Thursday, August 12, 2021

तुम कहां गए 26

    अनंत ब्रह्मांड के विस्तार में यदि पृथ्वी एक कण मात्र है, तो हमारा अस्तित्व? जरा सोचो तो क्या होगा, मेरे दोस्त ? हमारा मन और उसमें उत्पन्न इच्छाएं, कितनी सार्थक और महत्वपूर्ण हो सकती हैं, तब उनका विस्तार क्या होगा? 

    एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए कितने आयाम पार करने होंगे? मन के इस विस्तार की जटिलता में सार्थकता क्या है? क्या कभी सोचा है तुमने? 

    मैंने जब भी सोचा, तो मन की सारी आतुरता, व्याकुलता और जटिलता को एक शांत सरोवर की तरह स्थिर पाया। ब्रह्मांड के अनंत विस्तार को एक अदृश्य कण में परिवर्तित होते हुए देखा। 


   जब मैं दिन भर के काम से फुर्सत होती हूं और तब भी जब अपने आप को थका हुआ महसूस नहीं करती , तब मैं अक्सर इन सब के बारे में सोचती हूं, और चाहती हूं कि मैं सोचते सोचते इतना थक जाऊं कि जब सब कुछ एक बिंदु में समाहित हो जाए तब मैं उसे अपने अंदर महसूस करू। एक छोटा सा बिंदु जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड का यह अनंत विस्तार समाहित है।


    हम अपनी कल्पना में एक संभावना की तलाश करते हैं। संभावना ! किसी भी कार्य के होने या ना होने की। तब मैं अक्सर सोचती हूं कि तुमसे फिर मुलाकात होगी या ना होगी? मैं कितना भी थक जाऊं लेकिन अपनी इस कल्पना में अपनी इस संभावना की तलाश जरूर करती हूं, मेरे दोस्त। शायद इसीलिए तुम से जुड़ी हुई हर एक बात याद करती हूं। 


   कभी-कभी हम जिंदगी से जुड़ी हर एक छोटी सी छोटी बातों को याद करते हैं और कोई बड़ी घटना भूल जाते हैं। मैं आज तक ना समझ पाई की मेरे जीवन की ऐसी कौन सी बड़ी घटना थी कि तुम मुझे छोड़ कर यूं ही चले गए। जबकि छोटी-छोटी ऐसी ना जानी कितने अनगिनत घटनाएं हैं, जो चीख चीख कर कहती हैं कि हां तुम्हें मेरे आस-पास ही होना चाहिए था। 


    न भी हो पास तो भी क्या? मेरे अंतर्मन की आवाज तुम तक तो पहुंचती ही होगी? इस आवाज को सुनकर भी तुम यदि अनसुना करते हो या दिखावा करते हो, तो फिर मैं तुम्हें क्या कहूं क्या लिखूं? यदि तुम अपनी कल्पना में अनंत संभावनाओं की तलाश करते हो तो कर लो, मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं।


    लेकिन जरा इतना तो बताओ कि अनंत संभावनाओं में तुम्हारी कल्पना के सभी बिंदु एकाकार हो मुझ में ही समाहित हो गए तो फिर क्या करोगे ? मैं विशाल सागर नहीं एक शांत दरिया हूं इतना शांत कि यदि उसमें एक छोटा सा पत्थर भी गिरेगा तो उठने वाली जल तरंगे साहिल से जरूर टकराएंगी। यदि दरिया में हलचल हुई तो किनारे भी अवश्य प्रभावित होंगे। यह जितनी बार होगा किनारे टूटेंगे। दरिया का विस्तार होगा तब साहिल पर खड़े तुम कहां जाओगे? 


   एक ना एक दिन तुम्हें डूबना ही होगा और तब मैं तुमसे पूछूंगी बचा सको तो बचा लो अपने आप को। कर सको तो कर लो खुद को मुझसे जुदा। तब तुम्हारे पैरों तले जमीन न होगी और तुम पूर्णतः मुझ पर आश्रित होगे। मुझ में डूब जाने के लिए कितने विवश। और तब मैं तुम पर हंसूगी -.     हा हा हा
to be continued
Shailendra S.

1 comment:

  1. न मालूम था, शायद अब मै भी समझी में की गहराई को

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