जब दरख़्त के साए उनके कद से लंबे हो चले ठीक तभी एक यात्री विमान चील की मानिंद रनवे की तरफ झपटा। लगभग चंद मिनटों बाद है दो अधेड़ व्यक्ति एयरपोर्ट से बाहर निकले और पार्किंग में खड़ी लग्जरी कार की तरफ बढ़े। उनमें से एक व्यक्ति समकालीन लेखक और दूसरा धनाढ्य, दोनों में गहरी मित्रता, जो स्कूल के जमाने से चली आ रही थी। उन्होंने एक दूसरे को नाम भी दे रखा था राइटर और वेल्दीमैन।
कुछ देर बाद कार शहर की भीड़भाड़ को चीरती हुई हाईवे पर दौड़ने लगी। खामोशी के एक लंबे अंतराल के बाद वेल्दीमैन ने कुछ दार्शनिक अंदाज में पूछा , " राइटर ! अपनों से दूर एक अजनबी शहर में, .... पराए लोगों के बीच मरना कितना तकलीफदेह होता है ...... तुमने कभी एहसास किया है ?"
हूं ...... राइटर ने सहमति से अपना सर कई बार हिलाया। फिर ओठों के बीच सिगरेट दबा तल्लीनता से लाइटर जलाने में व्यस्त हो गया।
" राइटर ! मुझसे न पूछोगे ? " ,
राइटर ने गहरी दृष्टि से वेल्थीमैन की तरफ देखा फिर हौले से मुस्कुराते हुए बोला , " वेल्थीमैन ! शायद तुम्हें नहीं मालूम कि ओपन हार्ट सर्जरी क्या होती है ! "
" हां, सच कहते हो राइटर मुझे तो कुछ याद नहीं, कब चीडफाड़ हुई, कब ऑपरेशन हुआ, और कब टांके लगे, कुछ भी तो नहीं। लगता है सब कुछ एक सपना था, एक खौफनाक सपना ....... " , उसके स्वर में पीड़ा स्पष्ट झलक रही थी।
राइटर ने दो लंबे-लंबे काश खींचे, " अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। कितनी उम्र होगी तुम्हारी ..... यही कोई 45 वर्ष न। अभी भी मौका है ..... सब कुछ भूल कर एक घरौंदा बना सकते हो। फिर तुम्हें एक अजनबी शहर में ...... अपनों से दूर ... पराए लोगों के बीच ......... " वह हंसा था हा हा हा हा हा हा हा .....
राइटर की बात अधूरी रह गई। उसकी हंसी लग्जरी कार से बाहर निकलकर नंगे पांव ही कार के पीछे दौड़ने लगी।
उसने अजनबी नजरों से राइटर की तरफ देखा जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ सफर करने वाला यह व्यक्ति कितना अपना और कितना अजनबी है। इस वक्त उसे राइटर का यह अंदाज बिल्कुल भी पसंद न आया। फिर भी वह चेहरे में मुस्कुराहट लाने की भरपूर कोशिश करते हुए बोला,
" राइटर ..…. शायद, अब तुम भूल रहे हो.... ओपन हार्ट सर्जरी क्या होती है। जो कुछ भी हुआ वह मेरा मुकद्दर था और जो होगा शायद वह भी मेरा ही मुकद्दर ......
" मुक्कादर ... हूं ... माय फुट " , राइटर ने अजीब सा मुंह बनाया। जानते हो वेल्दीमैन ! इस दुनिया में समय और मुकद्दर नाम की कोई चीज नहीं होती है ..…. "
" नहीं मानते न ! . . . तो जरा सोचो .….. यदि दुनिया में मुक़द्दर नाम की कोई चीज न होती तो जलजले क्यों आते ? बड़ी-बड़ी इमारतें रेत के घरौदो की तरह न ढह जाती .... और उनके मलबे में एक भरे पूरे परिवार ..... खुशहाल परिवार ..... की कब्रगाह न बनती ..... जानते हो राइटर पूरे दो दिन लगे थे ... पूरे दो दिन ... तब कहीं मलबे के नीचे से ....." , आगे वह कुछ नहीं बोल सका आंखें भर आई।
" लेकिन राइटर जानते हो, अब मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं। सच अब किड्स हाउस ही मेरी जिंदगी है। जब तक हूं, और मेरे न रहने के बाद भी वही मेरी पहचान होगी . . .
" मैं तुम्हें एक बात बताना भूल गया था ... " , राइटर ने बीच में ही टोका था, " पिछले दिनों एक लड़की आई थी, तुम्हें पूछ रही थी। जब तुम्हारे बारे में उसे बताया तो काफी घबरा गई। यहां तक कि वह मेरे साथ तुम्हें देखने आना चाहती थी ..."
उसने आतुरता से पूछा था , " ओह ! क्या नाम बताया था उसने ? "
" नाम पूछना तो भूल गया, खैर अब खुद ही मिल लेना। लेकिन उसकी आंखों में तुम्हारे लिए एक अजीब सी कशिश देखी। एक अजीब सी मोहब्बत । याद करो कभी किसी लड़की से मुलाकात हुई हो ..…. हां ! याद करो ..... शायद पहले कभी उसने तुमसे अपनी मोहब्बत का इजहार किया हो …... समथिंग कुछ ऐसा ही .... याद करो ..…. "अपनी बात खत्म करके राइटर फिर वही भद्दी हंसी हंसा था।
राइटर की बात को अनसुना करते हुए उसने उसी से पूछा, " यह बताओ, सर्जरी के बाद और कितने दिन जी सकता हूं ? "
राइटर कुछ नहीं बोला और उसने जवाब की प्रतीक्षा भी नहीं की, " पता नहीं इस दिया में और कितना तेल है बचा है ? सोचता हूं , मरने से पहले एक ट्रस्ट बना ही दू ?"
" बेशक ", राइटर ने पूर्ण सहमत के साथ अपना सर हिलाया और उसने सिगरेट का आखरी कर लिया। बची सिगरेट के टुकड़े को विंडो से बाहर उछलते हुए बोला, " तुम्हारे बाप दादा ने दौलत कमाई और तुम्हें जी भर के लुटाई। मानता हूं कि अच्छे काम के लिए फिर भी वह और कितने दिनों तक चलेगी? "
उसने सीट में पीठ टिका दी। आंखें स्वत: ही बंद हो गई। जलजला आ रहा था। धरती हिल रही थी, इमारतें ढह रही थी, और चारों ओर चीख-पुकार। देखते ही देखते पूरा शहर मलबे का ढेर बन गया था। उसके कानों में अपने बच्चों की दर्दनाक चीखें गूंज रही थी .....
पापा .... पापा ..... बचाओ हमें .....
निकालो हमें ... हम मर रहे हैं पापा .....
आप कहां हैं ... पापा .... पापा ...
लेकिन वह तो उस समय शहर से दूर एक स्टार होटल के लग्जरी रूम में गहरी नींद सो रहा था। कैसे उनकी मदद करता। दूसरे दिन न्यूज पेपर में तबाही पढ़ी। भागा भागा किसी तरह अपने शहर पहुंचा था, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। मुकद्दर अपना खेल, खेल चुका था। सब कुछ मलबे में दब के रह गया।
राइटर उसके जज्बातों से बेखबर अपनी ही धुन में आगे कह रहा था, " जिंदगी इतनी कम नहीं मेरे दोस्त ! जितना तुम समझते हो। और खून के रिश्ते इतनी सहजता से नहीं बनते । "
वह फिर हंसा था।
इस बार उसने संजीदगी से कहा था, " कभी-कभी सोचता हूं, कि तुम ... मैं होता। और मैं .... तुम होते। "
राइटर फिर हंस था, " तुम वही सोचते हो, जो हो नहीं सकता ?"
उसकी इस हसी ने वेल्दीमैन को कुछ पर्सनल बना दिया, " पता नहीं तुम इतने फेमस राइटर कैसे बन गए ? वही दकियानूसी बातें करते हो ? इतने इमोशन लिखते तो हो लेकिन समझते नहीं हो .....
" मैं तुम्हारा दोस्त हूं, दुश्मन नही। हमदर्द हूं तुम्हारा, और मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी किसी कहानी के किरदार बनकर रह जाओ। तुम जिंदा इंसान हो दोस्त ! तुम्हें भी खुश होने का उतना ही हक है जितना कि औरों को है ? यह बात अलग है, तुम्हारी खुशी के पैमाने अलग हैं और मेरे अलग ! पर मूल वजह तुम्हारी खुशी है ! इसीलिए तुम्हे समझा रहा हूं, जज्जबाती हो कर लिए गए फैसले जरूरी नहीं कि हमेशा सही हो ? तुम तो कामयाब बिजनेसमैन रहे हो न, तो तुमसे बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है"।
उसने महसूस किया कि जैसे उसकी आंखों की नमी एकाएक राइटर की आंखों में चमकने लगी है। वह चुप हो गया उसने फिर आगे कुछ नहीं कहा। एक लंबी खामोशी ..... सिर्फ इंजन का धीमा स्वर हवा में तीर रहा था।
किड्स हाउस !
शहर से कुछ दूर लेकिन सभी सुख सुविधाओं से संपन्न एक विशाल इमारत। चारों तरफ गार्डन जिसमें तरह-तरह के झूले। पक्की बाउंड्री। कुछ ही दूर पर एक भव्य स्कूल। इन सब के बीच एक छोटा सा कॉटेज।
वह लग्जरी कार उसी कॉटेज के ठीक सामने आकर रुकी। दो पहरेदार दौड़ कर सामने आए। राइटर के साथ वह कार से उतरा। दोनों कॉटेज के अंदर चले गए। वह निढाल सा सोफे पे ही लेट गया। राइटर उसी सपाट लहजे में बोला, " थक गए लगता है ? आराम करो, फिर आऊंगा", वह बाहर निकला लेकिन कुछ देर बाद लौट कर हंसते हुए वापस आया,
" सावधान राइटर! सावधान !! वह आ रही है.... हां वही लड़की ..... जिसके बारे में मैंने तुम्हें रास्ते में बताया था ? हैं वही ..... बेकरार और दीवानों की तरह। अब मैं फाइनली जा रहा हूं, गुड नाइट !"
वह सजग हो गया, और मन ही मन सोचने लगा, " कौन हो सकती है वह ....? "
to be continued ....
Shailendra S.
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