हां मुझे याद है जब पहली बार,
मैं तुमसे रूबरू हुआ था।
सामने जलता हुआ कलश, सर पर मंडप,
गीत गाती हुई ढोलक में थाप देती हुई,
कुछ औरतें, कुछ तुम्हारी सहेलियां,
उनमें से कुछ मेरी सालिया,
मम्मी, बुआ, सरहज कुछ चाचियां,
मेरे पीछे बैठे मेरे कुछ ही दोस्त,
अजनबी देश, अजनबी लोग।
हा, इन सभी के बीच ,
मैंने देखा था तुम्हे पहली बार।
लजाती सकुचाती सहमी खुद से ही शर्माती,
अपने पापा- मम्मी के सामने बैठी तुम।
मेरे हाथ में देकर तुम्हारा हाथ,
जब किया था माता - पिता ने कन्यादान।
तब शायद पहली बार जी भर के
देखा था हमने एक + दूसरे की आंखों में।
इस एक रिश्ते से, बने कई रिशतें,
गवाह बने धरती - गगन, चांद - सितारे,
मंडप, कलश, अग्नि, दसों दिशाएं,
देव, गंधर्व, यक्ष, और ये हवाएं।
हां कुछ ऎसे शुरू हुआ था,
ये इश्क हमारा + तुम्हारा। हां . . .
उसी इश्क कि सारी कशिश के साथ,
मुबारक हो शादी हमारी + तुम्हारी।
Shailendra S.
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