अलविदा
यादों के इस सफर उससे दुबारा मिलने से पहले मैंने कभी अपनी कल्पनाओं की दुनिया में उसके लिए सोचा था मेरे दोस्त,
अखियां तो भर आती होंगी,
जब मुझे इग्नोर तुम करती होगी।
मेरी मायूसी भी याद आती होगी,
जब बिंदास हंसी तुम हंसती होगी।
आह! मेरी मोहब्बत कैसे भूली होगी,
जब उसे माय लव तुम लिखती होगी।
दे दिलासा अपनी मजबूरी का जब,
दोहरा जीवन तुम जीती होगी।
ना जाने कितने सपने टूटे होंगे,
ना जाने कितने अरमान उठे होंगे।
तुम गुजर गई, मैं बीत गया,
जब-जब तुमने यह सोचा होगा।
मेरी जान, जान पर जान बन आती होगी,
जब मेरीजान उसे तुम कहती होगी।
मजबूर हालातों की सूली पर चढ़,
सारी वफाएं हम पर ही तो हंसती होंगी।
मैंने देखा है, महसूस किया है, उसकी मोहब्बत को उसकी सभी चाहतों को, जो जो आज भी उसके हृदय में स्थापित है। हां मेरी राइटर यह कोई भ्रम नहीं है, यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, मैंने देखा है उसे यह जीवन जीते हुए।
आज... आज एकबार फिर अलविदा कहने से पहले मैं .... मैं कहता हूं तुझसे, कि आज मैं उसे अपने हृदय से, अपने मन से अलविदा नहीं कह रहा मेरे दोस्त,
हां मेरे राइटर! आज भी है कही एक आँगन, सितारों भरा आसमान, आंगन में एक तुलसी का पौधा। किसी की बहुत सी नादानियाँ और उसकी बहुत सी समझदारियाँ। लेकिन .... मैं पूछता हूं आज उससे, क्या आज भी ...?
निपुणता से जीते इस जीवन में,
नादानी के एक-एक लम्हों को,
तुम अपने जीवन में तरसी होगी।
यादों के झिलमिल आंगन में,
रख सर तुलसी के उस पौधे को,
क्या फिर तुम सजदा करती होगी ?
तुम्हारी इस नादां हरकत को,
अब मैं अपनी यादों में जीता हूं।
अब सितारों भरे आसमान के नीचे बैठी वह कहानी नहीं कहती है मेरे दोस्त। हां मेरे राइटर, अब तू भी कह उसे अलविदा ! लिख तू भी उसे अलविदा ! कह मेरी तरफ से भी इसे अलविदा ! अलविदा !! अलविदा !!!
लो भूला दिया मैने उन लम्हों को,
जिन लम्हों ने मुझको दर्द दिया।
अब तुम भी भूलो उन यादों को,
निशदिन जिनको तुमने याद रखा।
अब याद रखो अपनी उन कसमों को,
जिन कसमों ने मुझको भुला दिया।
तुम दुहराओ जीवन में उन वादों को,
जिन वादों ने मुझको रुला दिया।
भूलों मेरे आंगन की उन रश्मों को,
अब जिन रश्मों ने मुझसे दूर किया।
अंजुली में समेंट रहा उन लम्हों को,
जिन लम्हों में, मैंने तुमको प्यार किया।
उन लम्हों को डाल तुम्हारे दामन में,
हां मेरे दोस्त !
उन लम्हों को डाल तुम्हारे दामन में,
लो फिर तुम्हे अलविदा मैं कहता हूं।
💖 1 💖
पूजा की यह थाल तुम्हारी,
दीपक की लौ सा मैं जलता हूं।
प्रतीक प्रेम के फूल तुम्हारे,
अब सुहाग सेज पर रखता हूं।
लो शरमा लो जी भर के तुम,
पलके बन मैं अब झुकता हूं।
लाजो की लाली समेट लो तुम,
मेहंदी बन इन हाथों में रचता हूं।
निज एकांत का हक लो मुझसे,
लो मैं अपनी राहों में चलता हूं।
इस जीवन के अंदाज यही,
हां मेरे दोस्त !
इस जीवन के अंदाज यही,
लो फिर तुम अलविदा मैं कहता हूं।
💖 2 💖
आबाद महफिलों में छोड़ तुम्हें,
जब मैं आगे बढ़ आया था।
कर अनसुनी पुकार तुम्हारी,
तब खुद मैं भी तो रोया था।
प्रेम पथिक का दोषी बन अब,
हां मेरे दोस्त !
प्रेम पथिक का दोषी बन अब,
लो फिर तुम अलविदा मैं कहता हूं।
💖 3 💖
दे दिलासा मजबूरी का खुद को,
अपने दिल को समझाता हूं।
मोह-प्रीत के सारे बंधन,
अब खुद पर ही अजमाता हूं।
देवों-सी किस्मत जो पाई थी तुमसे,
अब संकुचित हृदय तुम्हें लौटाता हूं।
हां मेरे दोस्त !
अब संकुचित हृदय तुम्हें लौटाता हूं।
लो, फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
💖 4 💖
त्याग मिलन की अभिलाषा को,
विरह वेदना में अब जलता हूं।
अधर-अमृत को त्याग तुम्हारे,
विषपान अब करता हूं।
जिन राहों में था साथ तुम्हारा,
उन राहों में मैं भी तो भटका हूं।
भटकन को अब छोड़ तुम्हारी,
हां मेरे दोस्त !
भटकन को अब छोड़ तुम्हारी,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
💖 5 💖
विरह रागिनी अब क्यों दूं,
तुम हो मेरे मीत प्रणय के।
काया की माया में सब बिखरे,
जो फूल चुने तुमने मेरे मन के।
छू ले गए अनुरागी आंचल को,
थे तार हृदय मेरी वीणा के।
प्रथम मिलन नव किसलय यौवन के।
विहाग राग की रागनी को मैं,
अब इस जीवन में दोहराता हूं।
हां मेरे दोस्त !
अब इस जीवन में दोहराता हूं।
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
💖 6 💖
छोड़ गुलिस्ता मैं बढ़ आया,
राहों के पत्थर अब चुनता हूं।
भोर की अजान नहीं मैं,
संध्या के गीतों में ढलता हूं।
सूनी बाहें हैं अब भी मेरी,
भीत हृदय तुम्हे बुलाता हूं।
सूनी गलियों में स्तब्ध नहीं मैं,
विरह गीत अब लिखता हूं।
हां मेरे दोस्त !
विरह गीत अब लिखता हूं।
लो फिर तुम्हे अलविदा मैं कहता हूं।
💖 7 💖
वो बेचैन उदासी की रातें तेरी,
मैं भी तो उन रातों का जागा हूं।
ख्वाबों कि स्वप्निल दुनिया में तेरी,
मैं भी तो इन बाहों में सोया हूं।
अनजान नहीं था आहों से तेरी,
तुझसे लिपटकर मैं भी तो रोया हूं।
खुद्दार अमानत हो तुम उसकी,
बेवजह बेवफा नहीं कहलाया हूं।
प्रेम अगन का, प्रेम लगन का दोषी बन,
हां मेरे दोस्त !
प्रेम लगन का दोषी बन,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
💖 8 💖
तुमसे मिलकर चाहा है तुमको,
थक शून्य पथ पर चलते-चलते।
खुद को खो कर पाया है तुमको,
पुलकित जीवन-रस भरते-भरते।
चिर शांत, अवचेतन मन में,
तुम सजीव हृदय वाटिका सी।
अर्पित हृदय वाटिका के पुष्पों को,
लो फिर तुम्हे अलविदा मैं कहता हूं।
हां मेरे दोस्त, अपने ह्रदय वाटिका में खिले हुए तुम्हारी यादों के सभी पुष्पों को अंजुली में समेट कर तुम्हारे ही दामन में डाल तुम्हें ही अर्पित करता हूं ... और कहता हूं, मेरे दोस्त, मेरी महबूबा , अलविदा ... अलविदा ... अलविदा...
💖 9 💖
ताउम्र भटकते रहे हम जिनकी तलाश में,
उन्हें भी रोते हुए देखा किसी की याद में।
ऐ मुसाफिर !
तुझे मंजिल मिली भी तो क्या ?
तुझसे भी बदतर हाल में . . . !!!
💖 10 💖
नादान मोहब्बत क्या जाने,
रो कर हंसना क्या होता है।
नादान मोहब्बत क्या जाने,
हंसकर फिर रोना क्या होता है।
नादान मोहब्बत क्या जाने,
उस पर मर जाना क्या होता है।
नादान मोहब्बत क्या जाने,
हद से गुजर जाना क्या होता है।
अब तोड़ हदों को सारी मैं,
हां मेरे दोस्त !
अब तोड़ हदों को सारी मैं,
लो फिर तुम्हे अलविदा मैं कहता हूं।।
💖 11 💖
त्याग समर्पण का ये जीवन,
जब एक पल को तुम ठहरी होगी।
निकट नीर निधि के रहकर भी,
सुधा बूंद एक जीवन को तरसी होगी।
मिले तुम्हे मुक्कमल जहां,
मेरे बगैर भी।
मिले तुम्हे मुक्कमल खुशी,
मेरे बगैर भी।
कभी तुम खोजना मुझे,
अपनी मुकद्दस दुआओं में।
तो कभी मैं खोजता फिरुगा,
तुम्हें यूं ही चलते चलते,
इन्ही वीरां रास्तों में।
कभी जज्जब होंगे जो आंसू,
तुम्हारी निगाहों में,
तब रोएगा यह आसमा भी,
बन सावन की घटाओं में।
जब कभी उठेगी कोई बेचैनी,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में।
जब खुलेगी कोई,
बंद तिजोरी यादों की।
जब कभी बहेगी पुरवाई,
फिर बिना किसी मौसम के।
जब कोई सिहरन सी उठेगी,
तुम्हारे बदन में।
हां तब तुम समझना,
मैं तुम्हारे दामन को छूकर,
बस गुजर गया।
जब तुम्हें शिकायत होगी,
इस जमाने से,
जब कभी रुसवा होंगे,
तुम्हारे जज्बात भरी महफ़िल में।
जब तुम्हारे कदम रुक जाए,
चलते-चलते कुछ डगमगाए से,
हां तब तुम समझना,
मैं तुम्हारा दामन पकड़ कर वहीं खड़ा हूं ...
💖 1 2💖
इस ठहरे पल में ये कैसा जीना,
चलती राहों में मेरे संग-संग,
अब तुम को भी आना होगा।
अनगिनत यादें ले कर इस मन में,
चाहत की रुमाल गिराना होगा।
रुक कर, पीछे मुड़कर, झुक कर,
समेट अपने केशों को,
पलट, फिर तुम्हे देखना होगा।
और तब ?
अखियों में भर बिछोह के आंसू,
फिर तुम्हें अलविदा भी कहना होगा।
ना जाने कितने मौसम आए और आकर चले भी गए। ना जाने कितने आंसू इन अखियों से बहे और सुख भी गए।
अंतर्मन में न जाने वेदना की कितनी टीसें उठी, और उसे ना जाने पीड़ा के कितने लम्हों से गुजरना पड़ा। कैसे बयां करें तुमसे हम अपनी यह दास्तां ? कैसे कहें मेरे महबूब, हम कितना तड़पे तुम्हारे लिए। कैसे जिए हम तुम्हारे बिना। हम भी ना जाने यादों की किन किन गलियों से गुजरे ?
काश ! इस रूह को तस्कीन,
सफक का लिबास और मुकद्दस लबों को,
शब-ए-इंतजार मिला होता।
💖 13 💖
क्यूं काजल बह आया अखिओं से,
कोई भग्न हृदय या स्वप्न उदास ?
कोई भग्न हृदय या स्वप्न उदास ?
क्यूं सृष्टि नियम बंधे हैं तुमसे,
क्यूं जगी हो, अबतक मेरे साथ ?
क्यूं दिनकर भी उलझा है विधु से,
ले अलको में नवीन सुप्रभात ?
ले अलको में नवीन सुप्रभात ?
क्यूं सृष्टि नियम बंधे हैं तुमसे,
क्यूं रोती हो, अब तुम मेरे साथ ?
क्यूं दिनकर भी उलझा है विधु से,
ले अलको में नवीन सुप्रभात ?
या फिर जागे बीते स्वप्न हृदय के,ले अलको में नवीन सुप्रभात ?
ले पूरा होने का सकल्प तुम्हारे साथ।
अब छोड़ तुम्हें साजन की बाहों में,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं ।
💖 1 4💖
मेरी गिरेबान पकड़ने वाले
बता कभी किसी से मुहब्बत न की।
अपने दिल पर हाथ रख,
कह दे जरा तू मुझसे,
ये मेरे हमदम ! मेरे दोस्त !!
तो मैं यकीं कर भी लूं शायद ,
पर जरा संभल के !
उसी पल कहीं तेरा दिल ,
धड़कने से इंकार न कर दे।
साहिलों पर आकर मौजे,
किसे चूमती है?
कोई दरिया खुद-ब-खुद,
अपनी प्यास, क्यूं बुझाता नहीं ?
ये जो प्यासे हैं दरिया,
ये जो प्यासी है मौजे,
ये जो प्यासे हैं लब,
किसके लिए ?
आंगे बढ़ कोई समुंदर क्यूं,
इनकी प्यास बुझाता नहीं ?
💖 1 💖
हां मेरे दोस्त मोहब्बत में चांदनी भरी रातें ही नहीं, जलती दुपहरी भी होती है।
मोहब्बत की रूमानियत ही नहीं गमजदा जिंदगी भी होती है।
और इन्हीं रास्तों पर चलने से पहले मैं .... हां मैं... एक बार फिर ....
हो मजबूर दिलों की चाहत से,
जब तुम मेरे संग बढ़ाए थे।
मांग दुआओं में मुझको,
मेरे मन को भी तो भाए थे।
मेरी ऐसी तकदीर कहां थी,
जो तकदीर खींच तुम लाए थे।
कर मुक्त तुम्हें मैं अपनी बाहों से,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
💖 16 💖
कैसे कहें हम तुम्हे बेवफा,
जो कभी मेरी राहों के हमसफर थे।
तुम्हारे दिल में भी तो दफन है,
मोहब्बत की वही दास्तां,
जो अनकही सी कहानी हम,
इस जमाने से कहते रहे।
💖17💖
गर निकलता अपनी मंजिल की तलाश में,
तो अपनी दास्तां वही लिखता मेरे दोस्त ।
पर यह तो है तुम्हारी यादों का कारवां।
मिलते हैं मील के पत्थर।
उन्हीं पत्थरों पर,
दो दिलों के निशां छोड़ता हूं।
रहेंगे जब तक ये मोहब्बत के रास्ते,
चलते रहेंगे राही, गुजरते रहेंगे मुसाफिर।
अपने सीने पर लिए निशां,
मील के पत्थर तब भी यही रहेंगे।
💖18💖
आबाद महफिलों में छोड़ तुम्हें,
लो फिर मैं आगे बढ़ जाता हूं।
कर अनसुनी पुकार तुम्हारी,
लो खुद मैं भी रोता हूं।
बन प्रेम पथिक का दोषी मैं,
फिर अलविदा तुम्हे मैं कहता हूं।
💖19💖
त्याग समर्पण का यह जीवन,
जब एक पल को तुम ठहरी होगी।
निकट नीर निधि के रहकर भी,
सुधा बूंद एक जीवन को तरसी होगी।
अनंत पथ पर मौन खड़ी तुम,
हृदय नि:स्वास अव्यक्त वेदना बरसी होगी।
तब मैं भी विचलित जीवन पथ पर,
अश्रुबिंदु बन जब तुम निकली होगी।
विभूषित आलोकित इस जीवन पथ पर,
सिसकी बन तुम्हारी मैं भी रोया करता हूं।
हां मेरे दोस्त,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
अस्तांचल में अस्त सूर्य से,
ले रश्मि किरण बन मृदुल चांदनी,
निशा पथिक सुने अंबर में,
विचलित जब कुछ शरमाया।
तुम अलसाई जब प्रिय बाहों में,
डूब नेत्र-नीर मैं अकुलाया।
प्रिय बाहों में अब छोड़ तुम्हें,
लो फिर तुम्हे अलविदा मै कहता हूं।।
छोड़ गुलिस्ता मैं बढ़ आया,
राहों के पत्थर अब चुनता हूं।
भोर की अजान नहीं मैं,
संध्या के गीतों में ढलता हूं।
सूनी गलियों में स्तब्ध नहीं मैं,
विरह गीत अब लिखता हूं।
लो फिर तुम्हे अलविदा मै कहता हूं।।
त्याग मिलन की अभिलाषा को,
विरह वेदना में अब जलता हूं।
अधर-अमृत को त्याग तुम्हारे,
विषपान अब करता हूं।
जिन राहों में था साथ तुम्हारा,
उन राहों में मैं भी तो भटका हूं।
भटकन को अब छोड़ तुम्हारी,
लो फिर तुम्हे अलविदा मै कहता हूं।।
मंगल गीतों के बीच तुम्हें जब,
खुद को आंसू पीते देखा था
बेजान समुंदर की लहरों में,
तूफानों को उठते देखा था।
वचनों के सातों फेरों में जब,
तुमने खुद को खोया था।
उन कसमों को, उन वादों को,
अब मैं अपने गीतों में दोहराता हूं।
हां मेरे दोस्त,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
जीवन के इस अंतिम पल में।
निश्चल होगी ये प्रीत सदा,
मरने को मर जायेंगे हम,
पर होगी अमर ये रीत सदा।
हम न होंगे एकदूजे के सम्मुख,
पर नजरों में होंगी ये तस्वीर सदा।
हृदय के पावन नियमों से बंध,
हां मेरे दोस्त !
हृदय के पावन नियमों से बंध,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
दुनियां क्या माप सकेगी,
असीम थाह उज्जवल मन की ?
क्या पा लेंगे रिश्तों में बंध कर,
अंतस् से उठती आह हृदय की ?
दूषित तन को अब इस मन से,
रख पृथक फिर मिलने को,
हां मेरे दोस्त !
रख पृथक फिर मिलने को,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
कैसे कह दूं, मैंने कुछ न खोया !
तुमको फिर जो छोड़ चला।
जीवन पथ पर, लेने को सांसें,
तेरी निःश्वासे ले साथ चला।
अब कहां मिलेंगी महफिल,
उनकी यादें ले साथ चला।
कैसे कह दूं, तुमसे कुछ न पाया !
तेरे आंसू भी ले अब साथ चला।
अब तुम न मानो खुद को दोषी,
अपने इल्जामों को भी ले साथ चला।
दे दुआएं अपने दिल से,
हां मेरे दोस्त
दे दुआएं अपने दिल से,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं
हरने को हृदय ताप,
ये बदल भी ले साथ चला।
करने को, पथ रौशन,
ये चांद सितारे ले साथ चला।
जब बहेंगे निश दिन आंसू,
तेरी फरियादें ले साथ चला।
तुमने माना था मुझको अपना,
सारे बंधन अब तोड़ चला।
सारे बंधन अब तोड़ चला।
अब छोड़ तुम्हारे दमन को,
लो फिर तुम्हें अलविदा मैं कहता हूं।
जीवन की ये सूनी राहें,
निशदिन तुम्हें पुकारेंगी।
तुम बिन ये सूनी रातें,
दिल की सेज सजाएंगी।
तेरे अधरों की मीठी बातें,
मेरे ओठों में प्यास जगाएंगी।
जब चंदा की शीतल चांदनी,
मेरे मन में आग लगाएगी।
हां मिलने को तब तुमसे,
हृदय हूक उठती सी जाएगी।
तब एकपल में बन निर्मोही,
हां मेरे दोस्त !
तुम्हारे प्रति नहीं बल्कि खुद अपने प्रति,
तब एकपल में बन निर्मोही,
फिर तुम्हे अलविदा कहना होगा।