मेरे मित्र का मित्र था. कोई ज्यादा जान-पहचान नहीं थी. दुआ सलाम और कभी-कभी उसके साथ किसी दुकान में चाय नाश्ता हो जाया करता. कद लंबा, रंग गोरा और चेहरे पर हमेशा हल्की दाढ़ी हुआ करती थी।
उसके बारे में मुझे कुछ ही बातें मालूम थी जैसे वह एक प्राइवेट कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर था घर किसी दूसरे शहर में था यहां मेरे शहर में किराए का कमरा लेकर रहता था . यह भी पता चला कि वह शादीशुदा है चार-पांच साल का एक बेटा भी है। कभी-कभी हम दो-चार दोस्त किसी एक दोस्त के घर जमा होते हैं और गपशप करते थे।
उस दिन भी हम कुछ दोस्त उसी दोस्त के यहां जमा हुए थे जिसका कि वह दोस्त था। उसके बारे में यह सब बातें मुझे उसी दोस्त से मालूम पड़ी थीं।
राखी के दिन का वह शाम का समय था। चाय नाश्ते का दौर चल रहा था मेरी नजर उसकी सुनी कलाई पर पड़ी मैंने पूछा तुम राखी पर घर नहीं गए साल भर का त्यौहार है कोई बहन . . . .
मेरी बात पूरी होती इससे पहले ही भाभी जी पानी का गिलास रखते हुए बोली - ' लगता है भाई साहब की कोई बहन नहीं है, कहें तो मैं बाँध दू . . .
कमरे में ठहाका गूंज गया. हम सभी हंस पड़े थे लेकिन वह नहीं हँसा था। चेहरा पत्थर की तरह सपाट और आंखें एकाएक शून्य में ठहर गई थी। वह उठकर कमरे से बाहर जाने लगा मेरे दोस्त ने टोका था ' ये बुरा मान गया क्या ...? '
' नहीं ' - वह बोला ' बस अभी आता हूँ '
कुछ ही देर में वह वापस आ भी गया, बिल्कुल नॉर्मल। तकरीबन नौ बजे सभा खत्म हुई और मुझे घर तक छोड़ने की जिम्मेदारी उसी पर डाली गई, वजह कि मेरा घर उसके कमरे से पहले पढ़ता था, उसी रुट पर। हम दोनों बाइक पर थे। कुछ दूर ही चल पाए थे कि अचानक बूंदा-बांदी शुरू हो गई और फिर तेज बारिश में बदल गई। हम दोनों को एक दुकान में रुकना पड़ा था। दुकान बंद थी सामने बारजे के नीचे हम लोग दुकान की सीढ़ी में बैठ गए। वही मैंने पूछा - ' मेरी बात का बुरा तो नहीं माना ? अगर माना हो तो सॉरी यार ' - उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा जैसे कह रहा हो नहीं।
मेरा हौसला बढ़ा तो मैंने उसके असहज होने की वजह भी जाननी चाही। कुछ देर चुप रहने के बाद उसने उस बरसती हुई रात में जो कहानी सुनाई उसे सुनकर मेरा कलेजा दहल गया। अब आगे की कहानी उसी की जुबानी ---
रिश्ते बनाना और वादा करना कितना आसान होता है लेकिन उन्हें निभाना उतना ही मुश्किल। यह कहना मेरे लिए कितना सही है और उनके लिए बिल्कुल आसान। वे चार सालों तक लगातार मुझे राखी बांधती रही और साथ में मेरी हिफाजत की दुआ भी मांगती रही।
ज्यादा नहीं दस साल पहले की बात है जब मेरा दाखिला रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था। सब कुछ ठीक-ठाक निपट गया था, बस रहने का इंतजाम करना बाकी था। कालेज से कुछ ही दूरी पर डॉक्टर खान का पुराना मकान था, दो मंजिला बिल्कुल पुराने स्टाइल का।
पापा के एक दोस्त ने उन्हें बताया था कि खान साहब डिग्री कॉलेज में उर्दू के प्रोफेसर थे जिनकी अब मौत हो चुकी है। उनकी बीवी उसी मकान में रहती हैं। वह भी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर काम करती हैं , अकेली हैं इसलिए और केवल लड़कियों को पेइंग - गेस्ट के रुप में रखती हैं। उन्हीं से बात करके देख लीजिए, शायद बात बन जाए।
जब मैं पापा के साथ उनके घर पहुंचा तो शाम हो रही थी। दरवाजा उन्होंने ही खोला था लगभग पैतीस - चालीस साल के आसपास की उम्र रही होगी , गोरा और दुबला पतला सा बदन, निहायत ही खूबसूरत।
पहले तो उन्होंने साफ मना कर दिया था कि वह केवल लेडीस को ही रखती हैं। काफी मिन्नतें करनी पड़ेगी तब कहीं जाकर एक कमरा मिला वह भी निचली मंजिल का सबसे कोने वाला कमरा, कुछ शर्तों के साथ। जैसे मैं रात को देर से नहीं आऊंगा और ना ही मेरे साथ कभी कोई दोस्त यहां आएगा वगैरा-वगैरा। बाद में पता चला कि वह कमरा उनके शौहर का कभी स्टडी रूम हुआ करता था।
एक हादसे में उनकी मौत हो चुकी थी। निचली मंजिल में काफी कमरे थे। एक आगन भी था, उसी से सटा हुआ किचन और उनका बेडरूम भी था। मेरा कमरा बैठक के बाई तरफ था, एक हालनुमा कमरे को पार करके ही उस तक पहुंचा जा सकता था। मैं पहली बार घर से दूर रहने के लिए निकला था। कॉलेज में तो समय कट जाता लेकिन जब लौटता तो वही सुना सा कमरा। वैसे एक खिड़की थी, बड़ी सी , उस में लोहे की कुंडी थी जो अंदर से बंद होती थी और अंदर से ही खुलती थी. कोई छड वगैरह नहीं लगी थी।
खिड़की से सटा कुछ ही दूरी पर एक बड़ा सा अमरूद का पेड़ भी था। दूसरी मंजिल के आधे में चार कमरे और थे , और आधे में छत। चार कमरे रहने वाले दो लोग, एक लेडी जो कहीं सर्विस करती थीं , और दूसरी एक मध्यम कद काठी की लड़की जो मेडिकल के इंटेरेंश की तैयारी कर रही थी. वह भी मेरी तरह ही इस शहर में नई थी। शायद इसी लिए मुझे नीचे रखा गया था, बावजूद इसके कि उनमें से दो कमरे अभी भी खाली ही थे।
छत पर जाने के लिए दो सीढिया थी। एक घर के अंदर आँगन से और दूसरी बाहर से ठीक अमरूद के पेड़ के नीचे से।
राखी का दिन था मैं अकेला उसी कालकोठरी में बैठा था। दिल दहाड़ मार कर रोने की पूरी कोशिश कर रहा था। घर में होता तो चचेरी बहनों की लंबी कतार होती, इस जिद के साथ कि वैभव भैया को पहले कौन राखी बांधेगा। कुछ आहट हुई थी, मैंने पलट कर देखा घर की मालकिन खड़ी थीं।
' क्यों ! तुम घर नहीं गए राखी में ' - उन्होंने बड़े प्यार से पूछा था।
इन बीस दिनों में पहली बार किसी ने इतने प्यार से बात की थी। दिल तो पहले से ही रो रहा था , उनकी बात सुन मेरी आंखों के सामने घर का चित्र उभर आया और उसके साथ ही आंखों में आंसू भी।
वे समझी कि मुझे अपनी बहन की याद आ रही है, तभी तो दूसरे ही पल वह राखी लेकर हाजिर हो गई थी। मेरी कलाई पर राखी बांधते हुए बोली - रोता क्यों है मैं हूं न तेरी बहन , जिंदगी मैं यदि कुछ बनना है तो घर से निकलना ही पड़ता है।
उनकी बातें सुनकर मेरे आंसू दुगनी रफ़्तार से निकल पड़े मैं बच्चों की तरह सुबक पड़ा। मेरे आंसुओं को अपने दामन से पोछती और माथे को चुनती हुई बोली - ' देख ! रोएगा तो घर से बाहर निकाल दूंगी , समझा '
मैंने उनके पैर छूते हुए अपनी जेब टटोली थी फिर वही प्यार भरी झिड़की ' नहीं रहना है क्या तुझे इस घर में ?'
बस वहीं से एक रिश्ता बन गया अब मैं पेइंग गेस्ट नहीं था। एक धागा ही काफी था उन्हें दीदी कहने के लिए। जिद करके उन्होंने मेरा होटल में खाना भी छुड़वा दिया। वह सारी जिम्मेदारियां जो एक माँ की होती है अब उनकी थी। ब्रेकफास्ट लंच बॉक्स तैयार करना, कपड़े धोबी को देना, सब की। इन सब के बदले मैं कभी-कभी घर के कुछ सामन लाने की कोशिश करता।
वह डांटती , - ' क्यों परेशान होता है ! भाई को खिलाकर एक बहन गरीब नहीं हो जाएगी ! '
मैं उन्हीं की भाषा में जवाब देता - ' हां दीदी आप ठीक कहती हो बहन नहीं भाई गरीब हो जाता है, है ना ? '
पहले सेमेस्टर के इंतहान शुरू हो चुके थे. मुझसे ज्यादा चिंता उन्हें थी. जब तक मैं पढता वो जंगातीं। एक दिन तो उन्होंने चेतावनी भी दे दी - ' देख, तू आफरीन खान का भाई है, कम से कम फर्स्ट डिवीजन के नंबर आने ही चाहिए, समझा !!"
मैंने भी अपनी क्लास में टॉप किया, अच्छे नंबर लाए। उस दिन वे खुशी से पागल हो रही थीं। मुझे गले लगा कर भीगती आंखों से बोले - ' तू सचमुच आफरीन खान का भाई है। मेरा सर ऊंचा कर दिया।"
धीरे-धीरे उन्होंने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया। यही कि किस तरह उन्होंने अपने से 10 साल बड़े शायर दिल खान साहब से निकाह किया था, वो भी मां-बाप की मर्जी के खिलाफ। किस तरह से उनके दोनों भाइयों ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया, इसी शहर में रहते हुए भी। और किस तरह खान साहब की एक हादसे में मौत हुई। सब कुछ, अब मैं उनका भाई भी था और हमराज भी।
मैंने दूसरा सेमेस्टर भी अच्छे नंबरों से पास कर लिया।
एक साल बीत गया इस बीच उस लड़की से हाय-हेलो होने लगी थी कभी-कभी वह मुझसे फिजिक्स की कुछ किताबें भी मांग ले जाती। चेहरा ठीक-ठाक था लेकिन उसकी आंखें और बात करने का अंदाज कुछ अलग ही था।
मैं कुछ-कुछ उसकी तरफ खींचता जा रहा था. लेकिन दीदी के डर से उससे ज्यादा बात ना कर पाता।
मुझे मौका मिला, दीदी एजुकेशनल टूर पर तीन दिनों के लिए मुझे पूरा घर सौप कर शहर से बाहर गई थी। इन तीन दिनों में बहुत कुछ हुआ। पहले दिन उस लड़की ने खुद मुझसे अपनी मोहब्बत का इजहार किया। दूसरे दिन मुझसे लिपटकर साथ जीने मरने की कसमें खाई। और . . और तीसरे दिन अपने आप को सौंप दिया।
चौथे दिन की सुबह थी दीदी आ गई, आजादी छिन गई। लेकिन वह बहादुर लड़की आधी रात को अमरूद के पेड़ के पास वाली खिड़की कूद कर मेरे कमरे में आ जाती।
एक रात की बात है कड़ाके की ठंड पड़ रही थी उस लड़की के आते ही मैंने लाइट ऑफ कर दी बातें होने लगी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने उससे कहा -' भागो शायद दीदी है '
वह उसी तरह खिड़की से बाहर कूद गई। मैंने दरवाजा खोला, सामने दीदी खड़ी थी - ' क्या बात है दीदी '
मेरी आवाज कपकपा रही थी। वह कमरे के अंदर अंधेरे को घूरती हुई बोली - ' देख रही हूँ . . आजकल जल्दी सो जाता है ? पढ़ाई लिखाई नहीं करता क्या ?'
बात आई-गई हो गई। कुछ महीने और बीत गए, लेकिन उसका आना नहीं छूटा , हफ्ते में एक-दो दिन तो वह जरूर आती। वह फोर्थ सेम था कि एक दिन उस ने बताया कि शायद वह प्रेग्नेंट है, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने झूम कर उसे गोदी में उठा लिया, "मैं बाप बनने वाला हूं मैं खुशी पागल हो जाऊंगा।"
उसने शक भरी नजरों से मुझे देखा, फिर वह बोली - " बन जाऊंगा नहीं , बन गए हो , कुछ करो। . . समझे
मैंने उसके सामने प्रस्ताव रखा, "क्यों न हम दोनों शादी कर ले....?"
" पागल हो गए हो तुम !!!", वह गुस्से में बोली, "मेरे कैरियर का क्या होगा ?"
मैं चुप हो गया. कुछ देर बाद वह बोली - ' देखो मैं जानती हूं कि गलती हम दोनों की है, मेरी मदद करो प्लीज। मेरे पास पैसे नहीं है मुझे कुछ पैसे दे दो वह रुआंसी हो गई थी। मुझे शक हुआ - ' कहीं तुम . . .
उस लड़की ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया। कुछ देर बाद मुझे समझाते हुए बोली, "देखो हमें दिल से नहीं दिमाग से काम लेना चाहिए , तुमने साथ न दिया तो मैं मर जाऊंगी . . . प्लीज़। "
मुझे उसकी बात माननी पड़ी। कुछ दिन बाद वह नॉर्मल भी हो गई। कुछ महीने और बीत गए, इसी बीच उसने मेडिकल एंट्रेंस पास कर लिया और दूसरे शहर में पढ़ने के लिए चली गई.
एक दिन मेरे एक दोस्त ने बताया कि वह लड़की आई हुई है।
मुझे हैरानी हुई थी कि वह मुझसे मिली क्यों नहीं ?
कुछ दिन बाद उसी दोस्त ने फिर बताया कि वह फिर आई हुई है। मैं उससे मिलने उसकी सहेली के यहां पहुंचा। वह अकेली नहीं थी। उसके साथ एक और लड़का था. जो उसी के कॉलेज में पढ़ता था। मुझे देख वह सकपका गई , ढंग से बात तक नहीं की। मैं चला आया।
दूसरे दिन वह कॉलेज आई। वह लड़का साथ नहीं था। कुछ देर उसने इधर-उधर की बातें कि मेरा हाल चाल भी पूछा। मैंने महसूस किया जैसे वह मुझसे कुछ और कहना चाहती है लेकिन वह कह नहीं पा रही थी।
मैं नहीं पूछा - ' क्या बात है . . कुछ कहना है। '
उसने दो वाक्य कहें - ' मुझे भूल जाओ। इंसान की जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आते हैं जिन्हें हम प्यार समझ लेते हैं, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह प्यार नहीं बस एक अट्रैक्शन था।
मैं समझ रहा था वह क्या कहना चाह रही थी लेकिन अनजान बना रहा था। वह आगे कह रही थी, " मेरी मुलाकात जब उस लड़के से हुई तो मुझे भी समझ में आया कि अट्रैक्शन और प्यार में फर्क होता है ?"
' . . और वे संबंध। - मैंने पूछा था।
' हमारी जरूरत, शायद ' - वह उसी बेशर्मी से बोली।
' नहीं . . . तुम्हारी जरूरत . . . यकीनन।
वह तिलमिला गई और पैर भटकते हुए चली गई।
रास्ते में बीयर बार पढ़ता था जब तक जेब में पैसे रहे तब तक पी। जब घर पहुंचा तो दीदी को अपने इंतजार में पाया। डर था कि वे डटेगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने कुछ नहीं पूछा, कुछ नहीं कहा। दो बार, तीन बार यहां तक की चौथी बार भी नहीं। मेरा हौसला बढ़ता गया। पढ़ाई तो चौपट हो ही रही थी पैसे भी खत्म हो चुके थे। अब शराब मेरी जरूरत बन चुकी थी। मैं दीदी से बोला - ' दीदी ! कुछ पैसे दे दीजिए।'
उम्मीद थी कि वह पूछेंगी , क्यों ? किसलिए ?? लेकिन नहीं , उन्होंने कुछ नहीं पूछा। चुपचाप मुझे कुछ पैसे दे दिए थे । मैं फिर बीयर बार पहुंचा। मैंने इस बार ज्यादा ही पी ली। ऑटोवाला घर के सामने उतारकर या यूं कहिए पटक कर चला गया था ।
मैं लड़खड़ाते कदमों से किसी तरह दरवाजे तक पहुंचा। मैं गिरता इससे पहले ही किसी ने मजबूती से थाम लिया। उसके बाद कुछ याद नहीं जब नींद खुली तो अपने आप को सोफे पर बिखरा पाया।
मेरे उठते ही दीदी की नींद टूटी। बिना कुछ कहे वह खाना परोसने लगी मेरे साथ उन्होंने भी खाना खाया फिर मैं अपने कमरे में चला आया। सुबह उठा नहीं जा रहा था। सर में तेज दर्द और बुखार लग रहा था। रविवार का दिन था वह कमरे में आई, मेरा माथा छूकर देखा और मुझसे फौरन तैयार होकर अपने साथ चलने को कहा।
मैंने जवाब दिया - ' मुझे कहीं नहीं जाना दीदी . . . मर जाने दो '
वह मेरे माथे को सहलाते हुए बोली - ' तो आफरीन खान का भाई इतना कमजोर है कि जरा सी ठोकर लगी है और टूट गया, और एक वह है जो तुझ पर अपनी आबरू लुटा कर खुश है , अपना करिअर बना रही है , और एक तू है जो मर्द होकर भी मातम मना रहा है।
दीदी की बात सुनकर मैं चौंक पड़ा तो , क्या उन्हें सब कुछ मालूम है। वे आगे कह रही थी - ' देख ! तू यहाँ जिस मकसद से आया है उसे पूरा कर , पढ़ , डिग्री ले , अपना करिअर बना , हो सके तो माँ-बाप का सहारा बन। ये जिंदगी है भाई ! उतार चढ़ाव तो आएंगे ही। कभी सोचा है कि मां बाप के औलाद को लेकर क्या-क्या अरमान होते हैं ? क्या लेकर जाएगा यहां से, शराब की बोतलें ? तू गम के दरिया से बाहर निकल उसमें बह नहीं , मैं तेरे साथ हूं। '
उनका हाथ अभी भी मेरे माथे पर था लगा जैसे अपनत्व के उस पल ने पल भर में ही मुझे उस भवर से बाहर निकाल लिया है। मैं उनकी तरफ देखता रहा बिल्कुल चुपचाप।
समय गुजर रहा था. वह दिन भी आया जब मैं उस शहर को छोड़ने वाला था। पूरे दिन उन्होंने मेरी तैयारी की जिंदगी जीने के लिए हर तरह के मशवरे दिए। जब मैं चलने लगा तो वह जज्बाती हो उठी और मुझसे लिपटकर रोने लगी - ' मत जा विभु, मैं फिर से अकेली हो जाऊँगी। '
मैं समझ सकता था - उनकी जिंदगी में केवल और केवल मैं ही एकमात्र जीवित रिश्ता था। मैं भी रो पड़ा। चार सालों का साथ एक पल में छूट रहा था।
आप रोती क्यों है ? मत रोइये , मैं आपसे दूर कहां हूं , अगर आप ना होतीं तो शायद मैं इस शहर में खो कर रह जाता। वादा करता हूं कि चाहे कहीं भी रहूं , राखी के दिन जरूर आऊंगा। इस कलाई में आपके नाम की राखी जरूर बधेंगी।
मैं उस शहर से चला आया, लेकिन उनकी यादें मेरे दिल में रहीं , और अपना वादा भी याद रहा। राखी के दिन सुबह चला। मुझे उनके पास शाम तक पहुंच जाना चाहिए था, लेकिन ट्रेन लेट होने की वजह रात दस बजे पहुंचा था। उनको अपना इंतजार करते हुए पाया देखते ही वह मुझसे लिपट गई और बोली - ' मुझे तो लगा कि अब हम मेरा भाई नहीं आएगा . . .
जवाब में मैं छाती फूलतें हुए बोला - ' कैसे ना आता आफरीन खान का भाई झूठा वादा नहीं करता।
हम लोग अंदर आ गए उस। दिन उन्होंने हल्के नीले रंग की साड़ी पहन रखी थी। आरती का थाल सजाया दीपक जलाया और मेरी आरती उतारी फिर कलाई में रेशमी धागे को बांधते हुए वहीं दुआ मांगी - मेरे भाई को जिंदगी की हर खुशी मिले हर बला से उसकी हिफाजत करना।
मैंने टोका - ' एक मिनट, ख़ुशी की बात तो ठीक है लेकिन हिफाजत !! नहीं ... नहीं यह तो मेरा फर्ज है मेरा धर्म है . . . '
यह सुनकर उनकी आंखें भर आई - ' कब तक रुकेगा ' - उन्होंने पूछा।
' जब तक आप मुझे भगा न दोगी। ' मैं हंसते हुए बोला था अच्छा बताओ तो इस साल कितने पेइंग-गेस्ट रखे हैं। मैंने बात बदलनी चाहिए।
उन्होंने बताया एक तो वही लेडी है दो नई लड़की आई हैं , राखी के त्यौहार में सभी अपने घर गई हुई हैं। लंबे सफर की थकान थी खाना खाते ही मुझे नींद आने लगी। मैंने कहा - ' दीदी ! अब बाकी बातें कल होंगे मुझे तो नींद आ रही मैं तो चला सोने '
मैं अपने कमरे में आया कमरे की हालत उसी तरह थी साफ सुथरा, वही बिस्तर। मैंने उनसे पूछा क्या इस कमरे को किराए से नहीं दिया
' नहीं . . . नहीं दिया, यह मेरे भाई का कमरा है, किसी को कैसे दे देती !! '
ओह !
बाहर मुसलाधार पानी बरसने की आवाज आ रही थी। थकान भी जबरदस्त थी, लेटते ही नींद आ गई। रात को अचानक नींद खुली, लगा किसी ने पुकारा हो, नहीं नहीं बल्कि जैसे चीखा हो।
मैं उठ बैठा। कुछ देर तक बैठा रहा, लेकिन कोई आहट नहीं मिली सोचा , कोई भ्रम हुआ है. मैं फिर से लेट गया।
सुबह तकरीबन सात बजे नींद खुली। मैं कमरे से बाहर निकला, बैठक में आया वहां कोई नहीं था।
सामने लान में पानी ही पानी भरा गया था। नजरें घुमा कर इधर-उधर देखा लेकिन दीदी नहीं दिखी। मैं फिर से अंदर आया, आंगन में खड़े होकर आवाज लगाई। लेकिन वही खामोशी। फिर मेरे दिमाग में आया कि हो सकता है कि वह अभी भी सो रही हों। दिन भर इंतजार और मेरे लिए पकवान बनाने में व्यस्त रही थी, तो हो सकता है अभी उनकी नींद ही ना खुली हो।
मैं उनके बेडरूम के दरवाजे तक पहुंचा और फिर पुकार लगाई- ' दीदी अब उठो भी देखो तो कितनी अच्छी सुबह है ' - पर कोई आवाज नहीं। मैंने दरवाजे पर दस्तक दी। मेरे दस्तक से दरवाजा थोड़ा सा खुल गया। अंदर लाइट जल रही थी। मैंने देखा कुछ कपड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे। उन्हीं कपड़ों में वह नीली साड़ी भी थी। वही साड़ी जो पिछली रात उन्होंने पहनी थी।
मैं घबरा गया, दरवाजा कुछ और खोला बेडरूम का मंजर देख मेरी रूह कांप उठी। वहां मैंने देखा बेड पर उनकी खून से लथपथ लाश पड़ी है गर्दन पर किसी तेज हथियार से वार किया गया था शायद।
वहां का मंजर देख मैं जड़ हो गया। उनके कपड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे . . . क्या करता ....
वैभव चुप हो गया उसकी कहानी सुन मेरी भी रूह कांप उठी। मैंने पूछा - ' कौन था ? वह कुछ पता चला क्या ?'
हां , पता तो बाद में चला ही लेकिन पहले शक के बिना पर मुझे ही हिरासत में लिया गया।
' क्या तुम्हें !! ' मुझे विश्वास नहीं हो रहा था।
हां मुझे, मैं मौका ए वारदात पर मौजूद था शायद इसलिए ... '
मैं दो दिनों तक हवालात में रहा। मुझे अच्छे से याद है , एक हवलदार ने मुझे सुनाते हुए थाना इंचार्ज से कहा था कि अरे साहब साहब इसी का किया-धरा है। मुंह बोले भाई का रिश्ता बड़ा अजीब होता है। दिन में भैया और रात को सैया होते हैं। खातून खूबसूरत तो थी ही साहब कंट्रोल नहीं हुआ होगा . . .
वह आगे कुछ नहीं कह पाया चुप हो गया। मैंने ही पूछा - "फिर क्या हुआ तुम छूटे कैसे ?"
मेरे पक्ष में कुछ बातें थी। जैसे मैं वहां से भागा क्यों नहीं , जो गहने व जेवर चोरी हुए थे वह मेरे पास क्यों नहीं पाए गए . . .
' कौन था ? क्या हुआ था उस रात ? - ' मैंने पूछा।
वह बोला एक नहीं, चार लोग थे , उसी मोहल्ले के। छत के रास्ते से नीचे आए, पहले रुपए जेवर समेटे फिर बारी बारी से उनके साथ . . . . उफ। . . पकड़े जाने के डर से भागते समय, उन्होंने उनकी गर्दन काट कर हत्या कर दी थी।
' तो . . . वह चीख उन्ही की रही होगी . . . ?
- ' नहीं ' - वह बोला था - ' अगर मैं वहां ना होता तो शायद चीखती चिल्लाती भी , लेकिन मैं था इसलिए।
- ' क्यों " - मैंने हैरानी से पूछा।
इसलिए कि उन्हें मेरी मौजूदगी का एहसास नहीं था। दीदी को डर लग रहा होगा कि उनके इस इस तरह से चीखने चिल्लाने पर कहीं मेरी नींद खुल गई तो मैं कहीं उनकी मदद के लिए ना पहुंच जाऊं और वो लोग मुझे भी ना, इसलिए वे उनकी सारी ज्यादती चुपचाप सहन करती रही होंगी ....
लेकिन वह लोग पकड़े कैसे गए जबकि उन्हें दीदी के अलावा किसी ने नहीं देखा था।
वह भी एक अजीब इत्तेफाक था दोस्त - वह बताने लगा - उन्हीं दरिंदों में से एक की राखी टूट कर बेड के नीचे गिर गई थी। उसी राखी में उसकी बहन ने बड़े प्यार से अपने भाई का नाम भी लिखा था।
मैं चुप हो गया कुछ देर चुप रहने के बाद वह आगे बोला - ' कितनी अजीब बात है, जिस दिन हर बहन अपने भाई को राखी बांध कर अपनी हिफाजत का वादा लेती है उसी रात उन चरों ने मेरी बहन के साथ बलात्कार किया उनकी हत्या कर दी, मुझसे मेरी बहन छीन ली . . .
मैंने देखा वह अब रोने लगा था उसके कंधे पर हाथ रख मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा
' चुप हो जा मेरे दोस्त , ये वही सदियों पुराने आदम है जो केवल कुदरत के बनाए एक ही सम्बन्ध को मानते हैं। सामाजिक दृष्टि से जिनका कोई सरोकार नहीं होता। ये मर्द और औरत के बीच एक ही रिश्ते को जानते हैं और सच मान, ताज्जुब नहीं अगर वह अपनी मां बहन के साथ भी ऐसा ही कुछ करें। वे किसी बहन के भाई नहीं होते , वे किसी मां के बेटे नहीं होते।
' सब ठीक है यार लेकिन मैं अपना वादा ना पूरा कर सका। मेरे होते हुए . . . ' अब वह कांपने लगा , अचानक मुझसे लिपट गया - ' मुझे माफ कर दो दीदी मैं आप की हिफाजत न कर सका
उसकी आंखों से बहते गर्म आंसुओं को मैंने अपने कंधे पर महसूस किया था। पल भर के लिए लगा कि जैसे मेरे वजूद के किसी हिस्से में उसकी बहन आफरीन खान अभी भी सांसे ले रही हो . . .
मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में भींच लिया - ' अरे पगले क्यों रोता है , वह एक हादसा था। मैं नहीं मर सकती। तुझे छोड़कर कहां जाऊंगी। तेरे सिवा मेरा कौन है इस दुनिया में। जब तक तू है मैं हूं . . .
बरसात और तेज हो गई थी शायद उसी रात की तरह।
Every promise gives rise to a new promise . . .
Shailendra S. 'Satna"
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