वह क्या निकला !!! "
पारुल भरपूर अपने दिल की भड़ास निकाल रही थी। लेकिन उसकी दीदी चुपचाप खामोशी से पथराई सी आंखों से कभी हिसाब के उस छोटे से कागज के टुकड़े को देखती तो कभी डिमांड ड्राफ्ट को। पल भर के लिए उसे भी महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके सारे सपने चुपके से चुरा भी लिए हो।
" दीदी हम उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेंगे। मैं तो उसकी क्लास लूंगी। मैं तो कहती हूं दीदी तुम्हें उससे कम से कम एक बार मिलना चाहिए। हम पता लगाएंगे शहर का नाम तो मालूम ही है। हम खोज निकलेंगे उसे। और फिर पूछेंगे, तुम न सही लेकिन मैं उससे जरूर पूछूंगी। उसने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया ? क्यों तुम्हारे जीवन में आशाओं के जलाए। जिस की रोशनी में उजाला तो हुआ लेकिन जिस की आग ने तुम्हारा जीवन ही जला दिया . . .
मैं तो सोच के हैरान होती हूं, कितना बेवफा इंसान है। पहले कुछ महीनों तक तो फोन भी किया। उसके बाद वह भी करना बंद कर दिया। उसका फोन लगाओ तो सिम बंद होने का मैसेज आता है। एक्चुअली में दीदी वह तुमसे अब मिलना ही नहीं चाहता। उसने कोई और ही दुनिया बसा ली होगी। कर्ज लिया था, सो वापस कर दिया। लेकिन उससे पूछना जरूर है, उससे एक बार मिलना जरूर है। मैं पता लगाती हूं आखिर कोई तो जानता होगा उसे
पारुल उसे अभी भी जी भरकर कोस रही थी लेकिन पायल उसी तरह खामोश चुपचाप सुनती रही। पता लगाने का एक ही जरिया था और वह था डिमांड ड्राफ्ट। वह उस शहर गई , उस बैंक मैनेजर से मिली जहां से डिमांड ड्राफ्ट बनवाया गया था। डिमांड ड्राफ्ट अकाउंट से बनवाया गया था और उसे अकाउंट होल्डर का एड्रेस लेने में कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन यह क्या ? अकाउंट होल्डर एक लेडी है !!
खैर जो भी हो दीदी निपट लेगी यही सोचकर वह वापस अपने शहर लौट आई। एक घर का पता देते हुए उसने अपनी दीदी से कहा, " चाहती तो मैं खुद ही मिल सकती थी, लेकिन नहीं, मैं यह चाहती हूं कि सबसे पहले तुम मिलो और पूछो उससे " ।
हजारों तरह की समझाइश देकर उसने दीदी को उस शहर के लिए रवाना किया। पायल के लिए यह एक अजनबी शहर था, अजनबी लोग थे। कभी वह अजनबी शहर और अजनबी लोगों को फेस करने की अभ्यस्थ थी। लेकिन इन चार वर्षों में वह इन सब से दूर हो चुकी थी। उसके अंदर उसी एक शर्मीली और मासूम लड़की ने जन्म ले लिया था, जिसे कभी छोड़कर वह स्टेज पर उतरी थी।
वह कुछ डरी सहमी सी एक घर के सामने जाकर रुकी। हाथ में लिए पाते को एक बार फिर देखा। कहीं वह गलत घर में तो नहीं आ गई । और जब उसे सही होने का विश्वास हो गया तो उसने कॉल बेल का स्विच दबा दिया अंदर तेज घंटी बजने की आवाज हुई कुछ देर बाद एक अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला और धीरे से पूछा, " जी किससे मिलना है ?"
" जी नमस्ते ! जी वो रोहित से . . .
उसकी बात पूरी भी ना हुई थी कि उस अधेड़ महिला ने आश्चर्य से पूछा, " किससे !! रोहित से . .
जी . . . उसकी आवाज में मायूसी थी " जी रोहित से मिलना था . . क्या यह घर उनका नहीं है?
उस महिला ने उसे गौर से देखा फिर दरवाजे से एक तरफ हटते हुए बोली अंदर आ जाओ वह पीछे पीछे बैठक रूम पर पहुंची , "आराम से बैठ जाओ . . .
दीपावली का दिन था। पारुल ने पूरे घर को साफ-सुथरा करके सजाया। " ट्रेन आती होगी और उसके साथ ही उसकी दीदी भी आ जाएंगी। और क्या पता शायद वह भी साथ में आए। यही सोच सोच कर वह पूरे मन से पूरे घर को सजा रही थी ।
शाम को पांच बजने हैं, अब तक तो ट्रेन आ गई होगी। दीदी बस आती ही होगी। कुछ शरारती बच्चों ने अभी से फटाके चलाने शुरू कर दिए थे। कहीं से जब एक तेज धमाका होता तो वह डर सी जाती। न जाने दीदी को इतना लेट क्यों हो रहा है ?
पायल के घर पहुंचते ही पारुल जोर से भागती हुई उसकी तरफ आई और कस कर लिपट गई, जैसे एक छोटी सी बच्ची अपनी मां से लिपट जाती है, और हजारों शिकायतें,
" क्या दीदी ! इतना लेट कर दिया ? मुझे तो फिक्र हो रही थी, और सच पूछो डर भी लग रहा था। तुम नहीं जानती जब तुम पास नहीं होती हो तो न जाने मन में क्या-क्या ख्याल आते हैं। अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगी। जाओगे भी तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगी। तुम्हारे साथ जाऊंगी। "
उसने पारुल को कस कर भींच लिया, जैसे एक मां अपने शिशु को अंक में समेट लेती है, "ठीक है, अब कही न जाऊंगी "
पारुल खुश थी, " दीदी बताओ तो मिला वह ? तुम उसे याद तो रही न ? अरे कुछ तो बताओ ? कैसा है वह ? आएगा कि नहीं ? "
"अरे रुक जा री, सांस तो लेने दे . . . बताती हूं सब बताती हूं। तू पहले दीपावली की तैयारी तो कर। देख सांझ हो गई दिये कब जलेगी ? ", कहते हुए वह फ्रेश होने के लिए बाथरूम मैं घुस गई !
पारुल ने पूजा की पूरी तैयारी की, दीए में तेल भरा और बड़ी सी थाल में एक क्रम से रखा। दोनों बहनों ने शांत मन से पूजा अर्चना की। इस बीच पारुल ने पायल से कुछ भी नहीं पूछा। वह नादान थी लेकिन बेवकूफ नहीं वह जानती थी दीदी का जब मन करेगा तो वह खुद बताएगी।
पायल ने अपने बैग से तो तस्वीर निकाली। एक पारुल की तरफ बढ़ा दी और दूसरी जो फ्रेम में थी उसे देवताओं की ठीक बगल वाली खाली रैक में रख दी। पूजा की थल से कुछ फूल और एक जलता दीपक उठा कर ठीक उस तस्वीर के सामने रख दिया।
पीछे खड़ी पारुल ने यह सब देखा और उसे समझते देर न लगी कि क्या घटित हो चुका है। फिर उसने अपने हाथ में पकड़ी उस तस्वीर को देखा, फिर दीदी की तरफ।
" यह तस्वीर रोहित के छोटे भाई की है। आज वह और उसका परिवार ठीक उसी तरह संघर्ष कर रहा है, जैसा कि पहले रोहित किया करता था। आज उसका परिवार रोहित के बिना अधूरा है। सारी जिम्मेदारियां उसके भाई पर है।
रोहित ने अपने जिन जिन मित्रों से पैसे लिए थे, उन सभी के नाम डायरी में लिख रखे थे । उसने हमारे और अपने बीच के इस अनकहे रिश्ते को भी मां के साथ शेयर किया था। जब रोहित ही न रहा तो उसके मां की मुझसे मिलने की हिम्मत ही न रही। शायद उन्होंने सोचा होगा कि मिलने से फायदा भी क्या ? शायद समय के साथ मैं भी उसे भूल गई और यदि नहीं भी भूली तो उसे बेवफा समझ कर भूल जाऊंगी। लेकिन यदि रोहित का लिया कर्ज लौटना न होता तो शायद आज भी . . .
मैंने अभी फाइनल तो कुछ भी नहीं किया। तेरी मर्जी के बिना कर भी कैसे सकती थी। पर आज उस परिवार को मुझसे अधिक तेरी जरूरत है। यदि तुझे मंजूर हो तो मुझसे कह न मंजूर हो तो भी कह देना।
" लेकिन दीदी यह सब कैसे कब हो गया ...
" ठीक उसी तरह जैसे एक अनहोनी हो जाती है। एक एक्सीडेंट ही तो हुआ था, और शायद मरने वाले को भी अपने मरने का एहसास न हुआ होगा। वह भी नहीं सोच पाया होगा कि उसने कब यह दुनिया छोड़ दी ... हमने तो कुछ भी नहीं सहा पारुल। जब हम अकेले थे, कुछ नहीं थे, तब वह हमारे साथ था। हमारे हर दुख को अपना दुख समझ कर हमारे साथ ही चलता रहा। और हम उसे न जाने क्या क्या कहते रहे। बेवफा ... हरजाई ... धोखेबाज ... चलाक .... अब .... अब खुद सोचती हूं तो शर्मिंदगी महसूस करती हूं।
" लेकिन दीदी तुम .... अकेले रह . ..
" न .... अकेली न रहूंगी . . . उसने आशाओं के जो दीप मुझे दिए थे, वे सदैव मेरे साथ रहेंगे। यूं ही जलते रहेंगे . . .
ठीक तभी बाहर तेज धमाका हुआ। शायद दीपावली का कोई बड़ा बम फोड़ा गया था। धमाका इतनी तेज था कि पारुल डर कर दीदी से लिपट गई। बहन की गर्म आगोश थी या वह खुद रो कर दीदी को रुलाना चाहती थी, क्या पता ? अपने आंसू गिरने से न रोक पाई। हिचकियां ले ले कर रोने लगी।
प्रत्येक इंसान के जीवन में एक ऐसा भी समय आता है, जब मन का सारा उद्वेग शांत हो जाता है। स्थिर मन में सभी चाहते शांत हो जाती हैं। इंसान में कुछ प्राप्त करने के स्थान पर कुछ देने की क्षमता उत्पन्न होने लगती हैं।
सभी गिले-शिकवे दूर हो जाते हैं। आंखों के आंसू भी सूख जाते हैं। न कोई क्रंदन न कोई विलाप। बस सब कुछ शांत और स्थिर। इंसान में कर्तव्य बोध का सृजन होता है और वह अपनी सारी आकांक्षाओं सारी चाहतों को किनारे रख अपने उसी मार्ग पर चल पड़ता है।
यह भावना कोई त्याग की भावना नहीं, यह भावना तो एक स्थिर मन में उपजे उस समर्पण की है, जिसे कभी आपने स्वयं ही आत्मसात किया था।
वह रोहित के किसी भी कर्ज को नहीं चुकाना चाहती और न ही उसके परिवार पर कोई एहसान करना चाहती हैं वह तो बस अपने उसी कर्तव्य पथ पर चलना चाहती है, जिस पथ पर कभी उसे साथ ले, उसका दिलबर चला था।
" चल अब चुप भी हो जा .... जिस दिन कन्यादान कर दूंगी उस दिन रो लेना ...
लेकिन पारुल कहां छोड़ने वाली थी।
Shailendra S. "Satna"
Story to be continued with Nice thought. Actually this type of story Naver be ended. कहीं और कहीं किसी के साथ चलती रहती हैं।
ReplyDeleteशायद ठीक ही कहा आपने !पात्र बदलते रहते हैं कहानियां तो वही हैं, चलती रहती हैं।
DeleteRona aa gaya mamaji
ReplyDelete🙏❤️🙏
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