जिंदगी को यदि गूढ़तम रहस्यओं से परे एवं सभी वैज्ञानिक तथ्यों को दर- निकार करते हुए सोचा जाए तो यह कोई फिलॉसफी नहीं ।
सभी सामाजिक मान्यताओं को, अवधारणाओं को, मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, यदि मानवता की कसौटी में कसा जाए और वे खरी उतरे, तो उन्हें अपना लेने में कोई बुराई नहीं।
अर्थात कोई भी सामाजिक मान्यता यदि मानवता की कसौटी पर नहीं उतरती, और वह खरी नहीं है तो उसे त्याग देना ही उचित होगा।
अब हम एक कल्पना करते हैं - एक चलती हुई राह, उस पर पड़े एक पत्थर और वहां से गुजरने वाले मुसाफिरों की।
कुछ मुसाफिर उससे टकराए, गिरे, संभाले और आगे बढ़ गए पत्थर वहीं पड़ा रहा।
एक मुसाफिर ने उस पत्थर को उठाकर रास्ते के किनारे रख दिया इस भाव के साथ कि उसके पीछे आने वाला कोई भी मुसाफिर उससे टकराकर गिरे ना, अर्थात उसे ठोकर न लगे।
दूसरा मुसाफिर उस पत्थर पर सुस्ताने के लिए कुछ देर बैठा और चलते वक्त उस पत्थर को वही एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे के ऊपर रख दिया, उसका भाव यह था कि यदि उस पत्थर ने उसे कुछ देर पनाह दी तो वह भी धूप में ना पड़ा रहे उसे भी पेड़ की छांव मिलनी चाहिए, एक जीवित प्राणी की भांति इस प्रकृत में उस निर्जीव का भी कुछ हक बनता है।
प्रथम घटना अकर्मण्यता है, इंसान ठोकरें खाएगा गिरेगा फिर संभालेगा और आगे बढ़ेगा लेकिन मूल कारण तक नहीं पहुंच पाएगा।
दूसरी घटना में सामाजिकता इंसानियत और अपने पीछे चलने वाले या अनुकरण करने वाले के लिए एक साफ सुथरा मार्ग प्रदान करना है।
लेकिन तीसरी घटना को आप कैसे लेंगे , उसे कैसे जस्टिफाई करेंगे? उस व्यक्ति के बारे में क्या सोचेंगे , जिसने पीछे आने वाले इंसानों या केवल जीवित प्राणियों के बारे में न सोच कर उस पत्थर के बारे में भी सोचा ?
अब अपनी कल्पना को और आगे बढ़ाते हैं - कुछ दिन बाद वह तीसरा व्यक्ति उसी रास्ते वापस लौट रहा होता है, तो वह देखता क्या है कि उस पेड़ के नीचे रखें उसी पत्थर पर कुछ फूल मालाएं चढ़ी हैं और राह से गुजरने वाले व्यक्ति श्रद्धा भाव से सर झुकाते हैं। उस निर्जीव पत्थर के प्रति उसकी एक सोच ने उस पत्थर को देवता बना दिया।
उसकी एक सोच ने कई समस्याएं हल कर दी। कुछ लोगों को आस्था विश्वास का केंद्र बिंदु मिल गया अब वहां न तो कोई ठोकर खाकर गिरता है और ना ही उस पत्थर को बेवजह ठोकर मारता है।
तो हम इस बात से कैसे बेखबर है कि जब हमारी एक सोच एक पत्थर को देवता बना सकती है तो हमारी वही एक सोच इंसान को क्या से क्या बना देगी।
अब मैं यहां पर एक सच्चा उदाहरण लेता हूं। एक ऐसे सफर का जिसमें थे तो कुछ और भी लोग किंतु केंद्र बिंदु मैं , वह और एक छोटा नासमझ - सा बच्चा था। उस बच्चे को सफर की आदत शायद नहीं थी। या हो सकता है कि वह चाह कर भी उस आधुनिक और मॉर्डन सी दिखने वाली लड़की से कह न पाया हो कि उसका जी मिचला रहा है, कुछ देर बाद ही वह उल्टियां करने लगा।
मैं समझा बेटा अब उसकी खैर नहीं। मुझे कुछ गुस्सा भी आ गया और मैंने उसे डांटते हुए कहा - बताना चाहिए था न ?
मेरी सभी आशाओं के विपरीत उस लड़की ने उसे डाटा या झिड़का नहीं। उसने उसकी मदद की। उसका मुंह साफ करवाया पानी पिलाया और तोलिया भी दी। अपना गंतव्य स्थान आने पर वह लड़की उतर गई।
बाद में मैंने उस लड़के से पूछा कि , क्या तुम्हें डर नहीं लगा था ?
उसने इंकार में अपना सर हिलाया - ' नहीं '
तो फिर तुम्हें उनको थैंक्स कहना चाहिए था -
मेरी तरफ देख कर वह केवल मुस्कुरा दिया बोला कुछ नहीं। कुछ देर बाद जब मैंने उससे जवाब की आशा छोड़ दी तब वह धीरे से मुझसे बोला - सर जी!' मैडम जी बहुत अच्छी हैं '
- इस बार मैं केवल हौले से मुस्कुरा दिया।
हो सकता है अपनी पर्सनल लाइफ में वह लड़की एक अलग स्वभाव की अलग सोच रखने वाली मॉर्डन लड़की हो, और उसे किसी की परवाह न हो, लेकिन उस वक्त उस लड़के के लिए उसने वही काम किया, जो तीसरे मुसाफिर में उस पत्थर के लिए किया था।
कुछ घटनाएं और उनकी याददाश्त उम्र की मोहताज नहीं होती वे समय से परे होती हैं। यह घटना उस लड़के को शायद हमेशा याद रहेगी बावजूद इसके कि खुद वह लड़की इसे भूल जाए।
और . . .
वह लड़का हमेशा मुझे यही कहता नजर आएगा - ' सर जी ! मैडम जी बहुत अच्छी हैं ' ।
क्या यह कम है की उसने उस बच्चे के दिमाग में एक सिद्धांत स्थाई रूप से बैठा दिया कि मानवता शेष है। अपवाद ही सही लेकिन है तो सही !!
अब हम एक निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
कल्पना कीजिए कि कभी उस लड़की के स्थान पर वह लड़का हो और उस लड़के के स्थान पर कोई दूसरा हो, तो क्या वह, वही सब करने के लिए तैयार नहीं होगा जो उस लड़की ने उसके साथ इस वक्त किया है ? जी हां, वह जरूर करेंगा। यह सिद्धांत उसके दिलो-दिमाग में बस गया है।
और यही वह अपनी अगली पीढ़ियों को देकर जाएगा। उस लड़की ने एक कांसेप्ट को जन्म दिया। है न ?
मेरा यह आर्टिकल माई इनसेप्शन पार्ट 3, उसी लड़की को सादर समर्पित।
Shailendra S. 'Satna'
उस लड़की को मेरी तरफ से भी सलाम।
ReplyDeleteजी जरूर 🙏
Deleteजब कभी वे पढ़ेगी, तो आपकी विश उन तक खुद ब खुद पहुंच जाएगी। मेरी जरूरत ही न पड़ेगी।
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