तभी तो तुम्हे सताने के लिए, तुम्हे ये एहसास दिनाने के लिए कि हां तुम मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते, कोई महत्व नहीं रखते, मैंने भी तुम्हे दुगने भाव से उपेक्षित किया। जबकि वास्तविकता यही थी कि तुम सदैव ही मेरे अंदर ही रहे।
तुम्हारी पावन प्रांजल देवमूर्ति को मैं खुद से कभी अलग और विस्थापित नहीं कर पाई।
तुम मेरे जीवन के वह सूर्य हो जिससे निकली रश्मि किरणें जलकण से विछिन्न होकर सप्तरंगी और अद्भुत आकृत का निर्माण करती हैं, और वह इंद्रधनुष धरती के एक छोर को दूसरे छोर से मिलाता हुआ प्रतीत होता है। तुम मुझसे जब भी टकराते थे, तो यही होता था मेरे दोस्त। मैं अपने अस्तित्व के एक छोर से दूसरे छोर पर आ मिलती थी।
तुम्हारी दृष्टि ही नहीं बल्कि तुम्हारे दृष्टिकोण में भी अपनी विशिष्टता पर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती। यदि तुम पर अपना अविश्वास जाहिर कर मैंने कोई भूल की तो मेरे इस भूल को मुझे विश्वास दिलाना तुम्हारी सबसे बड़ी भूल थी। इसीलिए लिखा की संबंधों की इतनी घनिष्ठता के बाद रिश्तो का इतना प्लेटोनिक हो जाना कदाचित उचित नहीं था।
निसंदेह तुम निहायत ही स्वार्थी अपरिपक्व और संवेदनहीन इंसान थे। जो व्यक्ति अपने ही मन की संवेदना को न समझ सके, तो उसे संवेदनहीन न कहें तो क्या कहें ? संबंधों को केवल अपनी भावनाओं के दायरे में सीमित रखना अपरिपक्वता नहीं तो और क्या है ? इस जीवन में या यूं कहें इस जिंदगी में सामाजिक बंधन, मान मर्यादा और उनकी रक्षा करना भी तो जरूरी है। जो संवेदनहीन और अपरिपक्व हो वह स्वार्थी तो होगा ही। उसमे सामाजिक समझ कहां!
हो सकता है एक दिन ऐसा भी आए कि मैं तुम्हें भूल जाऊं, तुम्हें कभी याद ही न करू, तुम्हें अपने अंतर्मन की कैद देकर खुद को मुक्त कर लूं , तो फिर क्या होगा, जानते हो? . . .
हमारा मिलना बेवजह था,
हमारा यूं बिछड़ना बेवजह था,
मेरा हंसना बेवजह था,
तुम्हारा यूं उदास होना बेवजह था,
मेरा इंतजार करना बेवजह था,
तुम्हारा यूं चले जना बेवजह था,
मेरी खामोशी भी बेवजह थी,
मुझे देख तुम्हारा मुस्कुराना बेवजह था,
इंतजार, आंखों के आंसू बेवजह थे
वह सब कुछ बेवजह था।
मेरी उम्मीद बेवजह थी,
तुम्हारा इंतजार भी बेवजह था।
तुम्हारी आंखों का सूनापन
मेरे होठों का थरथराना,
हां, सब कुछ बेवजह था।
साहिल पर तेरा यूं खामोश खड़े रहना,
और लहरों से जूझता मेरा मुकद्दर
तेरा आंसुओं का समंदर पार करना,
खुद को गुनहगार ना समझ ले तू,
सोच कर मेरा चेहरा घुमा लेना,
सदियों से यू जलते रहना मेरा
सदियों से भटकते रहना तेरा
हां, सब कुछ बेवजह था !!
और फिर अब ?
ये सारे मौसम बेवजह,
दिन का होना,
रातों का गुजरना बेवजह,
सूरज का तपना बेवजह,
तारों का चमकना बेवजह,
बारिश का बरसना बेवजह,
तुम्हारा न होना बेवजह,
सांसों का चलना बेवजह
हवाओं का बहना बेवजह,
फूलों का खिलना बेवजह,
शाखों से पत्तों का गिरना बेवजह,
पपीहे का प्यासा रहना बेवजह,
स्वाति नक्षत्र का आना भी बेवजह,
हो कर मेरा न होना बेवजह
हां, फिर सब कुछ बेवजह ....
to be continued. . .
Shailendra S.
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