Tuesday, May 25, 2021

My Inception 5 - The Vision

    Vision अर्थात दृष्टिकोण। संपूर्ण ब्रह्मांड में स्थित जीव अथवा निर्जीव, चर अथवा अचर वस्तुओं को देखने का हमारा नजरिया। नजरिया जो तय करता है कि हम क्या देखना चाहते हैं, और हम वही देखना चाहते हैं, जो हमें पसंद होता है या हम जो चाहते हैं, या फिर जैसी हमारी भावना होती है। 


    आपने कभी किसी जादूगर को जादू का खेल दिखाते हुए देखा है ? यदि हां, तो यह भी देखा होगा कि वह बार-बार अपनी बात को एक ही पॉइंट पर स्थिर रखता है बार-बार एक ही लाइन को दोहराता है।


    जैसे उदाहरण लेते हैं एक बंद डिब्बा जो पूरी तरह से खाली है वह उसमे एक फूल डालता है और आप से कहता है कि अब इस डिब्बे से कबूतर निकलेगा। ध्यान दीजिएगा, उसने फूल डाला और आप से कहा है कि अब इसमें से एक कबूतर निकलेगा। वह आपसे और भी बातें करेगा लेकिन घूम फिर कर वहीं कहेगा - देखिएगा इस डिब्बे से कबूतर निकलेगा। और अब आप वहां पर बैठे यही देखना चाहेंगे कि उस डिब्बे से कबूतर निकले।

      अब वह जादूगर यह नहीं कह रहा कि कबूतर निकलेगा धीरे-धीरे आप के मन में यह बैठा दिया कि अब इस डिब्बे से कबूतर ही निकलेगा और वास्तव में अब आप उस डिब्बे से कबूतर निकलता हुआ ही देखना चाहते हैं. यह है विजन, अब आपका दृष्टिकोण उस पॉइंट पर स्थिर है कि इस डिब्बे से अब कबूतर ही निकलेगा। 

    और आश्चर्य ! वह निकलता भी है। इसलिए नहीं कि जादूगर कबूतर निकाल कर दिखाना चाहता है बल्कि इसलिए कि अब आप चाहते थे कि उस डिब्बे से कबूतर निकले।

    अब दूसरा उदाहरण कुरुक्षेत्र में खड़े युद्ध से सशंकित मोहजाल में फसे निःसशत्र अर्जुन का लेते हैं। 

    वह योद्धा है, युद्ध के परिणाम को समझ सकता है। यूद्ध में उसकी हार या जीत दोनों हो सकती है।

         कदाचित वह अपनी मृत्यु को लेकर भी आशंकित है, या यूं कहिए कि उसके पास अपनी किसी भी शंका का समाधान नहीं है। तब वह श्रीकृष्ण से अपने इच्छाओं को पूर्णता व्यक्त न कर आंशिक रूप से व्यक्त करता है। खुद को मोह माया के जाल में उलझे हुए योद्धा के रूप में प्रस्तुत करता हैं।  कृष्ण उसकी दुविधा या उसकी इस चालाकी को समझते हैं।

     और अर्जुन जो देखना चाहता है उसे वही दिखाते हैं - 'अपना विराट स्वरूप',  जिसमें अनगिनत ब्रह्मांड अनगिनत पृथ्वी का जन्म और विनाश होता है फिर वह फोकस करते हैं कुरुक्षेत्र मैदान में.  जैसा कि हम आज-कल  गूगल अर्थ से किसी स्थान विशेष को डिटेल में फोकस करते हैं। 

    वहां अर्जुन देखता है कि धर्म और न्याय के विरुद्ध खड़े बड़े-बड़े योद्धा कुरुक्षेत्र में धराशाही हैं।  महावीर कर्ण,  गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, कृपाचार्य , दुरुयोंधन , दुःशासन इत्यादि मृत हैं।  उसे सभी के शव दिखाई देते हैं। इन सब के बीच वह अपने किसी भी परिचित का या यूं कहिए उस के पक्ष में लड़ रहे किसी भी योद्धा के शव को नहीं देखता हैं। 

क्यू ?

      क्योंकि भावना उसकी ऐसी है कि श्रीकृष्ण भगवान हैं ! उन्हीं के द्वारा सब कुछ संचालित है। और जब पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ वह श्री कृष्ण को अंध भक्त के रूप में देखता है तब वह इस बात से निश्चिंत है की युद्ध का परिणाम उसके पक्ष में होगा वह जीवित रहेगा इस बात को हम इस तरह से ले सकते हैं कि अर्जुन जो देखना चाहता था श्रीकृष्ण ने उसे वही दिखाया। 

    उस युद्ध में अभिमन्यु का शव क्यों नहीं दिखा ?

       क्योंकि अर्जुन यह नहीं देखना चाहता था कि उसका कोई योद्धा जो उसकी तरफ से  न्याय और धर्म के लिए लड़ रहा है, उसका किसी भी प्रकार से कोई नुकसान हो या उसे वीरगति प्राप्त हो।


अर्थात श्रीकृष्ण ने उसे अधूरा सत्य दिखाया क्योंकि अर्जुन उस अर्ध-सत्य  को ही देखना चाहता था।  कुरुक्षेत्र के मैदान से अभिमन्यु का शव हटा लिया गया। 

    अब हम एक और उदाहरण लेते हैं सीता-स्वयंवर। 

    भूमंडल से आए हुए बड़े बड़े योद्धा शिव धनुष में प्रत्यंचा तो क्या उसे उठा भी ना सके। तब श्री राम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की आज्ञा अनुसार एवं सीता स्वयंवर की शर्तानुसार धनुष की तरफ बढ़े। रामचरित-मानस में इसका अति सुंदर वर्णन किया गया है, और बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति जिसे हम देखना चाहते हैं उसका स्वरूप क्या होगा अथवा वह हमें अपने किस रूप में दिखाई देगा। 

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन जैसी।

          सुकुमार सुंदर नारियों को जो प्रेमातुर भाव से उन्हें देख रही थी उन्हें वे कामदेव का स्वरूप धारण किए हुए दिखे। बड़े-बड़े ऋषि मुनि ज्ञानियों को ब्रह्म स्वरूप में दिखाई पड़े। भक्ति भाव से देखने वालों को वे साक्षात ईश्वर के रूप में दिखाई दिए। 


         महारानी सुनैना एवं महाराज जनक को सुकुमार बालक के रूप में दिखाई दिए। अर्थात श्री राम को जिसने जिस स्वरुप में देखना चाहा वे उसे उसी स्वरूप में दिखाई दिए।  जबकि राम तो वही थे जो इससे पहले भी सभा कक्ष में बैठे थे, किंतु प्रतियोगिता में भाग लेते समय वे सब का केंद्र बिंदु बने और वहां पर उपस्थित लोगों को अपने उस स्वरूप में दिखाई ना दे कर जो वास्तव में वे हैं उस रूप में दिखाई दिए जिस रूप में अलग-अलग कैटेगरी के लोगों ने देखना चाहा  युधतुर योद्धाओं को परम योद्धा विकराल काल के रूप में दिखाई दिए।

    हम अपनी भावनाओं के अधीन जिसे जिस रूप में देखना चाहते हैं हमें वह उसी स्वरूप में दिखाई देता है।

और अब एक फनी उद्धरण। 

    ' यार तुम गुस्से में तो और हसीं दिखाई देती हो ' - क्युकि एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को उस समय भी मन मोहक स्वरुप में देखना चाहता हैं , जब वह क्रोधित हैं । 

    अंतिम उदाहरण दार्शनिक हो सकता हैं,  आज की परिस्थिति के अनुसार सही भी हो सकता है।

    लगातार शारीरिक कष्ट को भोगता हुआ एक मनुष्य जब अपनी शारीरिक पीड़ाओं को स्वयं सहन करने में असमर्थ महसूस करने लगता है तब ? 

    तब वह खुद को मृत देखना चाहता है और सच मानिए, उसी पल उसकी मृत्यु हो जाती है।

Shailendra S. 'Satna'

Dedicated to My Son in laws Mr. Pravin Singh Baghel, Vill. Post Diddondh (Near Kothi) Distt. SATNA (MP), who passes away on 25th May 2021 due to COVID infection.

Thanks to My friend Mr. Pushpraj Singh who inspired me to write this article.

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