Monday, August 19, 2024

शायद

शायद,

वो शख्स अब महफिलों में रहता है।
न जाने कितने लोगों से घिरा रहता है।
खुद हंसता है औरों को भी हंसता है।
दिल में सपनों के नए दिये जलता है। 
उसे शायद ही याद हो वो गुजरा जमाना,
वो एक कमरा, वो एक दरवाजा, 
एक खिड़की, शोर मचाता हुआ कूलर,
रोड और मोटर गाडियों का शोर
मुझे उसका बस देखते रहना। 
खामोश मोहब्बत का पढ़ना। 
कभी उसके वापस लौट जाने की जिद, 
तो कभी बेवजह मुझ से उलझना। 
रुठने पर मेरा उसको मनाना। 
कहां याद होगा उसे वह गुजरा जमना।
पर कभी सोचती हूं कि शायद, 
वह भी कभी सोचता होगा,
मेरे कमरे के उस सूनेपन को,
जो अब मेरे दिल में समा गया है।
उसे याद करती मेरी आहों को,
आंखो से बहते मेरे आंसुओं को।
मेरे धड़कते दिल की धड़कन को,
शायद वह भी महसूस करता होगा।
पर मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होता होगा,
क्योंकि,
वो शख्स अब महफिलों में रहता है।
खुद हंसता है औरों को भी हंसता है।
दिल में सपनों के नए दिये जलता है। 

🩸
जो एक शाम जीनी थी, अब जी लो जरा।
जो एक बात कहनी थी, अब कह दो जरा।
जो एकबार रोना था लिपटकर, अब रो लो जरा।
जो जाना था दूर मुझसे, अब जाओ भी यारा।
जो एक बार मुड़ के देखना था, देख लो जरा।



अजनबी - 2

अजनबी (पार्ट 2)       पांच साल बाद मेरी सत्य से ये दूसरी मुलाकात थी। पहले भी मैंने पीहू को उसके साथ देखा था और आज भी देख रहा हूं...