Saturday, January 15, 2022

माना कि 💓💓💓

माना इस कदर रुसवा हुए महफिलों में,
बज्म-ए-यारां में अश्क-ए-नूर हो गए ।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
हां, कुछ तो था हमारी,
आशिकी में भी असर,
जो छलक कर कहीं तुम, 
बस एक जाम न हो गए।
💕💕💕💕💕💕💕
कुछ तो वफा निभाई है तुम ने भी, 
ये मेरी जान - ए  - वफा !
जो हम भी पूरे के पूरे,
किसी और का न हो गए।
💚💚💚💚💚💚
कुछ तो उधार रह गया था शायद,
इस मोहब्बत के बाजार में,
चुकाते रहे जिसका कर्ज,
जो अब तक रुखसत न हो गए।
Shailendra S.
💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝

Wednesday, January 12, 2022

आप कैसी है 💓

जब कायनात और रातें सोती हैं, 
तो फिर हम जगा करते हैं।
जब कुछ लिखने का मन न हो, 
फिर छत को देखा करते है।
जब बढ़ जाती मन की बेचैनी,
अध लिखे पन्नों को फाड़ा करते है।
🌹
जब खुद का गुजारा न हो खुद से,
उनको फिर से याद किया करते हैं।
शायद देख लिया होगा मेरा स्टेटस,
फिर इसका पता लगाया करते हैं।
जब कुछ हाल नहीं मिलता उनका,
फोन लगाने की भी सोचा करते हैं।
जब हद से गुजरने लगती है यादें उनकी,
उनको भुला देने की भी सोचा करते हैं।
🌹
भूले न वे जब लाख जतन करने पर भी,
झुट्टू-मुट्ठ फिर उन्हे फोन लगाया करते है।
हेलो - हेलो, कई बार बोलने पर उनके,
तब हम धीरे से हेलो बोला करते है।
न जाने वे क्या सोचेगी क्या समझेगी !
यह सोच, हम झट से , " आप कैसी है ", 
बस इतना ही तो पूछा करते है।
💖💖💖
Shailendra S. SATNA ✍️

Tuesday, January 11, 2022

तुम मेरी 5 सेकंड की मुहब्बत

💢💢💢💢💢💢💢💢
वह एक खूबसूरत सी सुबह,
आकाश में बस अभी-अभी,
का उगा लाल-लाल सूरज।
चहल-पहल, भीड़ भाड़ में,
खुद को बचता-बचाता सा मैं।
⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡
जिंदगी की रफ्तार से भागती सड़क,
मैं बेपरवाह, बेलगाम, बेजार, बेरोजगार
बेवजह बस! चले जा रहा था।
अचानक,  हां एकदम अचानक ही  !!
जब तुम मेरे सामने आ गई,
मुझसे टकराते-टकराते कुछ ही बची।
💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓
मेरी भागती और दौड़ती जिंदगी,
जब एकदम अचानक ठहर सी गई।
वक्त के खजाने से मिले कुछ ही सेकंड,
मैं जब सब कुछ भूल सा गया,
आवारगी, अपनी बेचारगी, उदासी,
हां सबकुछ, शायद खुद को भी।
और तुम्हे ! बस तुम्हे देखता रह गया ।
💓💓💓💓💚💚💚💚💚💓💓💓💓
वक्त की घड़ी की तरह मेरा दिल💓 धड़का
टिक💓 टिक💓 टिक 💓टिक💓 टिक💓💚
अगले ही पल मैं सचेत कुछ सावधान।
छठवीं बार !!
दिल की धड़कनो को,
धड़कने से रोक सा लिया मैंने।
डर था लगातार 6 सेकंड देखने पर,
कहीं तुम मुझे स्टॉकर न समझ लो।
और सातवां सेकंड तो गजब का होता,
मैं तुम्हारा दीवाना जो बन गया होता।
💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚
मेरी पाक साफ पहली नजर तुम,
ये, हां तुम ! कही तुम रुसवा न हो जाती।
💚💓💚💓💚💓💚💓💚💓💚💓💚
बड़ी ही नाकाम सी मेरी कोशिश,
बावजूद नजरे हटाई थी मैने।
पर अब तक नहीं भूल पाया मैं,
अपनी जिंदगी के उन लम्हों को ।
5 सेकंड की तुम मेरी पहली मोहब्बत।
💓💚💓💚💓💚💓💚💓💓💚💓💚
इस साल भी जब आया है,
फरवरी 14 का वह दिन,
तुम बरबस ही याद आ गई हो,
और तुम्हारी ही तलाश में,
मैं फिर निकल पड़ा हूं।
शायद तुम कहीं मुझसे,
फिर से उसी तरह टकरा जाओ।
और मैं इस बार अपने अधूरे,
दो सेकंड को पूरा कर लूं।
और फिर !!!!
पुरजोर कोशिशों से कह सकू,
यू आर माय स्वीट वैलेंटाइन।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Shailendra S..

Sunday, January 2, 2022

My Inception 6 मित्रता मेरा धर्म है।

मित्रता मेरा धर्म है


   कुरुक्षेत्र में के मैदान में मैं उस अर्जुन के साथ था जिसके हाथ से गांडीव छूट रहा था। हाथ पाव कांप रहे थे । संबंधों की मोह जाल में फंसे उस अद्वितीय योद्धा के आत्मबल के रूप में मैं उसका सारथी बना। मैं उसके साथ था, क्या इसलिए कि अर्जुन मेरी बुआ कुंती का पुत्र था या फिर मेरी बहन सुभद्रा का पति था ? नहीं, बिल्कुल नहीं!  वह मेरा मित्र था और उस धर्म युद्ध में मैं अपने मित्र के साथ खड़ा था।

        पांडवों की संभावित मृत्यु से आशंकित मेरी मां कुंती जब मुझसे यह कहने के लिए मेरे समीप आई कि मैं उसका जेष्ठ पुत्र हूं। और इस नाते पांडव मेरे अनुज हैं । मेरे अनुज मेरे दुश्मन कैसे हो सकते है ? इसलिए मैं उनसे युद्ध न करूं ।   कृष्ण ने भी मुझे मेरे जन्म का रहस्य भी बताया था और उन्होंने मुझे प्रलोभन भी दिया कि मैं जेष्ठ कुंती पुत्र, जेष्ठ पांडव, इस नाते मैं उस सिंहासन का प्रथम उत्तराधिकारी हूं जो इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को मिलने जा रहा था या जिसे मिलने की संभावना थी।

आमंत्रित कर सूर्य देव को मैंने मन में,
मंत्र शक्ति से तुम्हें जना था पिता भवन में ।
 बैर पांडवों से तुम क्यों रखते हो हो,
निज कर्तव्य कुछ नहीं लखते हो ।।
( मैथिलीशरण गुप्त )

        फिर भी मैं दुर्योधन के साथ खड़ा था। कुरुक्षेत्र में उस मैदान में यदि वह धर्म युद्ध था तो दुर्योधन की तरफ से युद्ध लड़ना मेरी नियति नहीं मेरा धर्म था। क्योंकि मित्रता मेरा धर्म था।  

          धर्म की परिभाषा व्यापक और विस्तृत हो सकती है किंतु उसे समझना इतना गूढ़ नहीं जितना कि हम समझते हैं। सच्चे मन से अपने सच्चे मित्र के साथ खड़े होना कौन सा गूढ़ रहस्य है? उसके न रहने पर उसकी उपस्थिति दर्ज कराने का एहसास, इसमें भला कौन फिलासफी है ?

     अब प्रश्न ये उठता है सच्चे मित्र की पहचान कैसे की जाए ? एक ऐसे संबंध की तलाश कैसे की जाए जो निष्कपट हो दुनिया के छल प्रपंच से दूर आत्मपरक हो ?

         इसका सीधा सा जवाब यह है या हो सकता है  कि जिस व्यक्ति से हम गुढ़ातम से गुढ़ाताम रहस्य, मन के सारे उद्वेग और भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, और वह साफ एवम सच्चे मन से सुने और आपके जीवन के किसी भी रहस्य को सार्वजनिक न होने दें।

     आपको कभी भी पथभ्रष्ट देखकर सही सुझाव देने का सामर्थ्य रखता हो और जो इस संबंध के प्रति इतना सजग हो की आपके मन में उठती किसी भी हलचल को भाप कर, आपके व्यक्त करने से पहले ही उसके निदान के लिए तत्पर हो जाएं वही हमारे लिए सच्चा मित्र है।

    रंगभूमि में अपमानित एक अद्वितीय योद्धा को दुर्योधन ने बढ़कर अपने गले लगाया उसे अपना मित्र बनाया, उसे अंगराज का राजा बनाया। कह सकते हैं कि दुर्योधन को एक अदिति योद्धा जो अर्जुन को चुनौती दे सके वह चाहिए था। उसका मित्र के संबंधों को आगे बढ़ाना राजनीतिक और स्वार्थ परक हो सकता है किंतु एक निश्चल ह्रदय कर्ण के लिए वह एक धर्म बन गया।

      वही दूरी तरफ महाराज द्रुपद से अपमानित एक ब्राम्हण कुमार जो युद्ध विद्या का शिक्षक था, उसने पांच एक ऐसे योद्धा तैयार किए जिसने भारत वर्ष के इतिहास को बदल कर रख दिया। जबकि द्रुपद और द्रोण बाल्यावस्था में कभी मित्र हुआ करते थे। द्रोण ने मित्र से अपमानित होकर यदि भारतवर्ष को पांच अदिति योद्धा दिए तो वहीं दूसरी तरफ अपना संपूर्ण राज्य छिन जाने के बाद या यूं कहें कि उन 5 योद्धाओं से हर जाने के बाद महाराज द्रुपद ने दो अद्वितीय रत्न इसी भारतवर्ष को दिए। जिनमें से एक अग्निपुत्री द्रोपती ने श्रेष्ठ धनुर्धर का वरण किया।

        वहीं दूसरी तरफ अग्निपुत्र धृष्टद्युम्न ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने पिता के अपमान का बदला निहत्थे गुरु द्रोणाचार्य का सर काट के लिया। यह दृष्टांत है मित्रता के स्वार्थ परक हो जाने का और इतिहास साक्षी है कि जब मित्रता स्वार्थ से दूषित होती है तो मानवता रक्त रंजित होती है। और रक्त रंजित इतिहास एक नए सृजन का निर्माण भी करता है।

निष्कर्ष यह है कि -

"सारी वफाओं की कसमें खाने से अच्छा है,
मेरे ये दोस्त !! कि मैं एक बार फिर,
तुम्हे अपना दोस्त ही कह दूं"।।
(यह मेरा अर्थात शैलेंद्र एस. का है)

और अंत में,

         प्रेम के देवता कहे जाने वाले उस यशस्वी युगपुरुष को कौन भूल सकता है जिसने कालांतर में यह सिद्ध किया कि मित्रता का वियोग किसी प्रीतमा के वियोग से कम नहीं होता। जी हां वही व्यक्ति और उनकी ही मित्रता जिसे एक कवि ने शब्दों में बांधा तो कुछ इस तरह कि आज भी याद करो तो वह तस्वीरें जीवंत हो उठती हैं

    
देख सुदामा की दीन दशा,
 करुणा करके करुणानिधि रोए,।
पानी परात को हाथ छुईओ नहि,
 नयन के जल से पग धोएओ।।

      नए वर्ष के उपलक्ष में मेरे सभी दोस्तों को नव वर्ष की सप्रेम भेंट।

        My Inception Part 06 धन्यवाद के साथ मेरे मित्र प्रशांत सिंह को, जिनसे मुझे यह आलेख लिखने की प्रेरणा मिली।

Shailendra S. "SATNA"
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अजनबी - 2

अजनबी (पार्ट 2)       पांच साल बाद मेरी सत्य से ये दूसरी मुलाकात थी। पहले भी मैंने पीहू को उसके साथ देखा था और आज भी देख रहा हूं...