Friday, June 18, 2021

तुम कहां गए - 13

   कालिदास के मेघदूत के यक्ष की तरह श्रापित अभिशप्त जीवन जीने का श्राप तो तुम मुझसे ले ही चुके, वह भी बिना किसी सवाल - जवाब के। यह मेरे अंतर्मन से निकली एक चित्कार है, जो तुम्हारे अंतर्मन तक अवश्य पहुंचेगी। 


    ओह ! ये मुझसे क्या हो गया, मैं तो ऐसी ही न थी। चलो जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ। अब यही मान लेती हूं, शायद यही तुम्हारी नियति थी, और आज भी है।


   ऐसा नहीं है कि मैं बहुत दुखी हूं या तुमसे मैं बहुत ही क्रोधित हूं, जो मैने तुम्हें यह अभिशप्त जीवन जीने का श्राप दिया। कहीं कुछ ऐसा है, जो पहले घटित हुआ होगा, और जिसका परिणाम मेरी यह चित्कार है। 


   भरी महफिल तुम्हे तन्हा देखा कई बार खुद मेरे साथ होते हुए भी कहीं और खोया हुआ-सा पाया। तब मन होता कि पूछू , तुम किस दुनिया में रहते हो ? और बताओ तो, कौन सी दुनिया से आए हो? 


     जब मेरे पास आकर भी तुम्हारा मन स्थिर नहीं होता है, तो तुम मेरे पास आते ही क्यों हो ? हमेशा कहीं और जाने के लिए तैयार । मैं खुद को जब भी  तुम्हारी आंखों में देखती, सहम सी जाती। मुझे दिखाई देता की जैसे तुम कोई प्रेत-आत्मा हो जो मुझे खींच कर अपने साथ अपनी ही दुनिया में ले जाने के लिए आए हो? मैं और सहम जाती। शायद इसलिए मैं तुम्हें चुपके से ही देखा करती थी जब तुम मुझे नहीं देख रहे होते थे। 


   कहीं सुना था या पढ़ा था, जरूरी नहीं यह सत्य हो, किवदंती भी हो सकती है। राजा दक्ष के अपमान बोध से आहत हो सती ने अग्नि कुंड में प्रवेश कर अपने प्राण त्याग दिए। तब भगवान शिव प्रलयंकारी और विद्रोही हो चले। 

   मृत्यु के देवता ने तांडव नृत्य किया और संपूर्ण सृष्टि भस्म होने लगी। सती के अध जले शरीर को लेकर तीनो लोक में विचरण करने वाले भगवान शिव भी देह मोह को न त्याग सके । तब सुदर्शन चक्रधारी ने सती के पार्थिव शरीर को छिन्न-भिन्न किया और स्वयं महादेव को देह मोह से मुक्त किया। 

   सती का शरीर सुदर्शन चक्र से विछिन्न धरती लोक में जिन - जिन स्थान पर गिरा वहां शक्ति पीठ की स्थापना हुई। भगवान शिव समाधि लीन हो गए दुनिया यही जानती थी की सती के देह मोह से ग्रसित भगवान शिव ने वैराग्य धारण कर लिया।

   लेकिन नहीं , बात कुछ और थी।


    समाधस्थ भगवान शिव ने कालचक्र में प्रवेश कर सती को पुनः अपने काबिल बनाने के लिए, उन्हें कई बार जन्म दिलाते रहे और स्वत: ही उनका संघार करते रहे। कई जन्मों के बाद जब सती पुनः शिव के दुनिया में आने के योग्य हो गई, तब उनका जन्म राजा हिमाचल के यहां पार्वती के रूप में हुआ। 

   लेकिन दुनिया यही समझती रही कि शिव समाधि लीन है। अंततः उनकी समाधि भंग करने के लिए स्वयं कामदेव को उन पर काम का प्रयोग करना पड़ा। परिणाम रति से कामदेव का वियोग।


     मैं ईश्वर को मानती हूं और उसके बनाए या समझाएं गए नियमों को भी शायद। इसलिए मैंने इस किवदंती पर भरोसा कर लिया था।

    तुम्हें देखकर मेरा यू मर जाना, फिर तुम्हारे जाते ही मेरा पुनः जी जाना, मुझे अक्सर इस किवदंती की याद दिलाता। मानो तुम भी समय चक्र में प्रवेश कर मुझे अपने काबिल बनाने के लिए हर पल मारते हो और हर पल जिंदा भी करते हो।


   और जिस दिन मैं तुम्हारे काबिल हो गई तो तुम मुझे अपनी दुनिया में ले कर चले जाओगे। लेकिन तुम्हें क्या पता मेरी दुनिया तो यही है, और मैं किसी भी प्रलोभन में आकर अपनी दुनिया नहीं छोड़ सकती। इसके लिए चाहे मुझे हजारों हजार बार मरना पड़े, जीना पड़े । मैं इसके लिए भी तैयार हूं  . . .


     लिखा न, मैं ईश्वर को मानती हूं और उस पर विश्वास भी करती हूं । जो जन्म लेता है, वह मरता है। और जो मरता है वह पुनः जन्म भी लेगा, यही शाश्वत नियम है। 


   इस जीने और मरने के बीच हम जिंदगी जीते हैं, और वह जिंदगी मुझे जीनी है। इसका फैसला करने वाले तुम कौन होते होते हो ? और मेरी ही दुनिया से मुझसे दूर ले जाने की कोशिश वाले जरा यह तो बताओ , तुम कौन हो और अब कहां गए तुम ?

हां बताओ , तुम कहां गए ? 

   तुम मेरे सारे प्रश्नों के जवाब दे भी दो तो भी मुझे यकीन है कि मेरे इस प्रश्न का तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं है और ना ही होगा .  .  .

   यह मेरी अपनी दुनिया है, और सच मानो मेरी इस दुनिया में तुम कहीं नहीं हो, और न ही कभी होगे . . . न  हि आना है मुझे तुम्हारी उस दुनिया में तुम्हारे साथ, जहां पर मोक्ष के पश्चात सब कुछ थम जाता है।

    ना कोई मृत्यु ना कोई जीवन और न ही कोई जिंदगी ! नहीं चलना है तुम्हारे साथ उन रास्तों में, जहां समय चक्र रुक जाता है। जब कोई दृष्टि न होगी तो कोई दृश्य कैसे होगा। मुझे दृष्टि चाहिए दृष्टिकोण चाहिए, चाहे वह दृष्टि मुझे तुम्हारी ही वेदना से ही क्यों न मिले . . .

   तभी तो अचानक ही मेरे अंतर्मन से निकल गया - ' . . .. . जीवनपर्यंत तुम भी मेरे लिए तरसते ही रहोगे कालिदास के मेघदूत के श्रापित यक्ष की तरह . . . '

to be contacted. . .



No comments:

Post a Comment

अजनबी - 2

अजनबी (पार्ट 2)       पांच साल बाद मेरी सत्य से ये दूसरी मुलाकात थी। पहले भी मैंने पीहू को उसके साथ देखा था और आज भी देख रहा हूं...