1. माइलस्टोन
2. अलविदा
3. आह ! तुम कहां गए
4. अवतार
मैंने सोचा ही नहीं था कि मैं कभी माइलस्टोन लिखूंगा। लिखना और पढ़ना दोनों ही मैंने तकरीबन 10 साल पहले ही छोड़ दिया था। पहले भी कुछ छोटी-मोटी कहानियां ही लिखी थी।
वास्तव में माइलस्टोन के दो नहीं चार प्रमुख किरदार है। प्रथम व द्वितीय भाग माइलस्टोन व अलविदा में तीन किरदार है, नायक, नायिका और राइटर। जी हां राइट भी उसका एक किरदार ही हैं।
आह ! तुम कहां गए में एक किरदार है जो माइलस्टोन की नायिका किरदार का प्रतिरूप नहीं है।
वास्तव में माइलस्टोन की कहानी एक वृत्त (सर्किल) है, और इसीलिए आप इसे किसी भी भाग से पढ़ना शुरू कर सकते हैं। और अंतिम भाग को पढ़ते ही आप खुद वहीं पहुंच जाएंगे जहां से आप ने शुरू किया था। इसकी कहानी एक लूपिंग है। अर्थात कभी न समाप्त होने वाला एक चक, एक वृतांत है।
इस कहानी के दो प्रमुख पात्र "किरदार" और "आह ! तुम कहां गए" कि नायिका है। अब चूंकि किरदार एक ऊर्जा के रूप में अपने राइटर के शरीर में प्रवाहित हैं, इसलिए उसकी अपनी कोई स्मृति नहीं है।
वह राइटर के शरीर और मस्तिष्क को, उनमें सुरक्षित स्मृतियों को अपने भावों से संचालित करता है। मनुष्य के भाव उसके जीवन को संचालित करते हैं। लेकिन वह ऊर्जा राइटर के मस्तिष्क में सुरक्षित यादों में कोई छेड़खानी नहीं करती है। बल्कि उन स्मृतियों को आपने विशिष्टता के शिखर बिंदु तक पहुंचाती है। उसकी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाती है और यही से राइटर की स्मृत से अपनी कहानी लिखता है। राइटर को यह महसूस होता है कि वह अपने किरदार की कहानी लिख रहा है। और किरदार को यह महसूस होता है कि राइटर अपनी कहानी कह रहा है।
अवतार में जो किरदार है वह वास्तव में माइलस्टोन के तीसरे किरदार राइटर का ही प्रतिरूप है। जो स्वयं माइलस्टोन के नायक किरदार का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
माइलस्टोन की कहानी
वास्तव में माइलस्टोन की कहानी " आह ! तुम कहां गए " , से शुरू होती हैं। एक राइटर जिसने किन्ही वजहों से अब लिखना छोड़ दिया है, किसी काम से एक अजनबी क्षेत्र में पहुंचता है। वहां पर उसकी मुलाकात एक लड़की से होती है। प्रथम मुलाकात में ही उस लड़की को देखकर उसके मन में तीव्र हलचल सी होती है, उसे ना जाने क्यों महसूस होता है कि वह उससे पहले भी कही मिल चुका है। वह उसे अच्छी तरह से जानता है।
बावजूद इसके कि उसने उसकी मांग में चमकते हुए सिंदूर को देख लिया था, और वह समझ चुका था, कि इस लड़की का विवाह हो चुका है। फिर भी वह उसकी तरफ आकर्षित हो रहा था। उसे खुद कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्यों हो रहा है।
वह कई-कई दिनों तक परेशान रहा। आकर्षण लगातार बढ़ता ही जा रहा था। अब यहां तो तय है कि प्रश्न ना तो शारीरिक आकर्षण का था, ना ही प्रेम का। वजह है, और वह है, एक पावन प्रांजल मूर्ति जो उसके मन में सदैव स्थापित रहती है।
तब ऐसी कौन सी शक्ति है जो अंदर ही अंदर उसे उसकी तरफ ढकेलती है। और वह उसी शक्ति के आधीन उससे मिलने के लिए आतुर होता है। उसकी निकटता उसे और उत्साहित करती है। उसके शरीर में एक नई स्फूर्ति पैदा करती है। और धीरे-धीरे उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन होने लगता है। मन की सारी उद्विग्ता समाप्त होने लगती है, और उसके मन में एक स्थिर शांति का जन्म होता है।
अब वह उसकी निकटता को तरसता है। उसने कई बार उससे यह बातें शेयर करनी भी चाही, किंतु वह संकोच में कुछ नहीं कह पाता था। क्योंकि वह खुद इन एहसासों को कोई लफ्ज़ नहीं दे सकता था। बस वह उसकी निकटता चाहता था।
उसके मन में उठते सवालों के उसके पास खुद कोई जवाब नहीं थे। जवाब की तलाश में वह खुद भटक रहा था। उसने फिर से अपनी लेखनी उठाई और अपनी सभी अनुभूतियों को समेटा। एहसासों को अपने अंदर स्थापित किया और उसने फिर कुछ लिखना चाह। लेकिन वह यहां भी कामयाब नहीं हुआ।
तब उसने अपनी सभी अनुभूतियों, भावनाओं और संवेदनाओं को एक बिंदु पर केंद्रित किया। और वह था, कि उसके यहां से जाने के बाद यदि कभी उस लड़की के मन में यही भाव उत्पन्न हुए जो कि उसे लेकर उसके मन में उत्पन्न होते हैं, तब वह क्या सोचेगी, उसके मन में कौन सी संवेदनाएं उठेंगी ?
उसने अपने आप को उस लड़की के स्थान पर रख कर जो सोचा उन्हीं भावनाओं को लिखता चला गया। और सच, तब तक उसके जेहन में माइलस्टोन का कोई विजन ही नहीं था।
"साहिल पर खड़ी तू बेखबर, लहरों से जूझता मेरा मुकद्दर, क्या बेवजह था ?", यह वही पंक्तियां थी जो उस लड़की को प्रथम बार देखने पर उसके मन में स्वत उठी। और यही कविता उस राइटर के दर्द को आह ! तुम कहां गए में बयां करती हैं। और जिस दिन " आह ! तुम कहां गए" पूरी हुई, ठीक उसी दिन उसने तय कर लिया कि अब वह उस लड़की की निजी जिंदगी में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी नहीं करेगा। और उसने उसे अपने मन से निकाल दिया। आप कह सकते हैं कि उसने उसे उसी मोड़ पर छोड़ दिया।
लेकिन क्या सिर्फ सोचने से वह चीजें हो जाती हैं, जो हम चाहते हैं ? नहीं होती हैं, क्यूं ? और इसका जवाब उसके लिए अनुत्तरित ही रहा।
तभी उसे अपने जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना याद आई, जब कुछ वर्ष पहले ही उसका एक्सीडेंट हुआ था, और वह कुछ पल के लिए मर-सा गया था।
जब वह प्रथम बार बेहोश हुआ और जब उसे होश आया तो दोनों अलग-अलग दुनिया थी। जी हां जिस दुनिया में वह बेहोश हुआ था वह दुनिया कुछ और थी, और जिस दुनिया में उसे होश आया वह दुनिया कुछ और थी।
उसने देखा कि आसमान काला है। सितारे टिम-टिमा रहे हैं, चंद्रमा जैसा भी कुछ है। लेकिन आकाश धरती के इतना निकट है, जितना कि आमतौर पर नहीं होता। उसने चारों तरफ देखा तो उसे महसूस हुआ जैसे पूरा आकाश धरती के चारों ओर झुका हुआ हो, उसे छू रहा हो।
अब आप कल्पना कर सकते हैं कि जैसे एक बहुत बड़े से कटोरे को एक व्यक्ति के ऊपर ढक दिया जाए तो उस व्यक्ति के लिए जो दृश्य होगा, वही दृश्य उसे दिख रहा था। आसमान काला जरूर था लेकिन उजाला पर्याप्त था। जैसे रोशनी खुद धरती के अंदर से निकल रही हो।
एक खूब चौड़ी सड़क थी जैसे कि आमतौर पर नेशनल हाईवे होते हैं। सड़क के जिस और वह खड़ा था, उसके दूसरी तरफ उसके सामने ही कुछ भीड़ लगी थी। वह उत्सुकता पूर्वक देखने की कोशिश करता है की भीड़ किस लिए है।
वह भीड़ के नजदीक पहुंचता है, जहां लोग आपस में बातें कर रहे होते हैं। लेकिन उनकी भाषा उसे समझ में नहीं आती कि वे आपस में क्या बातें कर रहे हैं। तभी उसकी नजर सड़क के किनारे गड़े एक पत्थर जो कुछ-कुछ माइलस्टोन जैसा ही था, पर पड़ती है। जिस पर टिक कर एक लड़का बैठा हुआ है। भीड़ उसी के चारों तरफ लगी थी।
जब वह भीड़ को पार कर उस लड़के के नजदीक पहुंचता है, तो वह देखता क्या है कि एक औसत कद काठी का सामान्य सा लड़का, जो वेल सूटेड-बूटेड है, जिसका चेहरा नीचे झुका है, पैर सामने फैले हुए हैं, हाथ उसकी खुद की गोद में रखे हैं, बिल्कुल शांत बैठा है।
वह उसके और नजदीक पहुंचा और उसने झुककर जब उसे ध्यान से देखा तो वह लड़का बेहद थका हुए लग रहा था, जैसे काफी दूर का सफर तय करके आया हो। लड़के की आंखें बंद थी। उसे महसूस हुआ जैसे शायद वह अपनी दुनिया को अलविदा कह चुका है। उसे देख कर उसके मन में अथाह करुणा जागी। एक ऐसी संवेदना जागी जिसे लफ्जों में बयां करना आसान नहीं।
एक पल को उसे महसूस हुआ कि यदि वह इसके पहनावे को पहन लेता है तो वह भी ठीक उसी तरह ही दिखेगा। अर्थात उस लड़के के रूप में उसे अपना खुद का प्रतिरूप दिखा।
तब उसने उसके कंधे को हिला कर देखना चाहा तो उसे तेज झटका लगा। और झटका इतना तेज था जैसे कई वोल्ट का करंट उसके शरीर में दौड़ गया हो और वह चटक कर दूर जा गिरा। फिर उसे कुछ होश नही रहा।
और जब उसे दुबारा होश आया तो वह उसी दुनिया में था, जिस दुनिया में वह पहली बार बेहोश हुआ था, अर्थात पहले वाली उसकी अपनी दुनियां।
यहां भी उसके चारों तरफ लोगों की भीड़ थी। उसे होश में आया देख लोगों को आश्चर्य भी हो रहा था और प्रसन्नता भी। तब उसके पास खड़े एक व्यक्ति ने उसे बताया कि आश्चर्यजनक है, तुम्हारी नब्ज बंद हो चुकी थी, हमने तो तुम्हें मरा हुआ मान लिया था। उसे भी यह जानकर आश्चर्य हुआ था।
एक्सीडेंट बड़ा था किंतु उसे चोट गंभीर रूप से नहीं लगी थी। सर में तो बिल्कुल भी नहीं। उसकी मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं था। उसकी स्मृतियां वही थी, किंतु एक नई स्मृति जुड़ चुकी थी। जहां वह पहली बार बेहोश होने पर पहुंचा था, और वह थी सितारों की दुनिया। जहां पर उसने खुद को एक माइलस्टोन पर टिक कर बैठे हुए पाया था, और शायद वह उस वक्त, उस दुनिया में मर चुका था।
कुछ दिनों तक उसे यह घटना याद रही। चूंकि वह खुद विज्ञान का विद्यार्थी रह चुका था, तो उसने इसे महज अल्पकालीन दिमागी अस्थिरता का कारण समझा। क्योंकि इस घटना का कोई आधार नहीं था। कोई प्रूफ नही था, कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं था। वह इस घटना का एकमात्र गवाह था, कि हां ऐसा हुआ था।
लेकिन उसने जो दृश्य देखे वह कहीं से भी अवास्तविक नहीं लगे थे। उनकी सजीवता उसके हृदय पटल पर, मन मस्तिष्क में उसी तरह थी। उसे दोनों बार का बेहोश होना और दोनो ही बार होश में आना, बखूबी याद था। वक्त के साथ धीरे-धीरे वह इस घटना को भूल-सा गया।
अब आप यह सोच सकते हैं कि यह घटना उसे उस लड़की से मिलने के बाद ही पुनः क्यू याद आई ?
जिस वक्त उसने उस सितारों की दुनिया में माइलस्टोन पर टिक कर बैठे उस लड़के को देखा, तो जो उसके मन में जो करुणा जागी, मन में जो संवेदना उठी, उसे छूने के बाद पल भर के लिए ही सही उसे जो ऊर्जा मिली, ठीक वैसी ही संवेदना, वैसी ही करुणा, और वैसी ही ऊर्जा उसे उस लड़की को देखकर महसूस होती थी। जिसे वह उससे बखूबी छुपा ले जाया करता था।
धीरे-धीरे उसे यह महसूस होने लगा कि माइलस्टोन पर टिक कर बैठे उस लड़के का इस लड़की से कोई न कोई संबंध है। और यह एक रहस्य बन कर उसके सामने आ रहा था। नियति अर्थात प्रकृति अपना काम कर चुकी थी। अब उसे (राइटर को) प्रकृति के अधीन ही अपने सवालों के जवाब तलाश करने थे।
और फिर उसे उसके सारे सवालों के जवाब उसे अपनी खुद की जिंदगी में मिले। जी हां राइटर की खुद की अपनी जिंदगी में। जहां उसने कई वर्ष पहले एक ऐसी मोहब्बत को जिया था जिसका दर्द लेकर वह आज भी जी रहा है। उसे प्रतिपल महसूस करता रहा, और उसके मन में कभी ख्याल भी आया था कि वह अपनी इस अधूरी मोहब्बत को पुनर्जन्म ले कर अवश्य पूरी कर लेगा।
अब यह सवाल उठता था कि ना तो उस लड़की का अभी पुनर्जन्म हुआ है, और ना ही उसका। क्योंकि वर्तमान में वे अभी भी इस दुनिया में है, तो पुनर्जन्म होने का कोई सवाल ही नहीं। तो फिर उस लड़की को देखकर उसके मन में वही संवेदना क्यों जागृत होती थी ? इन सभी के बीच प्रकृति उसे क्या समझाना चाहती थी ?
और दूसरी तरफ वह लड़की इन सबसे बेखबर अपने जीवन को अपने ही लोगों के बीच जी रही थी। उसे इस बात का बिल्कुल आभास नहीं था कि उसके पास आने वाला वह शख्स कितनी बेचैनियां लिए उसके पास आता है। उसे ना जाने कितने अनुत्तरित सवाल परेशान करते हैं।
वह बेबस नजरों से उसकी तरफ देखता। कुछ कहना चाहता था, कुछ उससे पूछना चाहता था। किंतु वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता था। हो सकता है उस लड़की को उसकी नजर में कोई खोट या अपने लिए वासना ही दिखाई दिया हो। कारण कुछ भी हो सकता था। और शायद इसी लिए धीरे-धीरे उस लड़की ने उसे उपेक्षित करना शुरू कर दिया। अर्थात उसकी किसी बात का ना तो वह जवाब देती और ना ही कभी उसकी तरफ वह ध्यान देती। यहां तक की उसके माफी मांगने पर भी वह खामोश ही रही थी।
मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर हम इसकी विवेचना कुछ इस प्रकार कर सकते हैं कि राइटर में दोहरे व्यक्तित्व का जन्म होता है। पहला व्यक्तित्व उसका खुद का अपना है। जिसमें उसकी प्रेमिका स्थाई भाव से संचित है। वह कहीं भी, किसी पल भी, उससे दूर नहीं है, और ना ही वह उसे भूलने के लिए उसके पास जाता है। और शायद इसीलिए मैंने ऊपर लिखा है कि तुम कहां गए की नायिका माइलस्टोन की नायिका का प्रतिरूप नहीं है।
दूसरा व्यक्तित्व माइलस्टोन पर टिक कर बैठे उसके किरदार का है। जो संभवत: उस लड़की से संबंध रखता है। और जिसकी जिंदगी अब वह खुद भी जी रहा है। उसे कोई स्वप्न नहीं दिखाई दिया, जहां वह उस लड़की को उस लड़के के साथ देख सके।
ना ही, उसकी स्मृति में कोई ऐसी स्मृति बनी जहां उसे पिछले जन्म की कोई बात याद आती हो। फिर भी उसके मन में यह ख्याल आता रहा कि ऐसा क्या है उसके पास, या उस लड़की के पास, जिस से खींचा हुआ वह उस तक पहुंचा। और इतनी गहरी संवेदना से गुजरा।
कहते हैं विचारों से जीवन शैली प्रभावित होती है, किंतु भावनाओं से जीवन संचालित होता है। उस लड़की के प्रति उसके मन में जो भावनाएं उपजी, जब वह उसके नजदीक होता था, उसके आसपास होता था, तो जो शब्द उसके कानों में गूंजते से थे, जब उन्हीं शब्दों को उसने लिखना शुरू किया तो वह कविता बनती चली गई। और इस तरह से उसके द्वारा लगभग 300 लाइनों की कविता एक ही रात में लिखी गई, और उसने उस लड़के की याद में जिसे उसने माइलस्टोन पर टिक कर बैठे हुए देखा था, कविता का टाइटल दिया माइलस्टोन।
क्योंकि कहीं ना कहीं उसके मन को यह विश्वास हो चला कि यह कविता उसके द्वारा नहीं बल्कि उसी लड़के द्वारा कहीं गई है। और वह एक माध्यम था, जो बस लिख रहा था। जब उसने कविता को एक क्रम से रखा, कुछ लाइनों को ऊपर नीचे किया, कुछ शब्दों को इधर-उधर किया, अर्थात उसकी एडिटिंग की तो उसने पाया की यह कहानी तो उसके अपने जीवन की है। हां कुछ लाइनें ऐसी थी जहां पर अलविदा शब्द का प्रयोग हुआ यह उसके जीवन का नहीं था या यूं कह ले अभी तक यह फेस उसके जीवन में नहीं आया था। क्योंकि उसने अर्थात राइटर ने अपनी महबूबा को कभी अलविदा नहीं कहा था।
तब उसके मन में यह ख्याल आया कि भले ही उसने अपनी मोहब्बत को जिंदगी बना कर जिया हो, लेकिन हो सकता है कि उसकी महबूबा सब कुछ भूल गई हो ? उसे अब कुछ याद ही ना रहा हो ?
जबकि मोहब्बत गहरी थी, लेकिन समय है, बदलाव आते हैं और यदि ऐसा होता है तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। क्योंकि हम इसी एक जीवन में कई जीवन जीते हैं।
लेकिन जब वह अपनी महबूबा से लगभग तीस साल बाद मिला, तो उसकी भी आंखों में वही मोहब्बत दिखाई दी। वह भी उसे उतनी ही संजीदगी से याद है, जितना कि वह उसे अपने हृदय में संजोए बैठा है। लेकिन उसकी अपनी एक अलग दुनिया थी, अपने अलग रिश्ते थे, उसके अपने लोग थे। और उनके बीच में वह कहीं नहीं था। ऐसे कोई लफ्ज़ नहीं थे जो उसके रिश्ते को उसके साथ परिभाषित कर सकते थे।
और तब राइटर को यह आभास हुआ कि उसने अपनी महबूबा से मिलने से पहले ही माइलस्टोन में अलविदा शब्द का प्रयोग क्यों किया। इस तरह राइटर के किरदार ने उसे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन यह समझा दिया कि देखो मेरे राइटर, ये है दुनिया। सदैव के लिए यहां कुछ भी नही। प्यार, मोहब्बत कुछ भी नहीं। उसकी यादें भी नहीं। इस एक जीवन के साथ वह भी समाप्त हो जाती हैं। यदि तुम मानते हो, यदि तुम्हारी आशंका आधारहीन नहीं है, तो भी देखो यहां, उस लड़की की इस जिंदगी में मैं आज कहीं भी नहीं।
और फिर सोचो तो जरा कि यदि इसे प्राप्त करने के लिए मैंने पुनर्जन्म चाहा होता, तो इस बात की क्या गारंटी थी कि इसे मैं याद रहता, या मुझे यह याद रहती। इसीलिए तो मैंने पुनर्जन्म चाहा नहीं था। तो क्यों न तुम भी उसे, इसी जन्म में कह दो , अलविदा। सच, गुजरे हुए जीवन की जब तक स्मृति आपके पास ना हो तो पुनर्जन्म का फायदा क्या ? तब तो शुरू होता है एक नया जीवन, नई यादें, नए रिश्ते सभी कुछ नया। मां, बाप, भाई, बहन, पति, बच्चे मतलब हर रिश्ते यहां तक की मोहब्बत भी।
बस आपके पास जो नहीं होता है, तो वह पिछले जन्म का कोई एक ऐसा रिश्ता/शख्स, जिसे पाने के लिए हो सकता है, आपने पुनर्जन्म चाहा हो, या लिया हो !! अब जिसकी स्मृति भी आपके पास ही नही, और फिर वह कहीं भी आपसे टकरा जाए तब क्या फायदा ? फिर क्या बचता है ? जी हां ! तब भी शेष कुछ ना कुछ तो बचता ही है, और वह निश्चित ही अनंत ऊर्जा है। जो ना तो जन्म लेती है, ना मरती है और जिसका कोई शरीर नहीं होता है। शायद इसी लिए उसकी कोई स्मृत नहीं होती। लेकिन उसे प्रवाहित होने के लिए कोई न कोई माध्यम अवश्य चाहिए होता है।
और तब राइटर को माइलस्टोन में बैठे उस लड़के के जीवन का रहस्य समझ में आया। उसने निश्चित ही पुनर्जन्म नहीं चाहा होगा, हो सकता है उसने जीवन और मृत्यु के चक्र से परे की दुनिया में प्रवेश का रास्ता सीख लिया हो, जिसे हम मोक्ष कहते हैं। और वह इस अनंत ब्रमभंड में एक विशिष्ठ ऊर्जा के रूप में आज भी विद्दमान है, और वही ऊर्जा का अंश भाग उसके शरीर में प्रवाहित हो गया, और वह मर कर पुनः जीवित हो गया।
अब चूंकि जीवन उसका था, स्मृतियां उसकी थीं तो उसे इस बात का एहसास नहीं हुआ। बावजूद इसके कि उसे कुछ लोगों ने बताया कि वह मर कर पुनः जीवित हो गया है। लेकिन मर कर पुनः जीवित होने के अल्प अंतराल में उसके पास उस लड़के से मिलने की स्मृति शेष रह गई। दो बार बेहोश होने के बाद दो बार होश में आना और दोनों ही बार दो अलग अलग दुनिया में उसका होना उसे याद रहा।
लेकिन हो सकता है, उस लड़के की महबूबा ने उसे प्राप्त करने के लिए पुनर्जन्म चाहा हो ! लेकिन वह शायद भूल गई कि जब पुनर्जन्म होगा तो वह जिसके लिए जन्म लेने की चाहत रखती है, जब उसकी कोई स्मृतियां ही उसके पास नहीं होंगी तो वह पुनर्जन्म किस काम का होगा ? और ऐसा हुआ भी, उसके सामने एक नया जीवन था, जिसे वह पूरी ईमानदारी और वफा के साथ जी रही थी।
और कौन जाने यदि उसे अपना पिछला जीवन याद भी होता तो उसके सामने वही मजबूरियां न होती जिसकी वजह से वह उससे सदैव दूर रही, और फिर उसे प्राप्त करने के लिए उसने पुनर्जन्म की चाहत रखी हो।
और यहीं से राइटर का भी पुनर्जन्म लेने का स्वप्न भंग हो गया। और कहानी के अंतिम भाग अवतार में राइटर और वह किरदार दोनों एक दूसरे में ही समाहित हो गए। दोनों ने ही एक दूसरे को आत्मसात कर लिया। माइलस्टोन में राइटर अपने किरदार के साथ खुद अपना जीवन भी जीता रहा और शायद इसीलिए वह लग्न मंडप में दो बार पहुंचा, पहली बार अपने किरदार के साथ और दूसरी बार स्वयं अकेला।
वास्तव में थक कर माइलस्टोन में बैठने वाला राइटर नही अपितु उसका किरदार था। राइटर और उसके किरदार की कहानी शायद एक दूसरे से अलग होते हुए भी समानांतर ही चलती रही। अपने राइटर का वह दर्द किरदार ने अपने दर्द के साथ ही बया किया।
किरदार उसका संचालन करता जा रहा है, और राइटर अपनी यादों को जीता हुआ आज भी कहीं न कहीं चल रहा होगा। तब हो सकता है एक दिन वह भी मोक्ष की कामना लिए थक कर किसी माइलस्टोन पर टिक कर बैठ जाए।
और फिर क्या पता किसी राइटर का एक्सीडेंट हो और वह क्षण मात्र के लिए ही सही आ कर उससे मिले और उसकी विशिष्ठ ऊर्जा का अंश भाग राइटर में प्रवाहित होने लगे। और यह क्रम अनवरत यूं ही चलता रहे।
यदि राइटर के जीवन से वह स्वप्न ( जी हां, मैं बात कर रह हूं, उस एक पल की जिसमे राइटर उस लड़के से मिला था, मैं स्वप्न ही कहूंगा, क्योंकि उसका विजन तो केवल उस राइटर के पास है, जिसका कोई आधार नहीं, कोई प्रमाण नहीं) अलग रख के विचार किया जाए तब भी माइलस्टोन अवास्तविक नहीं।
और अंत में,
मैं यह कभी नहीं चाहूंगा कि "आह ! तुम कहां गए", का कोई भी विजन सही साबित हो। किसी भी मोड़ पर उस नायिका को उस विजन से गुजरना पड़े, वह वास्तविक कभी न होने पाए। वह काल्पनिक ही रहे तो बेहतर होगा, लेकिन कौन जाने किस मोड़ पर क्या सच साबित, हो क्या झूठ हो जाए।
Shailendra S.