Wednesday, November 3, 2021

मैं डिजिटल युग का

मैं इस डिजिटल युग का,
टेक्निकल विरह प्रेमी कवि हूं।
तुम्हारे अनंत:पुर से,
निष्कासित श्रापित यक्ष हूं।
मेघ नहीं बिट से अपना,
हाल-ए-दिल पहुंचाता हूं।
तुम्हारी विरह वेदना में जब,
ऑफ से ऑन हो जाता हूं।
तब एक अक्षर लिखने को भी,
एट बिट से एक बाइट बनाता हूं।।

एमबी फिर जीबी भी, जब कम पड जाते हैं।
तब चाहत से अपनी,  टेरा बाइट बनाता हूं।

नेटवर्क कंजेक्शन और, व्यस्ततम रूट तुम्हारा।
फिर भी अपना सन्देश,  तुम तक पहुंचाता हूं।

जज़्बातों के छोटे-छोटे पैकेट कर,
हर पैकेट में लिख दोनों का एड्रेस,
फिर सभी को तुम्हें सेंड करता हूं।
उनमें से कुछ तुम तक पहुंचे,
कुछ कंजेक्शन में फंस के लौटे,
आहों के रूटर से उनको,
फिर री रूट दिखलाता हूं।

ये क्रम यूं ही अनवरत चलता रहेगा,
जब तक हर पैकेट तुम तक न पहुंचा दूं।
क्योंकि ?
मैं इस डिजिटल युग का,
टेक्निकल विराह प्रेमी कवि हूं।
मेघ नहीं बिट से तुम तक,
अपनी विरह वेदना पहुंचाता हूं।
Shailendra S.
Mr. भूपेंद्र सिंह बघेल, सतना
को सादर समर्पित।

4 comments:

  1. सहृदय बहुत-बहुत धन्यवाद ... शब्द भले ही डिजिटल युग के हैं ... पर गहराई तो सागर वाली ही है ... कही गयी बात अंतरतम को भेद रही है ... आशा है की विचारों की यह अविरल धारा तुम्हारे मन-मस्तिष्क में शास्वत बहती रहेगी और हमें सदा-सदा ही अन्दर तक भिगोती रहेगी। 👌👌👌👋👋👋👍👍

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    1. आपका आशीर्वाद , कंप्यूटर, इंग्लिश और हिंदी क्या क्या नहीं सीखा आपसे ? हमेशा आशीर्वाद रहे आपका 🙏

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