मैं एक आस लेकर एकटक तुम्हें देखते रहना चाहती हूं। और यह भी चाहती हूं कि तुम मुझे उसी तरह उपेक्षित करते रहो जैसा की मैंने कभी तुम्हें किया था, इतना ही विवश ! हां मेरे दोस्त।
तुम चाहकर भी मेरे किसी आस का उत्तर न दे सको, आगे बढ़ कर उसे स्वीकार न कर सको, न ही मुझे तुम गले से लगा सको। तो फिर जरा सोचो मेरे दोस्त, उस वक्त तुम्हारे दिल में क्या गुजरेगी?
बस मैं तुम्हें भी इतना ही विवश देखना चाहती हूं, एकदम मजबूर। तब शायद उस दिन तुम्हें इस बात का एहसास होगा कि उस वक्त मेरी विवशता क्या रही होगी जब तुम किसी आस से मेरी तरफ देखते थे, और मैं तुम्हें उपेक्षित करने के लिए इतना ही मजबूर थी, जितना की उस वक्त तुम होगे? अब देखो न ! भूत, वर्तमान और भविष्य किस तरह एकाकार हो गए हैं !
हां मेरे दोस्त, यदि तुम विवश ना हुए तो जानते हो क्या होगा? नए सिद्धांत, अवधारणाएं, मर्यादायें बनेंगे भी, और फिर सब कुछ तार-तार भी हो जायेंगे। स्थापित सिद्धांत टूट जायेंगे, अवधारणाएं विखंडित होंगी, और मर्यादाए बिखर जाएंगी । इस जिंदगी का फिर यही एक हासिल होगा, मेरे दोस्त।
अब देखो तो, अतीत, वर्तमान और भविष्य किस तरह से आपस में एक-दूसरे से ही उलझ गए। क्या बीत गया, क्या हो रहा है, और क्या होगा इनके बीच का फर्क अब एक जैसा ही है या यूं कहें कि अब कोई फर्क ही न रहा।
आज मैं तुम्हें इस जिंदगी का एक भ्रम बतलाती हूं। शायद जिसे तुम कभी समझ ही न पाए और आज यदि मेरी आवाज तुम तक पहुंच रही है, तो फिर सुनो मेरे दोस्त,
"हमारा जन्म हमारी स्वेक्षा से नहीं होता, हम लाए जाते हैं। मृत्यु का वरण भी हम स्वयं नहीं करते। हां, आत्महत्या एक अपवाद हो सकता है। हमें यह जिंदगी एक ही बार मिलती है। और इस अनमोल जिंदगी को भी हम अपनी तरह से नहीं जी पाते हैं। जैसा चाहते हैं, न तो कर सकते हैं, और न कह सकते हैं। तो मैं कहती हूं, फिर लानत है ऐसे जिंदगी पर। जिंदगी के मापदंड तय हुए, नियम बनाए गए और उस पर चलने के लिए हम विवश किए गए।
जिंदगी भर यही सोचते रहे कि हमारी वजह से किसी को ठेस न लगे। हमारी वजह से कोई दुखी न हो। हमें कोई बेवफा न कहे, बेवफा कहलाए जाने के डर से हमने इतनी सारी वफाएं निभाई कि खुद की जिंदगी से ही बेवफा हो गए।
और हमने इस जमाने से कहा कि लो अब तुम हो मालिक इसके, करो हमारी जिंदगी के फैसले ? हमें अपने ही लूटते रहे और हम लुटते रहे। कभी अपने, तो कभी पराये, तो कभी वे जो हमको अच्छी तरह से जानते भी न थे, वे ही हमारी जिंदगी के फैसले लेते गए, और हम ? स्वीकार करते गए ।
यही मानकर न कि हमारे लिए सब कुछ अच्छा है, कभी गैरों के तो कभी अपनों के लिए गए फैसलों में ही अपनी खुशियों की तलाश करते रहे।
खुद से लड़ते रहे अंतर्द्वंद को पालते रहे। भटकते रहे, जिंदगी जिए नहीं बस गुजारते रहे, इस आशा में कि एक दिन सही वक्त अवश्य आएगा और हमारे लिए, लिए गए निर्णय हितकर होंगे और वे ही हमे खुशियां देंगे।
यथार्थ के धरातल पर हम एक काल्पनिक जिंदगी जीते रहे, जो कि वास्तव में एक छद्म (वर्चुअल) थी और हम इसी में भूले रहे। थाली में चांद देखकर चांद के धरती पर होने का भरम लिए बैठे रह गए, मेरे दोस्त। जबकि वास्तविकता यह थी की चांद अभी भी आसमान पर था, और हम इसी ज़मीन पर थे।
इस तरह से हम बनी बनाई एक आर्टिफिशियल जिंदगी। उसे ही जीते रहे, जिसने जो थोप दिया उसे सुखाते रहे। केवल इसी डर से न, कि कहीं यदि हमारे लिए, खुद के द्वारा लिए गए निर्णय गलत साबित हुए तो क्या करेंगे? कहीं दुख मिले तो फिर क्या करेंगे?
वास्तविकता यह थी हम फैसले लेने से डरते रहे। अपनी कमजोरी को दूसरों का निर्णय मान कर उसे अपने अंतर्मन में पालते रहे। हमारे लिए दूसरों ने जो निर्णय लिए थे, जब वे गलत साबित हुए, हमें तकलीफ दे गए, तो ?
हमने इल्जाम लगाया कि मेरे अपनों ने हमें तबाह किया, बर्बाद किया। लूटते रहे और खुद को साफ बरी कर लिया। जबकि होना यह चाहिए था हम खुद को कटघरे में खड़ा करते और खुद ही पर इल्जाम लगाते " जब ये जिंदगी हमारी थी, तो फिर इसके फैसले हमने खुद क्यों ना लिए? " खुद को ही दोषी मानकर सजा देते ?
और जानते हो अब मेरे लिए वह सजा क्या होगी ?
यदि आज मैंने तुम्हें अपनी जिंदगी मान ही लिया है तो फिर मेरी सजा यही है कि मैं एक आस लिए तुम्हारी तरफ एकटक देखती रहूं और तुम मुझे सापेक्ष भाव से उसी तरह उपेक्षित करते रहो, जैसा कि कभी मैंने तुम ही किया था।
मैं जिंदगी जीने के लिए तरसती रहूं और तुम मेरी जिंदगी बनकर मुझसे दूर ही रहो। इससे बड़ी सजा खुद के लिए और क्या निर्धारित करूं?
तुम ही बताओ न ? इसी लिए कहती हूं न, जहां भी हो एक बार आओ, यदि अपने लिए सजा के तौर पर मेरे अंतर्मन की कैद को स्वीकार कर रहे हो, तो फिर मुझे उसी तरह उपेक्षित रख जैसा कि कभी मैंने तुम्हे किया था, मुझे भी मेरे हिस्से की सजा निर्धारित करो।
मैं भी मुक्त होना चाहती हूं। मैं भी नहीं चाहती हूं कि मेरा अब कोई पुनर्जन्म हो। इसी जन्म में सभी हिसाब किताब हो जाने चाहिए। इसलिए बार-बार पुकारती हूं
.,.... हां, तुम कहां गए !
To be continued
Shailendra S
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