Sunday, May 9, 2021

द विश - 2

द विश


   उसने एकदम सूनी-सूनी नज़रों से मेरी तरफ देखा था। 

कुछ कहोगे नहीं ?

    क्या कहूँ ? - उसने सच कहा था, वह तो कह चुका था ___ अब क्या कहता ?

   उस दिन उसने भावुकता में मुझसे कह तो दिया लेकिन मेरी जीवन शैली और मेरा वैभव देखकर वह पीछे हट गया था। सामान्य घर का एक लड़का जिसके उज्जवल भविष्य का अब तक कोई आधार नहीं,  अपनी अनिश्चित जीवन शैली और भविष्य में होने वाली स्ट्रगल में मुझे कैसे शामिल कर लेता। इसीलिए तो मैंने कहा न कि उसकी मैथ्स मजबूत थी।

    तभी तो मेरी सगाई पर वह अपने ही शहर से दूर चला गया था। उसने अपने आप को गिल्ट महसूस किया होगा, शायद। और क्या केवल मैं इसलिए उसे अपनी जिंदगी से खारिज कर दूं ?

मैं कुछ देर यूं ही चुपचाप उसे देखती खड़ी रही और वह टेबल में सर झुकाए बैठा था। मैंने उससे इतना ही कहा,

  " भूल जाओ सब कुछ, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है ....

    मैं जाने के लिए पलटी, चली ही जाती यदि उसने पीछे से मेरी कलाई न पकड़ ली होती - ' सॉरी !"

मैंने उसी की भाषा में उस से पूछा था,  सॉरी ! किस बात के लिए ?

     फिर वह बच्चों की तरह रो पड़ा। मैंने पलट कर उसके आसूं पोछे - ' तुम ये क्या कर रहे हो ... कही अब तुम उस दिन का बदला तो नहीं ले रहे मुझसे ? '

    मैं दिलासा उसे दे रही थी या कि खुद अपने आप को ? पता नहीं ! उसका सुबकना अब हिच्किओं में बदल गया था। मैंने अपनी हथेली उसके होठों में रख दी - ' न ... रोते नहीं ! जानते हो मेरे दोस्त __ हमने व्यापर किया __ लेन - देन किया। तुमने मुझे साइंस पढाई,और मैंने तुम्हे लैंग्वेज। हम दोनों ही सफल रहे, यही हमारी सबसे बड़ी सफलता है। तुमने जो मेरे प्रति महसूस किया, कह गए। मुझे खुशी है कि तुमने अभिव्यक्ति की भाषा सीख ली। लेकिन अब इसका क्या करोगे ? मैं तो जीवन की कमेस्ट्री पढ़ गई न।  

     जीवन में, इस कमेस्ट्री के समीकरण को बैलेंस तो करना ही पड़ेगा। अच्छा तुम ही बाताओ __ एक लेडी, लेडीज परफ्यूम का यूज क्यूँ करती हैं ? क्या इसलिए कि उसकी खुशबू उसे पसंद होती है , नहीं। 

    हम हमेशा अपने ऑपोज़िट को आकर्षित करना चाहती हैं, यही प्रकृति का शाश्वत और अटल नियम है। 

    क्या यह कम है ? मैं यदि कुछ न भी कहूँ , तो क्या मैं इस शाश्वत-अटल नियम को बदल सकती हूँ। हां, कल जहाँ तुम थे , वहां आज मैं खड़ी हूँ ...

    तुम्हारे ही द्वारा समझाए गए सारे वैज्ञानिक तथ्यों के साथ, बिलकुल तुम्हारे ऑपोज़िट हूँ। मैंने तुमसे कमेस्ट्री पढ़ी। जीवन की कमेस्ट्री में भावनाओं का कोई मोल नहीं मेरे दोस्त। 

     प्यार, फीलिंग्स, आंसू ___ इनका कोई अर्थ नहीं। एक कैमिकल रियेक्सन, एक परफेक्ट साइंटिफिक रीजन। यहाँ तक की प्रेम की अनुभूति का होना भी एक प्रकार से  हार्मोनिक कैमिकल रियेक्सन का परिणाम है। याद करो .... यही तो समझाया था तुमने मुझे।

    वह चुप था। मैंने मन बदलने के लिहाज से कहा - ' आओ छत पर चलते हैं '

  वह धीरे - धीरे मेरे साथ चल पड़ा।  कुछ देर बाद ही हम छत पर थे।  चारो तरफ शहर की जगमगाती रौशनी और ऊपर झील-मिल सितारों से भरा नीला आसमान।  

    मैंने उससे कहा था - ' कितना अच्छा लग रहा है ____ '

- हां - उसने फीकी मुस्कान के साथ कहा था - ' हां , सब कुछ ___ कितना अच्छा लग रहा है.  ये सुनो ! तुम्हे अपनी वो कविता याद है ? _____ वही जो 

- ' कौन सी ? ---- ओह ! वही वाली जो दशवी में तुम्हे इम्प्रेश करने के लिए ___

- ' हां, ___ बिलकुल, वही वाली  __ तुम्हे याद है ? 

- 'हां, कुछ- कुछ याद है, लेकिन अब ये न कहना की सुनाओ__

-; हां तो !! ___ सुनाओ न ?

- 'अब इतनी भी याद नहीं कि ___

-'मुझे याद है __

-'क्या !! तुम्हे __ तुन्हे वो स्टूपिड सी  कविता याद है ? ओह गॉड ! तब की याद  है !!! ' -मैं आश्चर्य  चकित थी - ' यार काफी अच्छी मैमोरी है तुम्हारी ___ जिसने लिखी, उसे याद नही , और तुम्हे याद है !! ___ हूं  तो चलो सुनाओ __ 

- ' नहीं , पहली लाइन तुम कहो ---

-' हां , वो तो याद है __ पहली लाइन क्या थी --- क्या थी __ हां __  ' जब हार गए दिल तुमसे , सब जीत गए भी तो क्या  ---------- कुछ ऐसी ही थीं  न ?

हाँ , 

  "आगे की अब तुम सुनाओ तो जानू कि तुम्हे याद है ....

अगले ही पल उसने अपनी आंखें बंद की जैसे अपने आप को समेट रहा हो और आगे वह कह रहा था , 

बंधनों में बंधी रही तुम, 

मै आज़ाद परिन्दे सा.

गुजर गया दिल के आँगन से, 

टूट गिरा एक, कहीं  कुछ ,

नील गगन के तारे सा.

बंधनो में बंधी रही तुम, 

मैं आज़ाद परिन्दे सा. 

जब हार गए दिल तुमसे, 

सब जीत गए भी तो क्या ।

     मैं खो सी गई। उसके कहने का अंदाज़ क्या कहूं ! एक - एक शब्द जैसे उन्हें जिंदगी मिल गई हो। 

- ' है न याद ? कही कुछ भूला तो नहीं ?

- ' ओह ! नहीं यार _ _ मुझे याद आ गए , बिकुल वही शब्द हैं __ जानते हो, जब तुम्हे इंप्रेश करने के लिए कुछ लिखना चाहा तो पता नहीं ये शब्द कैसे लिख गई।  आज इतने सालों बाद __ तुमसे सुना तो __ अब लग ही नहीं रहा  कि _ _ इन शब्दों को कभी  मैंने ही लिखा था। 

     उस समाय तो बस तुकबंदी की थी ! तुम्हारे होठो पर आये तो सज गए. इन्हे इनके अर्थ  मिल गए _ _ आज तो मैं तुमसे इम्प्रेश हो गई. !! __ हां सच _ _ अब तो लगता है, तुम सुनाते रहो और मैं सुनती रहूँ _ _ उस दिन कहाँ पता था कि मैं _ _ अपनी ही किस्मत  _ _

- ' अपनी नहीं, हमारी _ _ और किस्मत !! कब से मानने लगी तुम _ _ हूँ ?

- ' हां , सच कहते हो, नहीं मानती थी _ _ लेकिन आज अपने ही लिखे शब्दों को जी रही हूँ _ _ कभी चाहा कि तुम कुछ कहों, तो तुम खामोश रहे _ _ और जब तुमने कहा तब तक _ _ 

- ' जनता हूँ __ समझ सकता हूँ _ _ मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना चाहिए था _ _

- ' नहीं _ _ नहीं ये बात नहीं है, कह गए तो अच्छा ही हुआ _ _ कम से कम मेरे लिए तो अच्छा ही है _ _ अब खुद को शायद समझा ले जाऊ कि कभी मैंने जो चाहा वो पाया _ _ हाँ वह मुझे मिला !!

   तभी आसमान से एक तारा टूटा, ठीक सामने। 

        ' देखों ___ अरे वो देखो ___ एक तारा टूटा ___ ' - मैंने उसे किसी छोटे बच्चे-सा झंझोर दिया।  

    लेकिन यह क्या ! उसने आखें बंद कर ली। जैसे वह टूटते तारे को देख कोई विश मांग रहा हो। जब उसकी आँखें खुली तो मैंने पुछा - ' कोई विश मांग रहे थे क्या?  '

    उसने हाँ में मुस्कुरातें हुए अपना सर हिलाया।  मैंने गौर किया कि उसकी मुस्कान में पहले जैसा फीकापन नहीं बल्कि एक जिंदादिली झलक दिख रही है. 

- तो क्या मांगा तुमने ? 

- यही की आसमान से टूटा यह तारा अकेला न रहें -

- तो क्या दूसरा भी टूटेगा ? _ _ अब देखो ! ये तो बिलकुल भी न कहना --- हाँ.  कितने अंधविश्वासी होते जा रहे हो तुम _ _ 

- ' हाँ जरूर ___ हां , यदि यह दूसरा न हुआ तो __ दूसरा भी अवश्य टूटेगा।  और मुझे कह रही हो अंधविश्वासी ...!! तो अभी किस्मत यानि डेस्टनी की बात किसने की __ बोलो ? 

- ' हे भगवान ! तुमसे तो बातो में कोई जीत नहीं .....

    मेरी बात अधूरी रह गई ___ मैंने देखा, अगले ही पल दूसरा तारा टूटा था।  

    विज्ञान भी कहता है, इस श्रष्टि का प्रत्येक कण अथवा पार्टिकल किसी न किसी दुसरे पार्टिकल के बांड या अनुबंध में है । जहां भी होंगे, एक-दुसरे को आकर्षित करेंगे। 

   अब चाहूँ तो इस कहानी को यही छोड़ा दूँ , लेकिन _ _ तब शायद अधूरी रह जाए. इसलिए आगे कहती हूँ -

   'आंटी ! इसका ध्यान रखियेगा  ' - एक माँ से उसी के बेटे के लिए मेरे ये अंतिम शब्द थे। 

फिर मैं वह से चली आई।  दूसरी सुबह _ _

      "  वह शहर ! छूट सा गया. जिंदगी के रास्तें में कहीं दूर, कहीं पीछे रह गया शायद ...... लेकिन उसकी याद है कि दिल से जाती नही ..... वह अक्सर याद आ ही जाता है ..

       मैं ने कमेस्ट्री से पी.जी. किया फिर पी.एच.डी.। आज कालेज में कमेस्ट्री की प्रोफेसर हूँ।  जिंदगी की इस भागम-भाग में .... मैं अपने लिए तन्हाई के कुछ पल निकलती हूँ। फिर अपनी पलके बंद कर लेती हूँ  ..... और तब !! मैं आज भी देखती हूँ कि  ......

        " उस दिन ..... आसमान के टूटे दो सितारे,   दूर उसी शहर की उसी छत में ...... एक-दूसरे के सामने खड़े एक-दूसरे को देखते हुए उसी तरह मुस्कुरा रहे हैं। चारो तरफ 'शहर की जगमग रौशनी है, और उनके सर के ऊपर झिल -मिल  सितारों भरा नीला आसमान है। 

और  ...... और हर रात उसकी ' वह विश ' पूरी होती है. 

बस यहीं तक। 

शैलेन्द्र एस. 'सतना'

2 comments:

  1. लाजवाब कहानी सर, जो किसी बंधन में नहीं बांधती, शायद यही इसकी खासियत है।

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