तो फिर आज क्यों उद्गम और उच्चश्रंखल आकांक्षाओं के दीप मेरे अंतर्मन में तुम्हारे लिए प्रज्वलित हो रहे हैं ? यदि तुम्हारा मिलन और फिर तुम्हारा बिछड़ना नियति थी, महज एक संयोग था तो फिर आज क्यों मेरा मन उन्हीं पलों को जी लेना चाहता है ?
मुझे ऐसा क्यों महसूस होता है कि मेरे जीवन की वह अदम्य प्यास तुम्हारी उसी मृगतृष्णा के आडंबर से ही बुझेगी ? कभी लगता था कि यदि पल भर के लिए मेरा मन विचलित हुआ तो संपूर्ण सृष्टि हिल जाएगी, ऐसा लगता था कि इस धरती में न जाने कितने भूकंप आ जाएंगे ?
तो फिर आज क्यों जब मैं तुम्हें पुकारती हूं - हां तुम कहां गए ! तो यह संपूर्ण सृष्टि उसी तरह शांत निर्विकार भाव से मुझे अपलक देख रही है, मेरे मन में उठे तूफान से कोई धरती क्यों नहीं हिलती ? क्यों सभी कुछ अपनी जगह पर स्थिर और शांत हैं ?
मैं क्यों अपने उन्हीं तैतीस करोड़ देवी देवताओं के साथ रहते हुए भी खुद को अकेला पाती हूं ? मेरे मन में उठने वाली लहरें तुम तक क्यों नहीं पहुंच पाती ?
क्यूं ? क्यूं ?? क्यूं ???
जिन्हें मैं कभी यथार्थ मानती थी तो फिर आज क्यों वे सभी अर्थात मुझे छदम प्रतीत होते हैं ? मेरे मन के सारे दर्शन, दुनिया की सारी फिलॉसफी, भावुकता बन मेरी आंखें भिगो जाती है ?
यथार्थ की धरातल में मेरे जलते हुए पांव आज तुम्हारे ही साथ तुम्हारी उसी काल्पनिक दुनिया की छांव में, उसी की शीतलता में ही चलना चाहते हैं ?
आज मैं अपनी इस लेखनी से अपने जीवन की सर्वोत्तम कृति को तुम्हारी ही यादों में, तुम्हारे मन की सारी कल्पनाओं की स्याही में डुबो कर लिखना चाहती हूं ? तुम्हारे मन की सारी संवेदनाओं को अपनी विरह वेदना में सजो कर उसे एक नाम देना चाहती हूं -
हां तुम कहां गए !
मेरे अंतर्मन से उठी यह आवाज तुम तक जरूर पहुंचेगी और जिस दिन वास्तव ने तुम तक पहुंची, सच मानो उस दिन सारे बंधन तोड़, तुम मेरे पास ही चले आओगे !
यदि संबंधों की प्रगाढ़ता दूरियां लाती हैं, तो जाओ मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखती।
यदि प्रत्येक संभावना अनंत संभावनाओं को जन्म देती हैं, तो जाओ मैं तुम में किसी भी संभावना की तलाश नहीं करती।
यदि मेरा यह नश्वर शरीर तुम्हें पा लेने की राह में बाधा है, तो सच मानो मेरे अंतर्मन की आत्मा ! तुम एक बार मुझे भरोसा तो दिलाओ कि उसके बाद तुम मिल ही जाओगे तो मै इसका भी परित्याग करने के लिए तैयार बैठी हूं।
अब इससे अधिक क्या लिखूं और तुमसे क्या कहूं ?
मैं तुम्हें अपने अंतर्मन, अपनी यादों से निष्कासित नहीं कर सकती, तो तुम्हे अपनी जीवनशैली से निष्कासित कर देने भर से क्या होगा ?
यदि तुम मेरी आंखों में अक्षय ऊर्जा की भांति आ बसे, तब तुम्हें यूं बूंद - बूंद करके बहा देने मात्र से भी क्या होगा ?
सागर की गहराई में उतर भी जाऊं और तुम जैसा मोती हाथ न लगे तो सागर में गोते लगाने से फायदा क्या ?
इसीलिए अब मैं किसी विरह वेदना के सागर में खुद को नहीं डुबोना चाहती ।
यदि किसी अध्यात्म दर्शन में भी सुख की अनुभूति न मिले तो ? तो फिर मेरा इस भौतिक धरातल पर ही, अपने सभी सुख - दुख की अनुभूति के साथ खड़े रहना ही क्या बुरा ?
उस दिन तुमने मेरी तरफ अपने बढ़े हुए हाथ न रोक लिए होते, और मुझे छू ही लिया होता, तो शायद मेरे सम्मुख मेरे जीवन के सारे रहस्य खुल जाते ? नहीं जानती कि आज मुझे यह आभास क्यों हो रहा है कि मैं उसी दुनिया से थी जिस दुनिया से शायद तुम आए थे ?
जब तुम्हारी दुनिया से अलग मेरी कोई दुनिया हो ही नहीं सकती तो फिर ? तुम मुझे वापस हमारी ही दुनिया में क्यों नहीं ले गए ? मुझे अकेला यू भटकने के लिए इसी दुनिया में क्यों छोड़ दिया ?
तुम से पूछने के लिए बहुत कुछ है, तुमसे बहुत सारे प्रश्न करने है मुझे, जैसे कि कभी तुम किया करते थे। यदि मेरे प्रश्न ही तुम्हारे लिए आरोपपत्र हैं, तो फिर हैं । समझ लो कि फिर तुम्हें मेरे सभी आरोपों के जवाब देने हैं।
सभी प्रश्नों को मैं वापस ले भी लूं तो एक प्रश्न मैं वापस नहीं ले पाऊंगी। उसे मैं कभी विड्रॉ नहीं करूंगी - हां बताओ, तुम कहां गए ?
to be continued . . .
उम्र के लिहाज से बड़ी, किंतु जिन्हें मैंने अपने मन से अपनी छोटी बहन ही माना है, उन्हें सादर समर्पित -
शिवकुमारी सिंह चौहान ' बिन्दु', M.A. ( Hindi Lit.) , हम सभी भाई बहनों में एक आप ही थी जिनका नाम पिताजी ने रखा ' बिन्दु ' , और हमारे पिताजी की ख्वाइश थी कि हम भाई बहनों में से कोई एक लिटरेचर पढ़ें खासकर हिंदी साहित्य से, उनका सपना आपने पूरा किया। मैं तो साइंस में ही उलझा रहा। मैंने आपसे कभी वादा किया था कि मैं अपने जीवन की सबसे अनुपम भेंट आपको ही दूंगा, आज मैं अपना वादा निभा रहा हूं, यह कहानी अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन मैं इसे पूरी लिखूंगा। आज यह भले ही अधिक फेमस न हो किंतु एक दिन आएगा कि जब हम दोनों इस दुनिया में नहीं भी होंगे तब भी ये शब्द होंगे और तब भी ये पढ़े जाएंगे . . .
Shailendra S. 'Satna'
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