Wednesday, July 7, 2021

तुम कहां गए 21

   स्वयं पर मोहित होना अज्ञानता की पराकाष्ठा है। 

    पंच तत्वों से बने स्थूल शरीर की उपेक्षा नहीं की जा सकती। आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि मानव के सूक्ष्म शरीर के निर्माण में सम्मिलित 18 तत्त्वों में सभी प्रकार की इंद्रियां, काम, क्रोध, मद, लोभ इत्यादि जैसे तत्व भी सम्मिलित हैं। 

   स्थूल और सूक्ष्म शरीर की उत्पत्ति का एकमात्र कारण जीव और उसकी आत्मा में पारस्परिक संतुलन है, जो प्राकृतिक है।

       इसलिए इसे सभी शरीरों का कारण भी कहते हैं।  शरीर की परिभाषा इतनी सरल कहां कि हम उसे सही-सही समझ सके, मेरे दोस्त। 

      24 तत्व से बने स्थूल, सूक्ष्म और कारणशरीर यानी प्राकृतिक शरीर। अब जरा मेरी लिखी बात पर ध्यान पूर्वक विचार करो -

   "जिसे देखकर मन में उठी तरंगे, आपके शरीर को हिला कर रख दे " - 

    क्या अब भी कहोगे कि मैं भौतिकता से परे नहीं सोचती हूं ? मैं विश्वास करती हूं, कि प्रत्येक वैराग में राग स्वत: ही समाहित है। इसके बगैर वैराग्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती। 

     प्रेम इतना सरल नहीं है, मेरे दोस्त। उस तक पहुंचने के लिए शरीर के इन सभी 24 आयामों को पार करना होता है। संपूर्ण शरीर को वीणा के तार की तरह झंकतृत करना होता है। 

       यह सब इतना सरल कहां होता है मेरे दोस्त। किन्ही शब्दों में उसकी परिभाषा नहीं दी जा सकती। उसे शब्दों में नहीं कैद किया जा सकता है। यह तो एक अनुभूति है। एक एहसास है तो फिर इसकी अभिव्यक्ति कैसे हो ?
    
      प्रेम की अभिव्यक्ति के पूर्व इंसान को कई कई बार सोचना चाहिए। आई लव यू और मैं तुमसे प्रेम करता हूं या करती हूं, इत्यादि कहना जितना आसान और सरल लगता है, उसे समझना उतना ही कठिन होता है।

    शायद इसलिए मैंने भी कभी तुमसे नहीं कहा या तुम्हें कभी जताने की कोशिश नहीं की कि मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या है? कैसे बता सकती थी कि लफ्जों से बयां कर सकती थी। 

       यदि उस अनुभूति को मैं महसूस कर सकती थी और शायद जिसे तुम भी महसूस करते रहे होगे। तो उसकी अभिव्यक्ति का मात्र एक जरिया था कि हम स-शरीर भी मिले होते हैं। 

    और शायद इसीलिए मैंने पूर्व में लिखा है कि कभी-कभी मैं चाहती थी, मेरे मन में आता था कि मैं तुम्हें गले से लगा लूं ! तुमसे लिपट जाऊं !! बस तुम्हारी ही होकर रह जाऊं।

    तो आज ये कहना कि मेरे मन के दर्शनशास्त्र भी तुम और मेरे इस तन के भौतिक शास्त्र भी तुम, पर्याप्त नहीं है?

    संवेदनाओ को परिभाषित करना आसान नहीं, एक छोर पकड़ो तो दूसरा अस्पष्ट और अपरिभाषित सा दिखाई देने लगता है। 

     शार्ट में लिखूं तो सो कन्फ्यूजन।

      टूटने के बाद बिखरना एक नियति है। बिखर कर फिर एकत्र होना, क्रिया के फलस्वरुप होने वाली प्रतिक्रिया है। 

    कभी तुम्हारे टूटने की वजह मैं बनी, तो यदि आज कहीं तुम संभल रहे होगे, अपने आप को समेट रहे होगे, पुनःस्थापित कर रहे होगे, तो इनकी वजह भी मैं ही हूंं,  मेरे दोस्त। 

    प्रश्न यह नहीं है कि मैं कितनी सही हूं या तुम कितने गलत। प्रश्न तो यह है कि यदि इस वक्त मैं सही हूं तो उस वक्त मैं गलत कैसे हो सकती हूं ? जबकि तुम मानो या ना मानो, मैं जो आज हूं वही कल भी थी, सच बिल्कुल नहीं बदली हूं।

     यदि काम क्रोध मद और लोभ मानवी विकार है तो इन से परे जाने के लिए इनके दायरे में आना भी आवश्यक है। श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति अर्थात काम होता है। जब हम किसी को अपलक अर्थात एकटक देख रहे होते हैं तो मन में ये स्थाई भाव भी जागृत होते हैं और प्रकृत के अनुपम श्रृंगार की रचना करते हैं। 

   अंतर्मन में स्थाई शोक की भावना से ही करुण रस की उत्पत्ति होती है। हमारे शोक संतृप्त हृदय को जो संभाल सके उसका निदान कर सके वह करूणानिधान अर्थात ईश्वर होता है। 

    क्रोध की संपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए शिव का रुद्र अवतार भी आवश्यक है। यदि यह मानवीय विकार हैं तो इनके बिना हम ईश्वर की प्राप्ति कैसे कर सकते हैं ? अर्थात उसे पाने के लिए इन विकारों का होना भी आवश्यक है।

क्या मैं ऐसा मानती हूं ?

    नहीं, बिल्कुल नहीं। इनके बगैर भी हम ईश्वर तक पहुंच सकते हैं और वह एकमात्र पथ प्रेम है, स्वयं जिसके अधीन ईश्वर भी है।

    यदि इस पथ पर चलने पर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है तो फिर तुम्हें क्यों नहीं, मेरे दोस्त ? तुम्हे क्यूं नही ??
To be continued....
Shailendra S.

No comments:

Post a Comment

अजनबी - 2

अजनबी (पार्ट 2)       पांच साल बाद मेरी सत्य से ये दूसरी मुलाकात थी। पहले भी मैंने पीहू को उसके साथ देखा था और आज भी देख रहा हूं...