मुझे याद है, अच्छे से याद है। तुम जहां अक्सर अपनी राते गुजारते हो, वहां सामने ही एक मंदिर है। उस मंदिर को छाया सागौन के सूखे दो पेड़ देते हैं। तुमने बताया था, और एक रोज उनकी एक तस्वीर भी भेजी थी।
मैं मानती थी कि तुम सेंसेटिव पर्सन हो, जो प्रकृत यानी नेचर की भाषा को समझते हो । तब तुम मेरा नेचर क्यों ना समझ पाए ?
शायद जहां तक मुझे याद है कि तुमने उन पेड़ों और उस मंदिर पर एक कविता भी लिखी थी - -
मैं एक ऐसे सुनसान वीरान इलाके में रहता हूं,
जहां तुम्हारे दिल की आवाज नहीं पहुंचती,
न मेरी आवाज तुम तक जाती है,
सूख गए हैं वे दरख़्त भी,
जिनकी सरपरस्ती में कभी देवता रहा करते थे।
गुजर रही है मेरी जिंदगी भी,
इन्हीं सूखे दो दरख़्तों की तरह,
हां ! कभी मेरी सरपरस्ती में भी,
कुछ जिंदा इंसान रहा करते थे।।
. . . .
चाहत से भी बड़ी चाहत थी तुम्हारे मन में मेरे लिए। मैं समझती हूं, ऐसा भी नहीं है कि मैं उन दिनों नहीं समझती थी।
लेकिन हम दोनों ही उस चाहत को कोई नाम नहीं दे सके। जिस तरह तुम मजबूर थे, उस तरह मैं भी मजबूर थी। तुम्हें इतना तो समझना ही चाहिए था।
बात आकर वहीं ठहर गई . . .
किसने किसको सजा दी,
कौन किसका गुनहगार ठहरा।
मन के सभी आवेगो को समेटकर, यदि मैं आज तुमसे कहूं कि तुम मेरे लिए कितनी अहमियत रखते थे, जो कि शायद आज भी रखते हो। "हां ! अजनबी तुम बहुत प्यारे थे मेरे लिए", तो गलत नहीं होगा।
तुम्हारे मन के करीब आना और इसका अहसास होते ही खुद को समेट लेना ठीक उसी तरह था जैसा कि तुमने लिखा -
साहिल पर खड़ी तू बेखबर,
लहरों से जूझता मेरा मुकद्दर,
क्या जरूरी था ?
तो जान लो मेरे प्रियवर ! जरूरी था, समाज की कोई मान्यता या मर्यादा न टूटे, इसके लिए न सही, लेकिन उन रिश्तो के लिए बेहद ही जरूरी था, जिन्हें मैं पूरी वफा और इमानदारी के साथ जी रही थी, निभा रही थी।
एक उद्दाम और उच्चश्रृंखल लहर की तरह मैं तुम्हें चूम कर फिर अपनी ही दुनिया में लौट गई। और किनारे पर मैं नहीं, तुम खड़े रह गए, बेखबर से। तुम मुझे समझ ही कहां पाए कि मैंने चुपके से ही सही तुम्हें अपनाया था।
अंगीकार किया था, स्वीकार किया था! आश्चर्य हो रहा है न? पर यही सच था, है , और रहेगा मेरे दोस्त।
' ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार ' बच्चों की पोयम मैं जीवन के रहस्य को देखने वाले, तुम्हें तो यह समझना चाहिए था कि ' हाउ आई वंडर व्हाट यू आर '..
आह ! तुम कहां गए . . . . !
मेरी बेरुखी को याद करके,
कोई आंसू तो आया होगा,
तुम्हारी पलकों में भी।
मुझ तक ना पहुंच,
ठहर गया होगा कहीं शायद,
जब भी याद किया होगा तुमने मुझे ।।
यूं ही बेवजह तो कोई ,
रोता नहीं किसी के लिए ।
तुम कहां गए . ...... हां .... तुम कहां गए
To be continued . . .
Shailendra S.
Bas yado me अश्क बन के बह गए। बहुत ही उत्कृष्ट 💯💢💢💢💌🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteBas yado me अश्क बन के बह गए। बहुत ही उत्कृष्ट 💯💢💢💢💌🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteThanks RAAZZ
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