अश्कों से भरी इन आंखों में,
तेरी तस्वीर छुपा रखी है,
मिट ना जाए तू कहीं मेरी यादों से,
अश्कों की दीवार बना रखी है।
तुम्हें पा लेने की चाहत,
और खो देने का डर,
अपने जीवन में यही एक,
इबारत लिखा रखी है।
अब किसे रखूं मैं अपनी यादों में !!
सारी यादें तेरे नाम लिखा रखी हैं।
मेरी चाहत की अब ये इंतहा है,
अब भी जो तू रूठा रहा तो,
तेरी कब्र भी इस दिल में बना रखी है।
जानती हूं भावुकता और जज्बातों के अधीन रहते हुए जिंदगी में लिए गए निर्णय उतने सही नहीं होते हैं जितने कि हम चाहते हैं।
यदि कहूं कि मैं तुम्हें बेहद प्रेम करती हूं, तो इस में यह बात भी अंतर्निहित है कि कभी मैं तुम्हें बेहद प्यार नहीं करती थी।
यदि कहूं कि आज मैं सच कह रही हूं तो इसका एक अर्थ यह भी है कि मैंने कभी तुमसे झूठ भी कहा था। अर्थात प्रत्येक स्वविकार्य तथ्य का एक विरोधाभासी अस्वाविकार्य तथ्य पहले से मौजूद होता है।
कुछ होने या न होने के बीच का अंतर व्यापक होता है। यदि यह कहूं कि मैंने सदैव ही तुम्हें प्रेम किया है तब भी एक विरोधाभास तो रह ही जाता है।
वह है प्रकृति का विरोधाभास। जब सदैव के लिए अर्थात हमेशा के लिए कुछ हो ही नहीं हो सकता है तो ? तब यहां भी मैं झूठी ही साबित होती हूं न।
यदि अंतर व्यापक है और इतना व्यापक है कि हम उसे अनंत यानी कि अपरिभाषित अनकाउंटेबल कह सकते हैं तो इस व्यापकता में विस्तारित प्रेम ही नहीं अपितु हर चीज रहस्यमई है।
एक ऐसा रहस्य जो अनंत होते हुए भी अपरिभाषित ही रह जाता है। यदि एक और एक को आपस में जोड़ा जाए तो उसका परिणाम दो होता है, अब यदि हम एक अनंत को दूसरे अनंत से जोड़ते हैं तब क्या दो अनंत होंगे? नहीं तब भी एक ही अनंत होगा ! है ना चकित कर देने वाला तथ्य?
यदि हम दोनों का प्रेम अलग-अलग दो अनंत, दो अपरिभाषित हैं तब भी उन्हें एकाकार होना ही होग। दो समानांतर प्रेम किसी न किसी एक अनंत बिंदु में जाकर अवश्य मिलेंगे जोकि अभी अदृश्य है, अपरिभाषित है। यानी कि हमारा किसी एक बिंदु पर मिलना तो नियति है, चाहे आज वह बिंदु अदृश्य, अनंत और अपरिभाषित ही सही।
जब हम इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं तो फिर आज यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अभी हमारा मिलन नहीं हो सकता। यही तो जिंदगी है, यही तो इसका विरोधाभास है, मेरे दोस्त।
सागर की गहराई में मोती खोजते हुए किसी व्यक्ति से पूछिए तो वह बताएगा कि आखिरकार उस मोती को लेकर वह सागर की गहराई से ऊपर ही आएगा तभी वह उस मोती के साथ जीवन व्यतीत कर सकता है। अर्थात वह उसे अपने साथ रख सकता है।
यदि वह मोती को ले कर उसी सागर में, उसकी गहराइयों में ही रह जाता है, तो ? तो फिर कितने क्षण, और कितने पल के लिए उन दोनों का साथ होगा ? यदि तुमसे मिलने के लिए या तुम्हें पा लेने के लिए मुझे मृत्यु की सागर की गहराइयों में भी उतरना हो तब भी तुम्हारे साथ जीने के लिए पुनर्जन्म तो लेना ही पड़ेगा . . .
to be continued . . .
Shailendra S.
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