Saturday, May 15, 2021

फिर किया याद मुझे ! !

गर तुम सोचती हो कि , 

मुझे यूं ही याद करके,

आवारा-बेपरवाह बादलों को,

बे-मौसम बारिश करने को,

बनाकर तूफान हवाओं को,

कि हर रात तुम मुझे तंग करती हो ?

अगर सोचती हो तुम, 

मैं नहीं जानता हकीकत को,

तो ? . . .  

तो यह सोचना तुम्हारा गलत है।

हां बिल्कुल ! सरासर गलत है. 

मैं समझता हूं तुम्हें अच्छे से,

बेखबर नहीं, तुम्हारी किसी चाहत से,

तो अब सुनों, अपने ही जज्बात मेरी जुबां से -

तुम्हारा हर रात मुझे यूं याद करना,

ये एहसास दिलाता रहे मुझे,

कि मैं, अकेला नहीं हूं इस जहां में।

मेरी सूनी रातों में तुम अब शरीक हो,

मैं अब भी हूं , तुम्हारे तसव्वर मे कहीं ।

यू छीन लेना आसमानी चांद-सितारें को,

कि अब मैं खुले आसमां  के कैनवास में,

एक साफ-सुथरी तस्वीर बना सकूं,

जो रखी है छुपा के कहीं अपने मन में।

हां , वही तस्वीर तुम्हारी!

जो खुद भी कम ही देखता हूं इस डर से,

कहीं कोई तूफान ना ले दे हमारी जिंदगी में।

तूफान के जोर से उड़ी उस धूल को,

तुम दबा देती हो - बादलों को ,बेमौसम बरसा के।

तुम जानती हो अच्छे से कि मैं वह नहीं,

जो मिला करता हूं तुम्हे दिन के उजालों में,

मेरी बातें वो नहीं जो अक्सर,

किया करता हूं तुमसे।

हमारे  होने के गवाह ,

तो हैं ये रात के साएं,

जहां हमारी शख्सियत कुछ अधिक ही,

 उभर के सामने आती है ।

जब भी होगी जी भर, एक-दूजे से,

मिल लेने की चाहत हमें -

तब मुझे यूं ही याद करके,

आवारा-बेपरवाह बादलों को,

बे-मौसम बारिश करने को,

बनाकर तूफान हवाओं को,

तुम भेजती रहोगी हर रात,

मुझे जगाने को। 

. . . . शैलेन्द्र एस. ' सतना '
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**** 'हम/हमारे' शब्द का प्रयोग 'एक - दूजे ' के लिए है न कि 'व्यक्तिगत अहंकार' सूचक। अब इस बात को ध्यान में रख फिर से पढ़िये।  

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