कहानी को जहां विराम दिया गया, वहां घटनाएं घटी और तीन पात्र एक दूसरे से जुदा हुए, अपनी अलग-अलग जिंदगी जीने के लिए।
कुछ सीख, सिद्धांत और अवधारणाओं के साथ कहानी रुक गई । या यूं कह लीजिए की कहानी को यदि मैंने ठीक उसके दो-तीन वर्ष के बाद लिख दिया होता तो वही उसका अंत होता।
लेकिन नहीं, जब मैं इस कहानी को लिख रहा हूं, घटनाएं घट चुकी हैं। इसलिए कहानी को अधूरा नहीं छोड़ा जा सकता। उसे उसके अंजाम तक पहुंचाना नितांत आवश्यक है।
जो अवधारणाएं बनी, और जो कहानी के अंत में बनेगी, वह लेखक की व्यक्तिगत हो सकती है। किंतु आगे की कहानी कहने से पहले मैं इतना अवश्य लिखना चाहता हूं कि " लड़के ऐसे ही होते हैं या लड़कियां ऐसी ही होती हैं " इस सोच को अपने कवर्ड में रखकर ताला मार दीजिए, और खुले दिमाग से आगे पढ़िए।
हम तीनों एक साथ जुदा हुए और लगभग 6 वर्ष बाद जब मिले तो तीनों एक साथ ही मिले। इत्तफाक था, इत्तेफाक ही सही लेकिन ऐसा हुआ। वह दौर कॉलेज का था और यह एक वैवाहिक समारोह का।
हम दोनों ने एक दूसरे को देखा, लगा कहीं देखा है, शक्ल सूरत कुछ बदल गई थी। बात चली तो परिचय हुआ कि हां हम वही हैं जो कॉलेज में अक्सर मिला करते थे, और वह मुझे अपनी पोएट्री सुनाया करता था।
महफिल थी, भीड़ खचाखच थी। सपरिवार मैं शरीक था। वही मिया बीबी और मेरा लगभग एक वर्ष का बेटा। लेकिन जब मैंने उससे उसके बारे में पूछा, उसकी फैमिली के बारे में पूछा तो उसने मुस्कुराकर बस इतना ही कहा कि उसने अभी विवाह नहीं किया है। मुझे आश्चर्य हुआ। एम. ए. करने के 6 वर्ष बाद भी विवाह नहीं हुआ !!
मैंने कुछ मजाकिया लहजे में उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा, " क्या बात है यार, अभी तक उसे नहीं भूले ?"
बदले में वह केवल मुस्कुरा दिया। मैंने उसे कुछ कुरेद-कुरेद कर पूछा और आश्चर्यजनक कि वह खुद भी उससे 5 वर्षों के बाद मिल रहा है। उसने महफिल की एक टेबल में दूर बैठे एक परिवार की तरफ इशारा करते हुए कहा, " देखो वह रही, अब शायद उसकी शादी हो गई है ?"
मैंने गौर से देखा, " अरे हां यार, यह तो वही है! क्या बात है!! मुलाकात हुई ?"
" नहीं यार, मैंने भी अभी कुछ देर पहले ही देखा था ! "
बफेलो सिस्टम था, अब हंसिए मत ! यही तो होता है। खाना खुद पारोसो, खड़े-खड़े खाओ। यदि कहीं जगह मिल गई ,कोई टेबल खाली मिल गई तो बैठ कर खा लो।
क्योंकि भीड़ ज्यादा थी तो उसने मुझसे कहा , " यार, तुम फैमिली के साथ वही बैठो मैं इंतजाम करता हूं" , उसने उसके पास एक खाली टेबल की तरह मुझे इशारा करते हुए कहा।
बीच लान की जो टेबल खाली थी, वह उस टेबल के बिल्कुल नजदीक थी। जिसमें वे तीनों बैठे थे। मैंने उस वक्त जो अनुमान लगाया वह बाद में सही भी साबित हुआ था। पुरुष उसका पति होगा और 3 वर्ष का एक लड़का जो बेहद चंचल दिख रहा था वह जरूर उन दोनों की संतान।
अब क्योंकि उसने मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था, और मेरा दोस्त भी टेबल की तरफ इशारा करके खाने के इंतजाम के लिए भीड़ में गुम हो चुका था। मैं अपनी पत्नी और बच्चे के साथ उसके नजदीक की खाली टेबल पर बैठ गया। उसने अभी भी हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था। ना उसने ना उसके पति ने।
मेरी पीठ उसके पीठ की तरफ थी। यानी दोनो अलग-अलग टेबल में नजदीक होते हुए भी एक दूसरे की विपरीत दिशा में बैठे थे।
लगभग डेढ़ - दो हाथ का फर्क रहा होगा। उसकी सुरीली आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। वह कभी हंसती तो कभी बच्चे को थोड़ा सा डांट देती। कुल मिलाकर मुझे लगा हैप्पी फैमिली।
सार्वजनिक महफिल में हमें अक्सर यही भ्रम होता है। शायद आपको भी होता हो।
अचानक उसकी यह आवाज सुनकर मैं चौंक गया। वह उस पुरुष साथी अर्थात अपने पति से कह रही थी, " अरे . . अरे देखो, देखो तो, अरे यही वह है, जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था। हां, . . वही मेरा दीवाना ! मेरे लिए पोएट्री भी लिखा करता था। हां, और मैं जानबूझकर उसे इग्नोर कर देती थी, मैंने बताया था न तुम्हें ? "
मैंने उसके इशारे का अनुमान लगाया और देखा, वह मेरे मित्र को भीड़ में देखकर पहचान गई थी, और उसके यह वक्तव्य उसे देख कर ही कहे गए थे।
प्रत्युत्तर में उसके पति ने उसे क्या कहा और दोनों फिर किस बात पर हस पड़े, मुझे स्पष्ट सुनाई न दिया। लेकिन उसकी बातें मुझे बराबर स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वह कुछ दबे स्वर में कह रही थी, "तीन साल तक मेरे पीछे पड़ा रहा। बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाई थी !!"
मुझे उसकी बातें सुनकर हंसी आ रही थी। जिसे मैं बड़ी मुश्किल से रोक पाया था। अपनी बातों से वह बड़ी शालीनता से अपने पति को यह बता रही थी कि मेरा मित्र साइको है। सामने बैठी मेरी पत्नी मुझे देखे जा रही थी, कि मैं ऐसा कौन सा चुटकुला सुन रहा हूं कि हंसी आने के बावजूद भी मैं हंस नही पा रहा हूं?
मेरा वह मित्र मेरा मेजबान नहीं था। लेकिन एक वही बखूबी मेजबानी धर्म का पालन कर रहा था। हम दोनों को प्लेट ला कर दी और उसके बाद वह अपने लिए भी खाने की एक प्लेट और एक कुर्सी लेकर हाजिर हुआ।
इस बीच उसने उस लड़की की तरफ नहीं देखा था। जैसे वह उसे जताना चाहता हो कि अभी उसकी नजर उस पर नहीं पड़ी है।
लेकिन यह क्या उस लड़की ने उसे स्वयं टोक दिया , " अरे तुम !! ", फिर इसके बाद उसका नाम लेते हुए पूछा , " . . . कैसे हो? बहुत दिनों बाद दिखाई दिए? अच्छे तो हो ? "
वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। फिर बकायदा क्षमा मांगी कि उसने उसको पहले नहीं देखा। उसने भी कहा " हां मैंने भी तो बस अभी-अभी देखा है "।
दोनों बराबर झूठ बोले जा रहे थे, और मुझे फिर हंसी आ रही थी। मेरी पत्नी ने फिर से मुझे अजीब नजरों से देखा।
अब आप इस मुलाकात की कल्पना करें। जिसमें तीन साहित्यिक पर्सन जानबूझकर अभी-अभी देखने का और मिलने का एक दूसरे को आभास करा रहे हैं, जबकि वास्तव में वे पहले ही एक दूसरे को देख चुके थे। साहित्य के किन-किन आदर्श और लुभावने शब्दों का प्रयोग, और किस अंदाज से किया जा रहा होगा, आप अनुमान लगा सकते हैं। शायद उनके द्वारा पढ़ा गया सारा लिटरेचर अब एक दूसरे के काम आ रहा था।
औपचारिक अभिवादन के बाद उसने अपने पति को उससे खुद इंट्रोड्यूस करवाया। वही हिंग्लिश में, जिसका अविष्कार शायद इन्ही परिस्थितियों के लिए हुआ है,
" मीट माय हस्बैंड, यू नो ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री में ऑफिसर हैं, दिल्ली में, हम लोग वही रहते है, और यह हमारा बेटा बहुत बदमाश है, एक्चुअली वेरी नॉटी। बहुत शैतानी करता है।
कुछ अजूबे आपस में मिल रहे थे। दो पहले से ही एक-दूसरे से परिचित थे। एक के लिए दो अनुमानित अपरिचित थे। उनमें से एक, दूसरे के लिए कुछ-कुछ अपरिचित था। और तीसरे के लिए एक पूर्णतः अपरचित।
दो मिनट की हालचाल के बाद यह तय हुआ कि अपनी अपनी जगह बैठ कर खाना खाया जाए।
इस बीच मैंने महसूस किया कि मेरा वह मित्र कुछ अनुरागी नजरों से अभी भी उस लड़की को चोरी-चोरी, चुपके-चुपके देख रहा है। मैं यहां पर यह स्पष्ट लिख देना चाहता हूं कि मैं किसी भी प्रकार से उसकी भावनाओं को ना तो ठेस पहुंचा रहा हूं और ना ही उसकी चाहतों की किसी भी प्रकार से खिल्ली उड़ा रहा हूं। जो कुछ इस वक्त घट रहा था मैं उसे केवल आपके सामने हुबहू बयां कर रहा हूं।
वे तीनों अपने में मस्त थे, और हम अपने में। चुकी मेरा दोस्त बिल्कुल मेरे पास बैठा था, इसलिए मैंने उसे पहले की सभी बातें धीरे-धीरे दबी जुबां से बताई, की कैसे उसने अपने पति को तुझे पहले ही इंट्रोड्यूस करवा दिया था।
तू पागल था, जो समझता रहा कि वह नहीं जानती कि उसकी नोटबुक में तू ही कविताएं लिखता था। और उस दिन उसकी यह सभ्यता थी
कि उसने अनजान बनते हुए तुझे बता दिया कि उसे तुझ में कोई इंटरेस्ट नहीं है। आखिर वह लिटरेचर की स्टूडेंट थी, इतनी सभ्यता तो उसे निभानी ही चाहिए थी, और उसने बखूबी निभाई।
तू यह समझता रहा कि उसे कुछ नहीं मालूम और अगले एक वर्ष तक तू उसी ईमानदारी के साथ प्रयास करता रहा। कुल मिलाकर उसने लगातार तीन वर्षों तक तेरा मानसिक संतुलन बिगाड़ के रखा था, और शायद आज भी।
उसने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा जैसे उसे विश्वास ना हो रहा हो। तब मैंने उसे यकीन दिलाया की मैं तुझसे झूठ बोलकर क्या हासिल कर लूंगा। लेकिन जो सच है वह जानना आवश्यक है, क्योंकि उसके लिए तेरी भावनाएं सच्ची हैं और तुझे शायद हक बनता है, इसलिए बता रहा हूं।
वे तीनों अपना डिनर खत्म करके आइसक्रीम के इंस्टॉल की तरफ बढ़ गए थे। कुछ देर चुप रहने के बाद मेरे उस मित्र ने मुझसे पूछा कि क्या हम लोग भी आइसक्रीम खाएंगे ?
मैंने कहा, " क्यों नहीं, लेकिन शर्त यही है तुझे लेकर आनी पड़ेगी इस भीड़ में मैं तो जाने से रहा।"
वह हमारे एक वर्षीय बच्चे को गोद में लेकर उसी इंस्टॉल की तरफ चल पड़ा जहां पर अभी भी वे तीनों खड़े होकर आइसक्रीम खा रहे थे।
मैंने अपने पत्नी को उसका परिचय कालेज के मित्र के रुप में पहले से करवा दिया था। किंतु मेरी पत्नी की नजरें बराबर उसी का पीछा कर रही थी। मैंने हंसते हुए कहा, " चिंता मत करो, तुम्हारे बेटे को लेकर भाग नहीं जाएगा"
उसने बकायदा इंस्टॉल के पास एक कुर्सी की तलाश की, उस ने हमारे बेटे को उस पर बैठाया। आइसक्रीम दी और स्वयं वहीं पर खड़ा होकर खाने लगा। और मैं देख रहा था कि वह बहुत हंस हंस के उन से बातें भी कर रहा था।
लगभग 5 मिनट बाद वह वापस आ गया लेकिन उसके चेहरे में अब कोई उदासी नहीं थी वह बड़ा प्रसन्न चित दिखाई दे रहा था।
मैंने उससे पूछा, " यार बड़ा हंस-हस के बातें कर रहा था क्या बात है ? ", और तब उसने मुझे जो बताया, उसे सुनकर अब मैं हैरान था।
उसने मुझसे पूछा कि मैंने शादी की, तो मैंने कहा, तो क्या ! चार साल हो गए। तुम्हारे बेटे को बताया कि यह मेरा बेटा है। और वहीं से इशरा भी कर दिया, अरे भाभी जी की तरफ . . . कि ये मेरी पत्नी हैं।
अब मुझे उसकी वे सभी हरकतें याद आ रही थी कि किस तरह आइसक्रीम खिलाते समय वह बार-बार मेरे बेटे के सर पर हाथ फेर रहा था ,और उसने एक-दो बार हम दोनों की तरफ इशारा भी क्यों किया था।
" अरे ! क्या सचमुच !! और उसने विश्वास भी कर लिया" !!, मैंने अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए उस से पूछा था। और मैंने यह भी देखा कि मेरी पत्नी को उसकी बातें कुछ नागवार गुजर रही थी।
" तो क्या? क्यों ना करती ? कौन सा हम पड़ोसी हैं। वह भी जानती है और तुम तो जानते हो कि मैं यहां दूसरे शहर से आया था, रूम लेकर पढ़ रहा था, और लगभग पांच साल बाद हम लोग मिले भी हैं । इस बीच हमारी लाइफ में क्या कुछ गुजरा हमें एक दूसरे के बारे में क्या पता। इसलिए उसे विश्वास करना पड़ा।" , फिर वह हंस पड़ा।
मैंने कहा " बहुत शातिर दिमाग पाया है यार !!", और मैं भी हंस पड़ा।
" और इसके बाद, उसने तुम्हारे विषय में कुछ नहीं पूछा? मसलन क्या करते हो? कहां रहते हो ? और जिसकी शादी में तुम दोनों की मुलाकात हो रही है कहीं उस से वेरीफाई किया तो झूठे साबित न हो जाओगे? "
मेरी बात सुनकर इस बार वह और जोरदार हंसी हंस पड़ा, " नहीं, बिल्कुल नहीं। उसे कभी नहीं मालूम पड़ेगा । क्योंकि मैं इस शादी में गलती से आ गया हूं। दरअसल मुझे धोखा हो गया है।
इसके पास में ही जो फंक्शन चल रहा है न, एक्चुअल में मुझे वहां जाना चाहिए था। मैं तो यह भी नहीं जानता हूं कि यहां किसकी शादी हो रही है। तुम दोनों सही पते पर होगे, लेकिन मैं आज भी आउट आफ सिलेबस ही हूं . . ."
सच पूछिए हम दोनों वास्तव में अब मजे ले रहे थे । भरपूर आनंद। अब क्योंकि मेरी पत्नी को आगे और पीछे की कोई स्टोरी नहीं पता थी, इसलिए वह बोर हो रही थी, और मुझसे कहा, " चलिए देर हो रही है "
उसने बकायदा मेरी पत्नी से क्षमा मांगते हुए कहा, " भाभी जी आप बिलकुल बुरा मत मानिएगा। बस हंसी मजाक हो रहा था। आप इनकी पत्नी है, और रहेंगी"।
"जी ! . . आपका बहुत-बहुत धन्यवाद", मैंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
फिर उसने उसके द्वारा कही गई एक बात और बताई। वह यह कि मेरी पत्नी को देखने के बाद उसने इनकी सुंदरता की तारीफ भी की और यह भी कहा कि तुम्हारी पत्नी तो तुमसे कम उम्र की दिखाई देती है "
" तब ? तुमने क्या कहा ? ", मैंने कुछ उत्सुकता से उससे पूछा था।
और बदले में उसने उसे जलाने के लिए मैंने एक बात और जोड़ दी थी,
" हां बिल्कुल सही कहा, वह मुझ से नौ-दस साल छोटी हैं। हमने लव मैरिज जो की है ?"
"अरे वाह!! बहुत खूब !!! . . और भाई मुझे? मुझे क्या कहकर इंट्रोड्यूस किया था? "
" भाई, बड़ा भाई " , वह लापरवाही से "भाई" शब्द बकायदा मुझे ही लौटा रहा था।
अब मेरी शक्ल देखने लायक थी।
उसने उसे आगे बताया था कि चुकी मैं उसका दोस्त हूं , जैसा कि वह जानती ही है। यदि उसे मेरी शक्ल याद होगी तो? और मेरे घर आते-जाते उसने मेरी बहन से प्रेम कर लिया और उससे शादी भी कर ली, और इस वक्त वह यहां छुट्टियों में आया हुआ है, अपनी ससुराल।
" तूझे किसी फिल्म का स्क्रिप्ट राइटर होना चाहिए था? क्या ड्रामा रचा है भाई "
बड़ी बखूबी से, कितनी शालीनता और सभ्यता के साथ वह झूठ पर झूठ बोलता गया और अगले को उसने वही दिखाया जो वह चाहता था। मजे की बात कि सामने वाले ने वही देखा भी जो उसे दिखाया जा रहा था।
अपनी बातों से फुर्सत होकर जब हमने उस आइसक्रीम इंस्टॉल की तरफ देखा तो वहां वे तीनों नहीं दिखाई दिए। वे जा चुके थे। उसने खुशी- खुशी दूसरी बार आइसक्रीम खिलाई। बिल्कुल शालीन और सभ्य मेजबान की तरह।
और इस तरह से हम तीनों लगभग आधे घंटे और साथ रहे। ड्रामा खत्म हो चुका था। मेरे वास्तविक मेजबान जो कि काम धाम से फुर्सत होकर जब मिलने आए, तो उसने हाथ जोड़कर हम से विदाई ली, " चलता हूं ".
क्योंकि मेरे मेजबान के लिए वह आउट ऑफ सिलेबस था। कहीं मेजबान ने मुझसे उसका परिचय पूछा तो क्या बताऊंगा ? यही सोच कर मैं उससे बोला , " हां . . हां चल पान खाते हैं फिर चले जाना"
मैं कुछ कदम उसके साथ चला और उसे बताया की झूठ ही सही लेकिन उसने अंतिम जानकारी जो उसे दी थी वह बिल्कुल सही दी थी।
" सचमुच, " भाभी जी तुमसे . . .
" हां, सचमुच दस साल छोटी है !! . . .और लव मैरिज वाली बात भी सही है . . ."
वह अपनी बिंदास हंसी हंसा, " लगता नहीं दोस्त ! ऐसा तो हमारी लिटरेचर की दुनिया में होता है। फैबुलस यार !! सो रोमांटिक !!! पर लगता नहीं है . . . ", उसने अपने दिल पर किसी आशिक की तरह हाथ रखा और फिर उन्हीं के अंदाज में बोला था। उसने आगे पूछा, " अच्छा बताओ यह हुआ कैसे ? "
" मैंने कहा न, अंतिम बातें तुमने सभी सही सही बताई हैं। स्टोरी वही है, लेकिन तुम्हारी स्टोरी में जो तुम हो वह एक्चुअली में मैं हूं। "
ओह गॉड, मतलब अनजाने में मैंने उससे सब कुछ सही सही बताया था ? प्यार तो ठीक है लेकिन उम्र का फासला ? लगता नहीं है यार ?", उसने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा था।
मतलब? मेरी तारीफ कर रहे हो या भाभी की बुराई ? "
वह हंसते हुए बोला था , " लिटरेचर तो तुम्हें पढ़नी चाहिए थी !!"
" अब क्या सोचा है ? " मैंने पूछा था।
किस बारे में ?", वह अनभिज्ञ बनता हुआ बोला था।
" यही कि, जैसे कि तुमने बताया था कि तुम अभी तक कुंवारे हो, शादी नहीं की। कब करने का इरादा है ?"
" बहुत जल्द, अब कर लूंगा यार, वैसे भी यार दुनिया आगे निकल गई मैं पीछे रह गया", उसकी आंखों में चमक थी।
कुछ देर चुप रहने के बाद वह संजीदा आवाज में बोला, " जानते हो, मैंने उसे बहुत चाहा। आज तक, या यूं कह लो कि अभी कुछ देर पहले तक, मैं उसे भूल नहीं पाया था। कुछ अच्छे रिश्ते भी यही सोच कर मना भी किए थे। वही सोच, कि क्या हुआ यदि उसने मुझे नहीं चाहा तो ? मैं तो चाहता हूं न ।
उसने मुझसे प्यार नहीं किया तो क्या हुआ, लेकिन मैं तो उससे करता हूं न।
उसकी दुनिया में मैं कहीं नहीं, लेकिन मेरी पूरी दुनिया तो उसी के लिए है। मैं दिन-रात यही सोचता था। इनफैक्ट तुम्हारे यह बताने के पहले तक कि वह मुझे जानबूझकर इग्नोर कर रही थी, यही सोचता था। एक बार भी उसने मुझे सीधे तौर पर कह दिया होता तो शायद मुझे इतना बुरा नहीं लगता जितना कि अब सब कुछ जानने के बाद लग रहा है।
मतलब मैं उसके लिए खिलौना था, और वह बराबर मुझ से खेलती रही। मेरे सामने ना सही लेकिन आखिरकार उसने अपने पति से पहले ही सब कुछ बता दिया था। यह मेरी खिल्ली उड़ाना नहीं तो और क्या था। यही कि मैं उसके लिए पोएट्री लिखता था उसका दीवाना था। क्या जरूरत थी यह सब बताने की ?"
" शायद इसलिए कि वह आज भी अपने आप को सेफ जोन में रखना चाहती थी। हो सकता है कि तुमसे कोई ऐसी हरकत हो जाती या मुंह से ऐसी कोई बात निकल जाती, जिसमें उसके पति को किसी भी प्रकार की शंका उत्पन्न हो जाती? तब वह उससे कह सकें कि मैंने तो तुम्हें पहले ही बताया था, आई एम नॉट सीरियस अबाउट ही।",
मैंने उस लड़की का पक्ष इस लिए लिया की अब वह उसके इस अंदाज को इग्नोर कर सकें। इसलिए नहीं कि उसके मन में उस लड़की के प्रति कोई सेमपथि जागे।
वह आगे कह रहा था,
" यदि वह संजीदा होती, कुछ इंसानियत होती, उसके दिल में मेरे लिए कोई भी जज्बात होते तो इस तरह पति के सामने मुझे प्रस्तुत नहीं करती। कौन सा यहां में उसकी पोल खोल देता ? जबकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि मैं तो यह भी नहीं जानता हूं कि वह जानती है कि मैं उस से प्रेम करता हू, . . .चलो अच्छा ही हुआ मेरा एक भ्रम टूटा "
" भ्रम? कैसा भ्रम ? ", मैंने पूछा।
" यही कि, जरूरी नहीं कि किसी के लिए हमारे हृदय में जो जज्बात हैं, वही जज्बात उसके हृदय में हमारे लिए भी हो ? एक सामान्य सी बात है, और जिसे समझने में मुझे 5 वर्ष लगे ?"
अंत में उसके द्वारा कहे गए कुछ शब्दों ने इस कहानी को एक मुकम्मल मंजिल दी।
" लेकिन सोचता हूं आज उस में और मुझ में अंतर ही क्या रह गया ? एक समय सब कुछ जानते समझते हुए उसने मुझे उपेक्षित रखा। मुझ में किसी भी प्रकार की अभिरुचि नहीं दिखाई, न ही जाहिर होने दी। और आज भी खुद को एक सेफ जोन में रखा।
बस यही बात मुझे सोचने पर विवश करती है। क्या उसे विश्वास था, क्या उसे इस बात का आज भी इंतजार था, कि मैं जब कभी भी उससे दोबारा मिलूंगा तो किसी न किसी बहाने उसके लिए कोई कविता कहूंगा या उसी तरह लिख कर दूंगा। बिल्कुल चुपके से, किसी भी बहाने से।
यार जब मैंने उसे तुम्हारी पत्नी को अपनी पत्नी, इंफैक्ट पूर्व में रह चुकी प्रेमिका के रूप में बताया तो उसने मुझे गौर से देखा था। उसकी निगाहें जैसे पूछ रही हो, " तो बताओ जो कुछ पहले गुजरा वह क्या था ? "
कभी उससे प्यार किया लेकिन उसे बताया नहीं और आज जो कुछ बताया, वह वास्तव में कुछ था ही नहीं।
हम जिसे प्यार करते हैं, चाहते हैं, अपना समझते हैं। उसे सदैव एक सेफ जोन में रखते हैं। खुद को यकीन दिलाते हैं कि कोई ना कोई वजह रही होगी, तभी तो उसने ऐसा किया।
उसी की तरफ से खुद ही सारे एक्सक्लूजेस देते हैं। उसकी सारी मजबूरियों को, उसकी सभी बेवफाईओं को हम सपोर्ट करते हैं।
और शायद इसीलिए हम एक दूसरे के लिए हमेशा आउट आफ सिलेबस ही होते हैं !!"
मुझे अफसोस रहेगा कि मैंने आज उस से झूठ कहा, और शायद उसे इस बात का कभी न कभी अफसोस होगा कि उसने मुझसे कुछ नहीं कहा।
" मुझसे कभी बात मत करना। कभी फोन न करन, अपना चेहरा मत दिखाना", ऐसा कह कर भी हम क्यों सिर्फ और सिर्फ उसी की एक मुलाकात का इंतजार करते हैं ? उसके ही एक फोन का इंतजार करते हैं ? हमेशा उसी के होने का इंतजार करते हैं, जो हम आज नहीं चाहते ? क्यूं ?? क्योंकि हम उसे प्यार करते हैं।
" स्वीकार किए जाने योग्य तथ्यों को हम सदैव ही अस्वीकार करते हैं। और शायद इसलिए जिन्हें हम स्वीकार करते हैं, वे तथ्य हमारे जीवन का सबसे बड़ा भ्रम होते हैं। "
भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएं लेकर वह एक बार फिर मुझसे जुदा हुआ। तीनों मित्र अलग-अलग हालात में अलग-अलग समय मिले और फिर एक दूसरे से जुदा भी हुए। तो अब यहीं कहानी का अंत होता है, किंतु क्या सचमुच ?
मेरे मेजबान ने हमें अपने साधन से हमारे घर तक हमे छोड़ा।
उस दिन मानवीय संवेदनाओं की दो अलग-अलग तस्वीरें मेरे सामने आई थी।
अपनी तरफ से कहानी को समाप्त करने से पहले मैं वहीं पर आता हूं जहां से मैंने इस दूसरे भाग की शुरुआत की थी ।
अपनी उसी बात पर जिसे मैंने कहा था कि अपनी कवर्ड में बंद कर ताला लगा लीजिए , " लड़के ऐसे ही होते हैं या लड़कियां ऐसी ही होती हैं ".
इस विचारधारा को आप हमेशा के लिए उसी कवर्ड में बंद रहने दे। जरूरी नहीं की यह अवधारणा सही हो।
अक्सर हम मौन रहकर अपने आप को सेफ जोन में रखते हैं कि कभी बात उठी भी तो कह देंगे, कि हमने तो कुछ कहा ही नहीं था। तुमने सोच लिया तो इसमें मैं क्या करती या करता। लेकिन ?
लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि सामने जो आप के विपतीत सारे इल्जामात के साथ खड़ा है उसके पास आपकी तरफ से अपने ही इल्जामात के सारे एक्सक्यूजेस भी है ? और इस तरह वह हमेशा आपको सेफ जोन में रखता हैं, क्योकि वह आपसे प्रेम करता हैं , आपको चाहता है। शायद दिल की गहराईओं से ?
तब आपको किसी सेफ जोन की जरूरत है क्या ?
और इसके बाद भी यदि आप अपनी कवर्ड खोल मेरी कहीं उस बात को बाहर निकालना चाहे तो मैं नहीं रोकूंगा। कोई और विचारधारा बनाना चाहे तो भी मैं नहीं रोकूंगा। मेरा काम था कहानी कहना और मैंने कह दी।
कहानीकार जो ठहरा।
Shailendra S. "Satna"
❤️❤️❤️❤️❤️🌹🌹🌹🌹💐🦚🦚🦚🦚🦚🪔🦚🦚🦚🦚🦚
ReplyDeleteक्या बात है सर! क्या सचमुच आपकी कल्पना शक्ति है या फिर ? बहुत अच्छी कहानी जो यथार्थ लगी और अच्छी सीख दे कर गई।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteलीजिए, एक बार फिर
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